Jai Jinendra,
1. Ashtapadji Pratishtha will be broadcast live via internet on June 19th & 20th. Please inform all your friends and relatives local or abroad
who are not able to attend can watch live via the internet on June 19 & 20th from 7 am to 3 pm eastern standard USA time.
You may go to the JCA web site at www.nyjca.org and click on the link below the Patrika or Click here to start viewing the web cast. This will be available only on� June 19th and 20th.
"Again please forward this email to all your friends who like to be part of this occasion even remotely on June 19th and 20th."
2.� Asthapadji actual 24 Pratimas has been displayed in the basement of the Ithaca Temple till June 19th 2010. Anyone who wishes to do the Darshan closely� has a once in a life chance to see the actual Pratimas just inches away. We request all to take this opportunity to visit and do the Darshan.
Saturday, June 19, 2010
Friday, June 18, 2010
जैन साधू साध्वियों के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि
चातुर्मास का समय नजदीक आ रहा है. विभिन्न स्थानों के जैन संघ पूज्य साधू साध्विओं के चातुर्मास की व्यवस्था में लगे हैं. लगभग सभी जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास तय हो चुके हैं. इसमें जैन धर्मं के सभी समुदाय श्वेताम्बर, दिगंबर, मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरापंथी सभी सम्मिलित हैं.
ऐसे समय में यह जानना बेहद जरुरी है की जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि क्या है? क्या जो कुछ परंपरागत रूप से हो रहा है वह शास्त्र सम्मत है? अथवा सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है?
दिगंबर परंपरा एवं शास्त्रों के संवंध में मुझे ठीक से पता नहीं है परन्तु श्वेताम्बर समुदाय के सभी वर्गों के लिए शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है. जैन आगमों के अनुसार साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय नहीं हो सकता है. कल्पसूत्र के अनुसार साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के बाद ही घोषित करते हैं.
पहले से चातुर्मास तय होने पर श्रावक गण उपाश्रय या तत्सम्वंधित स्थानों पर मरम्मत, रंगाई, पुताई आदि जो भी काम करते हैं वो चातुर्मास के निमित्त होता है. ऐसे में उन सभी आरंभ समारंभ का दोष चातुर्मास करने वाले साधू साध्विओं को लगता है. ऐसी स्थिति में उनका प्रथम प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) व्रत खंडित होता है.
अतः शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है की साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास पहले से घोषित न करें.
जैन आगमों के अनुसार साधू साध्वी गण चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहने के लिए श्रावक संघ से प्रार्थना करते हैं. श्रावक संघ अथवा कोई व्यग्तिगत रूप से साधू साध्विओं की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें रहने का स्थान उपलब्ध करवा दे तो साधू साध्वी वहां पर ठहर सकते हैं एवं अपना चातुर्मास व्यतीत कर सकते हैं. यदि गृहस्थ उन्हें स्थान देना स्वीकार न करे तो वे अन्यत्र विहार कर जाते हैं.
आज इस शास्त्र आज्ञा से विपरीत स्थिति प्रचलन में आ चुकी है. आज श्रावक संघ साधू साध्विओं से चातुर्मास हेतु प्रार्थना करते हैं. प्रायः संघ के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो कर बस , ट्रेन या हवाई जहाज से दूर दराज क्षेत्र में रहे हुए साधू साध्विओं से चातुर्मास की विनती करने जाते हैं. ऐसा देखने में आता है की साधू साध्वी गण भी बहुत बार ऐसी स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं. प्रायः बहुत मान मनुहार एवं अनेको वार विनती करने पर ही साधू साध्वी गण चातुर्मास की स्वीकृति देते हैं. इस तरह से संघ का बहुत समय व धन का अपव्यय होता है, साथ ही आरम्भ समारंभ भी होता है.
विचारणीय बिंदु ये है की जब शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है की साधू साध्वी गण चातुर्मास में ठहरने के स्थान के लिए गृहस्थों से स्थान की याचना करे, तब उससे विपरीत क्यों श्रावक संघ उनसे प्रार्थना करने जाता है? साधू साध्वी गण भी क्यों निरंतर इस स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं?
जैन आगमों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट रूप से सामने आती है की साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय होना शिथिलाचार को बढाने में मुख्य हेतु है. प्रायः श्रावक/श्राविका समुदाय श्रमण संघों में व्याप्त शिथिलाचार की आलोचना करते हैं परन्तु इसके मूल कारणों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं एवं ऐसी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करते हैं, इस विषय में विचार करना आवश्यक है।
समस्त आचार्य एवं उपाध्याय भगवंतों एवं पूज्य साधू साध्विओं से निवेदन है की इस स्थिति के संवंध में पुनर्विचार करें एवं शास्त्र (आगम) आज्ञा के अनुसार व्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करें. श्रावक संघ भी जागरूक बन कर इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे.
