Search

Loading
Showing posts with label Siddha. Show all posts
Showing posts with label Siddha. Show all posts

Friday, October 30, 2020

सिद्धचक्र में नवपद का स्वरुप क्या है?

Definition of Navapada (Nine supreme elements) in Siddhachakra 

१. अरिहन्त परमेष्ठी




नाना प्रकार के दुखों से उद्वेलित जगत के समस्त जीवों के प्रति उछलते हुए करुणा भाव से वीस स्थानक तप की सम्यक आराधना कर जिन्होंने तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया ऐसे जगत वत्सल अरिहन्त परमेष्ठी को प्रथम पद में बारम्बार नमस्कार है। अचिन्त्य सामर्थ्य युक्त, सिद्धचक्र के केंद्र स्वरुप उस परम ज्ञानी सर्वज्ञ परमेश्वर ने  जगत तारक तीर्थ रूप चतुर्विध संघ स्थापित किया। सम्पूर्ण कृत कृत्य होते हुए भी केवल मात्र जगत हितार्थ जिन्होंने देवकृत समवसरण में स्फटिक रत्न के सिंहासन पर विराजमान हो कर अपने वचनातिशय के प्रभाव से ३५ गुण युक्त वाणी से सभी भव्य प्राणियों का कल्याण किया ऐसे लोकप्रदीप अरिहंत परमात्मा को त्रिकरण, त्रियोग से नमस्कार हो।   

२. सिद्ध परमेष्ठी

समस्त प्राणियों में क्लेश उत्पन्न करने वाले मोहनीय कर्म को क्षय करने के पश्चात् जिन्होंने समस्त कर्मो को पूर्ण रूपेण क्षय कर दिया है ऐसे परम आनंद के घन पिंड श्री सिद्ध परमात्मा का शरण हो।  आठ कर्मों के क्षय से प्रगट अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अव्यावध सुख, क्षायिक सम्यक्त्व व अनंत चारित्र, अगुरुलघु, आदि गुणों से युक्त देहरहित अरूपी सिद्ध परमात्मा अक्षय स्थिति गन के कारण अनंत काल तक सिद्ध शिला के ऊपर लोकांत में विराजमान हैं।  मुनिराज के ह्रदय रूपी मानसरोवर में हंस के समान क्रीड़ा करने वाले ऐसे सिद्ध भगवन को त्रिकरण त्रियोग से नमस्कार हो।  

३. आचार्य परमेष्ठी

"तित्थयर समो सूरी" ऐसे शास्त्र वाक्य से जिनकी प्रतिष्ठा है; ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार व वीर्याचार के पालन में समुद्यत एवं चतुर्विध संघ को पालन की प्रेरणा देनेवाले ३६ गुणधारी आचार्य भगवंत को तीसरे पद में नमस्कार हो।  सदा तत्वज्ञान में रमण करनेवाले, आगमों की सरहस्य व्याख्या करनेवाले, संघ हित में देश, काल के अनुसार निर्णय कर उसका पालन करवाने वाले जिनशासन में दीपक समान मुनिपति गणाधीश आचार्य भगवंत जयवंत वर्तें।  

४. उपाध्याय परमेष्ठी

कुवादी रूप मदमस्त हाथियों के अहंकार को चूर्ण करने में सिंह के समान अजेय पराक्रमी ११ अंग और १४ पूर्व को साङ्गोपाङ्ग धारण करनेवाले उपाध्याय भगवंत को चौथे पद में सदा नमस्कार हो। राजकुमार के सामान आचार्य परमेष्ठी के शासन को सँभालने वाले और मुर्ख से मुर्ख शिष्य को भी विद्वान बनाने का सामर्थ्य रखनेवाले श्रेष्ठ अध्यापक २५ गुण धारी उपाध्याय परमेष्ठी तीसरे भाव में मोक्ष प्राप्त करनेवाले होने से सदा वंदनीय हैं. 

