गोवंश गौरव भारत भाग २: गायों की वर्तमान स्थिति
पिछले ब्लॉग में मैंने गायों के अतीत गौरव की चर्चा की थी अब हम आज की बात करते हैं, भारत में आज गायों की स्थिति क्या है? यदि अतीत से तुलना करें तो आज भारत में गायों की स्थिति दयनीय है. गोवंश आज अपना गौरव खो चूका है. भारत में गायों की स्थिति पाश्चात्य देशों से भी बहुत बुरी है. गाय को माता मैंने वाले देश में गाय सड़क पर कचरा खाते हुए अक्सर दिख जाती है. ऐसा पश्चिमी देशों में बिलकुल भी संभव नहीं है. आज भारत का ग्रामीण किसान गाय पालना ही नहीं चाहता, वह भैंस पालता है. यदि गाय भी पालता है तो जर्सी या होल्स्टीन। देशी नस्ल की गायें गीर, राठी, थारपारकर, हरियाणवी आदि लुप्तप्राय होती जा रही है.
भूख से व्याकुल कचरा खाता बछड़ा |
असहाय हो कर मरता हुआ गोवंश |
गायों का हम दोहन के स्थान पर शोषण करने लगे हैं और दूध देने की क्षमता समाप्त होने पर उसे लावारिस छोड़ देते हैं. ऐसी स्थिति में बेचारी गाय इधर उधर मुह मारती रहती है फिर भी उसका पेट नहीं भर पाता। क्या हमें माँ के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए?
जब गायों को कोई पालनेवाला नहीं होगा तो उसे कत्लखाने जाने से कौन और कैसे बचाएगा? देश में अनेक राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र आदि में गोहत्या बंदी कानून लागु है और वहां गायों के मारने या उसे कत्लखाने भेजने पर पूर्णतः पावंदी है. उन राज्यों में गायें कटती तो नहीं पर भूखे मरने पर मज़बूर है. भूख से पीड़ित गोमाता जब सड़क पर कचरा खाती है तो अनायास ही पोलिथिन भी खा लेती है. यही पोलिथिन उसकी आंतो में जा कर जैम जाता है और बेचारी गाय असमय ही पीड़ादायक मौत झेलने को मज़बूर हो जाती है.
बछड़ों की दशा तो और भी दयनीय है उन्हें जन्मते ही छोड़ दिया जाता, उसे माँ का दूध भी नसीब नहीं होता। अपने दूध से मनुष्य जाती को पालनेवाली गोमाता अपने बछड़ो को ही दुध नहीं पिला पाती। बेचारा और बदनसीब बछड़ा भूख से बिलबिलाते हुए जब किसी किसान के खेत में चरने की आस में पहुंच जाता है तब उसे चारा तो नहीं पर डण्डे जरूर खाने को मिल जाते हैं, यही हाल सांड, बैल और बूढी गायों का भी होता है.
शहरों में तो दूध देनेवाली गायों को भी दूध दुहने के बाद सड़क पर छोड़ दिया जाता है और वह इधर उधर घूम कर अपना पेट भरने की कोशिश में डंडे खाती रहती है और कचरा या पोलिथिन निगलने को मज़बूर हो जाती है. कभी कभी किसी गोभक्त की दी हुई रोटी या चारा भी मिल जाता है.
गोवंश गौरव भारत के पिछले भाग में हमने लिखा था की गोवंश का अतीत गौरवशाली था और तब भारत समृद्धि के चरम शिखर पर था. तब स्थिति ये थी की हम गाय नहीं पालते थे परन्तु गोमाता हमें पालती थी. जबसे भारत ने गोमाता की उपेक्षा की तब से भारत की समृद्धि भी अस्ताचल को चली गई.
गायों की ऐसी दुर्दशा क्यों हुई और उसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या हम और हमारा लालच ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? गोभक्त कहलानेवाले भारतवासियों को अपने गिरेवान में झाँक कर देखना ही होगा.
गोवंश गौरव भारत : अतीत के पृष्ठ
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ज्योति कोठारी
संस्थापक कोषाध्यक्ष,
गो एवं प्रकृतिमूलक ग्रामीण विकास संस्थान
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