ऐसे समय में यह जानना बेहद जरुरी है की जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि क्या है? क्या जो कुछ परंपरागत रूप से हो रहा है वह शास्त्र सम्मत है? अथवा सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है?
दिगंबर परंपरा एवं शास्त्रों के संवंध में मुझे ठीक से पता नहीं है परन्तु श्वेताम्बर समुदाय के सभी वर्गों के लिए शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है. जैन आगमों के अनुसार साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय नहीं हो सकता है. कल्पसूत्र के अनुसार साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के बाद ही घोषित करते हैं.
पहले से चातुर्मास तय होने पर श्रावक गण उपाश्रय या तत्सम्वंधित स्थानों पर मरम्मत, रंगाई, पुताई आदि जो भी काम करते हैं वो चातुर्मास के निमित्त होता है. ऐसे में उन सभी आरंभ समारंभ का दोष चातुर्मास करने वाले साधू साध्विओं को लगता है. ऐसी स्थिति में उनका प्रथम प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) व्रत खंडित होता है.
अतः शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है की साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास पहले से घोषित न करें.
जैन आगमों के अनुसार साधू साध्वी गण चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहने के लिए श्रावक संघ से प्रार्थना करते हैं. श्रावक संघ अथवा कोई व्यग्तिगत रूप से साधू साध्विओं की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें रहने का स्थान उपलब्ध करवा दे तो साधू साध्वी वहां पर ठहर सकते हैं एवं अपना चातुर्मास व्यतीत कर सकते हैं. यदि गृहस्थ उन्हें स्थान देना स्वीकार न करे तो वे अन्यत्र विहार कर जाते हैं.
आज इस शास्त्र आज्ञा से विपरीत स्थिति प्रचलन में आ चुकी है. आज श्रावक संघ साधू साध्विओं से चातुर्मास हेतु प्रार्थना करते हैं. प्रायः संघ के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो कर बस , ट्रेन या हवाई जहाज से दूर दराज क्षेत्र में रहे हुए साधू साध्विओं से चातुर्मास की विनती करने जाते हैं. ऐसा देखने में आता है की साधू साध्वी गण भी बहुत बार ऐसी स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं. प्रायः बहुत मान मनुहार एवं अनेको वार विनती करने पर ही साधू साध्वी गण चातुर्मास की स्वीकृति देते हैं. इस तरह से संघ का बहुत समय व धन का अपव्यय होता है, साथ ही आरम्भ समारंभ भी होता है.
विचारणीय बिंदु ये है की जब शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है की साधू साध्वी गण चातुर्मास में ठहरने के स्थान के लिए गृहस्थों से स्थान की याचना करे, तब उससे विपरीत क्यों श्रावक संघ उनसे प्रार्थना करने जाता है? साधू साध्वी गण भी क्यों निरंतर इस स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं?
जैन आगमों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट रूप से सामने आती है की साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय होना शिथिलाचार को बढाने में मुख्य हेतु है. प्रायः श्रावक/श्राविका समुदाय श्रमण संघों में व्याप्त शिथिलाचार की आलोचना करते हैं परन्तु इसके मूल कारणों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं एवं ऐसी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करते हैं, इस विषय में विचार करना आवश्यक है।
समस्त आचार्य एवं उपाध्याय भगवंतों एवं पूज्य साधू साध्विओं से निवेदन है की इस स्थिति के संवंध में पुनर्विचार करें एवं शास्त्र (आगम) आज्ञा के अनुसार व्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करें. श्रावक संघ भी जागरूक बन कर इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे.
Thursday, June 17, 2010
Process of Chaturmas in Jain Agam
Chaturmas is near by. Jain Sangh at different places are preparing for chaturmas of Jain monks and nuns. It is the right time to know process of chaturmas as defined in various Jain Agam (Sacred Text).
Monks and nuns can not declare their chaturmas prior to samvatsari according to Jain agam "Kalpasutra".
Why?
If they do so, the house holds repairs, paints etc in the upashray or other places specified for chaturmas. Violence is involved in all these acts and the monks and nuns are held liable for these violence. Hence, they are not allowed to declare their chaturmas pre-samvatsari.