५. साधु परमेष्ठी

मोक्षमार्ग की साधना में निरंतर अप्रमाद पञ्च समिति से समित व त्रि गुप्ति से गुप्त षटकाय रक्षक साधु परमेष्ठी को सतत नमन। संयम के शिखर पुरुष, १८ हज़ार शीलांग के धारक, अचल आचार चरित्र वाले जग वान्धव मुनि भगवंत सदा जयवंत हों।  आचार्य, स्थविर और उपाध्याय की सेवा में निमग्न एवं उनकी आज्ञा के पालक, मधुकरी वृत्ति से जीवन निर्वाह करनेवाले उग्र तपस्वी श्रमण वृन्दों को त्रिकाल वंदन, नमन।  


६. सम्यग दर्शन पद

  
मिथ्यात्व के नाश से उत्पन्न जिनेश्वर देव के वचन में श्रद्धा एवं तत्व में रूचि रूप समस्त धर्मों का मूल सम्यग दर्शन को त्रिकालवर्ती भावों से सम्यग नमन।  जिसके बिना ज्ञान भी अज्ञान रूप हो, और चारित्र भी भव भ्रमण को नष्ट न कर सकता हो ऐसे धर्म बीज सम्यक्त्व की जय हो! दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृति एवं चार अनंतनुवांधि कषाय के क्षय-उपशम से प्रगट होने वाले ६७ गुणों से युक्त सम्यक दर्शन मुझे प्राप्त हो!

७. सम्यग ज्ञान पद

अज्ञान एवं मोह हारिणि, ५१ भेदों से  नमस्कृत, स्व-पर प्रकाशक सम्यग ज्ञान पद को बारम्बार नमस्कार।  सभी क्रियायों का मूल, मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल ज्ञान इन पांच भेदों से सर्वत्र पूजित, जगत प्रकाशक ज्ञान पद सदा जयवंत वर्ते।  तीनों लोक, यहाँ तक की अलोक को भी द्रव्य, गुण, पर्याय सहित सम्पूर्णतः प्रकाशित करनेवाले ज्ञान की केवल ज्ञान प्राप्ति में हेतु बनें.   

८. सम्यग चारित्र पद

६ खण्ड के विशाल राज्य सुख को घास के तिनके के सामान तुच्छ समझ कर, उसे छोड़कर चक्रवर्ती भी जिन्हे अंगीकार करते हैं ऐसे मोक्ष सुख के प्रत्यक्ष कारण भुत और आत्मरमण रूप सम्यग चारित्र पद को बारम्बार वंदन हो। अंगीकार करने के  मात्र एक माह में ही व्यंतर देवलोक के सुख से अधिक और १२ माह में अनुत्तर विमान के सुख का अतिक्रमण करनेवाले चारित्र के सुख की तुलना जगत के किस सुख से हो सकती है? ७० गुणों से अलंकृत, देश विरति और सर्व विरति के भेद वाले चारित्र को नमन. 

९. सम्यग तप पद

उसी भव में अपनी निश्चित मुक्ति जानते हुए भी तीर्थंकर भगवंत जिसका आचरण करते हैं, समस्त कर्मों को जड़ मूल से उखाड फेंकने वाले उस तप पद को बारम्बार नमन हो।  वाह्य और अभ्यन्तर दोनों प्रकार के तप ही इच्छा निरोध स्वरुप हैं, ५० गुणों से युक्त ऐसे सम्यग तप पद की सदा जय हो !


Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

allvoices

Saturday, October 16, 2010

News and articles on Navpad Oli (Ayambil Oli)

This is the third day of Navpad Oli (Ayambil Oli) and Jain community has worshiped Acharya Pad today. The previous two days were meant for Arihant and Siddha Pad.

There are several news reports and articles on the topic. Please click and view those. You can click below to stay tuned for latest news.

Thanks,
Jyoti Kothari

allvoices