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Thursday, January 17, 2013

जनता बेचारी महंगाई की मारी


भारत की जनता बेचारी है महंगाई की मारी है।  

जनता त्रस्त सरकार मस्त है .

लेकिन ऐसा क्यों है?  क्यों हिंदुस्तान की बेवस जनता पड़े पड़े मार खाने को मजबूर है? आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब हमें ढूँढना ही पड़ेगा।

भारत देश और इसके शासक आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त हैं। आज भी वही कानून वही व्यवस्था लागू है जिसे अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए, भारत को गुलाम बनाये रखने के लिए बनाया था। आज भी सरकारी कर्मचारी विशेषाधिकार प्राप्त हैं। उन्हें भरपूर वेतन और सुविधाएँ मिलती है लेकिन वे लगभग जिम्मेदारी से विहीन हैं। और उनको ये वेतन जनता की गाढ़ी कमाई से टैक्स के जरिये वसूले गए धन से जाता है।  ये वो तबका है जो अपने मालिकों (जनता) पर रौब गांठता है, परेशान करता है, काम नहीं करता ऊपर से रिश्वत वसूलता है।

ये वो तबका है जो नेताओं की सेवा में लगा रहता है जनता की नहीं। काम नहीं करने पर या गलत काम करने पर प्रायः उसे कोई सजा नहीं होती, इसलिए उसके हौसले बुलंद हैं। जनता को जागरूक हो कर उन पुराने सादे गले औपनिवेशिक कानूनों को बदलवाना होगा एवं सरकारी अधिकारिओं कर्म्चरिओन को जिम्मेदार बनाना होगा तभी देश की परिस्थिति सुधरेगी।

भारत की केंद्र एवं राज्य सरकारें प्रति वर्ष महंगाई भत्ते के रूप में मोटी रकम इन्हें देती है जिस कारन महंगाई का असर इनपर नहीं होता। इन्हें बेचारी जनता से क्या मतलब? इसके अलावा प्रति वर्ष इनका वेतन एक निश्चित दर से प्रति वर्ष बढ़ जाता है। फिर वेतन आयोग तो है ही। हर कुछ वर्षों में एक वेतन आयोग। पहला दूसरा--------पांचवां छठा।

अब तो बस करो। बंद करो ये लूट!


 एक समान काम के लए एक सरकारी एवं एक निजी क्षेत्र के कर्मचारी के वेतन में आम तौर पर तीन से चार गुने का फर्क होता है। विश्वास न हो तो अपने चारों और निगाह घुमा कर देख लें।  ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।  सरकारी खजाने पर पड़ने वाले भार से इन्हें क्या मतलब। इन्हें तो छूट्टी, प्रोविदेंड फण्ड, ग्रैचुइति,  पेन्सन के रूप में लाभ मिल ही रहा है। 

आम जनता और सरकारी तंत्र: नेता, अधिकारी और कर्मचारी

सरकारी खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा या तो वेतन चुकाने में जाता है या फिर क़र्ज़ का व्याज चुकाने में। और ये क़र्ज़ भी  है वेतन के खर्च से। अब  विकास के लिए या जन कल्याण के लिए धन आये कहाँ से? सर्कार  या तो पेट्रोल, डीजल, गैस के दाम बढाती है या आम आदमी पर टैक्स के नए बोझ लाद देती है।  कभी रेल का किराया बढाती है तो कभी टोल टैक्स वसूलती है।

आम आदमी जागे तो --------

अब भारत के आम आदमी को जागना होगा। कब तक पड़े पड़े मार खाते रहेंगे? नेता और कर्मचारियों के इस गठजोड़ को तोडना होगा। तभी हम स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक की तरह जी सकेंगे।
Thanks,
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)


जागो हिंदुस्तान जागो     जागो हिंदुस्तान जागो     जागो हिंदुस्तान जागो      

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