1. विल ड्यूरेंट की 'द केस फॉर इंडिया': ब्रिटिश उपनिवेशवाद का एक सशक्त दस्तावेज
विल ड्यूरेंट, एक प्रसिद्ध अमेरिकी इतिहासकार और दार्शनिक, ने 1930 में प्रकाशित अपनी पुस्तक The Case for India में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत पर हुए अत्याचारों और शोषण का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक न केवल ब्रिटिश उपनिवेशवाद की नीतियों की कठोर आलोचना करती है, बल्कि ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि को भी उजागर करती है, जिसे व्यवस्थित रूप से नष्ट किया गया।
हालांकि भारतीय लेखकों जैसे जसवंत सिंह, वीर सावरकर, बिपिन चंद्र और नेहरू ने ब्रिटिश शासन की नीतियों और उनके प्रभावों का विश्लेषण किया है, लेकिन अमेरिकी इतिहासकार विल ड्यूरेंट की पुस्तक The Case for India इस विषय पर एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
ड्यूरेंट ने ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का गहन विश्लेषण किया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत का राष्ट्रीय ऋण 1792 में $35 मिलियन से बढ़कर 1929 में $3.5 बिलियन हो गया अर्थात 137 वर्षों के ब्रिटिश शासन में यह कर्जा 100 गुणा हो गया।
ड्यूरेंट ने ब्रिटिश शासन को "एक उच्च सभ्यता का व्यापारिक कंपनी द्वारा आक्रमण और विनाश" कहा, जो "कला की परवाह किए बिना और लाभ की लालसा में" भारत को लूटने में लगी थी। यह कोई निम्न सभ्यता का विनाश नहीं था, जिसे किसी हीन जाति ने उत्पन्न किया हो। यह इतिहास की सर्वोच्च सभ्यताओं में से एक थी, और कुछ लोग इसे सभी में सर्वोपरि मानते हैं — जैसे कि कीज़रलींग... जब ब्रिटिश तोपों ने आक्रमण किया... हिंदुओं ने तुरंत आत्मसमर्पण कर दिया, ताकि मानवता की सबसे सुंदर कृतियों में से एक नष्ट न हो जाए। तो फिर, कौन सभ्य लोग थे? (हिंदू या अंग्रेज?) भारत पर ब्रिटिश विजय एक उच्च सभ्यता का विनाश था, जिसे एक व्यापारिक कंपनी ने, बिना किसी नैतिकता या सिद्धांत के, आग, तलवार, रिश्वत और हत्या के माध्यम से एक अस्थायी रूप से अव्यवस्थित और असहाय देश पर कब्जा कर लिया।
यह पुस्तक उपनिवेशवादी शासन और उसके लाभों के पक्ष में दिए गए सभी तर्कों को व्यवस्थित रूप से खंडित करती है। पहला तर्क कि भारत राष्ट्र का निर्माण ब्रिटिशों ने किया: इस कथन को स्पष्ट करना आवश्यक है — भारत का निर्माण ब्रिटिशों की क्रूरता के प्रति प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ. वास्तव में, भारतीय और विश्व इतिहास पर एक सरसरी नजर डालने से ही पता चल जाता है कि प्राचीन काल से ही भारत कई बार लंबे समय तक एक शासन के अधीन रहा, और समृद्ध भी रहा.
उन्होंने यह भी बताया कि कैसे ब्रिटिश शासन ने भारत की कपड़ा उद्योग को नष्ट किया, शिक्षा प्रणाली को कमजोर किया, और रेलवे जैसे बुनियादी ढांचे का उपयोग केवल साम्राज्यवादी हितों के लिए किया। ड्यूरेंट की पुस्तक The Case for India भारतीय इतिहास पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो ब्रिटिश शासन की नीतियों और उनके विनाशकारी प्रभावों को विस्तार से प्रस्तुत करती है।
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भारत की समृद्धि और ब्रिटिश लूट |
2. भारत की समृद्धि और ब्रिटिश लूट
