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Friday, October 30, 2020

सिद्धचक्र में नवपद का स्वरुप क्या है?

Definition of Navapada (Nine supreme elements) in Siddhachakra 

१. अरिहन्त परमेष्ठी




नाना प्रकार के दुखों से उद्वेलित जगत के समस्त जीवों के प्रति उछलते हुए करुणा भाव से वीस स्थानक तप की सम्यक आराधना कर जिन्होंने तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया ऐसे जगत वत्सल अरिहन्त परमेष्ठी को प्रथम पद में बारम्बार नमस्कार है। अचिन्त्य सामर्थ्य युक्त, सिद्धचक्र के केंद्र स्वरुप उस परम ज्ञानी सर्वज्ञ परमेश्वर ने  जगत तारक तीर्थ रूप चतुर्विध संघ स्थापित किया। सम्पूर्ण कृत कृत्य होते हुए भी केवल मात्र जगत हितार्थ जिन्होंने देवकृत समवसरण में स्फटिक रत्न के सिंहासन पर विराजमान हो कर अपने वचनातिशय के प्रभाव से ३५ गुण युक्त वाणी से सभी भव्य प्राणियों का कल्याण किया ऐसे लोकप्रदीप अरिहंत परमात्मा को त्रिकरण, त्रियोग से नमस्कार हो।   

२. सिद्ध परमेष्ठी

समस्त प्राणियों में क्लेश उत्पन्न करने वाले मोहनीय कर्म को क्षय करने के पश्चात् जिन्होंने समस्त कर्मो को पूर्ण रूपेण क्षय कर दिया है ऐसे परम आनंद के घन पिंड श्री सिद्ध परमात्मा का शरण हो।  आठ कर्मों के क्षय से प्रगट अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अव्यावध सुख, क्षायिक सम्यक्त्व व अनंत चारित्र, अगुरुलघु, आदि गुणों से युक्त देहरहित अरूपी सिद्ध परमात्मा अक्षय स्थिति गन के कारण अनंत काल तक सिद्ध शिला के ऊपर लोकांत में विराजमान हैं।  मुनिराज के ह्रदय रूपी मानसरोवर में हंस के समान क्रीड़ा करने वाले ऐसे सिद्ध भगवन को त्रिकरण त्रियोग से नमस्कार हो।  

३. आचार्य परमेष्ठी

"तित्थयर समो सूरी" ऐसे शास्त्र वाक्य से जिनकी प्रतिष्ठा है; ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार व वीर्याचार के पालन में समुद्यत एवं चतुर्विध संघ को पालन की प्रेरणा देनेवाले ३६ गुणधारी आचार्य भगवंत को तीसरे पद में नमस्कार हो।  सदा तत्वज्ञान में रमण करनेवाले, आगमों की सरहस्य व्याख्या करनेवाले, संघ हित में देश, काल के अनुसार निर्णय कर उसका पालन करवाने वाले जिनशासन में दीपक समान मुनिपति गणाधीश आचार्य भगवंत जयवंत वर्तें।  

४. उपाध्याय परमेष्ठी

कुवादी रूप मदमस्त हाथियों के अहंकार को चूर्ण करने में सिंह के समान अजेय पराक्रमी ११ अंग और १४ पूर्व को साङ्गोपाङ्ग धारण करनेवाले उपाध्याय भगवंत को चौथे पद में सदा नमस्कार हो। राजकुमार के सामान आचार्य परमेष्ठी के शासन को सँभालने वाले और मुर्ख से मुर्ख शिष्य को भी विद्वान बनाने का सामर्थ्य रखनेवाले श्रेष्ठ अध्यापक २५ गुण धारी उपाध्याय परमेष्ठी तीसरे भाव में मोक्ष प्राप्त करनेवाले होने से सदा वंदनीय हैं. 

५. साधु परमेष्ठी

मोक्षमार्ग की साधना में निरंतर अप्रमाद पञ्च समिति से समित व त्रि गुप्ति से गुप्त षटकाय रक्षक साधु परमेष्ठी को सतत नमन। संयम के शिखर पुरुष, १८ हज़ार शीलांग के धारक, अचल आचार चरित्र वाले जग वान्धव मुनि भगवंत सदा जयवंत हों।  आचार्य, स्थविर और उपाध्याय की सेवा में निमग्न एवं उनकी आज्ञा के पालक, मधुकरी वृत्ति से जीवन निर्वाह करनेवाले उग्र तपस्वी श्रमण वृन्दों को त्रिकाल वंदन, नमन।  


६. सम्यग दर्शन पद

  
मिथ्यात्व के नाश से उत्पन्न जिनेश्वर देव के वचन में श्रद्धा एवं तत्व में रूचि रूप समस्त धर्मों का मूल सम्यग दर्शन को त्रिकालवर्ती भावों से सम्यग नमन।  जिसके बिना ज्ञान भी अज्ञान रूप हो, और चारित्र भी भव भ्रमण को नष्ट न कर सकता हो ऐसे धर्म बीज सम्यक्त्व की जय हो! दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृति एवं चार अनंतनुवांधि कषाय के क्षय-उपशम से प्रगट होने वाले ६७ गुणों से युक्त सम्यक दर्शन मुझे प्राप्त हो!

७. सम्यग ज्ञान पद

अज्ञान एवं मोह हारिणि, ५१ भेदों से  नमस्कृत, स्व-पर प्रकाशक सम्यग ज्ञान पद को बारम्बार नमस्कार।  सभी क्रियायों का मूल, मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल ज्ञान इन पांच भेदों से सर्वत्र पूजित, जगत प्रकाशक ज्ञान पद सदा जयवंत वर्ते।  तीनों लोक, यहाँ तक की अलोक को भी द्रव्य, गुण, पर्याय सहित सम्पूर्णतः प्रकाशित करनेवाले ज्ञान की केवल ज्ञान प्राप्ति में हेतु बनें.   

८. सम्यग चारित्र पद

६ खण्ड के विशाल राज्य सुख को घास के तिनके के सामान तुच्छ समझ कर, उसे छोड़कर चक्रवर्ती भी जिन्हे अंगीकार करते हैं ऐसे मोक्ष सुख के प्रत्यक्ष कारण भुत और आत्मरमण रूप सम्यग चारित्र पद को बारम्बार वंदन हो। अंगीकार करने के  मात्र एक माह में ही व्यंतर देवलोक के सुख से अधिक और १२ माह में अनुत्तर विमान के सुख का अतिक्रमण करनेवाले चारित्र के सुख की तुलना जगत के किस सुख से हो सकती है? ७० गुणों से अलंकृत, देश विरति और सर्व विरति के भेद वाले चारित्र को नमन. 

