श्री नेमिनाथ स्वामी के मन्दिर की पुनः प्रतिष्ठा में इस के अलावा और भी गंभीर भूलें हुई जिनका निराकरण आज तक नही हुआ है। श्री वासुपूज्य स्वामी के गम्भारे में श्री रिषभ देव स्वामी के गणधर पुंडरिक स्वामी की एक प्रतिमा थी। उस प्रतिमा को श्री नेमिनाथ स्वामी के मुलगाभारे में प्रतिष्ठित किया गया। उसके बाद तीर्थंकरों की प्रतिमा को उसके निचे विराजमान किया गया। तीर्थंकर प्रतिमा को गणधर प्रतिमा के निचे विराजमान करना क्या गंभीर चूक नहीं है? क्या विधि कारक को इस ओर ध्यान नही देना चाहिए था? ज्ञातव्य है की ये काम एक प्रसिद्ध आचार्य के द्वारा विश्व विख्यात विधि कारक के द्वारा कराया गया था। उस से भी बड़ी बात ये है की प्राचीन प्रतिष्ठा में भूल बता कर ये सारे काम किए गए थे।
इसके अलावा प्रतिमाओं को आमने सामने विराजमान करवाने से एक प्रतिमा की पूजा करने पर दूसरी प्रतिमाओं की तरफ़ पीठ होता है। पहले प्रतिमाएँ इस प्रकार से विराजमान थी की एक की पूजा करने पर दुसरे की तरफ़ पीठ नही होती थी। साथ ही गम्भारों की खिड़किओं को बंद करने से गर्मी के कारण बहुत पसीना आता है एवं पूजा करने में विघ्न आता है। इन खामिओं की तरफ़ मैंने स्वयं ने बार बार ध्यान आकर्षित करवाया परन्तु इस दिशा में कुछ भी नही हुआ।
इतनी गंभीर भूल करने वाले विधि कारक को पुनः आमंत्रित करना एवं उनसे फिर से दूसरा बड़ा काम करवाने के पीछे क्या कारण हो सकता है?
जागरुक समाज को इस ओर अवश्य ध्यान देना चाहिए।
अजीमगंज प्राचीन मंदिरों का केन्द्र है एवं इस प्रकार से उनकी प्राचीनता को नष्ट करना क्या उचित है ?
सुज्ञ जानो से निवेदन है की इस बात पर गंभीरता से विचार कर ठोस कदम उठायें।
इस संवंध में मैंने मेरे अजीमगंज प्रवास (१ व २ सितम्बर २००९) के दौरान मेरे बचपन के मित्र एवं अजीमगंज संघ के सचिव श्री सुनील चोरडिया से भी आग्रह किया है एवं पूज्या साध्वी जी महाराज से भी निवेदन किया है।
अजीमगंज दादाबाडी में खात मुहूर्त व शिलान्यास भाग १
जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग २जिन मन्दिर एवं वास्तु
1 comment:
when samaj is silent person at helm can do what he wants to satisfy his ego no matter as to saswata or satwikta is destroyed
persons can stoop as low as can to prove that they know all
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