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शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

कबूतर : पर्यावरण और पारिस्थितिकी के मूक प्रहरी, शहरी जीवन और जैव विविधता के जीवंत साथी

सारांश 

(यह लेख कबूतरों के पारिस्थितिकी और पर्यावरण में महत्व को रेखांकित करता है। सामान्यतः उन्हें केवल दाना चुगने वाले या शहरी असुविधा के रूप में देखा जाता है, जबकि वास्तव में वे प्रकृति के मूक प्रहरी हैं। कबूतर जंगलों और शहरी दोनों आवासों में पाए जाते हैं और बीज प्रसार, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, जैव विविधता के संरक्षण तथा खाद्य श्रृंखला को संतुलित रखने में योगदान करते हैं। वे प्राकृतिक सफाई में सहयोग करते हैं और शहरी पारिस्थितिकी को बनाए रखते हैं। इसके साथ ही, कबूतरों को दाना खिलाना मनुष्य में करुणा, दयालुता और सह-अस्तित्व की भावना जगाकर मानसिक शुद्धि और शांति का संचार करता है। इस प्रकार कबूतर न केवल पारिस्थितिक संतुलन बल्कि मानव–प्रकृति संबंधों को भी सुदृढ़ बनाते हैं। वे हमें यह संदेश देते हैं कि प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व ही सतत विकास और स्वस्थ भविष्य की कुंजी है।)



दाना चुगते हुए कबूतर 

 

कबूतर : पारिस्थितिकी और पर्यावरण के मूक प्रहरी

पिछले कुछ दिनों से मुंबई में कबूतरों को दाना खिलाने के सम्बन्ध में प्रशासन एवं न्यायालय के निर्णयों और प्रकृति–प्रेमियों तथा जीवदया के कार्यकर्ताओं के बीच मतभेद देखने को मिल रहे हैं। आज जब शहरी पर्यावरण पर चर्चा होती है, तो कबूतर जैसे पक्षी अक्सर केवल रोग-वाहक या असुविधा के रूप में देखे जाते हैं, जबकि इनके पर्यावरणीय महत्व पर गंभीर विमर्श कम होता है। सामान्यतः कबूतरों के संरक्षण या दाना खिलाने को केवल जीवदया के दृष्टिकोण से देखा जाता है, परन्तु उनके पर्यावरणीय और पारिस्थितिक योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

कबूतरों में दिशा और स्थान पहचानने की अद्भुत क्षमता होती है। यही कारण है कि प्राचीन काल में उनका उपयोग संदेशवाहक पक्षी के रूप में किया जाता था। वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके मस्तिष्क में मानो "गूगल मैप" जैसा नेविगेशन सिस्टम होता है।

कबूतरों का आवास : वन और मानव बस्तियाँ

सामान्य धारणा के विपरीत, कबूतर केवल इंसानी बस्तियों में ही नहीं बल्कि जंगलों और प्राकृतिक आवासों में भी पाए जाते हैं। वे मूलतः जंगली पक्षी हैं और कई प्रजातियाँ वनों, पहाड़ों, गुफाओं और चट्टानों में रहती हैं। उदाहरण के लिए, रॉक पिजन (Columba livia) मुख्यतः पर्वतीय और चट्टानी क्षेत्रों में पाया जाता है।

जंगलों में रहने वाले कबूतर पेड़ों पर घोंसले बनाते हैं और फलों, बीजों तथा अनाज के दानों पर निर्भर रहते हैं। समय के साथ जब उन्हें मानव बस्तियों में आसानी से भोजन और आश्रय मिलने लगा, तो उन्होंने शहरी जीवन को भी अपना लिया। आज मंदिरों, इमारतों और पुलों पर बने उनके घोंसले हमें सहज ही दिखाई देते हैं।

अतः कबूतर दोनों ही आवासों—वन और मानव बस्तियों—में सह-अस्तित्व रखते हैं।

कबूतरों का पर्यावरण और पारिस्थितिकी में योगदान

1. बीज प्रसार और पौधों का पुनर्जनन

कबूतर अनेक प्रकार के बीज खाते हैं और उन्हें अपने मल के साथ विभिन्न स्थानों तक फैला देते हैं। इससे नये पौधों के उगने की संभावना बढ़ती है और जंगलों, घासभूमियों तथा शहरी हरियाली का प्राकृतिक विस्तार होता है।

2. मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि

कबूतरों का मल (Guano) नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम से भरपूर होता है। यह प्राकृतिक जैविक खाद का काम करता है और मिट्टी को उपजाऊ बनाता है। साथ ही यह सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को भी प्रोत्साहित करता है।

3. जैव विविधता का संरक्षण

जहाँ कबूतर रहते हैं, वहाँ अन्य पक्षियों और छोटे जीवों को भी सहारा मिलता है। इस प्रकार वे जैव विविधता की रक्षा करते हैं और पारिस्थितिकी के संतुलन को मजबूत करते हैं।

4. मानव–प्रकृति संबंध

कबूतर शहर और गाँव दोनों में मनुष्य के निकट रहते हैं। उनकी उपस्थिति से हमें यह एहसास होता है कि प्रकृति हमारे आसपास जीवित है। अनेक संस्कृतियों में कबूतर को शांति और सह-अस्तित्व का प्रतीक माना गया है, जो मनुष्य को पर्यावरणीय चेतना की ओर प्रेरित करता है।

5. प्राकृतिक सफाई में योगदान

कबूतर खेतों और बाजारों में गिरे हुए दाने, फल और अन्य जैविक कचरे को खाते हैं। इससे अपशिष्ट कम होता है और वातावरण अपेक्षाकृत स्वच्छ रहता है।

6. शहरी पारिस्थितिकी में भूमिका

शहरों में भी कबूतर इंसानी जीवन का हिस्सा बनकर प्राकृतिक पारिस्थितिकी को बनाए रखते हैं। वे हमें यह संदेश देते हैं कि मनुष्य और प्रकृति एक ही वातावरण में सह-अस्तित्व रख सकते हैं।

7. खाद्य श्रृंखला का हिस्सा

कबूतर कई शिकारी पक्षियों—जैसे बाज, चील, उल्लू और कौवे—के लिए भोजन हैं। उनकी अनुपस्थिति में इन पक्षियों की जनसंख्या असंतुलित हो जाएगी। इस प्रकार कबूतर खाद्य श्रृंखला और पारिस्थितिक संतुलन में अहम कड़ी हैं।

8. मानसिक शुद्धि और करुणा का विकास

कबूतरों को दाना खिलाना केवल पक्षियों का पोषण करना नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के अंतर्मन को भी शुद्ध करता है। इस क्रिया से दयालुता, करुणा, सह-अस्तित्व और प्रकृति प्रेम जैसी उदात्त भावनाएँ विकसित होती हैं। नियमित रूप से पक्षियों को भोजन कराना व्यक्ति को प्रकृति के साथ गहराई से जोड़ता है और उसके भीतर अहिंसा, परोपकार और संवेदनशीलता के संस्कारों को प्रबल बनाता है।

इसके परिणामस्वरूप मनुष्य के मन में व्याप्त क्रोध, लोभ, तनाव और मानसिक प्रदूषण धीरे-धीरे कम होते हैं और उनकी जगह शांति, संतोष और प्रेम का संचार होता है। आधुनिक जीवन की भागदौड़ और भौतिकता-प्रधान वातावरण में यह सरल-सा कार्य न केवल मानसिक संतुलन प्रदान करता है, बल्कि व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य (mental well-being) और आंतरिक सुख को भी सुदृढ़ करता है।

निष्कर्ष

अतः कबूतर केवल दाना चुगने वाले सामान्य पक्षी नहीं हैं, बल्कि पारिस्थितिकी संतुलन के मूक प्रहरी हैं। वे हमें यह संदेश देते हैं कि यदि हम प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व रखें तो सतत विकास और स्वस्थ पर्यावरण संभव है।

कबूतर बीज प्रसार, मिट्टी की उर्वरता, जैव विविधता, खाद्य श्रृंखला, शहरी पारिस्थितिकी, प्राकृतिक सफाई और मानव–प्रकृति जुड़ाव जैसे अनेक पहलुओं में अपना योगदान देते हैं।

वास्तव में, कबूतर पारिस्थितिकी संतुलन और सतत पर्यावरण के Silent Guardians हैं। वे हमें यह स्मरण कराते हैं कि यदि हम प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का भाव रखें, तो एक संतुलित और स्वस्थ भविष्य निश्चित ही संभव है।

Thanks, 
Jyoti Kothari, Proprietor at Vardhaman Gems, Jaipur, represents the centuries-old tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser at Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional.

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