प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक एवं खगोल शास्त्री आर्यभट के आर्यभटीय, गोलपाद, श्लोक 6 में भी पृथ्वी के गोलक स्वरुप की पुष्टि की गई है.
वृत्तभपञ्जरमध्ये कक्षापरिवेष्टित: खमध्यगत:।
मृज्जलशिखिवायुमयो भूगोलः सर्वतो वृत्तः॥ (आर्यभटीय, गोलपाद, श्लोक 6)
हिंदी अनुवाद: वृत्तीय बंधन के भीतर, जो आकाश के मध्य में स्थित है,
वह पृथ्वी जल, मिट्टी, वायु और अग्नि से निर्मित है और सर्वत्र वृत्ताकार रूप में व्याप्त है।
(यह श्लोक पृथ्वी और उसके आस-पास के वातावरण का ब्रह्मांडीय (खगोलीय) संदर्भ में वर्णन करता है, जिसमें प्रकृति के तत्वों का उपयोग पृथ्वी की संरचना और ब्रह्मांड में उसके गोलाकार रूप को उजागर करने के लिए किया गया है।)
English Translation: Within the spherical cage, situated in the center of the sky,
The Earth, composed of water, earth, fire, and air, is circular and pervades all around.
(This shloka describes the Earth and its surroundings in a cosmological context, using elements of nature to highlight the structure and spherical form of the Earth within the cosmos.)
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