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Tuesday, January 31, 2012

शहरवाली समाज के हिंदी वेब पन्नों की सूचि

 

शहरवाली समाज के हिंदी वेब पन्नों की सूचि  

मैंने इस ब्लॉग में अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ का प्रयोग किया है. कुछ लोग हिंदी पढना पसंद करते हैं तो कुछ लोग अंग्रेजी. कुछ वातें हिंदी में ही लिखना सुविधाजनक भी होता है जैसे रीति रिवाज़ से संवंधित बातें. कुछ चीजें हिंदी में ही लिखी जा सकती है जैसे पहेलियां. इन वातों को ध्यान में रखते हुए एवं अलग अलग भाषा के पाठकों को देखते हुए हिंदी एवं अंग्रेजी दोनो भाषाओँ का प्रयोग किया गया है. 

 

दोनों ही प्रकार के पाठकों को ध्यान में रखते हुए इस ब्लॉग को लिखा जाता रहा है. जो लोग हिंदी पढना पसंद करते हैं उनलोगों के सुविधार्थ यहां हिंदी वेब पन्नों की सूचि दी जा रही है. मुर्शिदाबाद एवं शहरवाली समाज को जानने के लिए ये पन्ने उपयोगी हो सकते हैं. कृपया निचे दिए गए लिंक्स पर क्लीक करें. 

 

मुर्शिदाबाद में आम की किस्में

 

शहरवाली समाज में आम खाने की कला

 

अजीमगंज जियागंज में नीमस, पीठा और मेवा सलोनी खिचड़ी खाने का मौसम

 

मुर्शिदाबाद की विरासत बचाने का प्रयास: मुर्शिदाबाद हेरिटेज डेवलपमेंट सोसायटी

 

अजय बोथरा एवं रविन्द्र श्रीमाल तुलापट्टी, पंचायती मंदिर कोलकाता के लिए निर्वाचित

 

अजीमगंज श्री नेमी नाथ स्वामी स्तवन

 

अजीमगंज दादाबाडी में खात मुहूर्त व शिलान्यास भाग 2

 

अजीमगंज दादाबाडी में खात मुहूर्त व शिलान्यास भाग १

 

अजीमगंज दादाबाडी में भैरव जी का उत्थापन

 








कुछ रीति रिवाज़: जापा और जनम 
With regards,
Jyoti Kothari
(N.B. Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)


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With regards, Jyoti Kothari (N.B. Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)

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Friday, January 14, 2011

हिंदी वेब पन्नों की सूचि

मैंने इस ब्लॉग में अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ का प्रयोग किया है. कुछ लोग हिंदी पढना पसंद करते हैं तो कुछ लोग अंग्रेजी. दोनों ही प्रकार के पाठकों को ध्यान में रखते हुए इस ब्लॉग को लिखा जाता रहा है. जो लोग हिंदी पढना पसंद करते हैं उनलोगों के सुविधार्थ यहां हिंदी वेब पन्नों की सूचि दी जा रही है. मुर्शिदाबाद एवं शहरवाली समाज को जानने के लिए ये पन्ने उपयोगी हो सकते हैं. कृपया निचे दिए गए लिंक्स पर क्लीक करें.

 

 

मुर्शिदाबाद में आम की किस्में

शहरवाली समाज में आम खाने की कला

मुर्शिदाबाद की विरासत बचाने का प्रयास: मुर्शिदाबाद हेरिटेज डेवलपमेंट सोसायटी

अजय बोथरा एवं रविन्द्र श्रीमाल तुलापट्टी, पंचायती मंदिर कोलकाता के लिए निर्वाचित

अजीमगंज श्री नेमी नाथ स्वामी स्तवन

अजीमगंज दादाबाडी में खात मुहूर्त व शिलान्यास भाग 2

अजीमगंज दादाबाडी में खात मुहूर्त व शिलान्यास भाग १

अजीमगंज दादाबाडी में भैरव जी का उत्थापन








कुछ रीति रिवाज़: जापा और जनम 
 
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Jyoti Kothari
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Monday, December 27, 2010

मुर्शिदाबाद में आम की किस्में

मुर्शिदाबाद में आम की अनेक किस्में पाई जाती है. आम की इतनी किस्में और कहीं भी नहीं मिलती. बहुत से आम तो ऐसे हैं जो की और कहीं भी नहीं पाई जाती है. कहा जाता है की यहाँ आम की पांच सौ से ज्यादा किस्मे होती थी. सौ डेढ़ सौ किस्में तो मैंने भी देखी  है.

