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Sunday, March 13, 2011

परम पूज्या चंद्रप्रभा श्री जी महाराज का चातुर्मास जयपुर में

परम पूज्या  प्रवर्तिनी श्री चंद्रप्रभा श्री जी महाराज का आगामी चातुर्मास जयपुर में  होना निश्चित हुआ है.  आप श्री अपनी शिष्या मंडली सहित जयपुर में आगामी चातुर्मास व्यतीत करेंगी. चातुर्मास के दौरान प्रवर्तिनी महोदया स्वयं विचक्षण भवन (श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छ संघ, जयपुर ) एवं मोती डूंगरी दादाबाड़ी दोनों ही स्थानों पर थोड़े थोड़े दिन विराजेंगी. उनकी शिष्या मंडली भी दोनों ही स्थानों पर रहेंगी.
परम पूज्या प्रवर्तिनी महोदया ने श्री जैन स्वेताम्बर खरतर गच्छ संघ, जयपुर के पदाधिकारियो से बातचीत के समय १० मार्च को मालपुरा में यह निर्णय सुनाया.
आप श्री मालपुरा से बिहार कर आज रेनवाल तक पहुँच चुकी हैं एवं १५ तारीख को सांगानेर दादाबाड़ी पहुचेंगी. १६ मार्च को आप के दीक्षा दिवस के उपलक्ष्य में वहीँ दादागुरुदेव की पूजा पढाई जाएगी. 

Thanks,
Jyoti Kothari

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Thursday, February 3, 2011

मणिप्रभा श्री जी महाराज का जयपुर से विहार कार्यक्रम

परम पूज्या मणिप्रभा श्री जी महाराज का जयपुर से विहार का समय नजदीक आ गया है. आप श्री ७ फरबरी को मोहनबाड़ी, गलता रोड से विहार कर शिवजीराम भवन पधारेंगी. ८ फरबरी को आप शिवजीराम भवन से विहार कर मोती डूंगरी दादाबाड़ी पधारेंगी.

गत वर्ष मई के महीने में पूज्या श्री का जयपुर आगमन हुआ था. तब से अबतक जयपुर में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते रहे हैं. पूज्या श्री का चातुर्मास मालपुरा तीर्थ में सानंद संपन्न हुआ जबकि उनकी ९ शिष्याएं जयपुर में ही विराज रहीं थी. चातुर्मास पश्चात महाराज श्री केकड़ी दादाबाड़ी की प्रतिष्ठा करवाते हुए पुनः जयपुर पधारीं. दिसंबर माह में जयपुर पधार कर उन्होंने दादाबाड़ी में नन्दीश्वर द्वीप की प्रतिष्ठा करवाई.

 ३१ जनवरी को मोहनबाड़ी में आदिनाथ जिन मंदिर का भव्य शिलान्यास कार्यक्रम संपन्न हुआ जिसमे हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया.

मोहनबाड़ी में दादागुरु देव पूजन एवं साधर्मी वात्सल्य रविवार ६ फरवरी को


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Thursday, June 17, 2010

जैन साधू साध्वियों के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि

                                                                                                                  लेखक: ज्योति कुमार कोठारी

चातुर्मास का समय नजदीक आ रहा है. विभिन्न स्थानों के जैन संघ पूज्य साधू साध्विओं के चातुर्मास की व्यवस्था में लगे हैं. लगभग सभी जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास तय हो चुके हैं. इसमें जैन धर्मं के सभी समुदाय श्वेताम्बर, दिगंबर, मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरापंथी सभी सम्मिलित हैं.

ऐसे समय में यह जानना बेहद जरुरी है की जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि क्या है? क्या जो कुछ परंपरागत रूप से हो रहा है वह शास्त्र सम्मत है? अथवा सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है?

दिगंबर परंपरा एवं शास्त्रों के संवंध में मुझे ठीक से पता नहीं है परन्तु श्वेताम्बर समुदाय के सभी वर्गों के लिए शास्त्र आज्ञा  स्पष्ट है. जैन आगमों के अनुसार साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय नहीं हो सकता है. कल्पसूत्र के अनुसार साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के बाद ही घोषित करते हैं.
पहले से चातुर्मास तय होने पर श्रावक गण उपाश्रय  या तत्सम्वंधित स्थानों पर मरम्मत, रंगाई, पुताई आदि जो भी काम करते हैं वो चातुर्मास के निमित्त होता है. ऐसे में उन सभी आरंभ समारंभ का दोष चातुर्मास करने वाले साधू साध्विओं को लगता है. ऐसी स्थिति में उनका प्रथम प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) व्रत  खंडित होता है.

अतः शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है की साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास पहले से घोषित न करें.

