प्रातः कालीन सामायिक लेने व पारने की विधि खरतरगच्छीय परम्परानुसार
जैन धर्म में सामायिक का महत्व एवं स्थान
जैन धर्म मे सामायिक क बहुत अधिक महत्व है. शास्त्रोँ मे ऐसा कहा गया है कि सामायिक मात्र के ज्ञान से कोइ जीव केवल ज्ञान प्राप्त कर सकता है. ये भी कह गया है कि कोइ व्यक्ति प्रतिदिन लाखों स्वर्णमुद्राओं का दान करे, ऐसा वो जीवन पर्यन्त करे, इस प्रकार मेरुपर्वत जितना सोना दान कर दे तो भी उसका पुण्य एक सच्ची सामायिक के बराबर नहीं होता. जैन कथानकों के अनुसार मगध सम्राट श्रेणिक पुनिया श्रावक की एक सामायिक के पुण्य के बदले अपना पूरा राज्य देने को तैयार हो गए थे। उपरोक्त बातों से जैन धर्म में सामायिक का महत्व रेखांकित होता है.
जैन धर्म के अलग अलग समुदायों में सामायिक के सूत्रों एवं विधि में थोड़ी बहुत विभिन्नता है। सुबह और शाम की सामायिक में भी विधि में थोड़ा अंतर है. लेख के इस भाग में खरतरगच्छ परंपरा के अनुसार सुबह की (प्रातःकालीन) सामायिक की विधि बताई गई है. विधि के अतिरिक्त अन्य बातें प्रायः सभी समुदायों में एक जैसी होती है.
सामायिक व चैत्यवंदन सूत्रों की भाषा प्राकृत को कैसे समझें?
बड़ी संख्या में जैन श्रावक श्राविका (गृहस्थ) प्रतिदिन सामायिक व चैत्यवंदन करते हैं. सामायिक व चैत्यवंदन के अधिकतर सूत्र प्राकृत भाषा में निवद्ध है. प्राकृत भाषा संस्कृत भाषा की जननी है. अधिकतर आधुनिक (वर्त्तमान) भारतीय भाषाओँ की भी माँ है. परन्तु प्राचीन भाषा होने के कारण आज के अधिकांश लोग इस भाषा से अपरिचित हैं. उनलोगों को इस भाषा के सटीक उच्चारण का भी पता नहीं है. इस लिए सामायिक व चैत्यवंदन के सूत्रों के उच्चारण में अनेक अशुद्धियाँ रहने की सम्भावना रहती है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्राकृत नहीं जानने वाले सामान्य जनों के लिए यहाँ सरल भाषा में सामायिक व चैत्यवंदन के सूत्रों के उच्चारण एवं विधि को समझने का प्रयत्न किया गया है.
प्राकृत उच्चारण की समस्याएं व समाधान
प्राकृत एक प्राचीन भाषा है जिससे हममे से अधिकांश लोग अपरिचित हैं. इसकी ध्वन्यात्मकता (Phonetic) भी वर्त्तमान भाषाओं से थोड़ी अलग है. अतः इस भाषा को बोलने में उच्चारण सम्वन्धी कठिनाई आती है. प्राकृत उच्चारण में मुख्यतः चार कठिनाइयां आती है जहाँ उच्चारण सम्वन्धी गलती होने की सम्भावना रहती है.
१. संयुक्त अक्षर:
संस्कृत की तरह प्राकृत भाषा में भी संयुक्त अक्षरों की बहुलता होती है जिससे इनके उच्चारण में नए लोगों को थोड़ी परेशानी आति है. कठिन और बड़े शब्दों को शब्दांशों (Syllable) में तोड़ कर उच्चारण करने से संयुक्ताक्षरों से सम्वन्धित परेशानी कम हो सकती है.
२. हलन्त का प्रयोग:
हिंदी या अन्य आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाओं के उच्चारण के नियम प्राकृत व संस्कृत से थोड़े अलग हैं. हिंदी या अन्य आधुनिक उत्तर भारतीय भाषाओं में किसी शब्द या शब्दांश के अंतिम अक्षर (यदि उसमे कोई मात्रा नहीं हो) का उच्चारण इस प्रकार होता है जैसे उसमे हलन्त लगा हुआ है. इसका अर्थ ये हुआ की हम उस अक्षर का आधा उच्चारण करते हैं. हिंदी आदि भाषाओँ में इसे उच्चारण दोष नहीं माना जाता. जैसे हम जब राम लिखते हैं तब हिंदी अदि में उसका उच्चारण राम् के जैसा करते हैं. इसी प्रकार ऋषभ को ऋषभ्, अर को अर्, अजित को अजित्, संभव को सम्भव् आदि बोलते हैं. इसका अर्थ ये हुआ की जिन अक्षरों में हलन्त नहीं लगा हुआ है उनमे भी हलन्त लगाकर उच्चारण करते हैं.
