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Monday, May 13, 2024

गोदुहिका आसन क्यों, कब और कैसे?



तीर्थंकर परमात्मा भगवान् महावीर ने गोदुहिका आसन में केवल ज्ञान प्राप्त किया था यह बात सर्वविदित है. अभी तीन दिन बाद परमात्मा महावीर का केवल ज्ञान दिवस है. आइये समझते हैं गोदुहिका आसन का महत्व। यह एक गूढ़ विषय पर चर्चा है अतः आपसे निवेदन है की लेख को अंत तक पढ़ें. 

हम जानते हैं की भगवान् महावीर दीक्षा लेने के उपरांत खड़े खड़े (खडगासन) में अधिकांश समय साधना की. दीक्षा के उपरांत कभी भी सुखासन में नहीं बैठे।  इस प्रकार उनकी साधना अत्यंत कठोर थी और इस प्रकार की कठिन साधना कोई बिरले ही महापुरुष कर सकते हैं. अब प्रश्न ये है की जीवन पर्यन्त (12 वर्ष से अधिक) खडगासन में साधना करने के बाद छद्मस्थ अवस्थाके अंतिम पायदान में उन्होंने गोदुहिकासन में साधना क्यों की? 

बाहुवली स्वामी की खडगासन प्रतिमा


  जैन धर्म एवं दर्शन का विद्यार्थी होने के कारण धर्म और दर्शन के गूढ़ रहस्यों को जानने में मेरी हमेशा रूचि रही है. अतः इस विषय पर भी योग एवं ध्यान के विशेषज्ञों से कई बार चर्चा की. इन चर्चाओं में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये. 

गोदुहिकासन एक ऐसा आसन है जो एकाग्रता को बहुत अधिक बढ़ाने वाला है. जैन दर्शन के विद्यार्थी जानते हैं की जब जीव अपने संयम जीवन की परम अवस्था में पहुँचता है तब वह क्षपक श्रेणी चढ़ता है और शुक्ल ध्यान के दूसरे पाद में पहुँच कर चार घाटी कर्मों का समूल उच्छेद कर केवल ज्ञान प्राप्त करता है. इस प्रक्रिया में अनादि काल की परंपरा में संचित अनंत कर्म अन्तर्मुहूर्त (48 मिनट से भी कम समय) में सम्पूर्ण रूप से क्षय हो जाते हैं. इस समय मन की एकाग्रता अपने सर्वोच्च स्तर पर होती है. हमारे वर्त्तमान मानसिक दशा में हम उस मानसिक एकाग्रता की कल्पना भी नहीं कर सकते!!

महावीर स्वामी केवलज्ञान मुद्रा, ऋजुवालिका 

योग एवं ध्यान विशेषज्ञों का कहना था की महावीर की दशा का आकलन हम नहीं कर सकते केवल अनुमान लगा सकते हैं. महावीर अपने सम्पूर्ण साधना काल में अत्यंत एकाग्र थे फिर भी संभवतः एकाग्रता की सर्वोच्च दशा को प्राप्त करने के लिए उन्हें गोदुहिकासन की आवश्यकता मह्सूस हुई होगी. 

जैन आचार्यों एवं मनीषियों ने बारम्बार इस तथ्य को रेखांकित किया है की "महावीर ने किया वो नहीं करना, महावीर ने कहा वो करना".  इसका कारन ये है की महावीर ने जो कहा वो हमारे जैसे जीवों के लिए कहा. वही हमारे करने योग्य है. महावीर का सामर्थ्य असीम था और उस सामर्थ्य से वो जो कुछ भी करते थे या कर सकते थे वो हम हमारे सीमित सामर्थ्य से नहीं कर सकते. इसलिए महावीर की नक़ल करने से लाभ के स्थान पर हानि होने की सम्भावना अधिक है. 

इसे एक उदहारण से समझें. जब हम किसी जिम में जाते हैं तब वहां किसी अत्यंत शक्तिशाली व्यक्ति का चित्र लगा हुआ होता है. जिसकी वलिष्ठ मांसपेशियां हमें बहुत आकर्षित करती है. ऐसा कोई व्यक्ति जब जिम में आकर कसरत करता है और हम उसे देख कर उसकी नक़ल करने लगें तो क्या होगा?

ऐसा कहा जाता है की भारतीय पहलवान स्वर्गीय राममूर्ति रोज हज़ारों की संख्या में दंड बैठक करते थे, क्या हम ऐसा कर सकते हैं? क्या किसी ओलिम्पिक चैंपियन भारोत्तोलक के जैसे सैकड़ो किलो वजन हम भी उठा सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं. हम अपनी क्षमता के अनुसार ही उठा सकते हैं और क्षमता के अनुसार व्यायाम करने से ही वांछित लाभ मिल सकता है. ओलिम्पिक चैंपियन भारोत्तोलक (वेट लिफ्टर) की नक़ल करने से हमारी क्या हालत होगी उसकी केवल कल्पना ही कर सकते हैं. 

सिद्धासन

जैन शास्त्रों में श्रावक एवं सामान्य साधुओं के लिए लिए सुखासन, पद्मासन, सिद्धासन, वीरासन, खडगासन आदि आसन एवं योग मुद्रा, मुक्ताशुक्ति मुद्रा, जिन मुद्रा आदि मुद्राएं बताई है. सामायिक, प्रतिक्रमण, चैत्यवंदन आदि दैनिक क्रियाओं में इन आसनों एवं मुद्राओं का उपयोग होता है.  यथा योग्य समय में इनके अभ्यास से ही बांछित फल की प्राप्ति हो सकती है. ये प्रतिदिन करने योग्य आसान एवं मुद्राएं हैं. इनका निरंतर अभ्यास किये बिना  गोदुहिकासन में बैठना कितना उपयोगी होगा इस पर स्वयं विचार कर लें. 

Thanks, 
Jyoti Kothari 

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