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शुक्रवार, 8 मार्च 2024

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), जैन साधु साध्वी एवं जैन समाज Part 2

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जैन साधु साध्वी एवं जैन समाज- इसी नाम से ६ वर्ष पहले एक ब्लॉग लिखा था. यह ब्लॉग आज और अधिक प्रासंगिक हो गया है. इसलिए इस ब्लॉग का भाग २ लिखने का मन हो गया. उपरोक्त लिंक पर क्लीक कर लेख का प्रथम भाग पढ़ सकते हैं. 

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की व्यवस्थाओं से जैन संघों को बहुत कुछ सीखना चाहिए. किस प्रकार मात्र 2500 प्रचारकों के सहारे यह एक राष्ट्रव्यापी संगठन का सञ्चालन करता है. यह संगठन पुरे भारत में एक सांस्कृतिक सामाजिक परिवर्तन का वाहक भी है. देश को दो-दो प्रधानमंत्री एवं अन्य अनेक समर्पित राजनेता देनेवाले इस संगठन की विशेषताएं अपना कर जैन संघ एवं जैन समाज भी राष्ट्रहित में अपना बड़ा योगदान दे सकता है.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एवं जैन समाज की व्यवस्थाओं में अनेक समानताएं हैं. जिस प्रकार जैन समाज जैन संघ के रूप में जाना जाता है उसी प्रकार यह भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या केवल संघ के नाम से जाना जाता है. जिस प्रकार जैन संघ की व्यवस्था गृहत्यागी साधु साध्वी एवं गृहस्थ श्रावक श्राविका के माध्यम से होती है उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की व्यवस्था भी गृहत्यागी प्रचारक एवं गृहस्थ स्वयंसेवक आदि के माध्यम से होता है. इस प्रकार देखा जाये तो दोनों में ही सारी व्यवस्था गृहस्थ एवं गृहत्यागी रूपी दो पहियों पर टिकी है. 

भगवान महावीर 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की प्राथमिक इकाई स्वयंसेवक है. इन्ही स्वयंसेवकों में से कोई गृहस्थ जीवन का त्याग कर पूर्णकालिक प्रचारक बन जाता है, कुछ लोग गृहस्थ जीवन में रहते हुए विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का सर्वोच्च दायित्व सर-संघचालक का होता है, जो की एक प्रचारक होते हैं. सभी प्रचारक, अन्य क्षेत्रीय संघचालक, कार्यवाह एवं सभी स्वयंसेवक सर-संघचालक के निर्देशों का पालन करते हैं. सर-संघचालक का पद जैन संघ के "युगप्रधान" आचार्य जैसा होता है, जो सभी अन्य आचार्यों, साधु-साध्वियों के नायक होते हैं एवं सम्पूर्ण श्रावक श्राविका संघ भी उनकी आज्ञा का पालन करता है. 

अन्य प्रचारक गण आचार्य/ साधुओं के सामान होते हैं जो अपना गृहत्याग कर संघ के कार्यालयों या अन्य गृहस्थियों के घर में आवश्यकतानुसार निवास करते हैं एवं उन्हीके माध्यम से अपनी सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं.  अन्य सभी संघचालक, कार्यवाह आदि गृहस्थ होते हैं एवं अपने अपने गृहस्थ धर्मों का पालन करते हुए राष्ट्रसेवा के कार्य में तत्पर रहते हैं. ये ठीक उसी प्रकार है जैसे अग्रणी जैन श्रावक अपने गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए जैन संघ के विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हैं. सामान्य स्वयंसेवक सामान्य श्रावकों की भांति होते हैं जो गृहस्थ रहते हुए अपने धर्म का पालन करते हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव वलिराम हेडगेवार


 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना आज से 100 वर्ष पूर्व सन 1925 में केशव वलिराम हेडगेवार ने की थी उस समय से लेकर अब तक अनेक उतार चढ़ावों के बाबजूद यह निरंतर प्रगति करता हुआ आज विश्व के अग्रिम संगठनों में से एक है. इसकी विशेषता ये है की स्थापना से लेकर आज तक अनेक समयोचित परिवर्तन के बाबजूद इसके मूल सिद्धांत एवं मूल व्यवस्थाओं में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. यह संघ अपनी आस्था एवं सिद्धांतों में आज भी अटल है. अपने 2500 प्रचारक एवं करोड़ों स्वयंसेवकों के माध्यम से यह संस्था राष्ट्रसेवा के कार्य में निरंतर गतिमान है. 

