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Monday, January 11, 2010

जैन विधि विधान

किसी भी कार्य को करने के तरीके को विधि कहते हैं. जैन धर्मं में अनेक प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान होते हैं. इन धार्मिक अनुष्ठानों को करने के तरीके को ऍम तौर पर विधि विधान कहते हैं. अंजनशलाका, प्रतिष्ठा, दीक्षा, पूजा, महापूजन आदि अनेक प्रकार के अनुष्ठान होते हैं जिनमे काफी विधि विधान होते हैं.

वर्त्तमान प्रचालन के अनुसार इन अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए विधि कारकों को बुलाया जाता है. आम तौर पर ये कार्य किसी साधू या साध्वी भगवंतों की निश्रा में विधि कारक के सहयोग से संपन्न होता है.

विधि कारक जैन धर्म के सिद्धांतों एवं परम्पराओं  के अनुसार उपरोक्त सभी कार्य संपन्न करवाते हैं.

जयपुर के प्रख्यात विधि कारक श्री यशवंत गोलेछा ने उपरोक्त जानकारी दी.

श्री  यशवंत गोलेछा ने प्रख्यात एवं मुंबई निवासी वयोवृद्ध विधिकारक श्री वंकिम भाई के. शाह के सान्निध्य में लम्बे समय तक रह कर विधि विधान की शिक्षा ग्रहण की.

उन्होंने रावतभाटा, गांधीसागर, कोटा, जयपुर, जोधपुर, रतलाम, मुंबई, भुज, मांडवी, अंजार आदि अनेक स्थानों में प्रतिष्ठा करवाई है. साथ ही विभिन्न स्थानों पर अनेकों महापूजन, पूजाएँ एवं पर्युषण आदि भी करवाए हैं.
Karma Theory Part 1
Karma Theory Part 2
Karma Theory Part 3
Karma Theory part 4

Thanks,
Jyoti Kothari

Jyoti Kothari is an author and hubber who writes about Gems and Jewelry, India, Economy, Finance, Management, Skills, Job, Employment, Food, Environment, Jainism and on many other topics.
He is proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur, representing centuries old tradition of Excellence in Gems and Jewelry.

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Sunday, September 6, 2009

जैन धर्म की मूल भावना भाग २

आज प्रायः यह देखा जा रहा है की पुज्य साधू साध्वी भगवंत भी भगवान् महावीर के त्याग मार्ग को छोड़ कर सांसारिक आडम्बरों में फंसते जा रहे हैं। परमात्म भक्ति के नाम पर अधिकांश जगह महापुजनों का आडम्बर देखा जा रहा है। पूज्य साधू साध्वी भगवंत भी इन्हे प्रोत्साहित करते हैं। इन पूजाओं में प्रायः कर के अरिहंत परमात्मा के स्थान पर देवी देवताओं को महत्व दिया जाता है। यदि परमात्मा की पूजा इनमे होती भी है तो मात्र नाम के लिए। तथाकथित भक्त गण भी अधिकांशतः भौतिक सुख सांसारिक कामनाओं के लिए इन पूजाओं में सम्मिलित होते हैं।

इसी तरह आज अनेकों साधू साध्वी गणों के अपने अपने प्रोजेक्ट हैं जिन्हें पुरा करने में ही उनकी दिलचस्पी रहती है। उन प्रोजेक्टों के निर्माण, संचालन आदि में उनका बहुत समय चला जाता है। वे उपदेशक के स्थान पर संचालक बनते जा रहे हैं। प्रायः उन प्रोजेक्ट्स के ट्रस्टी गण उन के पसंदीदा लोग होते हैं एवं निरंतर उनके संपर्क में रहते हैं। साधू साध्वी गण धन संग्रह के लिए भक्त जानो को सिर्फ़ प्रेरित ही नहीं करते अपितु अनेक समय उन पर दबाव भी डालते हैं। धन का इस्तेमाल भी उन साधू साध्विओं की इच्छा एवं आदेश के अनुसार होता है। जैन धर्म के अनुसार साधू साध्विओं का व्रत तीन करण तीन योग से होता है। अर्थात वे न तो मन वचन काया से कोई सांसारिक कार्य करते हैं न कराते हैं और न ही उसका अनुमोदन करते हैं। परन्तु उपरोक्त कृत्य में सांसारिक कार्य कराना ही पड़ता है। इस प्रकार स्पष्ट रूप से व्रत का भंग होता है

मेरा सभी सुज्ञ जनों से निवेदन है की इस विषय पर विचार कर जिन आज्ञा अनुसार प्रवृत्ति करने पर वाल दें।
धन्यवाद
 जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
जैन धर्म की मूल भावना भाग 3
जिन मंदिर एवं वास्तु

प्रस्तुति:
ज्योति कोठारी

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