प्राकृत सूत्रों के उच्चारण में इस प्रकार की कुछ बहुप्रचलित भूल के उदाहरण:
खमासमण सूत्र में इच्छामि खमासमणो बोलते समय प्रायः उच्चारण इस प्रकार होता है खमास्-मणो जबकि शुद्ध उच्चारण इस प्रकार है: खमा-समणो।
इसी तरह णमोत्थुणं सूत्र में धम्म-सारहीणं शब्द का उच्चारण गलती से धम्मसार्-हीणं किया जाता है जबकि शुद्ध रूप धम्म-सारही-णं होता है. उच्चारण गलत होने से कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है. जैसे इस शब्द का अर्थ है धर्म के सारथी जबकि गलत उच्चारण से इसका अर्थ हो जाता है धर्म के सार से हीन. यहाँ बुरी तरह अर्थ का अनर्थ हो गया है.
प्राकृत या संस्कृत भाषा के उच्चारण के समय यह बात खास ध्यान देने योग्य है की हलन्त नहीं लगा होने पर उस वर्ण (अक्षर) को पूरा बोला जाये. केवल हलन्त लगा हुआ होने पर ही उसका उच्चारण हिंदी आदि की तरह आधा किया जाये. इतना मात्र करने से ही प्राकृत/संस्कृत भाषा का उच्चारण सुन्दर हो जायेगा.
३. दन्त न एवं मूर्धन्य ण का प्रयोग:
प्राकृत भाषा में संस्कृत से अनेक समानताएं हैं और अनेक असमानताएं भी है. उसमे एक मुख्य असमानता दन्त न एवं मूर्धन्य ण के प्रयोग को लेकर है. प्राकृत भाषा में प्रायः दन्त न का प्रयोग नहीं होता. उसमे प्रायः सभी जगह केवल मूर्धन्य ण का ही उपयोग होता है. अतः प्राकृत के सूत्रों के उच्चारण के समय इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए की हम मूर्धन्य ण का ही उपयोग करें.
४. तालव्य श मूर्धन्य ष एवं दन्त स का प्रयोग:
प्राकृत भाषा में प्रायः दन्त न का उपयोग नहीं होता औरमूर्धन्य ण का ही उपयोग होता है. इसी तरह इस इस भाषा में तालव्य श व मूर्धन्य ष प्रयोग प्रायः नहीं होता, केवल दन्त स का ही प्रयोग होता है. अतः स के उच्चारण के समय विशेष सावधानी वरतते हुए तालव्य श एवं मूर्धन्य ष का उपयोग न करें. केवल दन्त स का ही प्रयोग करें.
उपरोक्त चारों बातों का ध्यान रखने से प्राकृत भाषा का शुद्ध उच्चारण करना बहुत सरल हो जायेगा.
सामायिक के उपकरण
सामायिक के मुख्यतः तीन उपकरण होते हैं १. चरवला (पुंजनि) २. मुँहपत्ती ३. आसन (कटासना). कोई भी धर्मक्रिया गुरु के सन्मुख करने पर विशेष फलदायी होता है, इसलिए गुरु की अनुपस्थिति में उनके प्रतीक स्वरुप स्थापनाचार्य को किसी ऊँचे स्थान पर विराजमान कर उनके सन्मुख सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषधादि क्रिया की जाती है. अहिंसा सभी धर्मों है का सार है. अतः सामायिक में जीवरक्षा हेतु चरवले का उपयोग होता है. शास्त्र आदि पूजनीय वस्तुओं पर बोलते समय थूक न गिरे एवं उड़ता हुआ (सम्पातिम) जीव मुँह के अन्दर न चला जाए इसलिए मुँहपत्ती का उपयोग किया जाता है. जयणा पूर्वक उठने, बैठने, चलने के लिए ऊन से बने हुए आसन का उपयोग होता है.
