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Friday, September 4, 2020

सामायिक व चैत्यवंदन करना सीखें: शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध विधि पूर्वक भाग 2

 

संध्या कालीन सामायिक लेने व पारने की विधि खरतरगच्छीय परम्परानुसार 

सर्व प्रथम एकांत स्थान में शरीर शुद्धि कर शुद्ध वस्त्र पहन कर अपने सन्मुख उच्च स्थान पर स्थापनाचार्य जी विराजमान करें. साथ  चरवला, मुँहपत्ती व आसन (कटासना) रखें. इसके बाद दाहिने हाथ को स्थापना जी की तरफ कर स्थापन मुद्रा में  तीन बार नवकार मन्त्र बोलें. 

नवकार मंत्र  

णमो अरहंताणं,
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्‍झायाणं,
णमो लोए सव्‍वसाहूणं ।१।

एसो पंच णमुक्‍कारो, सव्‍व पावप्‍पणासणो।
मंगलाणं च सव्‍वेसिं, पढम हवई मंगलं।२।

इसके बाद तेरह बोल से स्थापनाचार्य जी की पडिलेहना करें. 

स्थापनाचार्य जी पडिलेहण के १३ बोल 

१ शुद्ध स्वरुप धारें २ ज्ञान ३ दर्शन ४ चारित्र सहित ५ सद्दहणा शुद्धि ६ प्ररूपणा शुद्धि  ७ स्पर्शना शुद्धि सहित ८ पांच आचार पाले ९ पलावे १० अनुमोदे ११ मनोगुप्ति १२ वचन गुप्ति १३  कायगुप्ति आदरे।  

तत्पश्चात दो बार खमासमण सूत्र बोलते हुए पाँचों आग झुका कर (दो घुटने, दो हाथ, मस्तक) खमासमण दें. 
मत्थएण वंदामि।
इच्छकार भगवन, सुहराई! (सुहदेवसी) सुखतप शरीर-निराबाध! सुख संजम जात्रा निर्वहते होजी? स्वामी साता छे जी?
अब फिर से एक खमासमण देकर मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।  

मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक लेवा मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ? 
इच्छं। 

अब उकडू बैठ कर निम्न ५० (२५+२५) बोलों से मुँहपत्ती का पडिलेहण करें. 

मुँहपत्ती पडिलेहण के २५  बोल

१ सूत्र अर्थ तत्व करि सद्दहुँ २ सम्यक्त्व मोहनीय ३ मिश्र मोहनीय ४ मिथ्यात्व मोहनीय परिहरूं ५ कामराग ६ स्नेहराग ७ दृष्टि राग परिहरूं।
८ सुदेव ९ सुगुरु १० सुधर्म आदरुं ११ कुदेव १२ कुगुरु १३ कुधर्म परिहरूं।
१४ ज्ञान १५ दर्शन १६ चारित्र आदरुं १७ ज्ञान विराधना १८ दर्शन विराधना १९ चारित्र विराधना परिहरूं।
२० मनोगुप्ति २१ वचनगुप्ति २२ कायगुप्ति आदरुं २३ मनोदण्ड २४ वचन दण्ड २५ कायदण्ड परिहरूं।

अंग पडिलेहण के २५  बोल

१ हास्य २ रति ३ अरति परिहरूं। (बाँया हाथ पडिलेहते हुए बोलें)
४ भय ५ शोक ६ जुगुप्सा  (दाहिना हाथ पडिलेहते हुए बोलें)
७ कृष्ण लेश्या ८ नील लेश्या ९ कापोत लेश्या परिहरूं।  (मस्तक पडिलेहते हुए बोलें)
१० रिद्धि गारव ११ रस गारव १२ साता गारव परिहरूं। (मुँह पडिलेहते हुए बोलें)
१३ माया शल्य १४ नियाण शल्य १५ मिथ्यादर्शन शल्य परिहरूं। (ह्रदय/वक्ष स्थल पडिलेहते हुए बोलें)
१६ क्रोध १७ मान परिहरूं  (दाहिना कन्धा पडिलेहते हुए बोलें)
१८ माया १९ लोभ परिहरूं।  (बाँया कन्धा पडिलेहते हुए बोलें)
२० पृथ्वीकाय २१ अपकाय २२ तेउकाय कि जयणा करूँ।  (दाहिना घुटना व पैर पडिलेहते हुए बोलें)
२३ वाउकाय २४ वनष्पति काय २५ त्रसकाय कि जयणा करूँ। (बाँया घुटना व पैर पडिलेहते हुए बोलें)