प्रवचन देते हुए जैन साधु 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की तुलना यदि जैन संघ से करें तो अनादिकालीन जैन संघ की वर्त्तमान व्यवस्था भगवान महावीर से प्रारम्भ हुई इसलिए इसे प्रभु महावीर का शासन कहा जाता है. जैन संघ की विशेषता भी ये ही है की स्थापना से लेकर आज तक 2500 वर्ष बीतने पर भी अनेक समयोचित परिवर्तन के बाबजूद इसके मूल सिद्धांत एवं मूल व्यवस्थाओं में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. जैन संघ भी अपनी आस्था एवं भगवान् महावीर के सिद्धांतों में आज भी अटल है. वर्त्तमान में जैन संघ लगभग 18000 गृहत्यागी पूज्य साधु साध्वी भगवंतों के निरंतर बिहार से गतिमान है. जैन संघ के भी श्रावक- श्राविका रूप करोड़ों गृहस्थ अनुयायी आज भी भगवान् महावीर के अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और अनेकांत के सिद्धांतों का पालन करते हैं. 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एवं जैन समाज के सिद्धांतों एवं व्यवस्थाओं में अनेक समानताएं हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं जैन समाज दोनों ही समानता के सिद्धांत में आस्था रखता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूजन पद्धति में विविधताओं के बाबजूद हिंदुत्व की एकता में विश्वास रखता है. इसी प्रकार यह संगठन अश्पृश्यता एवं जातिवाद में विश्वास नहीं रखता. इसी प्रकार जैन संघ में भी विभिन्न मत हैं जो की अलग अलग प्रकार से धर्मनुष्ठान करते हैं. साथ ही जैन धर्म मूलतः जातिप्रथा का विरोधी है एवं जैन समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र का कोई वर्गीकरण नहीं है. 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना को 100 वर्ष हो गए हैं और यह बिना किसी विभाजन के अपने मूल स्वरुप में एकीकृत रूप से  विद्यमान है. जबकि वर्त्तमान का जैन संघ भगवान महावीर के हाथों से स्थापित एवं 2500 वर्षों से अधिक प्राचीन है. वर्त्तमान में जैन संघ श्वेताम्बर-दिगंबर इन दो भागों में विभाजित है एवं इनमे धार्मिक अनुष्ठानों/ क्रियायों को लेकर कुछ मतभेद भी हैं परन्तु मूल सिद्धांतों में कोई अंतर नहीं है. यहाँ यह उल्लेखनीय है की भगवान महावीर के 170 वर्ष बाद तक सम्पूर्ण जैन संघ एकीकृत रूप से अपने मूल रूप में विद्यमान रहा था. अंतिम श्रुत केवली भद्रवाहु स्वामी के बाद ही संघ में विभाजन प्रारम्भ हुआ. विभाजन के उपरांत भी सभी अपने आप को जैन मानते हैं और परष्पर विवाहादि सम्बन्ध सामाजिक रूप से स्वीकार्य है. 

भद्रवाहु स्वामी के चरण 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, एवं सेवाकार्यों के लिए जाना जाता है. इसी प्रकार जैन संघ समाज भी अपनी राष्ट्रभक्ति, जैनत्व एवं सेवाकार्यों के लिए प्रख्यात है. शायद ही कभी कोई जैन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त पाया गया है. पुरे विश्व में मानव मात्र ही नहीं अपितु प्राणी मात्र की सेवा में जैन समाज सदा समर्पित रहता है. भारत भर में जैन समाज द्वारा स्थापित हज़ारों विद्यालय, महाविद्यालय, चिकित्सालय, भोजनशाला, धर्मशाला, आदि इसके प्रमाण हैं. रक्तदान, नेत्रदान एवं देहदान में भी जैन समाज अन्य समाजों की अपेक्षा अधिक रूचि रखता है और इन सेवा कार्यों में भी अग्रणी है. 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्राणियों में मुख्य रूप से गोमाता की सेवामे विश्वास रखता है एवं इसके लिए संस्था का अपना एक विभाग भी है. जबकि जैन संघ गोमाता के साथ अन्य प्राणियों की सेवा में भी तत्पर रहता है. जैन संघों द्वारा संचालित हज़ारों पांजरापोल, गोशाला, ऊंटशाला, पक्षीशाला आदि प्रत्यक्ष गवाही देते हैं. 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एक विभाग विश्व हिन्दू परिषद् का एक अंग है मांस निर्यात विरोध परिषद्।  यह संगठन भारत से मांस निर्यात एवं यांत्रिक कत्लखानों का विरोध करता है. भारतीय प्राणी मित्र संघ सहित अनेक जैन संगठन भी निरंतर मांस निर्यात एवं यांत्रिक कत्लखानों के विरोध में सक्रीय रहते हैं.  


गोवंश की दुर्दशा 

इस सम्बन्ध में जैन समाज की एक विशेषता का उल्लेख कर उसे शेष हिन्दू समाज से भी अपनाने का निवेदन करता हूँ. जैन संघ द्वारा आयोजित किसी भी विशिष्ट महापूजन, प्रतिष्ठा, अंजन शलाका आदि अवसरों पर जीवदया के लिए आवश्यक रूप से अलग से धनराशि एकत्रित की जाती है, जिसका उपयोग केवल मात्र जीवदया के लिए ही किया जाता है. इस राशि का उपयोग अन्यत्र कहीं भी नहीं किया जा सकता ऐसी व्यवस्था का कठोरता से पालन किया जाता है. इस प्रकार प्रतिवर्ष अरबों रुपये की राशि एकत्रित होती है जिससे हज़ारों पांजरापोल, गोशाला, ऊंटशाला, पक्षीशाला को आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है. यदि शेष हिन्दू समाज भी अपने मंदिरों में ऐसी व्यवस्था अपना ले तो गोशालाओं के लिए कभी आर्थिक संकट नहीं हो सकता. 


Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, at Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional)

, जैन साधु साध्वी

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