अष्ट सिद्धि नव निधि दातार, सर्वार्थ सिद्धि दायक, आधि व्याधि उपाधि नाशक, रोग शोक दुख दारिद्र विनाशक, सर्व संताप हर, भूत प्रेत पिशाच आदि की बाधाओं को दूर करने वाले, सर्व समृद्धि कारक, महा मांगलिक, महा प्रभाविक, चमत्कारिक सर्वतोभद्र मंत्राधिराज पञ्च परमेष्ठी मंत्र शुद्ध उच्चारण व विधि पूर्वक सीखने के लिए इस वीडियो का उपयोग करें।
इस महामंत्र के उच्चारण, पाठ, मनन चिंतन से सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है और जीव समस्त आधिभौतिक, आधिदैविक एवं अंततः पारमार्थिक सुख प्राप्त करता है।
मंत्राधिराज पञ्च परमेष्ठी मंत्र शुद्ध उच्चारण व विधि पूर्वक सीखें
यह मन्त्र प्राकृत भाषा में निवद्ध होने से इसके शुद्ध उच्चारण में कठिनाई होती है इस बात को ध्यान में रखते हुए चमत्कारिक सर्वतोभद्र मंत्राधिराज पञ्च परमेष्ठी मंत्र शुद्ध उच्चारण व विधि पूर्वक सीखने के लिए यह वीडियो बनाया गया है.
मंत्राधिराज पञ्च परमेष्ठी मंत्र का मूल पाठ
णमो अरहंताणं,
णमो सिद्धाणं,
णमो आयरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्वसाहूणं ।१।
एसो पंच णमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवई मंगलं।२।
मंत्राधिराज पञ्च परमेष्ठी मंत्र का अर्थ
अर्हन्तों को नमस्कार हो।
(मोक्ष को प्राप्त) सभी सिद्धों को नमस्कार हो।
सभी गणनायक आचार्यों को नमस्कार हो।
सूत्र और अर्थ प्रदान करनेवाले सभी उपाध्यायों को नमस्कार हो।
लोक में सभी साधु मुनिराजों को नमस्कार हो।
इन पाँचों (परमेष्ठियों) को किया हुआ (भावपूर्वक) नमस्कार सभी पापों को नष्ट करनेवाला है. ये (पञ्च परमेष्ठी एवं) इन्हे किया हुआ नमस्कार सभी मंगलों में (सर्वश्रेष्ठ) प्रथम मंगल है।
मंत्राधिराज नवकार मंत्र का महाप्रभाव
यह परम मन्त्र अनेक नामों से जाना जाता है जैसे चिन्तामणि मन्त्र, नवकार मन्त्र, नमस्कार मन्त्र, महामंत्र, णमोक्कार मन्त्र आदि. इसका शास्त्रीय नाम पञ्च मंगल महाश्रुत स्कंध है.
इस मंत्र के स्मरण से परमात्मा का आत्यंतिक शरण प्राप्त होता है। परमात्म शरण प्राप्त जीव के समस्त मनोमालिन्य दूर होते हैं। मन के विकार दूर होने से सात्विक भाव प्राप्त होता है, तामसिक भाव एवं समस्त क्लेश, अशांति दूर होते हैं।
जीव का अज्ञान एवं मिथ्यात्व दूर होने पर मोह, राग, द्वेष आदि धीरे धीरे नष्ट हो जाते हैं और परम सुख व परम शांति प्राप्त होती है। ऐसी अवस्था देवदुर्लभ है अतः ऐसे व्यक्ति को देवी देवता भी नमस्कार करते हैं।
सर्वपूज्य नमस्कार महामंत्र
यह शास्वत अनादि निधन मंत्र है अर्थात इसका न कोई आदि है न अंत है। परम पूज्य परम हितकारी अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु ये पञ्च परमेष्ठी तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ एवं अत्यंत परोपकारी तत्व हैं। जगत में इनके सामान उपकारी कोई नहीं. सभी देव, देवेंद्र, मनुष्य, असुर, राक्षस, यक्ष, किन्नर, गंधर्व, इनके चरणों के सेवक हैं। अतः इस मन्त्र की उपासना से ये सभी देवता भी प्रसन्न होते हैं।
इस पंच परमेष्टि मंत्र से बढ़कर कोई मंत्र नही। इसका श्रद्धापूर्वक जप स्मरण चिंतन मनन करने से भव दुख का अंत होकर परमात्म परम व्रह्म स्वरूप प्राप्त होता है। इससे एक भव के नहीं परन्तु भव भव के दुखों का अंत होता है. यह अनंत मृत्युओं पर विजय प्राप्त करनेवाला होने से वास्तविक महामृत्युंजय मन्त्र है.
जिसप्रकार वैदिक धर्म में गायत्री मन्त्र का एवं शैव मत में महा मृत्युंजय मन्त्र का महत्व है वैसा ही जैन धर्म में इस विश्वकल्याणकारी महामंत्र का महत्व है.
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