Search

Loading
Showing posts with label साधू साध्वी. Show all posts
Showing posts with label साधू साध्वी. Show all posts

Sunday, September 6, 2009

जैन धर्म की मूल भावना भाग १

जैन समाज में इन दिनों कुछ ऐसी प्रवृत्तियां बढ़ रही है जो की जैन धर्म की मूल भावनाओं के विरुद्ध है। इन प्रवृत्तिओं के बढ़ने से जिन शाशन की हानि हो रही है। समय रहते पूज्य आचार्य भगवंतों, गीतार्थ मुनिओं, विद्वानों एवं संघ के वरिष्ठ लोगों को इन प्रवृत्तिओं पर अंकुश लगाने के लिए प्रयत्न करना होगा अन्यथा यह जैन शाशन, धर्म व समाज के लिए घातक हो जाएगा.

पूर्व में भी समर्थ आचार्यों ने इस प्रकार सुधर किया है। साधू साध्विओं में भी जब जब शिथिलाचार बढ़ा है तब तब उन आचार्यों व गीतार्थ मुनि भगवंतों ने क्रियोद्धार कर पुनः संघ को व्यवस्थित किया है। इस संवंध में सूरी पुरंदर हरिभद्र सूरी, नवांगी टीकाकार अभयदेव सूरी, दादा जिन दत्त सूरी, अकवर प्रतिवोधक दादा जिन चंद्र सूरी, उपाध्याय क्षमा कल्याण जी, आत्माराम जी महाराज अदि का नाम उल्लेखनीय है। इस समय फिर से किसी ऐसे युग प्रवर्तक की आवश्यकता है।

आज साधू साध्विओं में भी शिथिलाचार व जिन वाणी के विरुद्ध प्रवृत्ति करने का प्रचालन बढ़ता जा रहा है। सुविहित मार्ग में चलने वाले कम होते जा रहे हैं। तत्त्व रसिक श्रावक भी कम हैं और अधिकांश लोग मन मर्जी की प्रवृत्ति में लगे हैं। ऐसी स्थिति में शिथिलाचारी मुनिओं का बोलबाला होता जा रहा है और भोले लोग मात्र वेश देख कर उनका अनुकरण कर रहे हैं।

इस संवंध में विचार मंथन आज के युग की आवश्यकता है। इस लेख के माध्यम से मैं इस विषय पर संघ के सुज्ञ जनों का ध्यान इस और आकर्षित करना चाहता हूँ। मुझे विश्वास है की आप लोग इस विषय पर विचार मंथन कर कुछ ठोस कदम उठाएंगे।
जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
जैन धर्म की मूल भावना भाग 3
जिन मंदिर एवं वास्तुप्रस्तुति:
ज्योति कोठारी

allvoices