९. सम्यग तप पद

उसी भव में अपनी निश्चित मुक्ति जानते हुए भी तीर्थंकर भगवंत जिसका आचरण करते हैं, समस्त कर्मों को जड़ मूल से उखाड फेंकने वाले उस तप पद को बारम्बार नमन हो।  वाह्य और अभ्यन्तर दोनों प्रकार के तप ही इच्छा निरोध स्वरुप हैं, ५० गुणों से युक्त ऐसे सम्यग तप पद की सदा जय हो !


Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Monday, September 7, 2020

सामायिक व चैत्यवंदन करना सीखें: शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध विधि पूर्वक भाग ३


शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध विधि पूर्वक चैत्यवंदन




जिन मंदिर, घर देरासर में या सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध आदि धर्म क्रियायों के समय अरिहंत परमात्मा की आराधना-उपासना हेतु चैत्यवंदन किया जाता है. चैत्यवंदन भाष्य एवं सूरी पुरंदर हरिभद्र सूरी रचित ललित विस्तरा शास्त्र ग्रंथों में विस्तार से चैत्यवंदन की विधि बताई गई है. यहाँ पर शुद्ध रीती से चैत्यवंदन करने की विधि संक्षेप में बताई जा रही है। 

चैत्यवंदन की विधि में खरतर गच्छ एवं तपा गच्छ में थोड़ा सा फर्क है. यहाँ पर दोनों ही विधियां बताई गई है अर्थात खरतर गच्छीय चैत्यवंदन विधि एवं तपा गच्छीय चैत्यवंदन विधि। 

अर्हन्त परमात्मा के सन्मुख दृष्टि करते हुए, जीवरक्षा हेतु प्रमार्जन कर, समस्त सांसारिक बातों व चिंताओं को छोड़ कर मन, वचन, काया की एकाग्रता से भावपूर्वक चैत्यवंदन की विधि करनी चाहिए।  इसके लिए सबसे पहले एक खमासमण देना चाहिये।  



खमासमण देने की विधि

सीधे खड़े हो कर इच्छामि खमा-समणो वंदिऊं बोलते हुए दोनों हाथों को जोड़ लें, फिर खड़े खड़े हाथ जोड़कर ही जावणिज्जाए निस्सिहीआए बोलें।  इसके बाद सर नीचे झुकाते हुए ढोक देने की मुद्रा करें. इसमें विशेषता ये हो की दोनों हाथ, दोनों घुटने एवं मस्तक ये पांच अंग एक साथ जमीन को स्पर्श करें। पांच अंग एक साथ झुकाकर प्रणाम/वंदन किया जाता है इस लिए इसे पंचांग प्रणिपात भी कहा जाता है।  

खमासमण सूत्र 

इच्छामि खमा-समणो वंदिऊं, जावणिज्जाए निस्सिहीआए मत्थएण वंदामि।

चैत्यवंदन से पूर्व एक खमासमण देने के पश्चात् जीवों की विराधना/हिंसा से लगे पापों के प्रायश्चित्त हेतु खड़े हो कर निम्न सूत्रों से इरियावहियं करें। 

इरियावहियं सूत्र 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन्‌।
इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं, 
इच्छामि पडिक्कमिउं ॥१॥ 

इरियावहियाए-विराहणाए ॥२॥
गमणागमणे ॥३॥
पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग, पणग, दग-मट्टी, मक्कडा-संताणा, संकमणे ॥४॥
जे मे जीवा विराहिया ॥५॥
एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया ॥६॥
अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ-ठाणं संकामिया,
जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥७॥

तस्स उत्तरी सूत्र 

तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं, 
विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।

अण्णत्थ सूत्र 

अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥

बोलकर एक लोगस्स अथवा ४ नवकार का काउसग्ग करें. 
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर प्रगट लोगस्स कहें।  

लोगस्स सूत्र 

लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥ 

उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥

कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥

अब फिर से तीन खमासमण दे कर निम्न प्रकार से चैत्यवंदन हेतु आदेश लें। 

चैत्यवंदन आदेश 

'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्!‌ चैत्यवंदन करूँ? 
इच्छं।

अब दाहिने पैर को पीछे की और मोड़कर बायाँ घुटना ऊपर कर योगमुद्रा में चैत्यवंदन, जं किं चि एवं नमोत्थुणं
सूत्र बोलें। 

योगमुद्रा 

दोनों हाथों को इस प्रकार जोड़ें की एक हाथ की एक ऊँगली दूसरे हाथ के उसी अंगुली के अंदर डाल दें. इस तरह हर उंगली एक दूसरे के साथ फांसी हुई हो। अब जुडी हुई कोहनी को नाभि के ऊपर स्थापित करें। 

(वि. द्र.: अनेक पूर्वाचार्यों, मुनिराजों, यतियों, एवं अन्य कवियों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, गुजराती आदि भाषाओँ में हज़ारों की संख्या में चैत्यवंदन की रचना की है।  इनमे से समय, आराध्य प्रतिमा, किये हुए तप अदि एवं रूचि के अनुकूल कोई सा भी चैत्यवंदन बोल सकते हैं।  खरतर गच्छ परंपरा में कोई सा भी चैत्यवंदन बोला जाता है जबकि तपागच्छ में पहले सकल कुशल वल्ली बोलने के बाद ही अन्य कोई चैत्यवंदन बोलते हैं।)

श्री शांतिनाथ चैत्यवंदन 

सकल कुशल वल्ली पुष्करावर्त-मेघो ।
दुरित तिमिर भानुः कल्प वृक्षोपमानः ॥
भवजल निधि पोतः सर्व संपत्ति हेतुः ।
स भवतु सततं वः (नः) श्रेयसे शांतिनाथः॥ 
श्रेयसे पार्श्वनाथः

जं किं चि सूत्र

जंकिंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए।
जाइं जिण-बिंबाइं, ताई सव्वाइं वंदामि॥ 

नमोत्थुणं सूत्र

नमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं ॥१॥
आइगराणं तित्थयराणं सयं-संवुद्धाणं॥२॥  
पुरिसुत्तमाणं पुरिस-सीहाणं पुरिस-वर-पुंडरीआणं पुरिस-वर-गंधहत्थीणं ॥३ ॥
लोगुत्तमाणं लोह-नाहाणं लोग-हिआणं लोग-पइवाणं लोग पज्जोअगराणं ॥४॥
अभय-दयाण चक्खु-दयाणं मग्ग-दयाणं सरण-दयाणं बोहि-दयाणं ॥५॥
धम्म-दयाणं धम्म-देसयाणं धम्म-णायगाणं धम्म-सारहीणं धम्म-वर-चाऊरंत चक्कवट्टीणं ॥६॥
अप्पडिहय वर-नाण दंसणधराणं वियट्ट-छउमाणं ॥७॥
जिणाणं-जावयाणं तिन्नाणं-तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोअगाणं ॥८॥
सव्वण्णुणं सव्व-दरिसीणं सिव-मयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, णमो जिणाणं जिअ-भयाणं ॥९॥
जे अ अईआ सिद्धा जे अ भविस्संति णागए काले संपइ अ वट्टमाणा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥१०

