आये दिन बिहार रत जैन साधु साध्वियों की सड़क दुर्घटनाओं में कालधर्म होने अथवा गंभीर रूप से घायल होने के समाचार मिलते रहते हैं. हम अपने संघ के अनमोल रत्नों को खो देते हैं. ऐसी हर एक घटना जैन समाज को झकझोर देती है. समय समय पर होनेवाली इन घटनाओं पर विचार मंथन भी होता है परन्तु यह होता है सतही तौर पर. दुर्घटना घटती है, दो चार दिन चिंता व्यक्त की जाती है और हम फिर पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं. वही ढाक के तीन पात.
अभी अभी परम पूज्या खरतर गच्छीय प्रवर्तिनी साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज के दुर्घटना में कालधर्म होने का समाचार मिला. वो कोलकाता से बिहार कर रहीं थीं और कोलकाता के पास पांशकुड़ा में दुर्घटना घाट गई. प्रवर्तिनी जी से मेरा ४० वर्षों का घनिष्ठ संपर्क रहा है. घटना ने मुझे भी झकझोर दिया और यह लेख लिखणो को प्रेरित कर दिया.
पूज्य जैन साधु साध्वियों के बिहार में दुर्घटना की समस्या
आखिर ये समस्या क्या है और क्यों है? प्रायः जैन साधु साध्वी सुबह जल्दी बिहार करते हैं, इस समय थोड़ा अँधेरा भी रहता है. रात भर गाड़ी चलकर बाहन चालक भी थके हुए होते हैं और खाली सड़क में तेज गति से बाहन चलाते हैं. कई बार चालक नशे में भी होते हैं. सुबह के समय थके हुए बाहन चालक को नींद आना भी स्वाभाविक है. ऐसे समय में पैदल चलते हुए अथवा व्हील चेयर में चलते हुए साधु साध्वियों के साथ दुर्घटना हो जाती है. भारत में अपर्याप्त सड़क और बढ़ते हुए बाहन की समस्या तो है ही.
श्वेताम्बर जैन साधु साध्वी सफ़ेद कपडे पहनते हैं और कईबार दूर से इनको देख कर अंधविश्वासी इन्हे बहुत-प्रेत भी समझ लेते हैं. यह भय भी कई बार दुर्घटना का कारण बनता है. जैन साधु साध्वी ज्यादातर समूह में चलते हैं और कई बार तेज गति के बाहन से अफरा तफरी मच जाती है और ये दुर्घटना का कारण बनता है. साथ ही रस्ते में जप करते हुए चलना, या बातें करते हुए चलना भी असावधानी का कारण बनता है और सड़क दुर्घटनाएं होती है.
पूज्य जैन साधु साध्वियों के बिहार में दुर्घटना का समाधान
इन दुर्घटनाओं का समाधान क्या? बहुत से लोग इन दुर्घटनाओं के समाधान के लिए समय समय पर सुझाव देते हैं. परन्तु इन सतही सुझावों से इसका समाधान नहीं हुआ और न ही होनेवाला है. भगवान महावीर स्वामी अपने संघ के साधु साध्वियों के आचरण के लिए अनेक नियम उपनियम बताये हैं. उन नियमों का पालन नहीं करना अनेक संकटों को जन्म देता है. आइये, जानते हैं साधु साध्वियों बिहार के उन मूल नियमों को और ये भी की उससे दुर्घटनाओं की समस्या कैसे कम हो सकती है?
गृहस्थ प्रायः नियत बिहारी होता है परन्तु साधु साध्वी अनियत बिहारी. अर्थात गृहस्थ प्रायः निश्चित कार्यक्रम के अनुसार यात्रा करता है जैसे हम कहीं आने जाने की पहले से योजना बनाते हैं, ट्रेन या प्लेन का टिकट बुक करते हैं, होटल या धर्मशाला बुक करते हैं आदि आदि. परन्तु जैन आगमों एवं शास्त्रों के अनुसार साधु साध्वी अनियत बिहारी होते हैं और अपने बिहार की कोई निश्चित योजना नहीं बनाते. साधु साध्वियों के बिहार को सूखे पत्ते की उपमा दी गई है जिसे पवन जहाँ ले जाये वहां पहुँच जाये.