It is also said in Jain Agam (Shastra) that the monks and nuns ask house holds for accommodation. If they agreed monks and nuns can stay there for chaturmas. However, the present day practices are different. Shravak Sangh (Jain house holds) approach monks and nuns for chaturmas. If they agree they arrange for chaturmas. This practice is against Jain Agam.
Should all of us rethink?
Detailed post in Hindi
Thanks,
Jyoti Kothari
Monks and nuns can not declare their chaturmas prior to samvatsari according to Jain agam "Kalpasutra".
Why?
If they do so, the house holds repairs, paints etc in the upashray or other places specified for chaturmas. Violence is involved in all these acts and the monks and nuns are held liable for these violence. Hence, they are not allowed to declare their chaturmas pre-samvatsari.
It is also said in Jain Agam (Shastra) that the monks and nuns ask house holds for accommodation. If they agreed monks and nuns can stay there for chaturmas. However, the present day practices are different. Shravak Sangh (Jain house holds) approach monks and nuns for chaturmas. If they agree they arrange for chaturmas. This practice is against Jain Agam.
Should all of us rethink?
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Jyoti Kothari
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जैन साधू साध्वियों के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि
लेखक: ज्योति कुमार कोठारी
चातुर्मास का समय नजदीक आ रहा है. विभिन्न स्थानों के जैन संघ पूज्य साधू साध्विओं के चातुर्मास की व्यवस्था में लगे हैं. लगभग सभी जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास तय हो चुके हैं. इसमें जैन धर्मं के सभी समुदाय श्वेताम्बर, दिगंबर, मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरापंथी सभी सम्मिलित हैं.
ऐसे समय में यह जानना बेहद जरुरी है की जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि क्या है? क्या जो कुछ परंपरागत रूप से हो रहा है वह शास्त्र सम्मत है? अथवा सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है?
दिगंबर परंपरा एवं शास्त्रों के संवंध में मुझे ठीक से पता नहीं है परन्तु श्वेताम्बर समुदाय के सभी वर्गों के लिए शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है. जैन आगमों के अनुसार साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय नहीं हो सकता है. कल्पसूत्र के अनुसार साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के बाद ही घोषित करते हैं.
पहले से चातुर्मास तय होने पर श्रावक गण उपाश्रय या तत्सम्वंधित स्थानों पर मरम्मत, रंगाई, पुताई आदि जो भी काम करते हैं वो चातुर्मास के निमित्त होता है. ऐसे में उन सभी आरंभ समारंभ का दोष चातुर्मास करने वाले साधू साध्विओं को लगता है. ऐसी स्थिति में उनका प्रथम प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) व्रत खंडित होता है.
अतः शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है की साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास पहले से घोषित न करें.
जैन आगमों के अनुसार साधू साध्वी गण चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहने के लिए श्रावक संघ से प्रार्थना करते हैं. श्रावक संघ अथवा कोई व्यग्तिगत रूप से साधू साध्विओं की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें रहने का स्थान उपलब्ध करवा दे तो साधू साध्वी वहां पर ठहर सकते हैं एवं अपना चातुर्मास व्यतीत कर सकते हैं. यदि गृहस्थ उन्हें स्थान देना स्वीकार न करे तो वे अन्यत्र विहार कर जाते हैं.
आज इस शास्त्र आज्ञा से विपरीत स्थिति प्रचलन में आ चुकी है. आज श्रावक संघ साधू साध्विओं से चातुर्मास हेतु प्रार्थना करते हैं. प्रायः संघ के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो कर बस , ट्रेन या हवाई जहाज से दूर दराज क्षेत्र में रहे हुए साधू साध्विओं से चातुर्मास की विनती करने जाते हैं. ऐसा देखने में आता है की साधू साध्वी गण भी बहुत बार ऐसी स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं. प्रायः बहुत मन मनुहार एवं अनेको वार विनती करने पर ही साधू साध्वी गण चातुर्मास की स्वीकृति देते हैं. इस तरह से संघ का बहुत समय व धन का अपव्यय होता है, साथ ही आरम्भ समारंभ भी होता है.
विचारणीय बिंदु ये है की जब शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है की साधू साध्वी गण चातुर्मास में ठहरने के स्थान के लिए गृहस्थों से स्थान की याचना करे, तब उससे विपरीत क्यों श्रावक संघ उनसे प्रार्थना करने जाता है? साधू साध्वी गण भी क्यों निरंतर इस स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं?
जैन आगमों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट रूप से सामने आती है की साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय होना शिथिलाचार को बढाने में मुख्य हेतु है.