जैन आगमों के अनुसार साधू साध्वी गण चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहने के लिए श्रावक संघ से प्रार्थना करते हैं. श्रावक संघ अथवा कोई व्यग्तिगत रूप से साधू साध्विओं की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें रहने का स्थान उपलब्ध करवा दे तो साधू साध्वी वहां पर ठहर सकते हैं एवं अपना चातुर्मास व्यतीत कर सकते हैं. यदि गृहस्थ उन्हें स्थान देना स्वीकार न करे तो वे अन्यत्र विहार कर जाते हैं.

आज इस शास्त्र आज्ञा से विपरीत स्थिति प्रचलन में आ चुकी है.  आज श्रावक संघ साधू साध्विओं से चातुर्मास हेतु प्रार्थना करते हैं. प्रायः संघ के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो कर बस , ट्रेन या हवाई जहाज से दूर दराज क्षेत्र में रहे हुए साधू साध्विओं से चातुर्मास की विनती करने जाते हैं. ऐसा देखने में आता है की साधू साध्वी गण भी बहुत बार ऐसी स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं. प्रायः बहुत मन मनुहार एवं अनेको वार विनती करने पर ही साधू साध्वी गण चातुर्मास की स्वीकृति देते हैं. इस तरह से संघ का बहुत समय व धन का अपव्यय होता है, साथ ही आरम्भ समारंभ भी होता है.

विचारणीय बिंदु ये है की  जब शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है की साधू साध्वी गण चातुर्मास में ठहरने के स्थान के लिए गृहस्थों से स्थान की याचना करे, तब उससे विपरीत क्यों श्रावक संघ उनसे प्रार्थना करने जाता है? साधू साध्वी गण भी क्यों निरंतर इस स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं?

जैन आगमों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट रूप से सामने आती है की साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय होना शिथिलाचार को बढाने में मुख्य हेतु है.

समस्त आचार्य एवं उपाध्याय भगवंतों एवं पूज्य साधू साध्विओं से निवेदन है की इस स्थिति के संवंध में पुनर्विचार करें एवं शास्त्र (आगम) आज्ञा के अनुसार व्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करें. श्रावक संघ भी जागरूक बन  कर इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे. 


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Wednesday, September 9, 2009

अजीमगंज दादाबाडी में खात मुहूर्त व शिलान्यास भाग १

अजीमगंज दादाबाडी का खात मुहूर्त शिलान्यास दिनांक अक्तूबर २००९ को होने जा रहा है। अजीमगंज की प्राचीन दादाबाडी को पुरी तरह जमिन्दोज़ कर नए सिरे से निर्माण कराये जाने की योजना है।
इस विषय में अजीमगंज शहरवाली समाज में काफी विवाद है जिसके वारे में मैंने पिछले लेख में भी लिखा था। उसके बाद से मेंरे पास लगातार फ़ोन रहे हैं एवं लोग अपने अपने मत व्यक्त कर रहे हैं।

जैन धर्म के अनुसार चातुर्मास में किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य का प्रायः निषेध किया जाता है। क्योंकि इस दौरान जीवोत्पत्ति अधिक होती है। लेकिन इस दादाबाडी को चातुर्मास के दौरान ही तोड़ने का एवं इसके बाद खात मुहूर्त व शिलान्यास का कार्यक्रम रखा गया है। काफी लोग इस बात से नाराज हैं एवं इसका विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा शिलान्यास का मुहूर्त आश्विन शुक्ला पूर्णिमा को रखा गया है। यह दिन नवपद ओली का आखरी दिन है एवं इस दिन अजीमगंज में नवपद मंडल की पूजा वर्षों से होती आ रही है। मंडल जी की पूजा का अजीमगंज जिआगंज के शहरवाली समाज में बहुत महत्व है।

एक ही दिन में दो महत्व पूर्ण कार्यक्रम होने से लोग असमंजस में है।

कुछ लोग इस बात पर भी रोष जाहिर कर रहे हैं की दादाबाडी में भैरव जी के उत्थापन जैसा अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्यक्रम बिना किसी विधिकारक के संपन्न करवाया गया है। रामबाग के भैरव जी की पुराने समय से बहुत अधिक मान्यता रही है। मन्दिर परिशर में स्थापित भैरव जी के उत्थापन के समय अनेकों विघ्न पुराने समय में भी आये थे एवं समर्थ पुरुषों के द्वारा ही उस विघ्न का निवारण हो पाया था। ज्ञातव्य है की भैरव जी के उत्थापन से प्रायः विधिकारक गण भी डरते हैं और इस काम को करने में हिचकिचाते हैं। ऐसी स्थिति में किसी अनजान व्यक्ति से यह काम करवाना उस व्यक्ति को खतरे में डालने जैसा हो सकता है