'जावंति चेइयाइं' सूत्र

जावंति चेइयाइं उड्ढे अ, अहे अ तिरिअ लोए अ। सव्वाइं ताइं वंदे, इह संतो तत्थ संताइं॥

अब फिर से एक खमासमण दे कर मुक्ताशुक्ति मुद्रा में निम्न सूत्र बोलें 

'जावंत केवि साहू' सूत्र

जावंत के वि साहू भरहे-रवय-महाविदेहे अ।
सव्वेसिं तेंसि पणओ, तिविहेण तिदंड-विरयाणं ॥

अब पुनः योगमुद्रा में निम्न २ सूत्र बोलें 

'नमोऽर्हत्‌' सूत्र

नमोऽर्हत्‌ सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः।

उवसग्गहरं सूत्र

उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघण-मुक्कं
विसहर-विस-णिण्णासं मंगल कल्लाण आवासं ।१।

विसहर-फुल्लिंग-मंतं कंठे धारेइ जो सया मणुवो
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।२।

चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ 
णर तिरियेसु वि जीवा, पावंति ण दुक्ख-दोगच्चं (दोहग्गं)।३।
 
तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणि कप्प-पाय-वब्भ-हिये 
पावंति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं ।४।

इह संथुओ महायस, भत्तिब्भर णिब्भरेण हिययेण
ता देव ! दिज्ज बोहिं, भवे-भवे पास जिणचंदं ।५।

उवसग्गहरं के साथ/ बदले कोई स्तवन भी बोल सकते हैं।  अब पुनः मुक्ताशुक्ति मुद्रा में निम्न सूत्र बोलें 

मुक्ताशुक्ति मुद्रा

दोनों हाथों को सीप (Oyester) के जैसे  बनाकर इस प्रकार जोड़ें की बीच में पोल हो। जैसे सीप में मोती रहती है ऐसी मुद्रा को मुक्ताशुक्ति मुद्रा कहते हैं। अब जुड़े हुए हाथों को मस्तक पर लगाएं। 

जय वीयराय सूत्र

जय वीयराय ! जग-गुरु !, होउ ममं तुह पभावओ भयवं !.
भव-निव्वेओ, मग्गाणुसारिआ, इट्ठफल-सिद्धी,
लोग-विरुद्धच्चाओ, गुरु-जण-पूआ, परत्थ-करणं च,
सुह-गुरु-जोगो, तव्वयण-सेवणा, आभव-मखंडा। 
खरतर च्छ परंपरा में इस सूत्र में आभव-मखंडा तक ही बोला जाता है.  

वारिज्जइ जइ वि नियाण-बंधणं वीयराय! तुह समये
तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं
दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, समाहि-मरणं च बोहि-लाभो अ.
संपज्जउ मह एअं, तुह नाह ! पणाम-करणेणं। 

सर्व मङ्गल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणं 
प्रधानं सर्व धर्मानां, जैनं जयति शासनं। 

तपागच्छ में  जैनं जयति शासनं तक बोला जाता है। 
चैत्यवंदन की विधि में खरतर गच्छ एवं तपा गच्छ में केवल जय वीयराय सूत्र में ही  फर्क है.  इसके अतिरिक्त और कहीं भी खरतर गच्छीय चैत्यवंदन विधि एवं तपा गच्छीय चैत्यवंदन विधि में कोई अंतर नहीं है.    

अब खड़े हो कर हाथ जोड़ कर निम्न सूत्र बोलें 

अरिहन्त चेइयाणं सूत्र 

(सव्व लोए) अरिहन्त चेइयाणं करेमि काउसग्गं ! 
वंदण वत्तियाए, पूअण वत्तियाए, सक्कार वत्तियाए, सम्मान वत्तियाए, वोहिलाभ वत्तियाए, निरुवसग्ग वत्तियाए, सद्धाए, मेहाए, धीइए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्ढमाणिए ठामि काउसग्गं। 

अण्णत्थ सूत्र 

अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥

बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें. 
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर  नमोऽर्हत्‌ सिद्धा बोलकरकोई स्तुति कहें। 

'नमोऽर्हत्‌' सूत्र

नमोऽर्हत्‌ सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः।

महावीर भगवान की स्तुति 

मूरति मनमोहन, कञ्चन कोमल काय 
सिद्धारथ नंदन,  त्रिशला देवी सुमाय,
मृगनायक लाञ्छन सात हाथ तनुमान,
दिन दिन सुखदायक, स्वामी श्री वर्धमान। 

उपरोक्त स्तुति अथवा परमात्मा की अन्य कोई भी स्तुति बोल सकते हैं। 

(खरतरगच्छ एवं तपागच्छ दोनों परम्पराओं के अनुसार चैत्यवंदन विधि सम्पूर्ण) 



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Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents a Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, to Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Friday, September 4, 2020

सामायिक व चैत्यवंदन करना सीखें: शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध विधि पूर्वक भाग 2

 

संध्या कालीन सामायिक लेने व पारने की विधि खरतरगच्छीय परम्परानुसार 

सर्व प्रथम एकांत स्थान में शरीर शुद्धि कर शुद्ध वस्त्र पहन कर अपने सन्मुख उच्च स्थान पर स्थापनाचार्य जी विराजमान करें. साथ  चरवला, मुँहपत्ती व आसन (कटासना) रखें. इसके बाद दाहिने हाथ को स्थापना जी की तरफ कर स्थापन मुद्रा में  तीन बार नवकार मन्त्र बोलें. 

नवकार मंत्र  

णमो अरहंताणं,
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्‍झायाणं,
णमो लोए सव्‍वसाहूणं ।१।

एसो पंच णमुक्‍कारो, सव्‍व पावप्‍पणासणो।
मंगलाणं च सव्‍वेसिं, पढम हवई मंगलं।२।

इसके बाद तेरह बोल से स्थापनाचार्य जी की पडिलेहना करें. 

