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Monday, October 23, 2017

लोकसेवक संशोधन विधेयक 2017 पुनर्विचार हेतु वापस


राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 

राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने चौतरफा विरोध को देखते हुए प्रस्तावित लोकसेवक संशोधन विधेयक 2017 को पुनर्विचार हेतु वापस लेकर एक अच्छा कदम उठाया है. सरकारी कर्मचारियों के प्रति एक आम धारणा है की वे निकम्मे व भ्रष्ट हैं. स्वतंत्रता के बाद के ७० वर्षों की उनकी कार्यशैली ने इस धारणा को लगातार पुष्ट किया है. एक के बाद एक सात पे कमीशन (सातवां वेतन आयोग) के माध्यम से लगातार उनके वेतन, भत्ते एवं सुविधाओं में लगातार हो रही वृद्धि को भी सामान्य जन अपने ऊपर एक बोझ के रूप में ही देखते हैं. सरकारी कर्मचारी चाहे राज्य सरकार का हो अथवा केंद्र सरकार का सभी की स्थिति एक जैसी है. इसमें हम रक्षा विभाग के अंतर्गत कर्मचारियों को अपवाद स्वरुप देख सकते हैं जिन्हे जनता आज भी सन्मान की दृष्टि से देखती है.

सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार एवं निकम्मेपन के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है उन्हें मिलनेवाली कानूनी सुरक्षा कवच. यद्यपि अपने कर्त्तव्य को निभाने के लिए कुछ आवश्यक रक्षा कवच की उन्हें भी आवश्यकता है परन्तु इसका अत्यधिक दुरूपयोग जनता की आँखों की किरकिरी हो चुकी है. अंग्रेज सरकार ने भारतीयों को गुलाम बनाये रखने के लिए सरकारी कर्मचारियों का जमकर दुरूपयोग किया और उन्हें क़ानूनी सुरक्षा कवच दे कर उन्हें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया. उसी कोलोनियल तंत्र का आज के इस प्रजातंत्र के युग में भी बने रहना दुर्भाग्य का ही विषय है.

इस क़ानूनी सुरक्षा कवच के कारण सरकारी कर्मचारियों पर किसी तरह की कानूनी कार्यवाही करना काफी कठिन काम हो जाता है. प्रायः राज्य और केंद्र सरकारें इन निकम्मे और भ्रष्ट कर्मचारियों को दण्डित करने के स्थान पर उन्हें बचाने का ही काम करती है. इसलिए ये कर्मचारी जनता के प्रति अपने उत्तर दायित्व को निभाने की जगह अपने राजनैतिक आकाओं को खुश करने में लगे रहते हैं और पिसती है बेचारी जनता. आखिर इन कर्मचारियों के वेतन-भत्ते एवं अन्य सुविधाओं का इंतज़ाम जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गए कर (Tax) से ही होता है!

पहले से ही दिए गए क़ानूनी सुरक्षा कवच में इस संशोधन के जरिये और भी बढ़ोतरी की जा रही थी. इस सम्वन्ध में २-३ माह पहले ही अध्यादेश ला कर राजस्थान की भाजपा सरकार ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी थी. परन्तु इस विधेयक के खिलाफ विपक्षी कांग्रेस ने पुरजोर आवाज उठाई। यहाँ तक की सत्ता पक्ष के कुछ  विधायकों जैसे सांगानेर के विधायक घनश्याम तिवाड़ी एवं बीकानेर के मानक चन्द सुराणा ने भी इसके विरोध में बोलना शुरू किया. समाचार माध्यमों ने भी इस विषय को पुरजोर तरीके से उठा कर इसे जनता का मुद्दा बना दिया. ऐसी स्थिति में मजबूर हो कर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आज इस विधेयक पर पुनर्विचार करने की घोषणा करनी पड़ी.

यद्यपि विपक्षी कांग्रेस ने अभी इस विधेयक का विरोध किया है परन्तु ७० वर्षों तक इस प्रकार के विधेयक को केंद्र एवं राज्य सरकारों में बनाये रखने का पाप कांग्रेस ने ही किया है. यह तो बात ऐसी हुई की सौ चूहे खा कर बिल्ली को है को चली! अब समय है जनता के जागरूक होने का और जागरूक जनता ही सरकारी कर्मचारियों को सही रस्ते पर ला सकती है.