ड्यूरेंट के अनुसार, ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत एक अत्यंत समृद्ध और औद्योगिक राष्ट्र था, जो वस्त्र, धातु कार्य, आभूषण, कीमती पत्थर, पोर्सलीन, जहाज निर्माण और वास्तुकला जैसे अनेक क्षेत्रों में अग्रणी था। उन्होंने लिखा कि भारत यूरोप और एशिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक विनिर्माण क्षमताओं वाला राष्ट्र था।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस समृद्धि को व्यवस्थित रूप से नष्ट किया। भारतीय उत्पादों पर 50% तक कर लगाए गए, जबकि ब्रिटिश वस्त्रों को शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी गई। भारतीय वस्त्रों पर 70–80% शुल्क लगाकर स्थानीय उद्योगों को अपंग बना दिया गया। भारत को केवल कच्चा माल आपूर्ति करने वाला उपनिवेश बना दिया गया।
ब्रिटिशों द्वारा लगाए गए करों की तुलना आज के समय में अमेरिका की ट्रम्प सरकार द्वारा लगाए गए टैरिफ से की जा सकती है, जहाँ अमेरिका अपनी आर्थिक और सैन्य ताकत के बल पर वैश्विक बाजार को हिला देने की कोशिश कर रहा है। जैसे आज चीन दुनिया का प्रमुख विनिर्माण केंद्र है, वैसा ही स्थान उस समय भारत का हुआ करता था। जिस तरह अमेरिका टैरिफ लगाकर चीन को आर्थिक रूप से झुकाने का प्रयास कर रहा है, उसी तरह ब्रिटिश सरकार ने भारत पर करों का भारी बोझ डालकर उसके पारंपरिक विनिर्माण उद्योग को धीरे-धीरे बर्बाद कर दिया था।
ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों के परिणामस्वरूप भारत का राष्ट्रीय ऋण 1792 में $35 मिलियन से बढ़कर 1929 में $3.5 बिलियन हो गया—एक सौ गुना वृद्धि। 1927 तक 7,500 ब्रिटिश सेवानिवृत्त अधिकारी इंग्लैंड में बैठकर भारत से $17.5 मिलियन वार्षिक पेंशन प्राप्त कर रहे थे।
3. रेलवे और उद्योगों का शोषण
भारत में 30,000 मील रेलवे का निर्माण भारत के लाभ के लिए नहीं, बल्कि ब्रिटिश सेना और व्यापार के लिए किया गया। रेलवे बोर्ड में किसी भी भारतीय को नियुक्त नहीं किया गया; रेलवे का संचालन पूरी तरह से यूरोपीय हाथों में था। भारतीय जहाज निर्माण उद्योग को भी नष्ट कर दिया गया; सभी भारतीय माल ब्रिटिश जहाजों द्वारा ले जाए जाते थे।
4. सामाजिक और शैक्षिक विनाश
ब्रिटिश शासन ने भारत की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ उसकी सामाजिक और शैक्षिक संरचनाओं को भी गहरा नुकसान पहुँचाया। ड्यूरेंट के अनुसार, ब्रिटिशों के आने से पहले भारत में बेहतर शैक्षिक व्यवस्था थी. ब्रिटिशों ने उस पारंपरिक भारतीय शिक्षा प्रणाली को व्यवस्थित रूप से समाप्त किया, जिससे साक्षरता दर में भारी गिरावट आई। उन्होंने उल्लेख किया कि ब्रिटिशों के आगमन से पहले भारत में स्कूलों की संख्या अधिक थी, जो बाद में घटती गई और शिक्षा को हतोत्साहित किया गया।
गांवों द्वारा संचालित सामुदायिक विद्यालयों की व्यवस्था को खत्म कर दिया गया। जब 1911 में गोपाल कृष्ण गोखले ने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का विधेयक प्रस्तुत किया, तो उसे भी अस्वीकार कर दिया गया। परिणामस्वरूप, ब्रिटिश शासन के अंत तक भारत में निरक्षरता दर 93% तक पहुँच गई। इसके विपरीत, शिक्षा की बजाय शराब और अफीम की बिक्री को बढ़ावा दिया गया। 1922 में शराब बिक्री से ब्रिटिश सरकार को $60 मिलियन की आय हुई, और देशभर में 7,000 अफीम की दुकानें संचालित की गईं।
ऐसा कहा जाता है की ब्रिटिश सरकार भारत में आधुनिक शिक्षा का विकास और प्रसार किया. परन्तु यह एक भ्रामक तथ्य है. भारत एक विशाल शक्ति था जिसका पूरे विश्व से व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संबंध थे. — अतः सरल तर्क यह है कि जैसे बंदूक और बारूद बनाने, और विभिन्न अन्य तकनीकेंभारत राष्ट्र तक पहुँचीं वैसे ही अंततः आधुनिक यूरोपीय तकनीक और विधियाँ भारत की सीमाओं तक पहुँचतीं!