स्थापनाचार्य जी पडिलेहण के १३ बोल 

१ शुद्ध स्वरुप धारें २ ज्ञान ३ दर्शन ४ चारित्र सहित ५ सद्दहणा शुद्धि ६ प्ररूपणा शुद्धि  ७ स्पर्शना शुद्धि सहित ८ पांच आचार पाले ९ पलावे १० अनुमोदे ११ मनोगुप्ति १२ वचन गुप्ति १३  कायगुप्ति आदरे।  

तत्पश्चात दो बार खमासमण सूत्र बोलते हुए पाँचों आग झुका कर (दो घुटने, दो हाथ, मस्तक) खमासमण दें. 
मत्थएण वंदामि।
इच्छकार भगवन, सुहराई! (सुहदेवसी) सुखतप शरीर-निराबाध! सुख संजम जात्रा निर्वहते होजी? स्वामी साता छे जी?
अब फिर से एक खमासमण देकर मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।  

मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक लेवा मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ? 
इच्छं। 

अब उकडू बैठ कर निम्न ५० (२५+२५) बोलों से मुँहपत्ती का पडिलेहण करें. 

मुँहपत्ती पडिलेहण के २५  बोल

१ सूत्र अर्थ तत्व करि सद्दहुँ २ सम्यक्त्व मोहनीय ३ मिश्र मोहनीय ४ मिथ्यात्व मोहनीय परिहरूं ५ कामराग ६ स्नेहराग ७ दृष्टि राग परिहरूं।
८ सुदेव ९ सुगुरु १० सुधर्म आदरुं ११ कुदेव १२ कुगुरु १३ कुधर्म परिहरूं।
१४ ज्ञान १५ दर्शन १६ चारित्र आदरुं १७ ज्ञान विराधना १८ दर्शन विराधना १९ चारित्र विराधना परिहरूं।
२० मनोगुप्ति २१ वचनगुप्ति २२ कायगुप्ति आदरुं २३ मनोदण्ड २४ वचन दण्ड २५ कायदण्ड परिहरूं।

अंग पडिलेहण के २५  बोल

१ हास्य २ रति ३ अरति परिहरूं। (बाँया हाथ पडिलेहते हुए बोलें)
४ भय ५ शोक ६ जुगुप्सा  (दाहिना हाथ पडिलेहते हुए बोलें)
७ कृष्ण लेश्या ८ नील लेश्या ९ कापोत लेश्या परिहरूं।  (मस्तक पडिलेहते हुए बोलें)
१० रिद्धि गारव ११ रस गारव १२ साता गारव परिहरूं। (मुँह पडिलेहते हुए बोलें)
१३ माया शल्य १४ नियाण शल्य १५ मिथ्यादर्शन शल्य परिहरूं। (ह्रदय/वक्ष स्थल पडिलेहते हुए बोलें)
१६ क्रोध १७ मान परिहरूं  (दाहिना कन्धा पडिलेहते हुए बोलें)
१८ माया १९ लोभ परिहरूं।  (बाँया कन्धा पडिलेहते हुए बोलें)
२० पृथ्वीकाय २१ अपकाय २२ तेउकाय कि जयणा करूँ।  (दाहिना घुटना व पैर पडिलेहते हुए बोलें)
२३ वाउकाय २४ वनष्पति काय २५ त्रसकाय कि जयणा करूँ। (बाँया घुटना व पैर पडिलेहते हुए बोलें)

(यहाँ पुरुष पुरे २५ बोल बोलें, स्त्रियां मस्तक, ह्रदय  कन्धों का पडिलेहण न करें एवं इससे सम्वन्धित ७ कृष्ण लेश्या ८ नील लेश्या ९ कापोत लेश्या परिहरूं। १३ माया शल्य १४ नियाण शल्य १५ मिथ्यादर्शन शल्य परिहरूं। 
१६ क्रोध १७ मान परिहरूं १८ माया १९ लोभ परिहरूं। ये दश बोल न  बोलें, इसके अतिरिक्त बाकी के १५ बोल से ही पडिलेहण करें।
 
अब फिर से एक खमासमण देकर निम्नरूप से सामायिक आदेश लेवें। 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक संदिसाहुँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक ठाउँ?
इच्छं।

कहकर तीन नवकार मन्त्र का स्मरण करें. तत्पश्चात-

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी सामायिक दण्डक उच्चरावो जी! 

कहकर गुरु महाराज या किसी बड़े से सामायिक दण्डक सूत्र उच्चरें। यदि अकेले हों तो स्वयं ही खड़े हो कर, आधा अंग झुका कर तीन बार करेमी भंते सूत्र बोलें । 

सामायिक दण्डक सूत्र 

करेमि भंते! सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चक्खामि।
जाव नियमं पज्जुवासामि। 
दुविहं-तिविहेणं, 
मणेणं, वायाए, कायेणं,
न करेमि, न कारवेमि, 
तस्स भंते ! पडिक्कमामि, 
निंदामि, गरिहामि,अप्पाणं वोसिरामि।

अब फिर से एक खमासमण देकर खड़े खड़े 

इरियावहियं सूत्र 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन्‌।
इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं, 
इच्छामि पडिक्कमिउं ॥१॥ 

इरियावहियाए-विराहणाए ॥२॥
गमणागमणे ॥३॥
पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग पणग दग-मट्टी मक्कडा-संताणा संकमणे ॥४॥
जे मे जीवा विराहिया ॥५॥
एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया ॥६॥
अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया।
जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥७॥

तस्स उत्तरी सूत्र 

तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं, 
विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।

अण्णत्थ सूत्र 

अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥

बोलकर एक लोगस्स अथवा ४ नवकार का काउसग्ग करें. 
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर प्रगट लोगस्स कहें।  

लोगस्स सूत्र 

लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥ 

उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥

कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥

फिर से एक खमासमण देकर  मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।  

मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पच्चक्खाण लेवा मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ? 
इच्छं। 

अब उकडू बैठ कर मुँहपत्ती पडिलेहण कर दो बार वांदना देवें. 

|| सुगुरु वन्दना सूत्र || 

इच्छामि खमा-समणो ! 
वंदिउं जावणिज्जाए, निस्सिहिआए ,
अणुजाणह मे मिउग्गहं, निस्सिहि,
अहो-कायं-काय संफासं, खमणिज्जो भे ! किलामो ?
अप्प-किलंताणं बहु-सुभेण भे ! दिवसो वइक्कंतो ?
जत्ता भे ? जवणिज्जं च भे ? खामेमि खमा-समणो !
देवसिअं वइक्कमं, आवस्सिआए पडिक्कमामि, खमासमणाणं, देवसिआए आसायणाए तित्तीसन्नयराए 
जं किंचि मिच्छाए,
मण-दुक्कडाए, वय-दुक्कडाए, काय-दुक्कडाए, 
कोहाए, माणाए, मायाए, लोभाए, 
सव्व-कालिआए, सव्व-मिच्छो-वयराए,
सव्व-धम्माइ-क्कमणाए 
आसायणाए जो मे अइयारो कओ,
तस्स खमा-समणो ! पडिक्कमामि,
निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि. 