अतः जागो जनता जागो! अतः जागो जनता जागो! अतः जागो जनता जागो! अतः जागो जनता जागो! 



Thanks,
Jyoti Kothari

Vardhaman Infotech
eCommerce and Mobile Application development 
Jaipur, Rajasthan, India
E-mail: info@vardhamaninfotech.com

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Thursday, January 17, 2013

जनता बेचारी महंगाई की मारी


भारत की जनता बेचारी है महंगाई की मारी है।  

जनता त्रस्त सरकार मस्त है .

लेकिन ऐसा क्यों है?  क्यों हिंदुस्तान की बेवस जनता पड़े पड़े मार खाने को मजबूर है? आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब हमें ढूँढना ही पड़ेगा।

भारत देश और इसके शासक आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त हैं। आज भी वही कानून वही व्यवस्था लागू है जिसे अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए, भारत को गुलाम बनाये रखने के लिए बनाया था। आज भी सरकारी कर्मचारी विशेषाधिकार प्राप्त हैं। उन्हें भरपूर वेतन और सुविधाएँ मिलती है लेकिन वे लगभग जिम्मेदारी से विहीन हैं। और उनको ये वेतन जनता की गाढ़ी कमाई से टैक्स के जरिये वसूले गए धन से जाता है।  ये वो तबका है जो अपने मालिकों (जनता) पर रौब गांठता है, परेशान करता है, काम नहीं करता ऊपर से रिश्वत वसूलता है।

ये वो तबका है जो नेताओं की सेवा में लगा रहता है जनता की नहीं। काम नहीं करने पर या गलत काम करने पर प्रायः उसे कोई सजा नहीं होती, इसलिए उसके हौसले बुलंद हैं। जनता को जागरूक हो कर उन पुराने सादे गले औपनिवेशिक कानूनों को बदलवाना होगा एवं सरकारी अधिकारिओं कर्म्चरिओन को जिम्मेदार बनाना होगा तभी देश की परिस्थिति सुधरेगी।

भारत की केंद्र एवं राज्य सरकारें प्रति वर्ष महंगाई भत्ते के रूप में मोटी रकम इन्हें देती है जिस कारन महंगाई का असर इनपर नहीं होता। इन्हें बेचारी जनता से क्या मतलब? इसके अलावा प्रति वर्ष इनका वेतन एक निश्चित दर से प्रति वर्ष बढ़ जाता है। फिर वेतन आयोग तो है ही। हर कुछ वर्षों में एक वेतन आयोग। पहला दूसरा--------पांचवां छठा।

अब तो बस करो। बंद करो ये लूट!


 एक समान काम के लए एक सरकारी एवं एक निजी क्षेत्र के कर्मचारी के वेतन में आम तौर पर तीन से चार गुने का फर्क होता है। विश्वास न हो तो अपने चारों और निगाह घुमा कर देख लें।  ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।  सरकारी खजाने पर पड़ने वाले भार से इन्हें क्या मतलब। इन्हें तो छूट्टी, प्रोविदेंड फण्ड, ग्रैचुइति,  पेन्सन के रूप में लाभ मिल ही रहा है। 

आम जनता और सरकारी तंत्र: नेता, अधिकारी और कर्मचारी

सरकारी खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा या तो वेतन चुकाने में जाता है या फिर क़र्ज़ का व्याज चुकाने में। और ये क़र्ज़ भी  है वेतन के खर्च से। अब  विकास के लिए या जन कल्याण के लिए धन आये कहाँ से? सर्कार  या तो पेट्रोल, डीजल, गैस के दाम बढाती है या आम आदमी पर टैक्स के नए बोझ लाद देती है।  कभी रेल का किराया बढाती है तो कभी टोल टैक्स वसूलती है।

आम आदमी जागे तो --------

अब भारत के आम आदमी को जागना होगा। कब तक पड़े पड़े मार खाते रहेंगे? नेता और कर्मचारियों के इस गठजोड़ को तोडना होगा। तभी हम स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक की तरह जी सकेंगे।
Thanks,
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)


जागो हिंदुस्तान जागो     जागो हिंदुस्तान जागो     जागो हिंदुस्तान जागो      

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