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Friday, December 16, 2016

श्रीमद देवचंद का आध्यात्मिक एवं भक्ति साहित्य


श्रीमद देवचंद (देवचन्द्र) जैन शासन के एक ज्वाजल्यमान नक्षत्र थे. खरतर गच्छ के महान उपाध्याय  श्री राजसागर जी के शिष्य उपाध्याय दीपचंद जी उनके गुरु थे. १७ वीं सदी के ये महान आध्यात्मिक पुरुष थे जिन्होंने जैन शासन, अपने गुरु, एवं खरतर गच्छ को धन्य किया था. वे महान पंडित एवं विद्वान थे एवं उत्कृष्ट आध्यात्मिक साहित्य का सृजन किया था. उनकी रचनाएँ आज भी जनमानस में लोकप्रिय है व विद्वानों एवं शोधार्थियों को अपनी और आकर्षित करती है।  आपका मुख्य विचरण क्षेत्र गुजरात, राजस्थान एवं महाराष्ट्र रहा एवं उनकी रचनाओं में इन भाषाओँ का प्रयोग बाहुल्य से हुआ है.

ह्रींकार में चौवीस तीर्थंकरों की स्थापना 
श्रीमद देवचंद द्वारा रचित चौवीसीयां एवं स्नात्र पूजा सर्वाधिक लोकप्रिय ह. उन्होंने "वर्त्तमान चौवीसी" के अतिरिक्त अतीत एवं अनागत चौवीसीयों की भी रचना कर भक्ति साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान किया है. उनकी "विहरमान बीसी" भी प्रख्यात है. उनकी सभी रचनाएँ द्रव्यानुयोग से भरपूर है एवं आत्मार्थी जनों के लिए विशेष उपयोगी है. उनके भक्ति साहित्य की विशेषता ये है की उसमे कहीं भी दीनता सांसारिक याचना का भाव नहीं है. वहां तो केवल अरिहंत प्रभु के अतुलनीय गुणों का उल्लेख कर उन जैसा बनने की भावना है. आनंदघन जी के समान ही उनकी चौवीसी भी गच्छ मत परंपरा से ऊपर उठकर है। इसके अलावा भी उन्होंने अनेक स्तवनों की रचना की है.

श्रीमद देवचंद जी ने अपनी वर्त्तमान चौवीसी का "स्वोपज्ञ बालाववोध" भी लिखा है जिसमे केवल श्वेताम्बर ही नहीं अपितु दिगंबर साहित्यों का भी खुलकर सन्दर्भ दिया है।  यह उनकी गच्छातीत मनोवृत्ति का परिचायक है.

श्रीमद देवचंद कृत "स्नात्र पूजा" सभी स्नात्र पूजन में सबसे प्राचीन है और यह भी आगमों को निचोड़ कर बनाया गया है. इसमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश के अलावा प्राचीन हिंदी, ब्रज, गुर्जर यहाँ तक की मराठी भाषा का भी यत्र तत्र प्रयोग किया गया है. यह पूजा अपने पद लालित्य एवं प्रासाद गुण के कारण सामान्य जन और विद्वद्जनों में समान रूप से लोकप्रिय है.

संकलन वरिष्ठ आचार्य विमल गच्छ के श्री ज्ञानविमल सूरी के काव्य एवं वाचक यशोविजय जी के श्रीपाल रास के ढालों के साथ स्वकृत रचना को जोड़ कर श्रीमद देवचंद जी ने "नवपद पूजा" की रचना की जो आज की सभी प्रचलित जैन पूजन में सबसे ज्यादा गायी जाती है. स्वर्गीय आचार्य श्री विजय भुवनभानु सूरी जी महाराज ने इसकी एक एक पूजा पर विवेचन करते हुए एक एक पुस्तक गुजरती भाषा में लिखी है.