(यहाँ पुरुष पुरे २५ बोल बोलें, स्त्रियां मस्तक, ह्रदय  कन्धों का पडिलेहण न करें एवं इससे सम्वन्धित ७ कृष्ण लेश्या ८ नील लेश्या ९ कापोत लेश्या परिहरूं। १३ माया शल्य १४ नियाण शल्य १५ मिथ्यादर्शन शल्य परिहरूं। 
१६ क्रोध १७ मान परिहरूं १८ माया १९ लोभ परिहरूं। ये दश बोल न  बोलें, इसके अतिरिक्त बाकी के १५ बोल से ही पडिलेहण करें।
 
अब फिर से एक खमासमण देकर निम्नरूप से सामायिक आदेश लेवें। 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक संदिसाहुँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक ठाउँ?
इच्छं।

कहकर तीन नवकार मन्त्र का स्मरण करें. तत्पश्चात-

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी सामायिक दण्डक उच्चरावो जी! 

कहकर गुरु महाराज या किसी बड़े से सामायिक दण्डक सूत्र उच्चरें। यदि अकेले हों तो स्वयं ही खड़े हो कर, आधा अंग झुका कर तीन बार करेमी भंते सूत्र बोलें । 

सामायिक दण्डक सूत्र 

करेमि भंते! सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चक्खामि।
जाव नियमं पज्जुवासामि। 
दुविहं-तिविहेणं, 
मणेणं, वायाए, कायेणं,
न करेमि, न कारवेमि, 
तस्स भंते ! पडिक्कमामि, 
निंदामि, गरिहामि,अप्पाणं वोसिरामि।

अब फिर से एक खमासमण देकर खड़े खड़े 

इरियावहियं सूत्र 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन्‌।
इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं, 
इच्छामि पडिक्कमिउं ॥१॥ 

इरियावहियाए-विराहणाए ॥२॥
गमणागमणे ॥३॥
पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग पणग दग-मट्टी मक्कडा-संताणा संकमणे ॥४॥
जे मे जीवा विराहिया ॥५॥
एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया ॥६॥
अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया।
जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥७॥

तस्स उत्तरी सूत्र 

तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं, 
विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं।

अण्णत्थ सूत्र 

अण्णत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं,
जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए ॥१॥
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥२॥
एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउसग्गो ॥३॥
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥४॥
ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥

बोलकर एक लोगस्स अथवा ४ नवकार का काउसग्ग करें. 
"णमो अरहंताणं" बोलकर काउसग्ग पारकर प्रगट लोगस्स कहें।  

लोगस्स सूत्र 

लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे ।
अरिहंते कित्तइस्सं, चऊवीसं पि केवली ॥१॥ 

उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥

कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥

फिर से एक खमासमण देकर  मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।  

मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पच्चक्खाण लेवा मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ? 
इच्छं। 

अब उकडू बैठ कर मुँहपत्ती पडिलेहण कर दो बार वांदना देवें. 

|| सुगुरु वन्दना सूत्र || 

इच्छामि खमा-समणो ! 
वंदिउं जावणिज्जाए, निस्सिहिआए ,
अणुजाणह मे मिउग्गहं, निस्सिहि,
अहो-कायं-काय संफासं, खमणिज्जो भे ! किलामो ?
अप्प-किलंताणं बहु-सुभेण भे ! दिवसो वइक्कंतो ?
जत्ता भे ? जवणिज्जं च भे ? खामेमि खमा-समणो !
देवसिअं वइक्कमं, आवस्सिआए पडिक्कमामि, खमासमणाणं, देवसिआए आसायणाए तित्तीसन्नयराए 
जं किंचि मिच्छाए,
मण-दुक्कडाए, वय-दुक्कडाए, काय-दुक्कडाए, 
कोहाए, माणाए, मायाए, लोभाए, 
सव्व-कालिआए, सव्व-मिच्छो-वयराए,
सव्व-धम्माइ-क्कमणाए 
आसायणाए जो मे अइयारो कओ,
तस्स खमा-समणो ! पडिक्कमामि,
निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि. 

इस सूत्र को दो  द्वादशावर्त वंदन करें।  दूसरी बार में देवसिअं वइक्कमं, आवस्सिआए पडिक्कमामि ....  के स्थान पर आवस्सिआए न बोलें; इस प्रकार बोलें देवसिअं वइक्कमं, पडिक्कमामि .... 

पच्चक्खाण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पच्चक्खाण करूँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पसाय करी पच्चक्खाण करावो जी!

