Search

Loading

Tuesday, October 12, 2021

अजीमगंज में नवपद मंडल महापूजन की प्राचीन परंपरा

 

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के अजीमगंज शहर में नवपद मंडल महापूजन की प्राचीन परंपरा रही है।  आज भी वहां का श्री संघ बड़े उत्साह से नवपद मंडल पूजन की इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन कर रहा है।  यह सर्वविदित तथ्य है की मुग़ल काल में मुर्शिदाबाद बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश सहित), बिहार, उड़ीसा एवं असम की संयुक्त राजधानी हुआ करता था. उस नगर के वैभव एवं ख्याति ने अनेक राजस्थानी जैन परिवारों को आकर्षित किया।  जगत सेठ मानिकचंद के नेतृत्व में अनेक जैन धर्मावलम्बी राजस्थान के विभिन्न स्थानों से वहां जा कर बस गए।  कालांतर में मुर्शिदाबाद जिले के अजीमगंज एवं जियागंज नगर द्वय जैन धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हुआ। 


 अजीमगंज में स्वनामधन्य राय धनपत सिंह दुगड़ परिवार द्वारा स्थापित प्रसिद्द श्री सम्भवनाथ स्वामी का मंदिर अवस्थित है।  इस मंदिर में तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजय के आदिनाथ भगवन के समतुल्य श्री सम्भावनाथ स्वामी की विशाल प्रतिमा है।  इसी मंदिर में प्रतिवर्ष दुगड़ परिवार की और से शाश्वती नवपद ओली की आराधना होती थी। ओली के पूर्णाहुति दिवस आश्विन मास की शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) को इसी मंदिर में बड़े धूमधाम से नवपद मंडल की पूजा होती थी। (यह पूजा सिद्धचक्र महापूजन जैसा होता है)।  


कालांतर में दुगड़ परिवार अजीमगंज से कोलकाता जा कर बस गया उसी के साथ श्री सम्भावनाथ स्वामी के मंदिर में नवपद ओली एवं नवपद मंडल पूजन की परंपरा भी खंडित हो गई।  उसके बाद अजीमगंज में राय बहादुर महासिंह मेघराज कोठारी परिवार द्वारा निर्मित एवं श्री संघ को समर्पित श्री नेमिनाथ स्वामी के मंदिर में श्री हरख चन्द जी रुमाल द्वारा इस पूजन की परंपरा को पुनरुज्जीवित किया गया।  तबसे ले कर आज तक यह पूजा उसी स्थान पर निर्वाध रूप से चल रही है।  


यूँ तो सिद्धचक्र महापूजन सभी स्थानों पर आयोजित होता रहता है, परन्तु यहाँ की पूजा अनेक विशेषताओं को अपने अंदर समेटे हुए है।  इस पूजन का मांडला नयनाभिराम होता है जिसे रंगविरंगे चावलों से कलात्मक रूप दिया जाता है।  इस से भी बड़ी विशेषता ये है की नवपद ओली की तपस्या करनेवाले तपस्वियों के द्वारा ही ५ दिन अथक परिश्रम कर मंडल जी की चौकी को सज्जित किया जाता है।  सम्पूर्ण पूजन विधि में स्नात्रिक भी ओली के तपस्वी ही होते हैं। पूजा के एक दिन पहले नवपद एवं प्रत्येक वलय के देवी देवताओं आदि को चांदी के पत्र (चिट्ठी) लिख कर आमंत्रित किया जाता है। उत्तम रसोइयों द्वारा विशेष प्रकार के व्यंजनों से वलि वाकुल बनता है।   

पूजन विधि का सर्वप्रथम एवं मुख्य भाग अरिहंत, सिद्ध आदि नवपद वलय के पूजन का होता है।  इसमें नारियल के सूखे गोले में घी, केशर, रत्न, आदि भर कर नवपद के भिन्न भिन्न वर्णों के अनुसार रंग कर चांदी के रत्नजड़ित छत्रयुक्त सिंहासन में विराजमान कर चढ़ाया जाता है।  इसके बाद अन्य वलयों की पूजा होती है।  इसमें भी चांदी के बिजोरों, सुपारी आदि चढ़ा कर पूजन किया जाता है।  विशिष्ट मंत्रोच्चारण युक्त पूजन के साथ नवपद जी की बड़ी पूजा में ८१ कलश डाले जाते हैं।  अंत में १०८ दीपक की आरती होती है। महा समारोह से आयोजित इस पूजा के संपन्न होने में लगभग ९-१० घण्टे का समय लगता है।  प्रातः ७-८ बजे पूजा शुरू होती है और इसके संपन्न होते होते शाम हो जाती है।  


इस वर्ष यह पूजा २० अक्टूबर, २०२१ को आयोजित होगी। पूजन विधि संपन्न कराने हेतु मैं जयपुर से अजीमगंज जाऊंगा।  


Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

allvoices

Wednesday, September 1, 2021

महापर्व पर्युषण ३ से ११ सितम्बर, २०२१

महापर्व पर्युषण ३ से ११ सितम्बर, २०२१

शुक्रवार ३ सितम्बर से जैन धर्म का महापर्व पर्युषण प्रारम्भ हो रहा है। श्वेताम्बर जैन समाज के अलग अलग समुदायों में कहीं यह  सितम्बर से प्रारम्भ हो कर १० को समाप्त होगा, कहीं ४ को प्रारम्भ हो कर ११ सितम्बर को समापन होगा।यह आत्मशुद्धि एवं आत्मविकास का महापर्व  है. यह कोई लौकिक त्यौहार नहीं, जिसमे राग रंग मौज मजा किया जाए।  यह भौतिक कामनाओं से दूर, संयम साधना पूर्वक अपने स्वयं के आत्मविकास के लिए आत्मसाधना करने का पर्व है।  प्रतिवर्ष भाद्र मॉस की कृष्णा द्वादशी अथवा त्रयोदशी से प्रारम्भ हो कर यह महापर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी अथवा पंचमी को समाप्त होता है।  