इस सूत्र को दो  द्वादशावर्त वंदन करें।  दूसरी बार में देवसिअं वइक्कमं, आवस्सिआए पडिक्कमामि ....  के स्थान पर आवस्सिआए न बोलें; इस प्रकार बोलें देवसिअं वइक्कमं, पडिक्कमामि .... 

पच्चक्खाण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पच्चक्खाण करूँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी पच्चक्खाण करावो जी!

इच्छं।

कहकर गुरु महाराज से अथवा स्वयं यथाशक्ति पच्चक्खाण करें. यदि उपवास, आयम्बिल. एकासना, वियासना आदि कोई भी तप  किया हो तो पाणाहार का अन्यथा  रात्रिकालीन चौविहार अथवा दुविहार का  पच्चक्खाण करें। 

अब फिर से एक खमासमण देकर

सज्झाय आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सज्झाय संदिसाहुँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सज्झाय करूँ?
इच्छं। 

कहकर हाथ जोड़ कर ८ नवकार मन्त्र का स्मरण करें. 

अब फिर से एक खमासमण देकर

बेसणो आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! बेसणो संदिसाहुँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! बेसणो ठाउँ?
इच्छं।

अब चरवले से जमीन का प्रमार्जन कर आसन बिछा कर बैठ जाएँ।

यदि शीतादि कारणवश अतिरिक्त वस्त्र, कम्बल आदि की आवश्यकता हो तो फिर से एक खमासमण देकर

पंगुरण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पंगुरण संदिसाहुँ?  
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पंगुरण पडिग्गहूं?
इच्छं।

कहकर अतिरिक्त वस्त्रादि ग्रहण करें. 

यहाँ पर खरतरगच्छीय परंपरा अनुसार संध्या कालीन सामायिक लेने की विधि पूरी हुई। अब देवसी प्रतिक्रमण करें अथवा दो घडी अर्थात ४८ मिनट तक स्वाध्याय, ध्यान, जप, स्तोत्र पाठ आदि धर्मध्यान में समता पूर्वक व्यतीत करें. राई प्रतिक्रमण पूर्ण होने पर अथवा ४८ मिनट हो जाने पर सामायिक पारने की विधि करें।  

सामायिक पारने की विधि 

यदि सामायिक काल में संघट्टा आदि दोष लगा हो, सावद्य वस्तुओं का स्पर्श हुआ हो, गलती से भी बिजली आदि का उपयोग हो गया हो, इस प्रकार किसी भी तरह से कोई हिंसा हुई हो तो इस प्रकार इरियावहियँ करें। अन्यथा सीधे सामायिक पारने की विधि करें। 

एक खमासमण देकर खड़े खड़े 
तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं, 
उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥

कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥

अब सामायिक पारने हेतु फिर से एक खमासमण देकर मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।  

मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन!  मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ? 
इच्छं। 

कहकर मुँहपत्ती का पडिलेहण करें। 
अब फिर से एक खमासमण देकर

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक पारुं?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक पारेमी ?
इच्छं। 

कहकर हाथ जोड़कर तीन नवकार मन्त्र का स्मरण करें. इसके बाद मस्तक झुका कर दाहिना हाथ चरवले पर रखकर बोलें. 

सामायिक भावना गाथा (भयवं दसण्ण भद्दो)

भयवं दसण्ण भद्दो, सुदंसणो थूलभद्द वयरो य, सफलिकय गिह चाया, साहू एवं विहा हुंती।  
साहूण वंदणेण नासई पावं असंकिया भावा, फासुअ दाणे निज्जर, अभीग्गहो णाण माईणं।    

छउमत्थो मूढ़मणो, कित्तिय मित्तं पि जीवो, जं च न सम्भरामि अहं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स।  
सामाइय पोसह संठियस्स, जीवस्स जाइ जो कालो, सो सफलो वोधव्वो, सेसो संसार फल हेउ।  

सामायिक विधि से लिया, विधि से किया, विधि से करते अविधि आशातना लगी हो, दश मन के, दश वचन के, बारह काया के बत्तीस दूषणों में से जो कोई दूषण लगा हो वह सब मन वचन काया करके तस्स मिच्छामि दुक्कडं।    

अब दाहिना हाथ अपनी तरफ कर उत्थापन मुद्रा में तीन नवकार मन्त्र स्मरण करें. 

(खरतर गच्छ परंपरा अनुसार सामायिक पारने की विधि सम्पूर्ण।)


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Thursday, September 3, 2020

सामायिक व चैत्यवंदन करना सीखें: शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध विधि पूर्वक भाग १

 

प्रातः कालीन सामायिक लेने व पारने की विधि खरतरगच्छीय परम्परानुसार 

जैन धर्म में सामायिक का महत्व एवं स्थान 

जैन धर्म मे सामायिक क बहुत अधिक महत्व है. शास्त्रोँ मे ऐसा कहा गया है कि सामायिक मात्र के ज्ञान से कोइ जीव केवल ज्ञान प्राप्त कर सकता है. ये भी कह गया है कि कोइ व्यक्ति प्रतिदिन लाखों स्वर्णमुद्राओं का दान करे, ऐसा वो जीवन पर्यन्त करे, इस प्रकार मेरुपर्वत जितना सोना दान कर दे तो भी उसका पुण्य एक सच्ची सामायिक के बराबर नहीं होता. जैन कथानकों  के अनुसार मगध सम्राट श्रेणिक पुनिया श्रावक की एक सामायिक के पुण्य के  बदले अपना पूरा राज्य देने को तैयार हो गए थे।  उपरोक्त बातों से जैन धर्म में सामायिक का महत्व रेखांकित होता है. 

जैन धर्म के अलग अलग समुदायों में सामायिक के सूत्रों एवं विधि में थोड़ी बहुत विभिन्नता है। सुबह और शाम की सामायिक में भी विधि में थोड़ा अंतर है. लेख के इस भाग में खरतरगच्छ परंपरा के अनुसार सुबह की (प्रातःकालीन) सामायिक की विधि बताई गई है. विधि के अतिरिक्त अन्य बातें प्रायः सभी समुदायों में एक  जैसी होती है. 

  


सामायिक  व चैत्यवंदन सूत्रों  की भाषा प्राकृत को कैसे समझें?

बड़ी संख्या में जैन श्रावक श्राविका (गृहस्थ) प्रतिदिन सामायिक व चैत्यवंदन करते हैं. सामायिक व चैत्यवंदन के अधिकतर सूत्र प्राकृत भाषा में निवद्ध है. प्राकृत भाषा संस्कृत भाषा की जननी है. अधिकतर आधुनिक (वर्त्तमान) भारतीय भाषाओँ की भी माँ है. परन्तु प्राचीन भाषा होने के कारण आज के अधिकांश लोग इस भाषा से अपरिचित हैं. उनलोगों को इस भाषा के सटीक उच्चारण का भी पता नहीं है. इस लिए सामायिक व चैत्यवंदन के सूत्रों के उच्चारण में अनेक अशुद्धियाँ रहने की सम्भावना रहती है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्राकृत नहीं जानने वाले सामान्य जनों के लिए यहाँ सरल भाषा में सामायिक व चैत्यवंदन के सूत्रों के उच्चारण एवं विधि को समझने का प्रयत्न किया गया है. 

