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Monday, September 7, 2020

सामायिक व चैत्यवंदन करना सीखें: शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध विधि पूर्वक भाग ३


शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध विधि पूर्वक चैत्यवंदन




जिन मंदिर, घर देरासर में या सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध आदि धर्म क्रियायों के समय अरिहंत परमात्मा की आराधना-उपासना हेतु चैत्यवंदन किया जाता है. चैत्यवंदन भाष्य एवं सूरी पुरंदर हरिभद्र सूरी रचित ललित विस्तरा शास्त्र ग्रंथों में विस्तार से चैत्यवंदन की विधि बताई गई है. यहाँ पर शुद्ध रीती से चैत्यवंदन करने की विधि संक्षेप में बताई जा रही है। 

चैत्यवंदन की विधि में खरतर गच्छ एवं तपा गच्छ में थोड़ा सा फर्क है. यहाँ पर दोनों ही विधियां बताई गई है अर्थात खरतर गच्छीय चैत्यवंदन विधि एवं तपा गच्छीय चैत्यवंदन विधि। 

अर्हन्त परमात्मा के सन्मुख दृष्टि करते हुए, जीवरक्षा हेतु प्रमार्जन कर, समस्त सांसारिक बातों व चिंताओं को छोड़ कर मन, वचन, काया की एकाग्रता से भावपूर्वक चैत्यवंदन की विधि करनी चाहिए।  इसके लिए सबसे पहले एक खमासमण देना चाहिये।  



खमासमण देने की विधि

सीधे खड़े हो कर इच्छामि खमा-समणो वंदिऊं बोलते हुए दोनों हाथों को जोड़ लें, फिर खड़े खड़े हाथ जोड़कर ही जावणिज्जाए निस्सिहीआए बोलें।  इसके बाद सर नीचे झुकाते हुए ढोक देने की मुद्रा करें. इसमें विशेषता ये हो की दोनों हाथ, दोनों घुटने एवं मस्तक ये पांच अंग एक साथ जमीन को स्पर्श करें। पांच अंग एक साथ झुकाकर प्रणाम/वंदन किया जाता है इस लिए इसे पंचांग प्रणिपात भी कहा जाता है।  

खमासमण सूत्र 

इच्छामि खमा-समणो वंदिऊं, जावणिज्जाए निस्सिहीआए मत्थएण वंदामि।

चैत्यवंदन से पूर्व एक खमासमण देने के पश्चात् जीवों की विराधना/हिंसा से लगे पापों के प्रायश्चित्त हेतु खड़े हो कर निम्न सूत्रों से इरियावहियं करें। 

इरियावहियं सूत्र 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन्‌।
इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं, 
इच्छामि पडिक्कमिउं ॥१॥ 

इरियावहियाए-विराहणाए ॥२॥
गमणागमणे ॥३॥
पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग, पणग, दग-मट्टी, मक्कडा-संताणा, संकमणे ॥४॥
जे मे जीवा विराहिया ॥५॥
एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया ॥६॥
अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ-ठाणं संकामिया,
जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥७॥

तस्स उत्तरी सूत्र 

तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं, 
विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।

अण्णत्थ सूत्र 

अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥

बोलकर एक लोगस्स अथवा ४ नवकार का काउसग्ग करें. 
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर प्रगट लोगस्स कहें।  

लोगस्स सूत्र 

लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥ 

उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥

कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥

अब फिर से तीन खमासमण दे कर निम्न प्रकार से चैत्यवंदन हेतु आदेश लें। 

चैत्यवंदन आदेश 

'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्!‌ चैत्यवंदन करूँ? 
इच्छं।

अब दाहिने पैर को पीछे की और मोड़कर बायाँ घुटना ऊपर कर योगमुद्रा में चैत्यवंदन, जं किं चि एवं नमोत्थुणं
सूत्र बोलें। 

योगमुद्रा 

दोनों हाथों को इस प्रकार जोड़ें की एक हाथ की एक ऊँगली दूसरे हाथ के उसी अंगुली के अंदर डाल दें. इस तरह हर उंगली एक दूसरे के साथ फांसी हुई हो। अब जुडी हुई कोहनी को नाभि के ऊपर स्थापित करें। 

(वि. द्र.: अनेक पूर्वाचार्यों, मुनिराजों, यतियों, एवं अन्य कवियों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, गुजराती आदि भाषाओँ में हज़ारों की संख्या में चैत्यवंदन की रचना की है।  इनमे से समय, आराध्य प्रतिमा, किये हुए तप अदि एवं रूचि के अनुकूल कोई सा भी चैत्यवंदन बोल सकते हैं।  खरतर गच्छ परंपरा में कोई सा भी चैत्यवंदन बोला जाता है जबकि तपागच्छ में पहले सकल कुशल वल्ली बोलने के बाद ही अन्य कोई चैत्यवंदन बोलते हैं।)

श्री शांतिनाथ चैत्यवंदन 

सकल कुशल वल्ली पुष्करावर्त-मेघो ।
दुरित तिमिर भानुः कल्प वृक्षोपमानः ॥
भवजल निधि पोतः सर्व संपत्ति हेतुः ।
स भवतु सततं वः (नः) श्रेयसे शांतिनाथः॥ 
श्रेयसे पार्श्वनाथः

जं किं चि सूत्र

जंकिंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए।
जाइं जिण-बिंबाइं, ताई सव्वाइं वंदामि॥ 

