सिलामी व व्याह भाग 1 से आगे :
उस समय शादी कम उमर में ही हो जाती थी लेकिन लड़की पियर में ही रहती थी। थोडी बड़ी होने के बाद (मुख्यतः मासिक धर्मं होने के बाद) लड़की को बिदा किया जाता था एवं उसके बाद ही लड़की ससुराल जाती थी। पीहर से बिदा होने की यह रश्म सावन के महीने में ही होती थी इसलिए इसे सावन मोकलाई कहते थे। मोकलाई का अर्थ मारवाडी भाषा में भेजना होता है।
अजीमगंज के बड़े मन्दिर में एक खाता रखा जाता था जिसे केसरिया व्रत का खाता कहते थे। इस खाते में शादी से संवंधित सभी बातें दर्ज की जाती थी। इसमें वर वधु के नाम, माता-पिता, पता आदि सभी बातें दर्ज होती थी। शादी के अवसर पर लड़के वालों से एक निश्चित शुल्क ले कर ही इस खाते में नाम दर्ज किया जाता था। उस राशि में मन्दिर, गुरूजी (यती जी), मन्दिर के पुजारी अदि सभी का हिस्सा होता था। एक प्रकार से यह विवाह की रजिस्ट्री होती थी।
शादी के बाद विदा करते समय लड़की को डोली में बैठा कर भेजा जाता था। इस डोली को झपानक कहते थे। उस समय की औरतें एवं लड़कियां अक्सर झपानक में ही कहीं आया जाया करती थीं। साधारण स्थिति वाले लोगों के यहाँ झपानक नहीं होने पर कोठियों मंगवा लिया जाता था। कुछ समय पूर्व तक राजवाडी (राजा विजय सिंह जी दुधोरिया) में एक झपानक था।
विशेष द्रस्टव्य: ये सारी जानकारी मुझे श्री अशोक सेठिया से मिली है एवं इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ।
यदि आपके पास भी अजीमगंज-जियागंज शहरवाली समाज के वारे में कोई जानकारी हो तो हमें लिखना न भूलें। उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित किया जाएगा।
सिलामी व व्याह भाग 1
प्रस्तुति:
वर्धमान जेम्स
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बुधवार, 29 जुलाई 2009
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