जबकि आज शास्त्र आज्ञा का उल्लंघन कर बिहार की निश्चित योजना बनाई जाती है, पहुँचने का स्थान और समय निर्धारित किया जाता है. पहुँचने की जल्दी में लम्बे लम्बे बिहार का कार्यक्रम बनता है. और अधिकतर उच्च मार्गों (हाईवे) का उपयोग किया जाता है. चातुर्मास नजदीक होने पर ये घटनाएं और बढ़ जाती है. यदि कार्यक्रम निर्धारित न हो, चातुर्मास निर्धारित न हो, तो पहुँचने की जल्दी भी नहीं रहेगी और व्यस्त उच्च मार्गों के उपयोग की भी जरुरत नहीं पड़ेगी.
इसी प्रकार साधु साध्वियों के बिहार के लिए दिन के तीसरे प्रहर अर्थात दोपहर १२ से ३ बजे तक का समय शास्त्रों में निर्धारित किया गया है. जबकि अभी प्रायः बिहार का समय रात्रि के चौथे प्रहर, सुबह ४ बजे से दिन के प्रथम प्रहर सुबह ९ बजे तक हो गया है. चातुर्मास काल से पूर्व भीषण गर्मी के कारण यही समय अनुकूल भी रहता है. इस समय दोपहर के तीसरे प्रहर में बिहार और वो भी लम्बा बिहार असंभव हो जाता है.
इस समस्या का समाधान क्या ? समाधान आगमों में निहित है. जब चातुर्मास ही निश्चित नहीं होंगे तो लम्बे बिहार की आवश्यकता ही नहीं होगी. जब चल सकें जितना चल सकें उतना चलेंगे. एक बात और भी है उच्च मार्ग और अन्य पक्की सड़कें डामर की होती है जो की गर्मी में बहुत ज्यादा गरम हो जाता है और नंगे पेअर बिहार करना लगभग असंभव हो जाता है. परन्तु कच्ची सड़कें इतनी गरम नहीं होती और उस पर चलना अपेक्षाकृत रूप से आसान होता है. कहीं पहुँचने की वाध्यता नहीं रहेगी तो सहजता से कच्ची सडकों का उपयोग भी कर पाएंगे.
ऐसी अनेक बातें हैं यहाँ पर संकेत मात्र किया गया है. शेष बातें पूज्य जैनाचार्यों और गीतार्थ गुरु भगवंतों को विचार करना चाहिए।
आचार्य भगवंतों एवं गीतार्थ गुरु भगवंतों के लिए विचारणीय प्रश्न
यह एक जटिल एवं बहुआयामी समस्या है. इस पर सभी पूज्य जैनाचार्यों और गीतार्थ गुरु भगवंतों को विचार करना चाहिए. विभिन्न आगम ग्रंथों विशेस्कर छेड़ सूत्रों में उत्सर्ग अपवाद मार्ग की गहन चर्चा है. आगमों के अतिरिक्त अनेक पूर्वधर महर्षियों एवं महान पूर्वाचार्यों ने अनेक ग्रंथों की रचना की है उनका अवलोकन कर समस्या के समाधान की दिशा में बढ़ना चाहिए.
एक बात और, तीर्थंकर भगवन महावीर केवलज्ञानी त्रिकालज्ञ थे और उन्होंने संघ के लिए जो व्यवस्था निर्धारित की उसमे वर्तमान काल भी उनकी दृष्टि में था. विशेषतः उनकी व्यवस्था पंचम काल को ध्यान में रखकर ही दी हुई है. अतः इस प्रकार की बात करना की यह महावीर के समय के लिए था वर्त्तमान की व्यवस्था के अनुरूप नहीं है आदि उचित नहीं लगता. खैर जो भी हो, वर्त्तमान के सभी आचार्यों और गीतार्थ गुरु भगवंतों को मिलकर आगमानुसार देश काल परिश्थिति का विचार कर इस सम्बन्ध में निर्णय लेना चाहिए.