यहाँ के आमों में "कोहीतुर" सबसे महंगा और शानदार होता है. इसे रूई में रख कर पकाया जाता था. कोहीतुर के अलावा विमली, सारंगा, चंपा, जूही चंपा, गुलाब ख़ास, सुंदरी,  सादोल्ला (हिमसागर), काला पहाड़, मुलायम जाम, अनारस, भवानी, रानी, बीड़ा, पांजा आदि आम भी प्रसिद्ध है. यहाँ के आम अलग अलग फलों के स्वाद एवं अलग अलग फूलों के सुगंध लिए हुए होते हैं. फाजली आम बहुत ही बड़ा होता है तो अनारस बहुत छोटा. सारंगा आम बहुत मीठा होता है लेकिन अनारस खट्टा मीठा. चंपा आम चंपा फूल की खुसबू समाये रखता है और मुलायम जाम में जामुन का स्वाद पाया जाता है.

इसके अलावा यहाँ का कचमिट्ठी  आम भी प्रसिद्ध है. यहं आम कच्चे में भी मीठा होता है. इसे भी शहरवाली लोग बहुत शौक से खाते हैं.

आप को अगर आम की अन्य किस्मों के बारे में जानकारी हो तो कृपया मुझे सूचित करें या कमेंट्स बॉक्स में लिखने की कृपा करें.

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With regards,
Jyoti Kothari 
 (N.B. Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)

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शहरवाली समाज में आम खाने की कला

मुर्शिदाबाद आमों के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ जितने प्रकार के आम मिलते हैं उतने और कहीं नहीं. यहाँ के नवाबों व रईसों ने आम की अनेक स्वादिष्ट एवं सुगन्धित किस्में विकसित करवाई. यहाँ के आम बड़े नाजुक किस्म के होते हैं. शहरवाली  समाज आमों का बड़ा शौकीन था व आज भी है. यहाँ आम खाना एक कला के रूप में विकसित हो गया था. सिर्फ आम खाना ही नहीं परन्तु आम को तैयार करना भी एक कला था.

आम को पेड़ों से यूँ ही नहीं तोडा जाता था. आम तोड़ने में भी नजाकत थी. इसके लिए एक लम्बे बांस एवं हंसिया ( धारदार ) .का  उपयोग  किया  जाता  था. हंसिये के ठीक नीचे बांस में एक छिका बंधा होता था. पेड़ से टूटने पर आम उस छिके में आ जाता था. छिके का प्रयोग आम को जमीं पर गिरने से बचाने के लिए होता था. आम को पेड़ से कच्चा ही तोडा जाता था. उन आमों को फिर एक टोकरी में सजाया जाता था व बीच बेच में आम के पत्ते डाल दिए जाते  थे जिससे एक आम को दुसरे आम से रगड़ न लगे. रगड़ लगने से आम दागी हो जाता था.

टोकरी में रख कर आमों को घर लाया जाता था और उसे बड़ी हिफाज़त से पकाया जाता था. सामान्यतः आमों को लकड़ी के पाटे पर पत्तों के ऊपर एक एक कर बिछा देते थे एवं उसके ऊपर फिर से पत्ते ढक देते थे. समय समय पर उन आमों को ऊपर नीचे पलता जाता था जिससे वो आम चरों तरफ से बराबर व सही तरीके से पक सके. पके हुए आमों को कई घंटों तक पानी में भिगो कर रखते थे जिससे उसके अन्दर की गर्मी निकल जाये. इस क्रिया से आम स्वास्थ्य वर्धक व स्वादिस्ट एवं शीतल हो जाता था.

शहरवालिओं को आम छिलने में महारत हासिल थी. आम को पहले एक तरफ से छिला जाता था. छिलने के बाद आम के गुदे के ऊपर चक्कू से निशान बनाया जाता था व उसके बाद उसे बनाया जाता था. एक तरफ से आम के फांक निकल लेने के बाद ही उसे दूसरी तरफ से छिला जाता था. इस से आम काला नहीं पड़ता था व उसकी सुन्दरता बनी रहती थी.

परंपरागत रूप से घर के बड़े व मर्दों को गुठली नहीं दी जाती थी. प्रायः कर के घर के बच्छे गुठली चुसना पसंद करते थे या फिर उसका अमरस बनाने में उपयोग कर लिया जाता था.