भक्ति साहित्य के अतिरिक्त आपने द्रव्यानुयोग पर अनेक साहित्य का सृजन किया है. श्रीमद देवचंद रचित "आगमसार" सम्पूर्ण जैन आगमो को समझने के लिए उमास्वाति कृत तत्वार्थ सूत्र (मोक्ष शास्त्र) के बाद सर्वाधिक उपयोगी है।  "अध्यात्म प्रबोध देशना सार" (संस्कृत) एवं "अध्यात्म गीता" (हिंदी) अध्यात्म की गहराइयों को छूनेवाली रचनाएँ हैं.  अध्यात्म प्रबोध देशना सार का हिंदी अनुवाद स्वर्गीया प्रवर्तिनी श्री सज्जन श्री जी महाराज ने किया है. द्वारा रचित "अष्ट प्रवचनमाता की सज्झाय" मुनि जीवन के उत्कृष्ट संवर भाव एवं उत्सर्ग-अपवाद मार्ग के हार्दिक मर्म को समझने में अत्यंत उपयोगी है.

श्रीमद देवचंद ने कर्मग्रंथों पर टबा लिख कर दुरूह कर्म साहित्य को समझाने में बहुत मदद की है. इसके साथ ही दिगंबर जैन आचार्य शुभचन्द्र द्वारा विरचित "ज्ञानार्णव" ग्रन्थ पर "ध्यान दीपिका चतुष्पदी" नाम की गुजराती टीका भी लिखी है जो जैन पद्धति के ध्यान को अष्टांग योग से जोड़ते हुए उसका विवेचन करती है.

आपके विशाल साहित्य समुद्र की ये एक झलक मात्र है. सर्वप्रथम तपागच्छीय आचार्य श्री वुद्धिसागर सूरी जी ने आपके साहित्यों को हस्तलिखित ग्रंथों से खोज कर  "श्रीमद देवचंद भाग १ - ३ " तक प्रकाशित करवाया था. उसके बाद अनेक जैन आचार्यों, मुनियों एवं श्रावकों ने उनके ग्रंथों के प्रकाशन, अर्थ, एवं शोध के द्वारा अपना योगदान दिया है. इनमे अध्यात्मयोगी श्री कलापूर्ण सूरी, मुनि श्री जयानंद जी, प्रवर्तिनी साध्वी श्री सज्जन श्री जी, अगरचंद भंवरलाल नाहटा, केशरी चंद लुनिया, उमरावमल जरगड़ आदि के का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है.

श्रीमद देवचंद कृत मनोगुप्ति की सज्झाय

श्रीमद देवचंद जी से संवंधित कुछ साहित्य राष्ट्रीय इ- लाइब्रेरी में भी उपलब्ध है जिनके लिंक यहाँ दिए जा रहे हैं.
  • Adhyatma-prabodh Uparnam Deshnasaar 

    Devchandra (Jaipur, Shri Punya Suvarna Gyanpith, Banasthali University, Hindi, 1989)
  • Agamsarodwar 

    Devchandra (Padra, Shri Adhyatma Gyanprasarak Mandal, Banasthali University, Hindi, 1927)
  • Dravya Prakash 

    Devchandra (Bikaner Rajasthan Abhay Jain Granthmala, Banasthali University, Hindi, 1975)
  • Nay Chakrasar 

    Devchandra (Falodhi, Shri Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala, Banasthali University, Hindi, 1928)
  • Nay Chakrasar Ane Gurugun Chatrishi 

    Devchandra (Padra, Shri Adhyatma Gyanprasarak Mandal, Banasthali University, Hindi, 1929)
  • Shri Gyanmanjari 

    Devchandra (Xxxx, Banasthali University, Gujarati, 1939)

Chaturvishati Jin Satvan 

Devchand Ji Shrimad (Shri Jindatt Soori Sewa Sang Mumbai 2, Bharatiya Jnanpith, Delhi, Hindi, 1959)

श्रीमद देवचंद पदानुदास
ज्योति कोठारी 

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Shrimad Devchand (Devchandra) and his spiritual and devotional literature


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