सामायिक के सूत्र एवं विधि
सामायिक का मुख्य सूत्र सामायिक दण्डक अर्थात करेमि भंते है. इसके अतिरिक्त सामायिक ग्रहण करते समय गुरुवन्दन के लिए गुरु से सुखसाता पूछा जाता है और उनसे अपने अविनय अपराध के लिए क्षमा याचना की जाती है. सामायिक लेते समय इरियावहियँ से सभी जीवों की हिंसा के लिए मिच्छामि दुक्कडं दिया जाता है. इसके अलावा स्थापनाचार्य जी की पडिलेहना व स्थापना, मुँहपत्ती पडिलेहण, बैठने एवं स्वाध्याय का आदेश भी लिया जाता है. यदि सर्दी आदि के कारण अतिरिक्त वस्त्र की आवश्यकता हो तो उसका भी आदेश लेते हैं. नवकार मन्त्र एवं खमासमण सूत्र का प्रयोग सभी धर्म क्रियाओं की तरह सामयिक में भी कई बार होता है. यह प्रातःकालीन सामायिक की विधि है सांध्यकालीन विधि में थोड़ा अंतर है.
सर्व प्रथम एकांत स्थान में शरीर शुद्धि कर शुद्ध वस्त्र पहन कर अपने सन्मुख उच्च स्थान पर स्थापनाचार्य जी विराजमान करें. साथ चरवला, मुँहपत्ती व आसन (कटासना) रखें. इसके बाद दाहिने हाथ को स्थापना जी की तरफ कर स्थापन मुद्रा में तीन बार नवकार मन्त्र बोलें.
नवकार मंत्र
णमो अरहंताणं,
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्वसाहूणं ।१।
एसो पंच णमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवई मंगलं।२।
इसके बाद तेरह बोल से स्थापनाचार्य जी की पडिलेहना करें.
स्थापनाचार्य जी पडिलेहण के १३ बोल
१ शुद्ध स्वरुप धारें २ ज्ञान ३ दर्शन ४ चारित्र सहित ५ सद्दहणा शुद्धि ६ प्ररूपणा शुद्धि ७ स्पर्शना शुद्धि सहित ८ पांच आचार पाले ९ पलावे १० अनुमोदे ११ मनोगुप्ति १२ वचन गुप्ति १३ कायगुप्ति आदरे।
तत्पश्चात दो बार खमासमण सूत्र बोलते हुए पाँचों आग झुका कर (दो घुटने, दो हाथ, मस्तक) खमासमण दें.
खमासमण सूत्र
इच्छामि खमा-समणो वंदिऊं, जावणिज्जाए निस्सिहीआए मत्थएण वंदामि।
इसके बाद खड़े हो कर, आधा अंग झुका कर नीचे दिए सूत्र से गुरु से सुखसाता पूछें।
सुगुरु सुखसाता पृच्छा सूत्र
इच्छकार भगवन, सुहराई! (सुहदेवसी) सुखतप शरीर-निराबाध! सुख संजम जात्रा निर्वहते होजी? स्वामी साता छे जी?
भात पाणी का लाभ दिजो जी!
अब फिर से एक खमासमण देकर दाहिना हाथ जमीन पर रख कर सर झुका कर निम्न सूत्र से गुरु से क्षमा याचना करें.
सुगुरु खामना सूत्र
इच्छाकारेण संदिसह भगवन्!
अब्भुट्ठिओमि अब्भिंतर राइअं (देवसिअं) खामेउं? इच्छं, खामेमि राइअं (देवसिअं),
जंकिंचि अपत्तिअं-परपत्तिअं, भत्ते-पाणे, विणए-वेयावच्चे, आलावे-संलावे, उच्चासणे-समासणे, अंतरभासाए-उवरिभाषाए, जंकिंचि मज्झ, विणय-परिहीणं, सुहुमं वा बायरं वा, तुब्भे जाणह, अहं ण जाणामि, तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
अब फिर से एक खमासमण देकर मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।
मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक लेवा मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ?
इच्छं।
अब उकडू बैठ कर निम्न ५० (२५+२५) बोलों से मुँहपत्ती का पडिलेहण करें.