समस्त आचार्य एवं उपाध्याय भगवंतों एवं पूज्य साधू साध्विओं से निवेदन है की इस स्थिति के संवंध में पुनर्विचार करें एवं शास्त्र (आगम) आज्ञा के अनुसार व्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करें. श्रावक संघ भी जागरूक बन कर इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे.
ऐसे समय में यह जानना बेहद जरुरी है की जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि क्या है? क्या जो कुछ परंपरागत रूप से हो रहा है वह शास्त्र सम्मत है? अथवा सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है?
दिगंबर परंपरा एवं शास्त्रों के संवंध में मुझे ठीक से पता नहीं है परन्तु श्वेताम्बर समुदाय के सभी वर्गों के लिए शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है. जैन आगमों के अनुसार साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय नहीं हो सकता है. कल्पसूत्र के अनुसार साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के बाद ही घोषित करते हैं.
पहले से चातुर्मास तय होने पर श्रावक गण उपाश्रय या तत्सम्वंधित स्थानों पर मरम्मत, रंगाई, पुताई आदि जो भी काम करते हैं वो चातुर्मास के निमित्त होता है. ऐसे में उन सभी आरंभ समारंभ का दोष चातुर्मास करने वाले साधू साध्विओं को लगता है. ऐसी स्थिति में उनका प्रथम प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) व्रत खंडित होता है.
अतः शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है की साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास पहले से घोषित न करें.
जैन आगमों के अनुसार साधू साध्वी गण चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहने के लिए श्रावक संघ से प्रार्थना करते हैं. श्रावक संघ अथवा कोई व्यग्तिगत रूप से साधू साध्विओं की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें रहने का स्थान उपलब्ध करवा दे तो साधू साध्वी वहां पर ठहर सकते हैं एवं अपना चातुर्मास व्यतीत कर सकते हैं. यदि गृहस्थ उन्हें स्थान देना स्वीकार न करे तो वे अन्यत्र विहार कर जाते हैं.
आज इस शास्त्र आज्ञा से विपरीत स्थिति प्रचलन में आ चुकी है. आज श्रावक संघ साधू साध्विओं से चातुर्मास हेतु प्रार्थना करते हैं. प्रायः संघ के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो कर बस , ट्रेन या हवाई जहाज से दूर दराज क्षेत्र में रहे हुए साधू साध्विओं से चातुर्मास की विनती करने जाते हैं. ऐसा देखने में आता है की साधू साध्वी गण भी बहुत बार ऐसी स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं. प्रायः बहुत मन मनुहार एवं अनेको वार विनती करने पर ही साधू साध्वी गण चातुर्मास की स्वीकृति देते हैं. इस तरह से संघ का बहुत समय व धन का अपव्यय होता है, साथ ही आरम्भ समारंभ भी होता है.
विचारणीय बिंदु ये है की जब शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है की साधू साध्वी गण चातुर्मास में ठहरने के स्थान के लिए गृहस्थों से स्थान की याचना करे, तब उससे विपरीत क्यों श्रावक संघ उनसे प्रार्थना करने जाता है? साधू साध्वी गण भी क्यों निरंतर इस स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं?
जैन आगमों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट रूप से सामने आती है की साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय होना शिथिलाचार को बढाने में मुख्य हेतु है.
समस्त आचार्य एवं उपाध्याय भगवंतों एवं पूज्य साधू साध्विओं से निवेदन है की इस स्थिति के संवंध में पुनर्विचार करें एवं शास्त्र (आगम) आज्ञा के अनुसार व्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करें. श्रावक संघ भी जागरूक बन कर इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे.
Wednesday, June 9, 2010
Bhopal Gas plant tragedy: Did Rajiv Gandhi call Arjun Singh to set free Warren Anderson?
Who Called Arjun Singh to set free Warren Anderson, Chairman, Union Carbide? Did Rajiv Gandhi call Arjun Singh? This is a million dollar question which haunting Indian politics in Bhopal Gas plant tragedy. Latest reports points needle of suspicion to Rajiv Gandhi, the then Prime Minister of India.
Read more:
Bhopal Gas plant tragedy: Did Rajiv Gandhi call Arjun Singh to set free Warren Anderson?
Thanks,
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is also ISO 9000 professional)
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Jyoti Kothari
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Monday, June 7, 2010
Malpura: A pilgrimage center of Dada Jin Kushal Suri
Malpura is a famous Jain pilgrimage center in Rajasthan near Jaipur. Malpura is renowned for Dada Jin Kushal Suri. Dada Jin Kushal Suri left for his heavenly abode some seven centuries back at Deraur (Pakistan). It is told that a devotee of Dada Jin Kushal Suri at Malpura could not believe the news. He told himself,"I will believe the sad news if Dada himself will tell me the same."
