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Monday, December 16, 2024

पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी महाराज से मेरी पहली मुलाकात: एक संस्मरण


पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी


पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी महाराज साहब को कौन नहीं जनता? अपने समय के धुरंधर वक्ता, तार्किक, जैन सिद्धांतों के ज्ञाता, धुरंधर आचार्य के सामान एवं युवा ह्रदय सम्राट पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी महाराज साहब! उनकी प्रेरणा से स्थापित "वीर सैनिक" ने जिनशासन की महती सेवा की है. नवसारी एवं अहमदाबाद में स्थापित "तपोवन" आज भी विद्या अध्ययन का अग्रिम केंद्र है.  


मेरी पहली मुलाकात: एक संस्मरण

बात काफी पुरानी है, १९८० के दशक की. उस समय पूज्यश्री जैन गगनांगन में मध्यान्ह के सूर्य के सामान दीप्तिमान थे और मैं था एक २०-२५ वर्ष का अल्पायु युवा. पूज्य श्री अपने बिहार क्रम में गुजरात के एक छोटे से स्थान पर विराजमान थे और मैं प्रवास करते हुए वहां पहुंचा था. राजकोट के नजदीक था वह स्थान. मैं दोपहर के समय उपाश्रय में पहुंचा तह पूज्य श्री अकेले बैठे थे, मैं उनके पास पहुंचा, वंदन उपरांत वार्तालाप प्रारम्भ हुआ. हमारा कोई पूर्व परिचय नहीं था, ये पहली मुलाकात थी और किसीने कोई परिचय भी नहीं करवाया था. 

वार्तालाप चर्चा में, और चर्चा वाद में परिवर्तित हो गया. पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी जैन सिद्धांतों के ज्ञाता एवं प्रौढ़ तार्किक थे. युक्ति और तर्कों के माध्यम से वार्तालाप चलता रहा. लगभग ४०-४५ मिनट के बाद पूज्य श्री के चेहरे पर थोड़े आश्चर्य का भाव था, उन्होंने मुझ से पूछा "तुम हो कौन?"  मैंने कहा, "आचार्य भगवंत का शिष्य". (उस समय समुदाय में पूज्य आचार्य भगवंत भुवनभानु सूरी जी महाराज साहब को सभी आचार्य भगवंत कहते थे.)  पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी ने कहा "तभी इतनी बात कर रहे हो, अन्यथा कोई मेरे से इतनी देर वाद नहीं कर सकता."

पूज्य आचार्य भगवंत भुवनभानु सूरी जी महाराज साहब चंद्रशेखर विजय जी के बड़े गुरु भाई थे और पूज्य श्री उन्हें गुरु के जैसा सन्मान देते थे. उसके बाद वार्तालाप ने अलग रूप ले लिया. जैसे एक छोटे शिष्य को बड़े शिष्य समझाते हैं. मुझे उनका पूरा वात्सल्य मिला. सौभाग्य से आज भी उनके समुदाय में वही वात्सल्य मुझे प्राप्त है. 

पूज्य आचार्य भगवंत भुवनभानु सूरी जी महाराज साहब 


युवावस्था में पूज्य आचार्य भगवंत श्री कलापूर्ण सूरीश्वर जी महाराज के पास जैन शास्त्रों का अध्ययन कर रहा था. प्रशमरति प्रकरण के बाद हरिभद्र सूरी, उपाध्याय यशोविजय जी, अध्यात्मयोगी पं. श्रीमद देवचन्दजी आदि के लगभग ३० ग्रंथों का अध्ययन आचार्य श्री की निश्रा में किया. उन्होंने कुछ विशिष्ट अध्ययन के लिए पूज्य आचार्य भगवंत भुवनभानु सूरी जी महाराज साहब के पास जाने के लिए कहा. पूज्य आचार्य श्री सर्व शास्त्र विशारद थे. अद्भुत तर्क क्षमता एवं अध्यापन कौशल के धनी थे. उन्होंने तो मुझे पढ़ाया ही, अपने शिष्यों पूज्य आचार्य श्री भद्रगुप्त सूरी जी, धर्मजीत सूरी जी, पन्यास जयशेखर विजय जी, पन्यास अभयशेखर विजय जी (वर्त्तमान में आचार्य) को भी मुझे पढ़ाने के लिए निर्देशित किया. उस समय प्रतिदिन २ से ६ घंटे के बीच इन महापुरुषों के पास अध्ययन करने का लाभ मिला. 

#पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय, #पूज्य आचार्य कलापूर्ण सूरी, #पूज्य आचार्य भुवनभानु सूरी 

Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Thursday, December 5, 2024

वराह अवतार: भूगोलः सर्वतो वृत्तः

भारत की वैदिक परंपरा  में विष्णु के दस अवतारों की कथा है. इनमे तीसरा अवतार वराह अवतार है. पुराणों के अनुसार असुरों ने पृथ्वी का हरण किया और उसका उद्धार करने के लिए भगवान् विष्णु ने वराह अवतार धारण कर समुद्र से पृथ्वी का उद्धार किया. ऐसी प्राचीन प्रतिमाएं प्राप्त होती है जिसमे वराह अवतार पृथ्वी को धारण किये हुए हैं. इसमें पृथ्वी को गोलकार (गेंद के जैसा) दिखाया गया है. इससे यह जानकारी मिलती है की भारत की प्राचीन परंपरा में पृथ्वी के गोलक स्वरुप की जानकारी थी जबकि पश्चिमी देशों की सभ्यताओं में इसे चपटा ही माना गया है. 


 

प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक एवं खगोल शास्त्री आर्यभट के आर्यभटीय, गोलपाद, श्लोक 6 में भी पृथ्वी के गोलक स्वरुप की पुष्टि की गई है. 

वृत्तभपञ्जरमध्ये कक्षापरिवेष्टित: खमध्यगत:।
मृज्जलशिखिवायुमयो भूगोलः सर्वतो वृत्तः॥ (आर्यभटीय, गोलपाद, श्लोक 6)

हिंदी अनुवाद: वृत्तीय बंधन के भीतर, जो आकाश के मध्य में स्थित है,
वह पृथ्वी जल, मिट्टी, वायु और अग्नि से निर्मित है और सर्वत्र वृत्ताकार रूप में व्याप्त है।

(यह श्लोक पृथ्वी और उसके आस-पास के वातावरण का ब्रह्मांडीय (खगोलीय) संदर्भ में वर्णन करता है, जिसमें प्रकृति के तत्वों का उपयोग पृथ्वी की संरचना और ब्रह्मांड में उसके गोलाकार रूप को उजागर करने के लिए किया गया है।)

English Translation: Within the spherical cage, situated in the center of the sky,
The Earth, composed of water, earth, fire, and air, is circular and pervades all around.

(This shloka describes the Earth and its surroundings in a cosmological context, using elements of nature to highlight the structure and spherical form of the Earth within the cosmos.)

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