मुँहपत्ती पडिलेहण के २५ बोल
१ सूत्र अर्थ तत्व करि सद्दहुँ २ सम्यक्त्व मोहनीय ३ मिश्र मोहनीय ४ मिथ्यात्व मोहनीय परिहरूं ५ कामराग ६ स्नेहराग ७ दृष्टि राग परिहरूं।
८ सुदेव ९ सुगुरु १० सुधर्म आदरुं ११ कुदेव १२ कुगुरु १३ कुधर्म परिहरूं।
१४ ज्ञान १५ दर्शन १६ चारित्र आदरुं १७ ज्ञान विराधना १८ दर्शन विराधना १९ चारित्र विराधना परिहरूं।
२० मनोगुप्ति २१ वचनगुप्ति २२ कायगुप्ति आदरुं २३ मनोदण्ड २४ वचन दण्ड २५ कायदण्ड परिहरूं।
अंग पडिलेहण के २५ बोल
१ हास्य २ रति ३ अरति परिहरूं। (बाँया हाथ पडिलेहते हुए बोलें)
४ भय ५ शोक ६ जुगुप्सा (दाहिना हाथ पडिलेहते हुए बोलें)
७ कृष्ण लेश्या ८ नील लेश्या ९ कापोत लेश्या परिहरूं। (मस्तक पडिलेहते हुए बोलें)
१० रिद्धि गारव ११ रस गारव १२ साता गारव परिहरूं। (मुँह पडिलेहते हुए बोलें)
१३ माया शल्य १४ नियाण शल्य १५ मिथ्यादर्शन शल्य परिहरूं। (ह्रदय/वक्ष स्थल पडिलेहते हुए बोलें)
१६ क्रोध १७ मान परिहरूं (दाहिना कन्धा पडिलेहते हुए बोलें)
१८ माया १९ लोभ परिहरूं। (बाँया कन्धा पडिलेहते हुए बोलें)
२० पृथ्वीकाय २१ अपकाय २२ तेउकाय कि जयणा करूँ। (दाहिना घुटना व पैर पडिलेहते हुए बोलें)
२३ वाउकाय २४ वनष्पति काय २५ त्रसकाय कि जयणा करूँ। (बाँया घुटना व पैर पडिलेहते हुए बोलें)
(यहाँ पुरुष पुरे २५ बोल बोलें, स्त्रियां मस्तक, ह्रदय कन्धों का पडिलेहण न करें एवं इससे सम्वन्धित ७ कृष्ण लेश्या ८ नील लेश्या ९ कापोत लेश्या परिहरूं। १३ माया शल्य १४ नियाण शल्य १५ मिथ्यादर्शन शल्य परिहरूं।
१६ क्रोध १७ मान परिहरूं १८ माया १९ लोभ परिहरूं। ये दश बोल न बोलें, इसके अतिरिक्त बाकी के १५ बोल से ही पडिलेहण करें।)
अब फिर से एक खमासमण देकर निम्नरूप से सामायिक आदेश लेवें।
सामायिक आदेश
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक संदिसाहुँ?
इच्छं।
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक ठाउँ?
इच्छं।
कहकर तीन नवकार मन्त्र का स्मरण करें. तत्पश्चात-
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी सामायिक दण्डक उच्चरावो जी!
कहकर गुरु महाराज या किसी बड़े से सामायिक दण्डक सूत्र उच्चरें। यदि अकेले हों तो स्वयं ही खड़े हो कर, आधा अंग झुका कर तीन बार करेमी भंते सूत्र बोलें ।
सामायिक दण्डक सूत्र
करेमि भंते! सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चक्खामि।
जाव नियमं पज्जुवासामि।
दुविहं-तिविहेणं,
मणेणं, वायाए, कायेणं,
न करेमि, न कारवेमि,
तस्स भंते ! पडिक्कमामि,
निंदामि, गरिहामि,अप्पाणं वोसिरामि।
अब फिर से एक खमासमण देकर खड़े खड़े
इरियावहियं सूत्र
इच्छाकारेण संदिसह भगवन्।
इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं,
इच्छामि पडिक्कमिउं ॥१॥
इरियावहियाए-विराहणाए ॥२॥
गमणागमणे ॥३॥
पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग पणग दग-मट्टी मक्कडा-संताणा संकमणे ॥४॥
जे मे जीवा विराहिया ॥५॥
एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया ॥६॥
अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया।
जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥७॥
तस्स उत्तरी सूत्र
तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं,
विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।
अण्णत्थ सूत्र
अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥
बोलकर एक लोगस्स अथवा ४ नवकार का काउसग्ग करें.
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर प्रगट लोगस्स कहें।
लोगस्स सूत्र
लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥
उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥
सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥
कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥
सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥
कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥
एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥
कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥
एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥
कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥
चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥
अब फिर से एक खमासमण देकर
बेसणो आदेश
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! बेसणो संदिसाहुँ?
इच्छं।
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! बेसणो ठाउँ?
इच्छं।
अब चरवले से जमीन का प्रमार्जन कर आसन बिछा कर बैठ जाएँ।
अब फिर से एक खमासमण देकर
सज्झाय आदेश
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सज्झाय संदिसाहुँ?
इच्छं।
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सज्झाय करूँ?