इतने बड़े निर्माण कार्य को करवाने से पहले उसका नक्शा बनवाना एवं संघ की सभा में उसे पारित करवाना आवश्यक था। साथ ही उसका बजट बनवाना भी आवश्यक था। बातचीत में निर्माण की लागत कभी ७० लाख तो कभी से डेढ़ करोड़ बताई जाती है परन्तु वास्तविकता क्या है पता नहीं। लोगों का कहना है की इन गंभीर अनियमितताओं के होते हुए दादाबाडी को जमिन्दोज़ करवाना कतई उचित नही है।

मेरा अजीमगंज समाज के ट्रस्टी गणों से निवेदन है की लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस पुरे कार्यक्रम पर नए सिरे से विचार कर उचित निर्णय लें।

अजीमगंज दादाबाडी में खात मुहूर्त व शिलान्यास भाग

जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
जिन मन्दिर एवं वास्तु



प्रस्तुति:
ज्योति कोठारी

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Monday, July 6, 2009

साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी का अजीमगंज में चातुर्मास प्रवेश

१ जुलाई २००९ को साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी का अजीमगंज में चातुर्मास प्रवेश महोत्सव पूर्वक हुआ। प्रातः ७ बजे बिस्कुट फैक्ट्री से जुलुश बैंड बाजे सहित रवाना हुआ । सभी लोग परंपरागत शहरवाली पोशाक में थे। चुन्नटदार धोती, केशरिया कुरता व दुपट्टा मन को मोह रहा था। श्री शांतिनाथ स्वामी के मन्दिर में दर्शन करते हुए जुलुश आगे बढ़ा। हर घर के बाहर साध्वी मंडल के स्वागत में बैनर लगा था। हर घर में गहुली कर उनका स्वागत किया गया। बंगाली समाज की औरतें भी स्वागत में पीछे नही थी। वे शंख ध्वनि कर उनके आगमन पर हर्ष व्यक्त कर रहीं थीं।

श्री नेमिनाथजी के पंचायती मन्दिर
में सामूहिक दर्शन व चैत्यवंदन कर साध्वी श्री ने उपाश्रय में प्रवेश किया व सभी को मंगलिका प्रदान किया। उसके बाद जुलुश पुरे जैन पट्टी की परिक्रमा कर फाटक होते हुए सिंघी सदन पहुँचा जहाँ पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया।

सर्व प्रथम साध्वीजी ने मंगलाचरण किया. उसके बाद महिला मंडल, अजीमगंज के द्वारा स्वागत गीत गाया गया. स्थानीय एवं बाहर से पधारे हुए विशिष्ट अतिथिओं को मंच पर आसीन कराया गया एवं उनका बहुमान किया गया। अजीमगंज संघ के मंत्री श्री सुनील चोरडिया ने स्वागत भाषण दिया। अखिल भारतीय खरतर गच्छ महासंघ के अध्यक्ष श्री पदम चंद नाहटा, सम्मेत शिखर तीर्थ के अध्यक्ष श्री कमल सिंह रामपुरिया, कलकत्ता बड़े मन्दिर के मानद मंत्री श्री कांतिलाल मुकीम, मुर्शिदाबाद संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री शशि नवलखा, श्री ज्ञान चंद लुनावत, श्री महेंद्र परख, टाटानगर के श्री कमल वैद, बालाघाट की श्रीमती नीता लुनिया आदि ने भी सभा को संवोधित किया।
कलकत्ता के स्वनाम धन्य गायक श्री सुरेन्द्र बेगानी ने अपने भजन से सभी को आह्लादित किया। उनके अलावा मनिचंद बोथरा, मोहित बोथरा, किशोर सेठिया अदि ने भी भजन प्रस्तुत किया। साध्वी श्री के गुरुपूजन का लाभ श्रीमती कुसुमदेवी चोरडिया परिवार ने लिया.
अतिथिओं का स्वागत अजीमगंज श्री संघ के अध्यक्ष श्री शीतल चंद बोथरा, मुर्शिदाबाद संघ के अध्यक्ष श्री ज्योति कोठारी आदि ने अतिथिओं का माल्यार्पण कर, तिलक लगा कर, व स्मृति चिह्न भेंट कर स्वागत किया.
सभा को साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री जी व साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी ने भी मंगल प्रवचन से लाभान्वित किया. अंत में साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी के मंगलाचरण के साथ सभा का समापन हुआ.

कार्यक्रम का संचालन जयपुर के श्री ज्योति कोठारी ने किया।
सभा के बाद साधर्मी वात्सल्य का आयोजन हुआ।

जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि


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Paryushana
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