5. राजनीतिक अधिकारों का हनन
ब्रिटिश शासन ने भारतीयों को राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा। स्थानीय "निर्वाचित" निकायों को कोई वास्तविक सत्ता नहीं दी गई और वायसराय तथा गवर्नर को उन्हें कभी भी ओवररूल करने का अधिकार था। "फूट डालो और राज करो" नीति के अंतर्गत विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग मतदान की व्यवस्था की गई, जिससे सामाजिक विभाजन और वैमनस्यता को बढ़ावा मिला। साथ ही, धार्मिक उन्माद और जातिवादी प्रवृत्तियों को भी प्रोत्साहित किया गया।
6. ब्रिटिश शासन की नैतिकता पर प्रश्न
ड्यूरेंट ने ब्रिटिश शासन की नैतिकता पर गंभीर प्रश्न उठाए। उन्होंने ब्रिटिश विजय को "एक उच्च सभ्यता का विनाश" कहा, जिसे एक व्यापारिक कंपनी ने — बिना किसी नैतिकता या सिद्धांत के — आग, तलवार, रिश्वत और हत्या के माध्यम से अंजाम दिया।
7. महात्मा गांधी
पुस्तक में महात्मा गांधी के जीवन का 1930 तक का विवरण दिया गया है। गांधी जी ने कहा: "ब्रिटिश संबंध ने भारत को राजनीतिक और आर्थिक रूप से अधिक असहाय बना दिया है... आंकड़ों की कोई भी बाजीगरी उन गांवों में कंकालों के प्रमाण को मिटा नहीं सकती... मुझे कोई संदेह नहीं है कि इंग्लैंड और भारत के शहरों को इस मानवता के खिलाफ अपराध के लिए उत्तर देना होगा, यदि ऊपर कोई ईश्वर है, तो।"
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The case for India, Will Durant |
8. सभ्यता या शोषण और क्रूरता
यह अंश विल ड्यूरेंट की पुस्तक का एक मार्मिक और सजीव चित्रण है, जिसमें ब्रिटिश शासन की नीतियों और उनके भारत पर पड़े अत्याचारपूर्ण प्रभावों को स्पष्ट रूप से उजागर किया गया है। यह पुस्तक तथ्यों और आंकड़ों के माध्यम से उपनिवेशवाद की भयावह सच्चाई को सामने लाती है।
पुस्तक में वर्णित हैं वे दर्दनाक दृश्य, जिन्हें पढ़कर रूह कांप जाती है — “हिंदुओं को सड़कों पर पेट के बल रेंगने को मजबूर किया गया”; स्कूल के बच्चों को सरेआम कोड़े मारे गए; कैदियों को रस्सियों से बांधकर 15-15 घंटे तक धूप में खुले ट्रकों में रखा गया; उनके नग्न शरीरों पर चूना फेंका गया; हिंदू घरों की बिजली काट दी गई; यहां तक कि मजदूरों पर बम गिराने के लिए हवाई जहाजों का प्रयोग किया गया।
इन बर्बर कृत्यों को अंजाम देने वाले अधिकारियों को न तो दंड मिला, न शर्म आई — उल्टा उन्हें पेंशन पर सम्मानपूर्वक सेवानिवृत्त किया गया और निर्दोष घोषित किया गया। उनके समर्थन में तथाकथित सभ्य समाज ने $150,000 की राशि एकत्र कर उन्हें सम्मानित किया।
और फिर भी — “एक भी गोली किसी की पीठ में नहीं लगी — सारी गोलियां छाती में लगीं; एक भी भारतीय भागा नहीं। यह थी अहिंसा की सर्वोच्च अभिव्यक्ति — निष्क्रिय समर्पण का सर्वोच्च उदाहरण।”
ब्रिटिशों की यह क्रूरता, जो यदि उनके ही देश में होती तो शायद फांसी की सजा मिलती, भारत में एक शांतिपूर्ण आंदोलन को दुनिया के सबसे वीरतापूर्ण और सक्रिय आंदोलनों में बदल देती है — ऐसा आंदोलन, जिसकी मिसाल दुनिया में कहीं और नहीं मिलती।
मिस मैडलिन स्लेड (मीरा बेन) लिखती हैं —
“मैंने अपनी त्वचा को सिहरते, बालों को खड़े होते महसूस किया जब मैंने उन वीरों को देखा… उनके अंडकोष कुचल दिए गए थे… शरीर पीटा गया, टूटा पड़ा था… छाती पर प्रहार किए गए थे… जिनसे भी मैंने बात की, सबने एक जैसी भयंकर कहानियाँ सुनाईं — पिटाई, यातना, गुदा में डंडा डालना, घसीट-घसीट कर अपमान करना… यह है अंग्रेजी सम्मान? यही है अंग्रेजी न्याय?”