प्राकृत उच्चारण की समस्याएं व समाधान

प्राकृत एक प्राचीन भाषा है जिससे हममे से अधिकांश लोग अपरिचित हैं. इसकी ध्वन्यात्मकता (Phonetic) भी वर्त्तमान भाषाओं से थोड़ी अलग है. अतः इस भाषा को बोलने में उच्चारण सम्वन्धी कठिनाई आती है.  प्राकृत उच्चारण में मुख्यतः चार कठिनाइयां आती है जहाँ उच्चारण सम्वन्धी गलती होने की सम्भावना रहती है. 

१. संयुक्त अक्षर: 

संस्कृत की तरह प्राकृत भाषा में भी संयुक्त अक्षरों की बहुलता होती है जिससे इनके उच्चारण में नए लोगों को थोड़ी परेशानी आति है. कठिन और बड़े शब्दों को शब्दांशों (Syllable) में तोड़ कर उच्चारण करने से संयुक्ताक्षरों से सम्वन्धित परेशानी कम हो सकती है. 

२. हलन्त का प्रयोग: 

हिंदी या अन्य आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाओं के उच्चारण के नियम प्राकृत व संस्कृत से थोड़े अलग हैं. हिंदी या अन्य आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाओं में किसी शब्द या शब्दांश के अंतिम अक्षर (यदि उसमे कोई मात्रा नहीं हो) का उच्चारण इस प्रकार होता है जैसे उसमे हलन्त लगा हुआ है. इसका अर्थ ये हुआ की हम उस अक्षर का आधा उच्चारण करते हैं. हिंदी आदि भाषाओँ में इसे उच्चारण दोष नहीं माना जाता. जैसे हम जब राम लिखते हैं तब हिंदी अदि में उसका उच्चारण राम्  के जैसा करते हैं. इसी प्रकार ऋषभ को ऋषभ्अर को अर्अजित को अजित्संभव को सम्भव् आदि बोलते हैं. इसका अर्थ ये हुआ की जिन अक्षरों में हलन्त नहीं लगा हुआ है उनमे भी हलन्त लगाकर उच्चारण करते हैं. 

प्राकृत सूत्रों के उच्चारण में इस प्रकार की कुछ बहुप्रचलित भूल के  उदाहरण: 
खमासमण  सूत्र में इच्छामि खमासमणो बोलते समय प्रायः उच्चारण इस प्रकार होता है खमास्-मणो जबकि शुद्ध उच्चारण इस प्रकार है: खमा-समणो। 

इसी तरह णमोत्थुणं सूत्र में धम्म-सारहीणं शब्द का उच्चारण गलती से धम्मसार्-हीणं किया जाता है जबकि शुद्ध रूप धम्म-सारही-णं होता है. उच्चारण गलत होने से कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है. जैसे इस शब्द का अर्थ है धर्म के सारथी जबकि गलत उच्चारण से इसका अर्थ हो जाता है धर्म के सार से हीन. यहाँ बुरी तरह अर्थ का अनर्थ हो गया है. 

प्राकृत या संस्कृत भाषा के उच्चारण के समय यह बात खास ध्यान देने योग्य है की हलन्त नहीं लगा होने पर उस वर्ण (अक्षर) को पूरा बोला जाये. केवल हलन्त लगा हुआ होने पर ही उसका उच्चारण हिंदी आदि की तरह आधा किया जाये. इतना मात्र करने से ही प्राकृत/संस्कृत भाषा का उच्चारण सुन्दर हो जायेगा. 

३. दन्त न एवं मूर्धन्य ण का प्रयोग: 

प्राकृत भाषा में संस्कृत से अनेक समानताएं हैं और अनेक असमानताएं भी है. उसमे एक मुख्य असमानता दन्त न एवं मूर्धन्य ण के प्रयोग को लेकर है. प्राकृत भाषा में प्रायः दन्त न का प्रयोग नहीं होता. उसमे प्रायः सभी जगह केवल मूर्धन्य ण का ही उपयोग होता है. अतः प्राकृत के सूत्रों के उच्चारण के समय इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए की हम मूर्धन्य ण  का ही उपयोग करें. 

४. तालव्य श मूर्धन्य ष एवं दन्त स का प्रयोग: 

प्राकृत भाषा में प्रायः दन्त न का उपयोग नहीं होता औरमूर्धन्य ण  का ही उपयोग होता है. इसी तरह इस इस भाषा में तालव्य श व मूर्धन्य ष  प्रयोग प्रायः नहीं होता, केवल दन्त स का ही प्रयोग होता है. अतः के उच्चारण के समय विशेष सावधानी वरतते हुए  तालव्य श एवं मूर्धन्य ष का उपयोग न करें. केवल दन्त स का ही प्रयोग करें. 

उपरोक्त चारों बातों का ध्यान रखने से प्राकृत भाषा का शुद्ध उच्चारण करना बहुत सरल हो जायेगा. 

सामायिक के उपकरण 

सामायिक के मुख्यतः तीन उपकरण होते हैं १. चरवला (पुंजनि) २. मुँहपत्ती ३. आसन (कटासना). कोई भी धर्मक्रिया गुरु के सन्मुख करने पर विशेष फलदायी होता है, इसलिए गुरु की अनुपस्थिति में उनके प्रतीक स्वरुप स्थापनाचार्य  को किसी ऊँचे स्थान पर विराजमान कर उनके सन्मुख सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषधादि क्रिया की जाती है. अहिंसा सभी धर्मों  है का सार है. अतः सामायिक में जीवरक्षा हेतु चरवले का उपयोग होता है. शास्त्र आदि पूजनीय वस्तुओं पर  बोलते समय थूक न गिरे एवं उड़ता हुआ (सम्पातिम) जीव मुँह के अन्दर न चला जाए इसलिए मुँहपत्ती का उपयोग किया जाता है. जयणा पूर्वक उठने, बैठने, चलने के लिए ऊन से बने हुए आसन का  उपयोग होता है. 

