कोरोना काल में स्वाध्याय से समय का सदुपयोग
यह वर्ष २०२० कोरोना महामारी के प्रकोप का समय है. मार्च से ले कर मई तक लोगों को लॉक डाउन घरों में ही रहना पड़ा. ऐसे कोरोना काल में स्वाध्याय से समय का सदुपयोग हो सका. इस समय श्री यशवंत जी गोलेच्छा मेरे पास आये और कहा की आप ऑनलाइन स्वाध्याय करें, मैं लोगों को इसमें जोड़ूंगा। यह विचार मुझे भी ठीक लगा और मैंने हाँ भर दी. हमने ऑनलाइन प्लेटफार्म ढूंढा और ज़ूम पर काम करने का तय किया। संजोग से यशवंत जी ने कुछ दिनों तक संपर्क नहीं किया, पर मेरी धर्मपत्नी इस विषय को लेकर काफी उत्साहित थी. उनने लोगों को फोन कर जोड़ना शुरू किया और १० अप्रैल से स्वाध्याय ऑनलाइन कार्यक्रम प्रारम्भ हो गया. ये एक अच्छा विचार था और लोग इसमें जुड़ने लगे. संख्या बढ़ती गई.
भारत के विभिन्न शहरों से ही नहीं दुनिया के अन्य भागों जैसे जापान, नाइजेरिया, अमरीका, दुबई, कुवैत, थाईलैंड, क़तर, अदि देशों से भी लोग इस स्वाध्याय में जुड़ गए. स्वाध्याय से जुड़नेवालों का सिलसिला चलता और बढ़ता रहा.
स्वाध्याय की प्रक्रिया, समय और विषय
"स्वाध्याय" नाम व्हाट्सऐप ग्रुप भी बनाया गया जिसके माध्यम से सभी दूसरे से और मेरे से संपर्क में रहते थे. लोग कभी ग्रुप में कभी लाइव स्वाध्याय प्रश्न पूछते थे, सुझाव भी देते थे. स्वाध्यायियों की रूचि, और आत्मोन्नति के लक्ष्य के अनुसार विषय तय किये जाते रहे.
प्रतिदिन रात्रि में ८ बजे से ८.४० तक यह स्वाध्याय चलता था. ज़ूम में ४० मिनट तक ही यह कार्यक्रम हो सकता था, उससे ज्यादा नहीं. यह सिलसिला चल ही रहा था की १ जून से अनलॉक १ शुरू गया, लोग कामकाज में जाने लगे, स्वाध्यायी श्रोताओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए ६ जून से ८ समय में थोड़ा फेर बदल कर इसे ८.३० से ९.१० कर दिया गया दिया गया. सभी श्रोता पूर्ववत इस क्रम इस स्वाध्याय क्रम में जुड़े रहे.
चातुर्मास काल में स्वाध्याय
इस क्रम को चलते हुए लगभग तीन महीना हो रहा था, लोगों का स्वाध्याय से जैसे अटूट आत्मीय सम्वन्ध बन गया. इस बीच ४ जुलाई से चातुर्मास प्रारम्भ होनेवाला था. चातुर्मास में जगह जगह पूज्य साधु साध्वी भगवंतों के चातुर्मास होते हैं, और लोग सुबह व्याख्यान सुनने जाते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए ४ जुलाई, चातुर्मासिक चतुर्दशी से स्वाध्याय का समय बदल कर सुबह ९ बजे से कर दिया गया.
लेकिन कुछ ही दिनों में स्वाध्यायियों को लगा की सुबह की जगह रात का समय ही ठीक था, इसलिए फिर से समय बदल कर रात के ८.३० बजे से ही कर दिया गया. तबसे लेकर आज तक यह रात्रि 8.30 से ही चल रहा है.
स्वाध्याय का विषय: देव गुरु धर्म तत्व
चातुर्मास काल में सामान्यतः साधु साध्वी भगवंत एक ही विषय पर प्रवचन देते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए चातुर्मासिक काल में स्वाध्याय का विषय चुना गया. जैन धर्म मर देव गुरु धर्म तत्व का विशेष महत्व है. यहाँ तक कहा जाता है की सच्चे देव गुरु धर्म पर श्रद्धा ही सम्यग्दर्शन है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए इसे चातुर्मास कालीन स्वाध्याय के विषय के रूप में चुना गया. देव तत्व दो हैं अरिहंत व सिद्ध; गुरु तत्व तीन हैं आचार्य, उपाध्याय एवं साधु; धर्म तत्व चार हैं सम्यग दर्शन, ज्ञान, चारित्र, व तप; इन तीनों का कुल योग ९ होता है. अतः सम्मिलित रूप से इन्हे नवपद कहा जाता है. नवपद का दूसरा नाम सिद्धचक्र भी है.
नवपद पूजा की रचना व रचयिता
विमल गच्छ के पूर्वाचार्य ज्ञानविमल सूरी ने नवपद पर प्राकृत व अपभ्रंश भाषा में काव्य लिखा था. तपागच्छ के उपाध्याय यशोविजय जी ने श्रीपाल रास में नवपद की ढाल लिखी थी. खरतर गच्छ के अध्यात्म योगी श्रीमद देवचंद जी ने स्वयं इन पर उल्लाला लिख कर और अन्य दोनों महापुरुषों की कृति उसमे सम्मिलित कर नवपद की पूजा की रचना की. यह पूजा आज भी पुरे भारत में अत्यंत उल्लास व भक्तिभाव के साथ गाई जाती है.
इसी नवपद पूजा को स्वाध्याय का विषय बनाया गया एवं इस के अर्थ पर विस्तृत विवेचन प्ररम्भ किया गया. सभी स्वाध्याय रसिक इसे प्रतिदिन सुन रहे हैं.
कैसे हुई ऑनलाइन स्वाध्याय की शुरुआत
इन सभी बातों की यूँ शुरूआत हुई की २२ मार्च से राजस्थान और २४ मार्च भारत में लॉक डाउन किया गया. ६ अप्रैल महावीर जयंती पड़ रही थी. इस समय कोलकाता के नवकार जैन मंच, जो की प्रतिवर्ष बहुत धूमधाम से महावीर जन्म कल्याणक मनाता आया है, के सामने समस्या थी की लॉक डाउन बीच महावीर जन्म कल्याणक कैसे मनाया जाये? नवकार जैन मंच के सूरज नवलखा ने मेरे सामने एक प्रस्ताव रखा. उसने मुझसे पूछा की क्या मैं ६ अप्रैल महावीर जन्म कल्याणक के अवसर पर भगवन महावीर पर कोई एक घंटे का ऑनलाइन व्याख्यान दे सकता हूँ? इस विषय पर एक वार्ता रखने की मैंने स्वीकृति दे दी और फेसबुक पर यह ऑनलाइन वार्ता हो गई. यह एक नई शुरुआत थी. इसी शुरुआत ने ऑनलाइन स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया.
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