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इस दादाबाडी में तीन दादागुरुओं के साथ ही पंचम काल के अंत में होने वाले अन्तिम युगप्रधान आचार्य श्री दुप्पह सूरी के भी चरण हैं। ये चारों नयनाभिराम चरण स्फटिक रत्न से बने हुए हैं।
इस काम के संवंध में शहरवाली समाज में एक मत नहीं है। जहाँ कुछ लोग यह काम करवाना चाहते हैं वहीँ बड़ी संख्या में लोग इस के विरोध में भी हैं। विरोधी लोगों का मत है की दादाबाडी का सामान्य रूप से जीर्णोद्धार करवाना ही काफी है। अब अजीमगंज में बहुत कम लोग रहते हैं। दादाबाडी शहर से दूर होने के कारण बहुत कम लोग ही वहां पहुचते हैं। ऐसी स्थिति में इस जगह पर इतना पैसा लगाने का औचित्य नहीं है। उनका मानना है की इस पैसे का बेहतर उपयोग हो सकता है।
रामबाग परिसर में दो तालाव भी है। अभी कुछ दिन पूर्व किसी वास्तुकार ने सलाह दी की इन्हे बंद करवा दिया जाए। इस बात को ले कर भी गहरे मत भेद है। कुछ लोग इस सलाह पर अमल करना चाहते हैं लेकिन कुछ लोगों का मानना है की इसमे बहुत अधिक जीव हिंसा होगी जो की जैन सिद्धांत के ख़िलाफ़ है। साथ ही तालाव बंद करवाना राज्य के कानून के भी ख़िलाफ़ है। लोगों का यह भी कहना है की जिस समय यह तालाव बना था तब अजीमगंज बहुत समृद्ध था तो फिर इसमें वास्तु दोष कैसे हो सकता है?
जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
दादाबाडी का प्राचीन चित्र
सौजन्य बिकास छाजेड
प्रस्तुति:सौजन्य बिकास छाजेड
ज्योति कोठारी