चित्र: प्राचीन कल्पसूत्र पाण्डुलिपि 

इस अवसर पर महान आगम ग्रन्थ कल्पसूत्र का वांचन होता है, मंदिरों में भव्य पूजा अर्चना होती है, साधु भगवंतों के प्रवचन होते हैं, लोग तपस्या कर जीवन सफल बनाते हैं. स्थानकवासी परंपरा में कल्पसूत्र के अतिरिक्त अंतगढ़ दसांग सूत्र वाचन की भी परिपाटी है। पर्युषण पर्व के पांचवें दिन भगवान् महावीर का जन्म वाचन होता है।  सभी जैन धर्मावलम्बी इसे बड़े उत्साह एवं धूमधाम से मनाते हैं. यह महान पर्व पर्युषण आत्मसाधना के साथ जिनशासन की प्रभावना का भी पर्व है।  

आठ दिन के इस पर्युषण महापर्व का अंतिम दिन संवत्सरी पर्व होता है।  इस दिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण कर वर्षभर में किये गए पापों/ दुष्कृत्यों की आलोचना की जाती है। आलोचना स्वरुप अतिचार का पाठ बोल कर सभी पापों का मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं दिया जाता है। इसके बाद ८४ लाख जीवयोनि से खमत खामना की जाती है अर्थात सभी जीवों को क्षमा करते हैं एवं सभी से क्षमा याचना भी करते हैं।  क्षमा याचना के बाद संवत्सरी प्रतिक्रमण के माध्यम से पापों का प्रायश्चित्त कर कर्मों के बोझ को हल्का किया जाता है।  

#महापर्व #पर्युषण, #जैनधर्म #कल्पसूत्र #संवत्सरी #प्रतिक्रमण #क्षमापना 

Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, Vardhaman Infotech, a top IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

allvoices

Saturday, August 28, 2021

जैन धर्म में आलोचना एवं प्रतिक्रमण

जैन धर्म में आलोचना एवं प्रतिक्रमण


 भगवान महावीर के अनुसार जीवन के छह आवश्यक कर्तव्यों में प्रतिक्रमण का महत्वपूर्ण स्थान है. यह समस्त पापों एवं दोषों को क्षय करने वाला है. ६ आवश्यकों में  (सामायिक, चतुर्विंशति स्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान)प्रतिक्रमण का चौथा स्थान है. प्रतिक्रमण  शब्द अतिक्रमण का विलोम शब्द है. हम जब जीवन में अपनी आत्मा की, व्रतों की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं तो यह अतिक्रमण कहलाता है.  जब हम इस मर्यादा के उल्लंघन को देख कर  स्वीकार करते हैं तो इसे आलोचना कहा जाता है. और जब उन दोषों से, पापों से पीछे हटते हैं तो उसे प्रतिक्रमण कहते हैं. प्रतिक्रमण से पूर्व आलोचना की जाती है.आलोचना एवं प्रतिक्रमण  साधु साध्वी श्रावक श्राविका अर्थात त्यागी एवं गृहस्थ सभी का दैनंदिन कर्त्तव्य है. 


Image: Samvatsari Pratikraman 

आलोचना में अपने पापों को अच्छी तरह से देख कर उसे स्वीकार किया जाता है.  हम प्राय दूसरों की निंदा बहुत ज्यादा करते हैं लेकिन आलोचना अपनी निंदा है. इसे आत्म निंदा भी कहा जाता है. प्रतिक्रमण सूत्रों में आलोचना के लिए अलग से सूत्र भी हैं. 

समय-समय पर आचार्यों एवं जैन मनीषियों ने आलोचना करने के लिए अनेक स्तोत्र स्तवन आदि भी बनाए हैं.  इनमें रत्नाकर सूरी विरचित रत्नाकर पच्चीसी  (संस्कृत) एवं उपाध्याय समय सुंदर जी रचित बेकर जोड़ी विनवूं  स्तवन का महत्वपूर्ण स्थान है. 

 कुछ ही समय में पर्युषण पर्व आने वाला है (३ से १० सितम्बर, २०२१ ), जिसका अंतिम दिन (१० सितम्बर)संवत्सरी पर्व  के रूप में जैन संघों द्वारा मनाया जायेगा. संवत्सरी के दिन हम अपने वर्ष भर के पापों की संवत्सरी प्रतिक्रमण  के माध्यम से आलोचना करते हैं, प्रतिक्रमण करते हैं, और इस प्रकारआत्म शुद्धि करके अपने पापों को नष्ट करते हैं.  इसलिए जैन शासन में संवत्सरी प्रतिक्रमण का बहुत महत्व है.

इसी महत्व को देखते हुए पिछले कुछ समय से रत्नाकर पच्चीसी एवं बेकर जोड़ी विनवूं  स्तवन पर विशेष प्रवचन श्रृंखला का आयोजन किया गया है. यह सभी प्रवचन धर्म एवं अध्यात्म  चैनल पर यूट्यूब में उपलब्ध है. आप रत्नाकर पच्चीसी प्ले लिस्ट  लिंक पर क्लिक करके सभी वीडियो को सुन सकते हैं. 

Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

allvoices