Dada Jin Kushal Suri came from the heaven to satisfy the urge of his devotee. He shew himself standing over a stone. The stone is kept as it is and being worshiped by the devotees. A beautiful Dadabadi is build to pay homage Dada saheb.
It is worth noted that Dada Jin Kushal Suri was an Acharya in Khartargachchha clan of Jain. He is widely worshipped among his devotees all over India and overseas. Hundreds of Dadabadis are built in his name all over India and some places overseas.
View images and Videos of Malpura Dadabadi
Dada Jin Kushal Suri came from the heaven to satisfy the urge of his devotee. He shew himself standing over a stone. The stone is kept as it is and being worshiped by the devotees. A beautiful Dadabadi is build to pay homage Dada saheb.
It is worth noted that Dada Jin Kushal Suri was an Acharya in Khartargachchha clan of Jain. He is widely worshipped among his devotees all over India and overseas. Hundreds of Dadabadis are built in his name all over India and some places overseas.
View images and Videos of Malpura Dadabadi
Sunday, June 6, 2010
Ban on export of Tanzanite rough
Tanzania government puts ban on the export of Tanzanite rough from Tanzania. The order came to develop cutting and polishing center in Tanzania.
Tanzanite is one of the most beautiful blue colored gemstones. It is a hot selling semi precious stone which resembles Blue sapphire, the precious stone. Tanzanite is found and mined in Tanzania only. Arusha is the main source of Tanzanite rough.
Jaipur, the color stone hub of India has been cutting and polishing Tanzanite since last decade. Jaipur is exporting cut and polished Tanzenite to the US and other countries. This is a major source of export revenue for Jaipur.
Gem dealers of Jaipur are stunt with the order of Tanzanian government. They will face crisis in procuring rough Tanzanite. Gemstone export from Jaipur will likely to be dipped following the incident.
Thanks,
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is also ISO 9000 professional)
Tanzanite is one of the most beautiful blue colored gemstones. It is a hot selling semi precious stone which resembles Blue sapphire, the precious stone. Tanzanite is found and mined in Tanzania only. Arusha is the main source of Tanzanite rough.
Jaipur, the color stone hub of India has been cutting and polishing Tanzanite since last decade. Jaipur is exporting cut and polished Tanzenite to the US and other countries. This is a major source of export revenue for Jaipur.
Gem dealers of Jaipur are stunt with the order of Tanzanian government. They will face crisis in procuring rough Tanzanite. Gemstone export from Jaipur will likely to be dipped following the incident.
Thanks,
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is also ISO 9000 professional)
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Precious,
Semi Precious,
tanzanite
Jai Kumar Baid elected as President of Mahakaushal Murtipujak Jain Sangh
Sri Jai Kumar Ji Baid is elected as President of Mahakaushal Murtipujak Jain Sangh. Sri Jai Kumar Ji Baid belongs to a religious Murtipujak Jain family of Raipur, Chhattisgarh. He had been trained for Jain religion in the Jain religious training camps in the 1960s. He volunteered himself as a trainer of the said Shivirs (Camps) later on.
He is in cloth business.
He devoted his time in teaching Jain religion and philosophy in Mahakaushal and other parts of India such as Kolkata and Jiaganj. I was a student of his Shivir at Jiaganj in 1980.
He had served Mahakaushal Murtipujak Jain Sanghseveral times as executive member and office bearer in the past.
As a tradition Mahakaushal Murtipujak Jain Sangh elect their President and the President himself chose a committee of 31 including Vice President, General Secretary, Joint secretary and a treasurer. Two senior members are co opted as Patrons.
Jai Kumar Ji, in a telecon, told me that he is in process of selecting his committee and nominate the members soon. He has some new plans to take the Sangh ahead. He informed that he will endeavor to build low cost new Jain temples in the remote areas of Mahakaushal.
He is in cloth business.
He devoted his time in teaching Jain religion and philosophy in Mahakaushal and other parts of India such as Kolkata and Jiaganj. I was a student of his Shivir at Jiaganj in 1980.
He had served Mahakaushal Murtipujak Jain Sanghseveral times as executive member and office bearer in the past.
As a tradition Mahakaushal Murtipujak Jain Sangh elect their President and the President himself chose a committee of 31 including Vice President, General Secretary, Joint secretary and a treasurer. Two senior members are co opted as Patrons.
Jai Kumar Ji, in a telecon, told me that he is in process of selecting his committee and nominate the members soon. He has some new plans to take the Sangh ahead. He informed that he will endeavor to build low cost new Jain temples in the remote areas of Mahakaushal.
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