शशि थरूर के विचार
शशि थरूर ने भी अपनी पुस्तक Inglorious Empire में ब्रिटिश शासन की आलोचना करते हुए लिखा:
"भारत आने वाले हर मौलिक सोच वाले अंग्रेज के लिए, दस ऐसे थे जो मौलिक सोच में असमर्थ थे, और सौ ऐसे थे जो केवल मौलिक बुराई के लिए सक्षम थे।"
उन्होंने यह भी कहा कि सत्याग्रह को 'निष्क्रिय प्रतिरोध' कहना बकवास है, क्योंकि उसमें कुछ भी निष्क्रिय नहीं था।
9. "सभ्यता" का वास्तविक अर्थ
पुस्तक की शुरुआत में "सभ्यता" (civilization) की परिभाषा प्रस्तुत की गई है: "एक अत्यधिक विकसित समाज और संस्कृति वाला; नैतिक और बौद्धिक उन्नति का प्रमाण दिखाने वाला; मानवीय, नैतिक, और तर्कसंगत; स्वाद और शिष्टाचार में परिष्कृत; सुसंस्कृत; परिष्कृत।"
ड्यूरेंट इस परिभाषा के माध्यम से यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या ब्रिटिश शासन वास्तव में "सभ्य" था, या यह एक व्यापारिक कंपनी द्वारा एक समृद्ध सभ्यता का क्रूर विनाश था।
10. भारतीय सभ्यता की अद्वितीय निरंतरता
ड्यूरेंट यह रेखांकित करते हैं कि सभी प्राचीन सभ्यताओं में, भारतीय सभ्यता ही एकमात्र है जो पूरे इतिहास में लगभग अपरिवर्तित रूप से जीवित रही है:
"हम बैबिलोन के समय में थे, हम यूनानियों के समय में थे, हम रोम के उत्कर्ष के समय में थे, हम यूरोप के उदय के समय में थे... और आज भी हम उपस्थित हैं... वही संस्कृति, वही जीवन मूल्य, वही देवताओं की पूजा करते हुए जैसे हम 3500 - 5000 साल पहले करते थे, लगभग वही भोजन करते हुए... लगभग अपरिवर्तित।"
यह निरंतरता भारतीय सभ्यता की शक्ति, लचीलापन और गहराई का प्रमाण है।
11. वर्तमान भारतीयों के लिए संदेश
डॉ. तुलसियान के विचारों के माध्यम से, यह पुस्तक वर्तमान भारतीयों को यह स्मरण कराती है कि स्वतंत्रता केवल एक राजनीतिक उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के बलिदानों और संघर्षों का परिणाम थी। आज, जब कई भारतीय पश्चिमी संस्कृति और प्रचार तंत्र से प्रभावित हैं, यह आवश्यक है कि हम अपने इतिहास, संस्कृति और मूल्यों को समझें और उन पर गर्व करें।
"कभी-कभी मैं चाहता हूँ कि हम ब्रिटिशों को कोहिनूर वापस करने के लिए कहें, उनसे उनके कृत्यों के लिए माफी मांगने को कहें... फिर मुझे अपनी शिक्षाएं याद आती हैं — क्षमा करें और आगे बढ़ें। लेकिन क्षमा करने का अर्थ भूलना नहीं है!"
12. निष्कर्ष: चेतावनी और आत्ममंथन का आह्वान
The Case for India ब्रिटिश उपनिवेशवाद की नीतियों और उनके भारत पर पड़े विनाशकारी प्रभावों का एक सशक्त, तथ्यात्मक और विस्तृत दस्तावेज़ है। यह न केवल ब्रिटिश शासन की क्रूरता, आर्थिक शोषण और सामाजिक विनाश को उजागर करती है, बल्कि भारतीय सभ्यता की महानता और उसकी अद्वितीय निरंतरता को भी रेखांकित करती है। यह पुस्तक केवल ऐतिहासिक विवरण नहीं, बल्कि आत्मचिंतन, आत्मगौरव और आत्मनिर्भरता का आह्वान भी है।
ड्यूरेंट ने ब्रिटिश शासन को "एक उच्च सभ्यता का व्यापारिक कंपनी द्वारा किया गया आक्रमण और विनाश" कहा। उन्होंने दिखाया कि किस तरह ब्रिटिश नीति ने भारत की कपड़ा उद्योग, शिक्षा प्रणाली और सांस्कृतिक आत्मसम्मान को क्रमशः ध्वस्त किया। आज, जब अनेक भारतीय अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित होकर अपने इतिहास से कट रहे हैं, यह पुस्तक एक चेतावनी की तरह हमारे सामने खड़ी है।
यह समय है भारतीय चेतना के पुनर्जागरण का। हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करना चाहिए, अपनी भाषाओं, परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित करना चाहिए, और पश्चिमी प्रभावों के प्रति अंधानुकरण से बचना चाहिए।
यह पुस्तक ब्रिटेन में प्रतिबंधित की गई थी — जो इसकी प्रभावशीलता का प्रमाण है। हर भारतीय को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए — केवल इतिहास जानने के लिए नहीं, बल्कि एक सशक्त, समृद्ध और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए।
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