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Monday, January 30, 2012

रीति रिवाज़: मृत्यु एवं शोक


मृत्यु एवं शोक जीवन की एक अभिन्न प्रक्रिया है जिसे कोई नहीं चाहता परन्तु यह अवश्यम्भावी है. मुर्शिदाबाद के शहरवाली समाज में मृत्यु एवं शोक के  अपने  रीति रिवाज़ हैं. 

किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर पहले उसे स्नान करवा कर अर्थी में उसी प्रकार ले जाया जाता है जैसे अन्य सभी स्थानों पर.  स्मशान में मृत देह को जलने के तत्काल बाद उसे ठंडा कर दिय्स जाता है एवं अश्थी व अवशेषों को वही गंगा में प्रवाहित किया जाता है. मृत्यु के बाद जहाँ मृत देहको लेटाया गया था वहां सर के स्थान पर आटे से गोला बनाया जाता है एवं उस पर थाली ढक कर वहां दीपक जला दिया जाता है. बाद में थाली उठा कर आटे पर बना निशान देखा जाता है. ऐसा मन जाता है की आटे पर बना निशाण अगली गति की सुचना देता है. 
मृत्यु के तीसरे दिन उठावना होता है. उठावने में पहले सब लोग घर पर इकठ्ठा होते हैं उसके बाद सब मिलकर मंदिर व पौशाल जाते हैं. वहां पर यति जी या कोई श्रावक शांति का पाठ करते हैं. फिर सब लोग घर लौट आटे हैं. 

पांचवें या सातवें दिन ठंडा बार देख कर न्हावन  किया जाता है. उसमे घर के सब लोग नाख़ून, बाल बगैरह कटवाते हैं, घर की पूरी धुलाई होती है एवं नहा कर सब मंदिर जाते हैं.

१२ दिन तक शोक रखा जाता है एवं समाज के लोग बैठने आत़े हैं. शोक के समय घर वाले सर पर पल्ला लेते हैं. औरतें गुलाबी साड़ी पहनती है. बैठने आने वाली समाज की औरतें भी गुलाबी साड़ी पहन कर आती है. 

शोक निवारण के लिए पगड़ी बदलाई व वेश पलटाई होती है. लड़के के सुसराल वाले पगड़ी व वेश बदलवाते हैं. १३ वें दिन मंदिर में बारह व्रत की पूजा पढ़ाई जाती है.  आम तौर पर मृयु भोज नहीं होता है एवं शोक के समय किसी प्रकार का लें दें भी नहीं होता. यह शहरवाली समाज की एक बहुत अच्छी प्रथा है.

शोक के बारह दिन तक समाज के सब घरों से खाना भेजा जाता है और घर के एवेम बहार से आने वाले लोग वही खाते हैं. पहले तो १२ दिन तक घर में चूल्हा भी नहीं जलता था. मृत्यु के समय जहाँ अन्य सभी स्थानों व समाजों में मरनेवाले के ऊपर सब को खिलाने पिलाने व दें लें का बोझ पड़ता है वहीँ शहरवाली समाज में समाज के लोग उस परिवार के खाने पीने का इंतजाम करते हैं. ये एक बहुत ही अच्छी प्रथा है एवं इसका अनुकरण अन्य समाजों द्वारा भी किया जाना चाहिए.



With regards,
Jyoti Kothari (N.B. Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)

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