सामायिक के सूत्र एवं विधि 

सामायिक का मुख्य सूत्र सामायिक दण्डक अर्थात करेमि भंते  है. इसके अतिरिक्त सामायिक ग्रहण करते समय गुरुवन्दन के लिए गुरु से सुखसाता पूछा जाता है और उनसे अपने अविनय अपराध के लिए क्षमा याचना की जाती है. सामायिक लेते समय इरियावहियँ से सभी जीवों की हिंसा के लिए मिच्छामि दुक्कडं दिया जाता है. इसके अलावा स्थापनाचार्य जी की पडिलेहना व स्थापना, मुँहपत्ती पडिलेहण, बैठने एवं स्वाध्याय का आदेश भी लिया जाता है. यदि सर्दी आदि के कारण अतिरिक्त वस्त्र की आवश्यकता हो तो उसका भी आदेश लेते हैं. नवकार मन्त्र एवं खमासमण सूत्र का प्रयोग सभी धर्म क्रियाओं की तरह सामयिक में भी कई बार होता है. यह प्रातःकालीन सामायिक की विधि है सांध्यकालीन विधि में थोड़ा अंतर है. 

सर्व प्रथम एकांत स्थान में शरीर शुद्धि कर शुद्ध वस्त्र पहन कर अपने सन्मुख उच्च स्थान पर स्थापनाचार्य जी विराजमान करें. साथ  चरवला, मुँहपत्ती व आसन (कटासना) रखें. इसके बाद दाहिने हाथ को स्थापना जी की तरफ कर स्थापन मुद्रा में  तीन बार नवकार मन्त्र बोलें. 

नवकार मंत्र  

णमो अरहंताणं,
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्‍झायाणं,
णमो लोए सव्‍वसाहूणं ।१।

एसो पंच णमुक्‍कारो, सव्‍व पावप्‍पणासणो।
मंगलाणं च सव्‍वेसिं, पढम हवई मंगलं।२।

इसके बाद तेरह बोल से स्थापनाचार्य जी की पडिलेहना करें. 

स्थापनाचार्य जी पडिलेहण के १३ बोल 

१ शुद्ध स्वरुप धारें २ ज्ञान ३ दर्शन ४ चारित्र सहित ५ सद्दहणा शुद्धि ६ प्ररूपणा शुद्धि  ७ स्पर्शना शुद्धि सहित ८ पांच आचार पाले ९ पलावे १० अनुमोदे ११ मनोगुप्ति १२ वचन गुप्ति १३  कायगुप्ति आदरे।  

तत्पश्चात दो बार खमासमण सूत्र बोलते हुए पाँचों आग झुका कर (दो घुटने, दो हाथ, मस्तक) खमासमण दें. 

खमासमण सूत्र 

इच्छामि खमा-समणो वंदिऊं, जावणिज्जाए निस्सिहीआए मत्थएण वंदामि।

इसके बाद खड़े हो कर, आधा अंग झुका कर नीचे दिए सूत्र से गुरु से सुखसाता पूछें।  

सुगुरु सुखसाता पृच्छा सूत्र

इच्छकार भगवन, सुहराई! (सुहदेवसी) सुखतप शरीर-निराबाध! सुख संजम जात्रा निर्वहते होजी? स्वामी साता छे जी?
भात पाणी का लाभ दिजो जी!

अब फिर से एक खमासमण देकर दाहिना हाथ जमीन पर रख कर सर झुका कर निम्न सूत्र से गुरु से क्षमा याचना करें. 

सुगुरु खामना सूत्र 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन्‌! 
अब्भुट्ठिओमि अब्भिंतर राइअं (देवसिअं) खामेउं? इच्छं, खामेमि राइअं (देवसिअं), 

जंकिंचि अपत्तिअं-परपत्तिअं, भत्ते-पाणे, विणए-वेयावच्चे, आलावे-संलावे, उच्चासणे-समासणे, अंतरभासाए-उवरिभाषाए, जंकिंचि मज्झ, विणय-परिहीणं, सुहुमं वा बायरं वा, तुब्भे जाणह, अहं ण जाणामि, तस्स मिच्छामि दुक्कडं।

अब फिर से एक खमासमण देकर मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।  

मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक लेवा मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ? 
इच्छं। 

अब उकडू बैठ कर निम्न ५० (२५+२५) बोलों से मुँहपत्ती का पडिलेहण करें. 

मुँहपत्ती पडिलेहण के २५  बोल

१ सूत्र अर्थ तत्व करि सद्दहुँ २ सम्यक्त्व मोहनीय ३ मिश्र मोहनीय ४ मिथ्यात्व मोहनीय परिहरूं ५ कामराग ६ स्नेहराग ७ दृष्टि राग परिहरूं।
८ सुदेव ९ सुगुरु १० सुधर्म आदरुं ११ कुदेव १२ कुगुरु १३ कुधर्म परिहरूं।
१४ ज्ञान १५ दर्शन १६ चारित्र आदरुं १७ ज्ञान विराधना १८ दर्शन विराधना १९ चारित्र विराधना परिहरूं।
२० मनोगुप्ति २१ वचनगुप्ति २२ कायगुप्ति आदरुं २३ मनोदण्ड २४ वचन दण्ड २५ कायदण्ड परिहरूं।

अंग पडिलेहण के २५  बोल

१ हास्य २ रति ३ अरति परिहरूं। (बाँया हाथ पडिलेहते हुए बोलें)
४ भय ५ शोक ६ जुगुप्सा  (दाहिना हाथ पडिलेहते हुए बोलें)
७ कृष्ण लेश्या ८ नील लेश्या ९ कापोत लेश्या परिहरूं।  (मस्तक पडिलेहते हुए बोलें)
१० रिद्धि गारव ११ रस गारव १२ साता गारव परिहरूं। (मुँह पडिलेहते हुए बोलें)
१३ माया शल्य १४ नियाण शल्य १५ मिथ्यादर्शन शल्य परिहरूं। (ह्रदय/वक्ष स्थल पडिलेहते हुए बोलें)
१६ क्रोध १७ मान परिहरूं  (दाहिना कन्धा पडिलेहते हुए बोलें)
१८ माया १९ लोभ परिहरूं।  (बाँया कन्धा पडिलेहते हुए बोलें)
२० पृथ्वीकाय २१ अपकाय २२ तेउकाय कि जयणा करूँ।  (दाहिना घुटना व पैर पडिलेहते हुए बोलें)
२३ वाउकाय २४ वनष्पति काय २५ त्रसकाय कि जयणा करूँ। (बाँया घुटना व पैर पडिलेहते हुए बोलें)

(यहाँ पुरुष पुरे २५ बोल बोलें, स्त्रियां मस्तक, ह्रदय  कन्धों का पडिलेहण न करें एवं इससे सम्वन्धित ७ कृष्ण लेश्या ८ नील लेश्या ९ कापोत लेश्या परिहरूं। १३ माया शल्य १४ नियाण शल्य १५ मिथ्यादर्शन शल्य परिहरूं। 
१६ क्रोध १७ मान परिहरूं १८ माया १९ लोभ परिहरूं। ये दश बोल न  बोलें, इसके अतिरिक्त बाकी के १५ बोल से ही पडिलेहण करें।
 
अब फिर से एक खमासमण देकर निम्नरूप से सामायिक आदेश लेवें। 

सामायिक आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक संदिसाहुँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक ठाउँ?
इच्छं।

कहकर तीन नवकार मन्त्र का स्मरण करें. तत्पश्चात-

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी सामायिक दण्डक उच्चरावो जी! 