आम के मौसम में नाते रिश्तेदारों के यहाँ आम भेजने की भी प्रथा थी. इस प्रकार एक दुसरे के यहाँ आमों का आदान प्रदान भी होता था. अपनी अपनी हैसियत के अनुसार कम या ज्यादा आम भेजे जाते थे.

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Jyoti Kothari
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Monday, July 6, 2009

साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी का अजीमगंज में चातुर्मास प्रवेश

१ जुलाई २००९ को साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी का अजीमगंज में चातुर्मास प्रवेश महोत्सव पूर्वक हुआ। प्रातः ७ बजे बिस्कुट फैक्ट्री से जुलुश बैंड बाजे सहित रवाना हुआ । सभी लोग परंपरागत शहरवाली पोशाक में थे। चुन्नटदार धोती, केशरिया कुरता व दुपट्टा मन को मोह रहा था। श्री शांतिनाथ स्वामी के मन्दिर में दर्शन करते हुए जुलुश आगे बढ़ा। हर घर के बाहर साध्वी मंडल के स्वागत में बैनर लगा था। हर घर में गहुली कर उनका स्वागत किया गया। बंगाली समाज की औरतें भी स्वागत में पीछे नही थी। वे शंख ध्वनि कर उनके आगमन पर हर्ष व्यक्त कर रहीं थीं।

श्री नेमिनाथजी के पंचायती मन्दिर
में सामूहिक दर्शन व चैत्यवंदन कर साध्वी श्री ने उपाश्रय में प्रवेश किया व सभी को मंगलिका प्रदान किया। उसके बाद जुलुश पुरे जैन पट्टी की परिक्रमा कर फाटक होते हुए सिंघी सदन पहुँचा जहाँ पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया।

सर्व प्रथम साध्वीजी ने मंगलाचरण किया. उसके बाद महिला मंडल, अजीमगंज के द्वारा स्वागत गीत गाया गया. स्थानीय एवं बाहर से पधारे हुए विशिष्ट अतिथिओं को मंच पर आसीन कराया गया एवं उनका बहुमान किया गया। अजीमगंज संघ के मंत्री श्री सुनील चोरडिया ने स्वागत भाषण दिया। अखिल भारतीय खरतर गच्छ महासंघ के अध्यक्ष श्री पदम चंद नाहटा, सम्मेत शिखर तीर्थ के अध्यक्ष श्री कमल सिंह रामपुरिया, कलकत्ता बड़े मन्दिर के मानद मंत्री श्री कांतिलाल मुकीम, मुर्शिदाबाद संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री शशि नवलखा, श्री ज्ञान चंद लुनावत, श्री महेंद्र परख, टाटानगर के श्री कमल वैद, बालाघाट की श्रीमती नीता लुनिया आदि ने भी सभा को संवोधित किया।
कलकत्ता के स्वनाम धन्य गायक श्री सुरेन्द्र बेगानी ने अपने भजन से सभी को आह्लादित किया। उनके अलावा मनिचंद बोथरा, मोहित बोथरा, किशोर सेठिया अदि ने भी भजन प्रस्तुत किया। साध्वी श्री के गुरुपूजन का लाभ श्रीमती कुसुमदेवी चोरडिया परिवार ने लिया.
अतिथिओं का स्वागत अजीमगंज श्री संघ के अध्यक्ष श्री शीतल चंद बोथरा, मुर्शिदाबाद संघ के अध्यक्ष श्री ज्योति कोठारी आदि ने अतिथिओं का माल्यार्पण कर, तिलक लगा कर, व स्मृति चिह्न भेंट कर स्वागत किया.
सभा को साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री जी व साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी ने भी मंगल प्रवचन से लाभान्वित किया. अंत में साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी के मंगलाचरण के साथ सभा का समापन हुआ.

कार्यक्रम का संचालन जयपुर के श्री ज्योति कोठारी ने किया।
सभा के बाद साधर्मी वात्सल्य का आयोजन हुआ।

जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि


See Video:

Paryushana
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Thursday, December 25, 2008

शहरवाली पोषाक


शहरवाली समाज की अपनी एक अलग पोषाक है। चुन्नटदार धोती, कुर्ता, शाल व पगडी। यहाँ की पगडी भी विशेष प्रकार की होती है। शाल ओढ़ने का अलग ही अंदाज़ है। अजीमगंज के प्रसिद्ध दुगड़ परिवार के गौतम जी दुगड़ शहरवाली पोषाक में यहाँ दिख रहे हैं.

