राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे |
राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने चौतरफा विरोध को देखते हुए प्रस्तावित लोकसेवक संशोधन विधेयक 2017 को पुनर्विचार हेतु वापस लेकर एक अच्छा कदम उठाया है. सरकारी कर्मचारियों के प्रति एक आम धारणा है की वे निकम्मे व भ्रष्ट हैं. स्वतंत्रता के बाद के ७० वर्षों की उनकी कार्यशैली ने इस धारणा को लगातार पुष्ट किया है. एक के बाद एक सात पे कमीशन (सातवां वेतन आयोग) के माध्यम से लगातार उनके वेतन, भत्ते एवं सुविधाओं में लगातार हो रही वृद्धि को भी सामान्य जन अपने ऊपर एक बोझ के रूप में ही देखते हैं. सरकारी कर्मचारी चाहे राज्य सरकार का हो अथवा केंद्र सरकार का सभी की स्थिति एक जैसी है. इसमें हम रक्षा विभाग के अंतर्गत कर्मचारियों को अपवाद स्वरुप देख सकते हैं जिन्हे जनता आज भी सन्मान की दृष्टि से देखती है.
सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार एवं निकम्मेपन के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है उन्हें मिलनेवाली कानूनी सुरक्षा कवच. यद्यपि अपने कर्त्तव्य को निभाने के लिए कुछ आवश्यक रक्षा कवच की उन्हें भी आवश्यकता है परन्तु इसका अत्यधिक दुरूपयोग जनता की आँखों की किरकिरी हो चुकी है. अंग्रेज सरकार ने भारतीयों को गुलाम बनाये रखने के लिए सरकारी कर्मचारियों का जमकर दुरूपयोग किया और उन्हें क़ानूनी सुरक्षा कवच दे कर उन्हें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया. उसी कोलोनियल तंत्र का आज के इस प्रजातंत्र के युग में भी बने रहना दुर्भाग्य का ही विषय है.
इस क़ानूनी सुरक्षा कवच के कारण सरकारी कर्मचारियों पर किसी तरह की कानूनी कार्यवाही करना काफी कठिन काम हो जाता है. प्रायः राज्य और केंद्र सरकारें इन निकम्मे और भ्रष्ट कर्मचारियों को दण्डित करने के स्थान पर उन्हें बचाने का ही काम करती है. इसलिए ये कर्मचारी जनता के प्रति अपने उत्तर दायित्व को निभाने की जगह अपने राजनैतिक आकाओं को खुश करने में लगे रहते हैं और पिसती है बेचारी जनता. आखिर इन कर्मचारियों के वेतन-भत्ते एवं अन्य सुविधाओं का इंतज़ाम जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गए कर (Tax) से ही होता है!
पहले से ही दिए गए क़ानूनी सुरक्षा कवच में इस संशोधन के जरिये और भी बढ़ोतरी की जा रही थी. इस सम्वन्ध में २-३ माह पहले ही अध्यादेश ला कर राजस्थान की भाजपा सरकार ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी थी. परन्तु इस विधेयक के खिलाफ विपक्षी कांग्रेस ने पुरजोर आवाज उठाई। यहाँ तक की सत्ता पक्ष के कुछ विधायकों जैसे सांगानेर के विधायक घनश्याम तिवाड़ी एवं बीकानेर के मानक चन्द सुराणा ने भी इसके विरोध में बोलना शुरू किया. समाचार माध्यमों ने भी इस विषय को पुरजोर तरीके से उठा कर इसे जनता का मुद्दा बना दिया. ऐसी स्थिति में मजबूर हो कर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आज इस विधेयक पर पुनर्विचार करने की घोषणा करनी पड़ी.
यद्यपि विपक्षी कांग्रेस ने अभी इस विधेयक का विरोध किया है परन्तु ७० वर्षों तक इस प्रकार के विधेयक को केंद्र एवं राज्य सरकारों में बनाये रखने का पाप कांग्रेस ने ही किया है. यह तो बात ऐसी हुई की सौ चूहे खा कर बिल्ली को है को चली! अब समय है जनता के जागरूक होने का और जागरूक जनता ही सरकारी कर्मचारियों को सही रस्ते पर ला सकती है.
अतः जागो जनता जागो! अतः जागो जनता जागो! अतः जागो जनता जागो! अतः जागो जनता जागो!
Thanks,
Jyoti Kothari
Vardhaman Infotech
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