इच्छं।
कहकर हाथ जोड़ कर ८ नवकार मन्त्र का स्मरण करें.
यदि शीतादि कारणवश अतिरिक्त वस्त्र, कम्बल आदि की आवश्यकता हो तो फिर से एक खमासमण देकर
पंगुरण आदेश
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पंगुरण संदिसाहुँ?
इच्छं।
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पंगुरण पडिग्गहूं?
इच्छं।
कहकर अतिरिक्त वस्त्रादि ग्रहण करें.
यदि पच्चक्खाण करना हो तो फिर से एक खमासमण देकर
पच्चक्खाण आदेश
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पच्चक्खाण करूँ?
इच्छं।
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी पच्चक्खाण करावो जी!
कहकर गुरु महाराज से अथवा स्वयं यथाशक्ति पच्चक्खाण करें.
पच्चक्खाण आदेश
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पच्चक्खाण करूँ?
इच्छं।
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी पच्चक्खाण करावो जी!
कहकर यथाशक्ति पच्चक्खाण करें।
यहाँ पर खरतरगच्छीय परंपरा अनुसार प्रातःकालीन सामायिक लेने की विधि पूरी हुई। अब राई प्रतिक्रमण करें अथवा दो घडी अर्थात ४८ मिनट तक स्वाध्याय, ध्यान, जप, स्तोत्र पाठ आदि धर्मध्यान में समता पूर्वक व्यतीत करें. राई प्रतिक्रमण पूर्ण होने पर अथवा ४८ मिनट हो जाने पर सामायिक पारने की विधि करें।
सामायिक पारने की विधि
यदि सामायिक काल में संघट्टा आदि दोष लगा हो, सावद्य वस्तुओं का स्पर्श हुआ हो, गलती से भी बिजली आदि का उपयोग हो गया हो, इस प्रकार किसी भी तरह से कोई हिंसा हुई हो तो इस प्रकार इरियावहियँ करें। अन्यथा सीधे सामायिक पारने की विधि करें।
एक खमासमण देकर खड़े खड़े
इरियावहियं सूत्र
इच्छाकारेण संदिसह भगवन्।
इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं,
इच्छामि पडिक्कमिउं ॥१॥
इरियावहियाए-विराहणाए ॥२॥
गमणागमणे ॥३॥
पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग पणग दग-मट्टी मक्कडा-संताणा संकमणे ॥४॥
जे मे जीवा विराहिया ॥५॥
एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया ॥६॥
अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया।
जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥७॥
तस्स उत्तरी सूत्र
तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं,
विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।
अण्णत्थ सूत्र
अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥
बोलकर एक लोगस्स अथवा ४ नवकार का काउसग्ग करें.
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर प्रगट लोगस्स कहें।
लोगस्स सूत्र
लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥
उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥
सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥
कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥
सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥
कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥
एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥
कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥
एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥
कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥
चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥
अब फिर से एक खमासमण देकर मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।
मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ?
इच्छं।
कहकर मुँहपत्ती का पडिलेहण करें।
अब फिर से एक खमासमण देकर
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक पारुं?
इच्छं।
इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक पारेमी ?
इच्छं।
कहकर हाथ जोड़कर तीन नवकार मन्त्र का स्मरण करें. इसके बाद मस्तक झुका कर दाहिना हाथ चरवले पर रखकर बोलें.
सामायिक भावना गाथा (भयवं दसण्ण भद्दो)
भयवं दसण्ण भद्दो, सुदंसणो थूलभद्द वयरो य, सफलिकय गिह चाया, साहू एवं विहा हुंती।
साहूण वंदणेण नासई पावं असंकिया भावा, फासुअ दाणे निज्जर, अभीग्गहो णाण माईणं।
छउमत्थो मूढ़मणो, कित्तिय मित्तं पि जीवो, जं च न सम्भरामि अहं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स।
सामाइय पोसह संठियस्स, जीवस्स जाइ जो कालो, सो सफलो वोधव्वो, सेसो संसार फल हेउ।
सामायिक विधि से लिया, विधि से किया, विधि से करते अविधि आशातना लगी हो, दश मन के, दश वचन के, बारह काया के बत्तीस दूषणों में से जो कोई दूषण लगा हो वह सब मन वचन काया करके तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
अब दाहिना हाथ अपनी तरफ कर उत्थापन मुद्रा में तीन नवकार मन्त्र स्मरण करें.
(खरतर गच्छ परंपरा अनुसार सामायिक पारने की विधि सम्पूर्ण।)
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