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शनिवार, 14 जून 2025

पढ़े-लिखे को फारसी क्या: दरबार की बोली, विद्वानों की कलम

 सारांश:

"पढ़े-लिखे को फारसी क्या: दरबार की बोली, विद्वानों की कलम" आलेख भारत में फारसी भाषा के आगमन, शाही संरक्षण, और साहित्यिक प्रभाव का विश्लेषण करता है। यह दर्शाता है कि फारसी इस्लाम की नहीं, बल्कि दिल्ली सल्तनत और मुग़लकालीन संभ्रांत वर्ग की राजकीय व विद्वत्तापूर्ण भाषा थी। आलेख में प्रमुख फारसी  और कहावत के सामाजिक निहितार्थ का भी विवेचन किया गया है।

प्रस्तावना  

"हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या" – यह कहावत भारत के एक ऐसे कालखंड की ओर संकेत करती है जब फारसी भाषा केवल संवाद या लेखन का माध्यम नहीं, बल्कि राजसत्ता, शिक्षावाद और सांस्कृतिक शिष्टता का प्रतीक बन चुकी थी। यह भाषा विद्वानों, नवाबों, शासकों और दरबारियों की अभिजात वर्गीय पहचान बन गई थी।

1. कहावत का निहितार्थ: पढ़े-लिखे और फारसी

इस कहावत में दो बिंदु दर्शनीय हैं:

  • "हाथ कंगन को आरसी क्या" – प्रत्यक्ष वस्तु को प्रमाण की आवश्यकता नहीं।

  • "पढ़े-लिखे को फारसी क्या" – शिक्षित व्यक्ति के लिए कठिन भाषा भी सरल।

यह कहावत स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि फारसी को उस काल में शिक्षित और प्रतिष्ठित व्यक्ति ही समझ सकता था, साधारण जन नहीं।

2. फारसी: जनभाषा नहीं, संभ्रांत वर्ग की भाषा

फारसी मूलतः ईरान (फारस) की भाषा है, जो भारत में तुर्क-अफगान और मध्य एशियाई शासकों के साथ आई। यह भाषा:

  • आम जनता या मुस्लिम समाज की बोलचाल की भाषा नहीं थी।

  • बल्कि बादशाहों, नवाबों, अमीर-उमराहों और शिक्षित वर्ग की भाषा बन गई।

  • आम मुसलमान अरबी, पश्तो, पंजाबी, ब्रज, अवधी जैसी भाषाएँ बोलते थे, लेकिन फारसी का उपयोग केवल राजकीय और साहित्यिक उद्देश्यों से किया जाता था।

3. भारत में फारसी भाषा की प्रतिष्ठा

भारत में फारसी का आगमन केवल एक भाषा के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक और सांस्कृतिक व्यवस्था के रूप में हुआ। यह प्रतिष्ठा निम्न ऐतिहासिक चरणों में विकसित हुई:

4. भारत में फारसी का महत्व क्यों और कैसे बढ़ा?

(i) अब्बासी साम्राज्य और फारसी संस्कृति का पुनरुत्थान

अब्बासी खलीफा (750–1258 ई.) के काल में ईरानी प्रशासकों, विद्वानों, और कवियों को विशेष महत्व मिला।
बग़दाद में फारसी साहित्य, दर्शन और कला का पुनरुद्धार हुआ, जिसने आगे चलकर पूरे इस्लामी विश्व को प्रभावित किया।

(ii) ग़ज़नी और ग़ोरी शासकों की भूमिका

महमूद ग़ज़नवी और मुहम्मद ग़ोरी ने फारसी को दरबार और प्रशासन की भाषा बनाया।
इनके दरबार में फारसी दस्तावेज़, पत्र, और फरमानों का प्रचलन हुआ।

(iii) दिल्ली सल्तनत (1206–1526)

गुलाम वंश, खिलजी, तुगलक और लोधी वंश – सभी ने फारसी को राजकीय भाषा के रूप में स्थिर किया।
न्याय, शिक्षा, साहित्य – सभी क्षेत्रों में फारसी का प्रचलन हुआ।

(iv) मुग़ल साम्राज्य (1526–1857)

मुग़ल शासनकाल में फारसी को उच्च साहित्यिक और प्रशासनिक भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ।
अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ आदि के दरबारों में फारसी में लिखित इतिहास, तज़किरा, जीवनी, और काव्य की भरमार हुई।

अबुल फ़ज़ल, फैज़ी, बदलुरहमान जैसे विद्वानों ने फारसी में बहुमूल्य कृतियाँ रचीं।

5. भारत में फारसी का प्रभाव – विविध क्षेत्रों में विस्तार

क्षेत्रप्रभाव
प्रशासनफ़रमान, दस्तावेज़, राजकीय पत्राचार, भूमि रिकॉर्ड सभी फारसी में
साहित्यफारसी कविता, ग़ज़ल, मसनवी, इतिहास-लेखन
हिंदी भाषाहजारों फारसी शब्द हिंदी-उर्दू में समाहित हुए: दस्तूर, फरमान, इंसाफ़, किताब, वक़्त, तारीख़, मर्ज़
संस्कृतिदरबारी शिष्टाचार, पोशाक, स्थापत्य, संगीत आदि पर फारसी प्रभाव
शिक्षाफारसी पढ़ना-लिखना शिक्षित होने का प्रतीक बन गया

6. क्या यह सब इस्लाम के कारण हुआ?

नहीं, पूर्णतः नहीं।

  • इस्लाम का धार्मिक पक्ष सदा अरबी भाषा से जुड़ा रहा – कुरान, हदीस, नमाज़ आदि।

  • लेकिन फारसी भाषा का उभार एक राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक नीति का हिस्सा था।

  • फारसी को इस्लाम प्रचार के लिए नहीं, बल्कि शासन के सुचारु संचालन, दरबारी संस्कृति और साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए बढ़ावा मिला।

7. भारत में रचा गया फारसी साहित्य

प्रसिद्ध साहित्यकार और कृतियाँ:

साहित्यकारकृति या विशेष योगदान
अमीर खुसरोहिंदी और फारसी का संगम, सूफी प्रेमकाव्य
अबुल फ़ज़लआइन-ए-अकबरी, अकबरनामा
फैज़ीमसनवी और कविता
बदलुरहमानदरबारी इतिहास लेखन
जियाउद्दीन बरनीतारीख़-ए-फ़िरोज़शाही
सिराज अफीफतुगलक काल का इतिहास
मुल्ला दौप्याज़दाव्यंग्यात्मक फारसी साहित्य

साहित्य की विधाएँ:

  • तज़किरा (जीवनी)

  • मसनवी (नैतिक और रहस्यकाव्य)

  • ग़ज़ल, रुबाई, क़सीदा

  • इतिहास-लेखन और आत्मकथाएँ

8. निष्कर्ष: एक ऐतिहासिक प्रतीक बन चुकी कहावत

"पढ़े-लिखे को फारसी क्या" – यह कहावत मात्र भाषा को लेकर नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक युग की ओर संकेत करती है जब फारसी:

  • शासक वर्ग की अधिकारिक भाषा थी,

  • साहित्यिक सृजन का प्रमुख माध्यम थी,

  • और शिक्षित वर्ग की योग्यता का सूचक बनी हुई थी।

इस कहावत के दोनों भागों में प्रत्यय और बौद्धिकता की जो प्रतीकात्मकता है, वह भारत में फारसी के राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक प्रभाव की गहरी छाया को दर्शाती है।

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Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents the Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser at Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional.

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