कहकर गुरु महाराज या किसी बड़े से सामायिक दण्डक सूत्र उच्चरें। यदि अकेले हों तो स्वयं ही खड़े हो कर, आधा अंग झुका कर तीन बार करेमी भंते सूत्र बोलें । 

सामायिक दण्डक सूत्र 

करेमि भंते! सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चक्खामि।
जाव नियमं पज्जुवासामि। 
दुविहं-तिविहेणं, 
मणेणं, वायाए, कायेणं,
न करेमि, न कारवेमि, 
तस्स भंते ! पडिक्कमामि, 
निंदामि, गरिहामि,अप्पाणं वोसिरामि।

अब फिर से एक खमासमण देकर खड़े खड़े 

इरियावहियं सूत्र 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन्‌।
इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं, 
इच्छामि पडिक्कमिउं ॥१॥ 

इरियावहियाए-विराहणाए ॥२॥
गमणागमणे ॥३॥
पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग पणग दग-मट्टी मक्कडा-संताणा संकमणे ॥४॥
जे मे जीवा विराहिया ॥५॥
एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया ॥६॥
अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया।
जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥७॥

तस्स उत्तरी सूत्र 

तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं, 
विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।

अण्णत्थ सूत्र 

अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥

बोलकर एक लोगस्स अथवा ४ नवकार का काउसग्ग करें. 
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर प्रगट लोगस्स कहें।  

लोगस्स सूत्र 

लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥ 

उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥

कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥

अब फिर से एक खमासमण देकर

बेसणो आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! बेसणो संदिसाहुँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! बेसणो ठाउँ?
इच्छं।

अब चरवले से जमीन का प्रमार्जन कर आसन बिछा कर बैठ जाएँ।

अब फिर से एक खमासमण देकर

सज्झाय आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सज्झाय संदिसाहुँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सज्झाय करूँ?
इच्छं। 

कहकर हाथ जोड़ कर ८ नवकार मन्त्र का स्मरण करें. 

यदि शीतादि कारणवश अतिरिक्त वस्त्र, कम्बल आदि की आवश्यकता हो तो फिर से एक खमासमण देकर

पंगुरण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पंगुरण संदिसाहुँ?  
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पंगुरण पडिग्गहूं?
इच्छं।

कहकर अतिरिक्त वस्त्रादि ग्रहण करें. 

यदि पच्चक्खाण करना हो तो फिर से एक खमासमण देकर 

पच्चक्खाण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पच्चक्खाण करूँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी पच्चक्खाण करावो जी!

कहकर गुरु महाराज से अथवा स्वयं यथाशक्ति पच्चक्खाण करें. 

पच्चक्खाण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पच्चक्खाण करूँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी पच्चक्खाण करावो जी!

कहकर यथाशक्ति पच्चक्खाण करें।  

यहाँ पर खरतरगच्छीय परंपरा अनुसार  प्रातःकालीन सामायिक लेने की विधि पूरी हुई। अब राई प्रतिक्रमण करें अथवा दो घडी अर्थात ४८ मिनट तक स्वाध्याय, ध्यान, जप, स्तोत्र पाठ आदि धर्मध्यान में समता पूर्वक व्यतीत करें. राई प्रतिक्रमण पूर्ण होने पर अथवा ४८ मिनट हो जाने पर सामायिक पारने की विधि करें।  

सामायिक पारने की विधि 

यदि सामायिक काल में संघट्टा आदि दोष लगा हो, सावद्य वस्तुओं का स्पर्श हुआ हो, गलती से भी बिजली आदि का उपयोग हो गया हो, इस प्रकार किसी भी तरह से कोई हिंसा हुई हो तो इस प्रकार इरियावहियँ करें। अन्यथा सीधे सामायिक पारने की विधि करें। 

एक खमासमण देकर खड़े खड़े 

इरियावहियं सूत्र 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन्‌।
इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं, 
इच्छामि पडिक्कमिउं ॥१॥ 

इरियावहियाए-विराहणाए ॥२॥
गमणागमणे ॥३॥
पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग पणग दग-मट्टी मक्कडा-संताणा संकमणे ॥४॥
जे मे जीवा विराहिया ॥५॥
एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया ॥६॥
अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया।
जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥७॥

तस्स उत्तरी सूत्र 

तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं, 
विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।

अण्णत्थ सूत्र 

अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥

बोलकर एक लोगस्स अथवा ४ नवकार का काउसग्ग करें. 
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर प्रगट लोगस्स कहें।  

लोगस्स सूत्र 

लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥ 

उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥

कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥

अब फिर से एक खमासमण देकर  मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।  

मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन!  मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ? 
इच्छं। 

कहकर मुँहपत्ती का पडिलेहण करें। 
अब फिर से एक खमासमण देकर

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक पारुं?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक पारेमी ?
इच्छं। 

कहकर हाथ जोड़कर तीन नवकार मन्त्र का स्मरण करें. इसके बाद मस्तक झुका कर दाहिना हाथ चरवले पर रखकर बोलें. 

सामायिक भावना गाथा (भयवं दसण्ण भद्दो)

भयवं दसण्ण भद्दो, सुदंसणो थूलभद्द वयरो य, सफलिकय गिह चाया, साहू एवं विहा हुंती।  
साहूण वंदणेण नासई पावं असंकिया भावा, फासुअ दाणे निज्जर, अभीग्गहो णाण माईणं।    

छउमत्थो मूढ़मणो, कित्तिय मित्तं पि जीवो, जं च न सम्भरामि अहं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स।  
सामाइय पोसह संठियस्स, जीवस्स जाइ जो कालो, सो सफलो वोधव्वो, सेसो संसार फल हेउ।  

सामायिक विधि से लिया, विधि से किया, विधि से करते अविधि आशातना लगी हो, दश मन के, दश वचन के, बारह काया के बत्तीस दूषणों में से जो कोई दूषण लगा हो वह सब मन वचन काया करके तस्स मिच्छामि दुक्कडं।    

अब दाहिना हाथ अपनी तरफ कर उत्थापन मुद्रा में तीन नवकार मन्त्र स्मरण करें. 

(खरतर गच्छ परंपरा अनुसार सामायिक पारने की विधि सम्पूर्ण।)

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Thanks, 
Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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