अभी एक व्हाट्सएप पोस्ट पर मैंने बेले के लिए छट्ठ एवं तेले के लिए अट्ठम शब्द का उपयोग किया था, उसके बाद लोगों के फोन आने लगे की इसका अर्थ क्या है? इसने मुझे ये पोस्ट लिखने के लिए प्रेरित किया जिससे लोग प्राकृत भाषा के जैन पारिभाषिक शब्दों से परिचित हो सकें, साथ ही प्राचीन भारतीय एवं जैन परम्पराओं को समझ सकें.
त्याग प्रधान भारतीय एवं जैन संस्कृति
त्याग प्रधान भारतीय एवं जैन संस्कृति में एक-एक समय के भोजन त्याग का महत्व था. जैन परंपरा में भोजन त्याग को अनशन कहा जाता था, जो आज भी सामान्य भाषा में प्रचलित है. कालक्रम में इसे उपवास कहा जाने लगा और सामान्यतः पुरे दिन रात के भोजन त्याग को उपवास कहा गया.
धारणा और पारणा
प्राचीन भारतीय संस्कृति में सामान्यतः एक दिन में दो बार भोजन लिया जाता था. इस हिसाब से दो वक्त के आहार त्याग को उपवास की संज्ञा दी गई. लेकिन जैन परंपरा की अपनी एक विशिष्टता है. इसमें उपवास के पूर्व दिवस मन को सम्पूर्ण आहार त्याग के लिए तैयार करने हेतु एक दिन पहले एक समय के भोजन त्याग कर उपवास की "धारणा" की जाती थी. उपवास की धारणा अर्थात मन में आहार त्याग की भावना से दृढ करना. इसी प्रकार 'पारणा' के दिन भी एकासन कर उपवास की अनुमोदना की जाती थी.
उपवास, बेला, तेला: चउत्थ, छट्ठ और अट्ठम
उपवास के पहले दिन एक समय का भोजन का त्याग, उपवास के दिन दो समय का भोजन त्याग, एवं एक दिन बाद भी एक समय का भोजन का त्याग- इस प्रकार कुल चार समय के भोजन का त्याग होता था. चार को प्राकृत भाषा में चऊ और भोजन को भत्त कहते हैं इसलिए एक उपवास के लिए 'चउत्थ भत्त' शब्द का प्रयोग होता है, अर्थात चार बार के भोजन का त्याग. यहाँ ये भी जानने योग्य है की भत्त शब्द ही आगे चल कर भात और भाता में परिवर्तित हुआ. प्राचीन कल में भारतीयों का मुख्य भोजन चावल था था और उसे देशी भाषा में भट कहा जाता है. इसी प्रकार सफर में साथ ले जाये जाने वाले भोजन को भाता कहते हैं.
इसी प्रकार दो दिन का उपवास अर्थात बेले में- दो दिन के चार बार और आगे पीछे के दिनों के दो बार ऐसे छह समय के भोजन का त्याग होता है और इसे 'छट्ठ भत्त' कहते हैं. तेले में तीन दिन के छ बार और आगे पीछे के दिनों के दो बार इस प्रकार आठ बार भोजन का त्याग होने से 'अट्ठम भत्त' कहते हैं. इन्हे ही संक्षेप में चउत्थ, छट्ठ और अट्ठम कहा जाता है.
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