नमोत्थुणं सूत्र

नमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं ॥१॥
आइगराणं तित्थयराणं सयं-संवुद्धाणं॥२॥  
पुरिसुत्तमाणं पुरिस-सीहाणं पुरिस-वर-पुंडरीआणं पुरिस-वर-गंधहत्थीणं ॥३ ॥
लोगुत्तमाणं लोह-नाहाणं लोग-हिआणं लोग-पइवाणं लोग पज्जोअगराणं ॥४॥
अभय-दयाण चक्खु-दयाणं मग्ग-दयाणं सरण-दयाणं बोहि-दयाणं ॥५॥
धम्म-दयाणं धम्म-देसयाणं धम्म-णायगाणं धम्म-सारहीणं धम्म-वर-चाऊरंत चक्कवट्टीणं ॥६॥
अप्पडिहय वर-नाण दंसणधराणं वियट्ट-छउमाणं ॥७॥
जिणाणं-जावयाणं तिन्नाणं-तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोअगाणं ॥८॥
सव्वण्णुणं सव्व-दरिसीणं सिव-मयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, णमो जिणाणं जिअ-भयाणं ॥९॥
जे अ अईआ सिद्धा जे अ भविस्संति णागए काले संपइ अ वट्टमाणा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥१०

'जावंति चेइयाइं' सूत्र

जावंति चेइयाइं उड्ढे अ, अहे अ तिरिअ लोए अ। सव्वाइं ताइं वंदे, इह संतो तत्थ संताइं॥

अब फिर से एक खमासमण दे कर मुक्ताशुक्ति मुद्रा में निम्न सूत्र बोलें 

'जावंत केवि साहू' सूत्र

जावंत के वि साहू भरहे-रवय-महाविदेहे अ।
सव्वेसिं तेंसि पणओ, तिविहेण तिदंड-विरयाणं ॥

अब पुनः योगमुद्रा में निम्न २ सूत्र बोलें 

'नमोऽर्हत्‌' सूत्र

नमोऽर्हत्‌ सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः।

उवसग्गहरं सूत्र

उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघण-मुक्कं
विसहर-विस-णिण्णासं मंगल कल्लाण आवासं ।१।

विसहर-फुल्लिंग-मंतं कंठे धारेइ जो सया मणुवो
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।२।

चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ 
णर तिरियेसु वि जीवा, पावंति ण दुक्ख-दोगच्चं (दोहग्गं)।३।
 
तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणि कप्प-पाय-वब्भ-हिये 
पावंति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं ।४।

इह संथुओ महायस, भत्तिब्भर णिब्भरेण हिययेण
ता देव ! दिज्ज बोहिं, भवे-भवे पास जिणचंदं ।५।

उवसग्गहरं के साथ/ बदले कोई स्तवन भी बोल सकते हैं।  अब पुनः मुक्ताशुक्ति मुद्रा में निम्न सूत्र बोलें 

मुक्ताशुक्ति मुद्रा

दोनों हाथों को सीप (Oyester) के जैसे  बनाकर इस प्रकार जोड़ें की बीच में पोल हो। जैसे सीप में मोती रहती है ऐसी मुद्रा को मुक्ताशुक्ति मुद्रा कहते हैं। अब जुड़े हुए हाथों को मस्तक पर लगाएं। 

जय वीयराय सूत्र

जय वीयराय ! जग-गुरु !, होउ ममं तुह पभावओ भयवं !.
भव-निव्वेओ, मग्गाणुसारिआ, इट्ठफल-सिद्धी,
लोग-विरुद्धच्चाओ, गुरु-जण-पूआ, परत्थ-करणं च,
सुह-गुरु-जोगो, तव्वयण-सेवणा, आभव-मखंडा। 
खरतर च्छ परंपरा में इस सूत्र में आभव-मखंडा तक ही बोला जाता है.  

वारिज्जइ जइ वि नियाण-बंधणं वीयराय! तुह समये
तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं
दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, समाहि-मरणं च बोहि-लाभो अ.
संपज्जउ मह एअं, तुह नाह ! पणाम-करणेणं। 

सर्व मङ्गल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणं 
प्रधानं सर्व धर्मानां, जैनं जयति शासनं। 

तपागच्छ में  जैनं जयति शासनं तक बोला जाता है। 
चैत्यवंदन की विधि में खरतर गच्छ एवं तपा गच्छ में केवल जय वीयराय सूत्र में ही  फर्क है.  इसके अतिरिक्त और कहीं भी खरतर गच्छीय चैत्यवंदन विधि एवं तपा गच्छीय चैत्यवंदन विधि में कोई अंतर नहीं है.    

अब खड़े हो कर हाथ जोड़ कर निम्न सूत्र बोलें 

अरिहन्त चेइयाणं सूत्र 

(सव्व लोए) अरिहन्त चेइयाणं करेमि काउसग्गं ! 
वंदण वत्तियाए, पूअण वत्तियाए, सक्कार वत्तियाए, सम्मान वत्तियाए, वोहिलाभ वत्तियाए, निरुवसग्ग वत्तियाए, सद्धाए, मेहाए, धीइए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्ढमाणिए ठामि काउसग्गं। 

अण्णत्थ सूत्र 

अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥

बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करें. 
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर  नमोऽर्हत्‌ सिद्धा बोलकरकोई स्तुति कहें। 

'नमोऽर्हत्‌' सूत्र

नमोऽर्हत्‌ सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः।

महावीर भगवान की स्तुति 

मूरति मनमोहन, कञ्चन कोमल काय 
सिद्धारथ नंदन,  त्रिशला देवी सुमाय,
मृगनायक लाञ्छन सात हाथ तनुमान,
दिन दिन सुखदायक, स्वामी श्री वर्धमान। 

उपरोक्त स्तुति अथवा परमात्मा की अन्य कोई भी स्तुति बोल सकते हैं। 

(खरतरगच्छ एवं तपागच्छ दोनों परम्पराओं के अनुसार चैत्यवंदन विधि सम्पूर्ण) 



Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents a Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, to Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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