पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के अजीमगंज शहर में नवपद मंडल महापूजन की प्राचीन परंपरा रही है। आज भी वहां का श्री संघ बड़े उत्साह से नवपद मंडल पूजन की इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन कर रहा है। यह सर्वविदित तथ्य है की मुग़ल काल में मुर्शिदाबाद बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश सहित), बिहार, उड़ीसा एवं असम की संयुक्त राजधानी हुआ करता था. उस नगर के वैभव एवं ख्याति ने अनेक राजस्थानी जैन परिवारों को आकर्षित किया। जगत सेठ मानिकचंद के नेतृत्व में अनेक जैन धर्मावलम्बी राजस्थान के विभिन्न स्थानों से वहां जा कर बस गए। कालांतर में मुर्शिदाबाद जिले के अजीमगंज एवं जियागंज नगर द्वय जैन धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हुआ।
अजीमगंज में स्वनामधन्य राय धनपत सिंह दुगड़ परिवार द्वारा स्थापित प्रसिद्द श्री सम्भवनाथ स्वामी का मंदिर अवस्थित है। इस मंदिर में तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजय के आदिनाथ भगवन के समतुल्य श्री सम्भावनाथ स्वामी की विशाल प्रतिमा है। इसी मंदिर में प्रतिवर्ष दुगड़ परिवार की और से शाश्वती नवपद ओली की आराधना होती थी। ओली के पूर्णाहुति दिवस आश्विन मास की शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) को इसी मंदिर में बड़े धूमधाम से नवपद मंडल की पूजा होती थी। (यह पूजा सिद्धचक्र महापूजन जैसा होता है)।
कालांतर में दुगड़ परिवार अजीमगंज से कोलकाता जा कर बस गया उसी के साथ श्री सम्भावनाथ स्वामी के मंदिर में नवपद ओली एवं नवपद मंडल पूजन की परंपरा भी खंडित हो गई। उसके बाद अजीमगंज में राय बहादुर महासिंह मेघराज कोठारी परिवार द्वारा निर्मित एवं श्री संघ को समर्पित श्री नेमिनाथ स्वामी के मंदिर में श्री हरख चन्द जी रुमाल द्वारा इस पूजन की परंपरा को पुनरुज्जीवित किया गया। तबसे ले कर आज तक यह पूजा उसी स्थान पर निर्वाध रूप से चल रही है।
यूँ तो सिद्धचक्र महापूजन सभी स्थानों पर आयोजित होता रहता है, परन्तु यहाँ की पूजा अनेक विशेषताओं को अपने अंदर समेटे हुए है। इस पूजन का मांडला नयनाभिराम होता है जिसे रंगविरंगे चावलों से कलात्मक रूप दिया जाता है। इस से भी बड़ी विशेषता ये है की नवपद ओली की तपस्या करनेवाले तपस्वियों के द्वारा ही ५ दिन अथक परिश्रम कर मंडल जी की चौकी को सज्जित किया जाता है। सम्पूर्ण पूजन विधि में स्नात्रिक भी ओली के तपस्वी ही होते हैं। पूजा के एक दिन पहले नवपद एवं प्रत्येक वलय के देवी देवताओं आदि को चांदी के पत्र (चिट्ठी) लिख कर आमंत्रित किया जाता है। उत्तम रसोइयों द्वारा विशेष प्रकार के व्यंजनों से वलि वाकुल बनता है।
पूजन विधि का सर्वप्रथम एवं मुख्य भाग अरिहंत, सिद्ध आदि नवपद वलय के पूजन का होता है। इसमें नारियल के सूखे गोले में घी, केशर, रत्न, आदि भर कर नवपद के भिन्न भिन्न वर्णों के अनुसार रंग कर चांदी के रत्नजड़ित छत्रयुक्त सिंहासन में विराजमान कर चढ़ाया जाता है। इसके बाद अन्य वलयों की पूजा होती है। इसमें भी चांदी के बिजोरों, सुपारी आदि चढ़ा कर पूजन किया जाता है। विशिष्ट मंत्रोच्चारण युक्त पूजन के साथ नवपद जी की बड़ी पूजा में ८१ कलश डाले जाते हैं। अंत में १०८ दीपक की आरती होती है। महा समारोह से आयोजित इस पूजा के संपन्न होने में लगभग ९-१० घण्टे का समय लगता है। प्रातः ७-८ बजे पूजा शुरू होती है और इसके संपन्न होते होते शाम हो जाती है।
इस वर्ष यह पूजा २० अक्टूबर, २०२१ को आयोजित होगी। पूजन विधि संपन्न कराने हेतु मैं जयपुर से अजीमगंज जाऊंगा।
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)