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Friday, July 31, 2020

जल में अपकायिक जीव सिद्ध करने के वैज्ञानिक प्रयास


जैन दर्शन में अपकाय का स्वरुप 


जैन धर्म दर्शन के अनुसार  जल स्वयं जीवों का पिण्ड है.  जल की गणना पांच स्थावर कायिक जीवों में से एक अपकाय के रूप में होती है. यह अपकायिक जीव सुक्ष एवं चर्मचक्षु से अदृश्य होते हैं. जब यह समूह होते हैं केवल तभी यह दृष्टिगोचर होते हैं. अन्यथा अतीन्द्रिय ज्ञानियों के वचन से ही इसे मानना पड़ता है. अपकाय की ७ लाख योनियां होती है और यह संसथान, स्पर्श, रास, गंध और वर्ण की भिन्नता लिए हुए होती है. 

नदी, बाबड़ी, तालाब, कुआ, समुद्र आदि का जल; बर्फ, हिम, ओले आदि जमा हुआ जल; बादल आदि वाष्प रूप में परिणत जल; ये सभी अपकाय के रूप हैं. जल सचित्त और अचित्त दो प्रकार का है. जिस जल में अपकाय के जीव होते हैं उसे सचित्त और जीवरहित जल को अचित्त कहा गया है.   

जल में अपकायिक जीव सिद्ध करने के वैज्ञानिक प्रयास

सर्वज्ञ कथित जैन शास्त्रों में जल को जीव माना है परन्तु वर्तमान विज्ञान इसे जीव नहीं मानता। भगवन महावीर ने वनष्पति में भी जीव बताया था, उसे भी पहले वैज्ञानिकों ने नहीं माना था. आचार्य  जगदीश चंद्र बसु ने इसे सिद्ध किया और अब सभी वनष्पति अर्थात पेड़ पौधों में जीव मानते हैं. अब जैन समाज के कुछ लोग जिनकी विज्ञानं में रूचि है उनने   जीव को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करने का काम प्रारम्भ किया है.  इस  काम के लिए स्वाध्यायियों  का एक व्हाटसऐप ग्रुप बनाकर चर्चा प्रारम्भ की गई है. 

शोध को गति देने के लिए मैंने निम्नलिखित कुछ सुझाव दिए हैं. 

जल में अपकायिक जीव सिद्ध करने हेतु कुछ दिशा निर्देश 


1. आधुनिक जीव विज्ञान के अनुसार हर जैविक पदार्थ में किसी न किसी रूप में कार्बन का होना आवश्यक है। जल में कार्बन नही, फिर कार्बनिक योग DNA या RNA का तो सवाल ही कहाँ?

2. संभवतः जल और ऑक्सीजन ही ऐसे दो पदार्थ हैं जिसमे कार्बन नही है परंतु ये जैविक प्रक्रिया से भी उत्पन्न होते हैं।

3. जैन दर्शन के अनुसार सांसारिक जीव के 6 पर्याप्तियां होती है, जिनमे से प्रथम आहार, दूसरा शरीर, तीसरी इन्द्रिय  और चौथा श्वासोस्वास  ये चार पर्याप्तियां एकेन्द्रिय जीवों में भी होती है।

4. आहार से ही शरीर का निर्माण होता है। जल अपकायिक एकेन्द्रिय जीव है। उसका आहार क्या है? यह शोध का विषय होना चाहिए।

5. अपकायिक जीवों का आहार H2O है या OH-,  H+, अथवा O2? या कुछ और हो सकता है?

6. अपकायिक जीवों में श्वसन (श्वासोस्वास) कैसे होता है? क्या उसमे ऑक्सिजन ग्रहण होता है? या फिर अवात श्वसन की प्रक्रिया होती है? 

7. जीव अपने कर्मानुसार एक गति/योनि से दूसरी जगह कार्मण एवं तैजस शरीर (सूक्ष्म) ले कर जाता है। वहां आहार को तैजस शरीर के माध्यम से पचा कर स्थूल औदारिक या वैक्रिय शरीर का निर्माण करता है। अपकायिक जीव औदारिक शरीर वाले होते हैं।

8. गृहीत आहार को औदारिक शरीर मे बदलने में कुछ तो भौतिक/रासायनिक (Physical/ Chemical) परिवर्तन होता ही होगा। इसमे किसी न किसी रूप में ऊर्जा (Energy) का आदान प्रदान (Endothermic/Exothermic) होता होगा।

यदि हम आहार को शरीर मे बदलने की प्रक्रिया को Track कर सकें तो जल को जीव सिद्ध किया जा सकता है।

जैन दर्शन के सामान्य ज्ञान के अनुसार ये विद्वतजनों के समक्ष मेरा सुझाव है।

Important things to take notice of while researching on Water

It is clearly depicted in Jain canons that Chetna/Upyoga is the unique property of Jeeva; mundane or free. Consciousness or feeling, perhaps, is the nearest words. 

Now, the technology is able to create Artificial Intelligence. (Intelligence, therefore, is not equivalent to Chetna.) However, it could not create feeling through AI. Sometimes, AI equipment pretends to have a feeling, eg Alexa. We know this is not real. 

In general, biologists consider growth and reproduction as symbols of the living being. However, this can be misleading while studying Jeeva in Jainism. Matter can show growth by creating bonds with other Pudgal Paramanu or Skandh. In some cases, it can show some symptoms of reproduction, too. So, we have to concentrate and focus on Chetna while studying Jeeva.

To the best of my knowledge, scientists map and measure consciousness through electrical or chemical signals generated by the brain or nervous system. I don't know exactly which types of signals are generated by lower-level creatures. However, I can guess, they also generate some kind of electrical or chemical ones.

Dr. J C Bose and scientists in his lineage would able to measure the joy and pains of plants probably using crescograph. We need similar kinds of equipment but more powerful, which can detect such signals (very weak) from Apkaya or other Sthavarkayas.

Our research/thought process may move in this direction.

NB: This is just an opinion. The scholars here, may at there will, consider, rectify and amend.

Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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