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Saturday, August 15, 2015

सावन की तीज: प्रकृति और महिलाओं का त्यौहार


themed nature jewellery sawan ki teej
कदम्ब पुष्प अंगूठी: सावन की तीज


 परसों १७ अगस्त, २०१५  सावन की तीज है. यह प्रकृति और खास कर महिलाओं का त्यौहार है. चारों ओर हरियाली हो, कदम्ब के पुष्प खिले हों, वर्षा से स्नात हो कर रूपसियों की विकसित रोम राजी जैसी महकते कदम्ब के बृक्ष में बंधा हुआ झूला हो, हाथों में मेहंदी रचाये सोलह श्रृंगार कर स्त्रियां नाचती गाती अपनी मस्ती में झूमती हुई वन बिहार करती हों तो वो कहलाता है सावन का तीज या हरियाली तीज. क्या है यह त्यौहार और इसका भारतीय संस्कृति में महत्व?

सावन का महीना चौमासे अर्थात वर्षा ऋतू का पहला महीना होता है. झूमते बादल के साथ इठलाती वर्षा रानी पूरी प्रकृति को आनंदित कर देती है. बरसात की फुहार सुखी और गरम धरती को न सिर्फ शीतल करती है परन्तु उसमे नया जीवन भी फूँक देती है. हर तरफ हरियाली का साम्राज्य फैलने लगता है और प्रकृति नवीन जीवन के पल्लवन से सृजन की खुशियों से भर उठती है. ऐसे आनंदोत्सव में महिलाएं क्यों न सम्मिलित हों? आखिर स्त्रियों को भी तो प्रकृति ही कहा गया है, वे भी तो सृजनहार ही हैं.

कहा जाता है की वृन्दावन में कृष्ण कन्हैय्या अपनि प्रियतमा राधा रानी के साथ वन और उद्यानों में गोपियों संग क्रीड़ा करते थे. कदम्ब के पुष्पों से महकती बृन्दावन की कुञ्ज गलिन में हिंडोले में बैठ कर झूला झूलते थे. वर्षा की बूंदों से आनंदित मयूर गण भी वहां आकर अपनी  नृत्यकला से मानो राधा कृष्ण को रिझाने में लगे रहते थे. राधा की सखियाँ अर्थात बृंदावन की गोपियाँ भी मस्ती में झूमते हुए मानो नृत्यकला में मयूरों को भी पीछे छोड़ देना चाहती थी, तब ऐसे मनती थी सावन की तीज.

कदम्ब के पुष्पों का भारतीय साहित्य में बहुलता से वर्णन है. किसी की प्रसन्न चित्तता बताने के लिए प्रायः कदम्ब के पुष्पों की उपमा दी जाती थी. जब ख़ुशी से किसी के रोम-रोम पुलकित होते थे तो उसकी उपमा धारास्नात कदम्ब के पुष्पों से दी जाती थी और उसकी महक का तो कहना ही क्या?

राजस्थान में सावन की तीज का महत्व बहुत अधिक है, वीरों की ये धरती लगभग प्यासी ही रहती है, रेगिस्तान में पानी का महत्त्व क्या है यह तो वहां के रहवासी ही जान सकते हैं. यूँ तो वर्षा सभी जगह आवश्यक एवं आनंद दायक होती है परन्तु राजस्थान के मरुस्थल की बात कुछ विशेष ही है. और इसलिए सावन की तीज का महत्त्व भी यहाँ और स्थानो से अधिक ही है।

जिन सौभाग्यवती स्त्रियों के पति प्रवास में रहते थे ऐसी प्रोषित भर्तृका स्त्रियों के पति भी प्रायः वर्षा ऋतू में प्रवास से घर वापस आ जाते थे. लम्बे इंतज़ार के बाद अपने प्रियतम  से मिलन की अद्भुत ख़ुशी सावन के तीज के त्यौहार में चार चान्द लगा देती थी तभी तो स्त्रियां सोलह श्रृंगार कर अपने प्रियतम के साथ वन बिहार को जाती थी और उन्मुक्त प्रकृति का आनंद लेती थी. ऐसे अवसर पर किसी भी स्त्री के पीहर पक्ष वाले अपनी बहन या बेटी के लिए श्रृंगार की सामग्री, आभूषण, स्वादिष्ट पकवान आदि भेजा करते थे. श्रृंगार सामग्री भेजने की यही प्रथा अब सिंजारा कहलाती है.

मंद मंद सुरभित पवन के बीच झूले में झूलना, नव-पल्लवित लता गुल्मो के बीच अठखेली करते दम्पति-युगल, पति - पत्नी अथवा प्रेयसि- प्रेमी के मिलन को एक अनिर्वचनीय अानन्द की अनुभूति से भर देता था.

चित्र-परिचय: ऊपर के चित्र में कदम्ब वन में पुष्पों पर मंडराते-गुंजारव करते हुए भौंरे और स्त्रियों का प्रिय आभूषण अंगूठी को दर्शाया गया है. अंगूठी की प्राकृतिक सुंदरता भौंरे को भी भ्रमित कर रही है और वो उसे ही फूल मान कर उधर आकर्षित हो रहा है. ऐसे ही और भी चित्र देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.

ज्योति कोठारी 
वर्धमान जेम्स, जयपुर

  

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