इच्छं।

कहकर गुरु महाराज से अथवा स्वयं यथाशक्ति पच्चक्खाण करें. यदि उपवास, आयम्बिल. एकासना, वियासना आदि कोई भी तप  किया हो तो पाणाहार का अन्यथा  रात्रिकालीन चौविहार अथवा दुविहार का  पच्चक्खाण करें। 

अब फिर से एक खमासमण देकर

सज्झाय आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सज्झाय संदिसाहुँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सज्झाय करूँ?
इच्छं। 

कहकर हाथ जोड़ कर ८ नवकार मन्त्र का स्मरण करें. 

अब फिर से एक खमासमण देकर

बेसणो आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! बेसणो संदिसाहुँ?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! बेसणो ठाउँ?
इच्छं।

अब चरवले से जमीन का प्रमार्जन कर आसन बिछा कर बैठ जाएँ।

यदि शीतादि कारणवश अतिरिक्त वस्त्र, कम्बल आदि की आवश्यकता हो तो फिर से एक खमासमण देकर

पंगुरण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पंगुरण संदिसाहुँ?  
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! पंगुरण पडिग्गहूं?
इच्छं।

कहकर अतिरिक्त वस्त्रादि ग्रहण करें. 

यहाँ पर खरतरगच्छीय परंपरा अनुसार संध्या कालीन सामायिक लेने की विधि पूरी हुई। अब देवसी प्रतिक्रमण करें अथवा दो घडी अर्थात ४८ मिनट तक स्वाध्याय, ध्यान, जप, स्तोत्र पाठ आदि धर्मध्यान में समता पूर्वक व्यतीत करें. राई प्रतिक्रमण पूर्ण होने पर अथवा ४८ मिनट हो जाने पर सामायिक पारने की विधि करें।  

सामायिक पारने की विधि 

यदि सामायिक काल में संघट्टा आदि दोष लगा हो, सावद्य वस्तुओं का स्पर्श हुआ हो, गलती से भी बिजली आदि का उपयोग हो गया हो, इस प्रकार किसी भी तरह से कोई हिंसा हुई हो तो इस प्रकार इरियावहियँ करें। अन्यथा सीधे सामायिक पारने की विधि करें। 

एक खमासमण देकर खड़े खड़े 
तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेणं, 
उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमइं च ।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥

सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस-वासुपूज्जं च ।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ॥३॥

कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥

एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय-मला, पहीण-जर-मरणा ।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा में पसीयंतु ॥५॥

कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु ॥६॥

चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥

अब सामायिक पारने हेतु फिर से एक खमासमण देकर मुँहपत्ती पडिलेहण का आदेश लें।  

मुँहपत्ती पडिलेहण आदेश 

इच्छाकारेण संदिसह भगवन!  मुँहपत्ती पडिलेहण करूँ? 
इच्छं। 

कहकर मुँहपत्ती का पडिलेहण करें। 
अब फिर से एक खमासमण देकर

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक पारुं?
इच्छं।

इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सामायिक पारेमी ?
इच्छं। 

कहकर हाथ जोड़कर तीन नवकार मन्त्र का स्मरण करें. इसके बाद मस्तक झुका कर दाहिना हाथ चरवले पर रखकर बोलें. 

सामायिक भावना गाथा (भयवं दसण्ण भद्दो)

भयवं दसण्ण भद्दो, सुदंसणो थूलभद्द वयरो य, सफलिकय गिह चाया, साहू एवं विहा हुंती।  
साहूण वंदणेण नासई पावं असंकिया भावा, फासुअ दाणे निज्जर, अभीग्गहो णाण माईणं।    

छउमत्थो मूढ़मणो, कित्तिय मित्तं पि जीवो, जं च न सम्भरामि अहं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स।  
सामाइय पोसह संठियस्स, जीवस्स जाइ जो कालो, सो सफलो वोधव्वो, सेसो संसार फल हेउ।  

सामायिक विधि से लिया, विधि से किया, विधि से करते अविधि आशातना लगी हो, दश मन के, दश वचन के, बारह काया के बत्तीस दूषणों में से जो कोई दूषण लगा हो वह सब मन वचन काया करके तस्स मिच्छामि दुक्कडं।    

अब दाहिना हाथ अपनी तरफ कर उत्थापन मुद्रा में तीन नवकार मन्त्र स्मरण करें. 

(खरतर गच्छ परंपरा अनुसार सामायिक पारने की विधि सम्पूर्ण।)


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Thanks, 
Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional

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