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Friday, December 19, 2008

अजीमगंज शहरवाली साथ का खाना

कुछ ख़ास मिठाइयाँ: मालपुआ, छुआरे की गोली, जमाओ, मोतीचूर (मिहिदाना) के लड्डू, बोडे का बुंदिया, सांकली,गुड का खाजा , चीनी का खाजा, ठेकुआ, मेथी का लड्डू, सोंठ का लड्डू, घाल का लड्डू, चिट्ठा पेडा, सत्तू का लड्डू, कोंढे का मुरब्बा, आदि कुछ मिठाइयाँ वहां की विशेषता है। चावल के लड्डू जिसे नन्द्याल कहते थे वह नवपद जी की ओली में चढाने के लिए बनता था। इस के अलावा और बहुत सी मिठाईया भी बनती है जो common है।
वहां का पीठा और नीमस भी बहुत प्रसिद्ध है। पके आम का पापड और चुरा सिर्फ़ यहीं बनता है.

ख़ास नमकीन: मोयन की पुडी, कलाई की कचोडी आदि वहां की कुछ ख़ास नमकीन है। वहां की खीरे व कमल गट्टे की कचोडी, छाते (कमल गट्टा) की खिचडी, सिंगाड़ा-दही की खिचडी, सलोनी मेवे की खिचडी, भापिया आदि भी प्रसिद्ध है। बिना नमक की मठरी जिसे खाजली कहते थे वह भी ओली जी में चढाने के लिए बनता था।

सब्जी (तरकारी) : इन्डल, डूबकी का झोल, राइ खट्टे का परवल, खट्टा मीठा, पपीते व केले का दबदबा, खीरे की राडी, कच्चे केले की राडी, कद्दू बूट का दाल, खीरा बूट का दाल, कच्चे केले एवं परवल का अकरा, दही की तरकारी, मटर के दाल का चुरा, कटहल के बीज की चटनी व कद्दू एवं कच्चे केले के छिलके की सब्जी भी बनती है। खीरे के छिलके की चटनी एवं मटर के छिलके की सब्जी यहीं की खासियत है। यहाँ अम्बल पानी बनता है जिसे खिचडी के साथ खाया जाता है। पके कट्वेल की चटनी बहुत अच्छी लगती है.

आचार व मुरब्बे : सामान्य आचारों के अलावा यहाँ की कुट्टी मिर्ची विश्व प्रसिद्ध है। बोर की राडी और टिकिया एवं कट्वेल का पाचक भी बहुत स्वादिस्ट होता है।
आम का मुरब्बा बहुत तरह का बनता था जिसमे फकिया, लच्छा, व गोलिया प्रसिद्ध है। छुहारे का मुरब्बा भी बनता था।

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कुछ निराले शहरवाली नाम

अजीमगंज के शहरवाली समाज में कुछ निराले नाम प्रचलित थे । इस प्रकार के नाम और कहीं भी देखने में नहीं आते हैं । कुछ नाम जो मुझे याद है उन्हें यहाँ पर लिख रहा हूँ। यदि आप लोगों को ऐसे कोई भी नाम और मालुम हो तो मुझे लिखने का कष्ट करें। अजीमगंज-जिआगंज-मुर्शिदाबाद के शहरवाली साथ के बारे में और भी कुछ जानकारी आप के पास हो तो जरूर मुझे बताएं। धन्यवाद।
नामावली:
पुरूष: घोंता, हुत्तु, नाडू, बेटा बाबु, नत्थू, गोलू, गोल, लोंदु, पोदु, खुद्दु, बुढा, फुचुआ, फत्तू, फुत्तुस, छेदु, चुलू, टुलू, उदु, सुदु, दुदू, कुमरू, हामू, झामू, बाह्जी, जर्मन, जापानी, हाबू, बाबू बच्चा, मिस्टर बाबू, पीला बाबू, लाल बाबू, नया बाबु, खोली भट्टाम, सिंटू, मिंटू, चीनी बाबू, लाली बाबू, बाबू राजा, बन्नू बाबू, तन्नु बाबू, लाख दो लाख।

स्त्री: लाडा, पाडा, पुप्पी, लोजेंस, बाण मति, मोंचुरिया, बीबी, रुबू, हांसी, छोटी मुन्नी, रानी मुन्नी, नन्ही मुन्नी, फुच्ची, नन्ही फुच्ची, खेंतो.

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