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Wednesday, January 29, 2025

भारतीय नववर्ष: एक विवेचन


भारत एक प्राचीन संस्कृति एवं परंपराओं का देश है, जहाँ नववर्ष को कई रूपों में मनाया जाता है। भारतीय नववर्ष केवल एक तिथि परिवर्तन नहीं, बल्कि इसे धार्मिक, खगोलीय, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

नववर्ष विक्रम सम्वत 2082

आगामी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (एकम) से विश्वावसु नामक विक्रम सम्वत 2082 का प्रारंभ होने जा रहा है। भारतीय संवत्सर चक्र के अनुसार यह 36वां संवत्सर है। यह चांद्र वर्ष का प्रारंभ ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 30 मार्च, 2025 को होगा। विक्रम संवत का प्रारंभ 57 ईसा पूर्व हुआ था। अतः अंग्रेजी वर्ष में 57 जोड़ने पर विक्रम संवत की गणना हो जाती है। इसमें इतना ध्यान रखने योग्य है कि भारतीय नववर्ष से पूर्व तक 56 और उसके बाद 57 जोड़ने पर सही संवत आ जाता है।

A modern depiction of Vikramaditya in  Ujjain. Photo Credit: NehalDaveND, Wikipedia Commons

भारतीय नववर्ष की अवधारणा

भारत में नववर्ष का निर्धारण हिंदू पंचांग (कैलेंडर) के आधार पर किया जाता है। यह मुख्य रूप से विक्रम संवत, शक संवत और विभिन्न क्षेत्रीय पंचांगों के अनुसार मनाया जाता है। वर्तमान में भारतीय नववर्ष का आरंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माना जाता है, जो वसंत ऋतु में आता है। इस संवत्सर का प्रवर्तन महान भारतीय सम्राट विक्रमादित्य ने किया था, इसलिये इसे विक्रम संवत भी कहा जाता है। यह दिन खगोलीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसी समय सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तथा चंद्रमा भी एक नए चक्र की शुरुआत करता है।

प्राचीन काल में श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से भी नववर्ष प्रारंभ होने का उल्लेख मिलता है। इसे वर्षा ऋतु के प्रारंभ से जोड़ा जाता है। उस समय इस संवत्सर को तीन चातुर्मासों में विभाजित किया जाता था। आज हम जिसे चातुर्मास कहते हैं, जिसमें ऋषि-मुनि विशेष तपस्या करते हैं, खासकर जैन साधु-साध्वी एक ही स्थान पर रहकर आराधना करते हैं, वह वर्षा चातुर्मास होता है। इसके अतिरिक्त शीत एवं ग्रीष्म चातुर्मास होते हैं। यह ऋतु आधारित व्यवस्था है।

भारतीय नववर्ष के प्रकार

भारत में विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नववर्ष मनाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  • विक्रम संवत – यह संवत राजा विक्रमादित्य द्वारा प्रारंभ किया गया था और उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रचलित है।

  • शक संवत – यह संवत राजा शालिवाहन द्वारा प्रारंभ किया गया था और भारत सरकार द्वारा आधिकारिक पंचांग में अपनाया गया है। यह सौर वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 22 मार्च (लिप ईयर में 21 मार्च) से प्रारंभ होता है और इसका प्रथम मास चैत्र होता है।

  • तमिल नववर्ष (पुथांडु) – तमिल कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है। यह सौर वर्ष का प्रारंभ है और प्रायः 14 अप्रैल से प्रारंभ होता है।

  • तेलुगु और कन्नड़ नववर्ष (उगादि) – आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में मनाया जाता है। यह भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है।

  • महाराष्ट्रीयन नववर्ष (गुड़ी पड़वा) – महाराष्ट्र में प्रमुखता से मनाया जाता है। यह भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है।

  • केरल का नववर्ष (विशु) – मलयालम पंचांग के अनुसार विशु पर्व मनाया जाता है। यह सौर वर्ष का प्रारंभ होता है।

  • बंगाली नववर्ष (पोइला बैसाख) – बंगाल में बैसाख माह में मनाया जाता है। यह सौर वर्ष का प्रारंभ होता है।

  • पंजाबी नववर्ष (बैसाखी) – यह सिख समुदाय और पंजाब के किसानों द्वारा मनाया जाता है। यह भी सौर वर्ष का प्रारंभ है।

  • ओड़िया नववर्ष (महाविषुव संक्रांति) – उड़ीसा में मनाया जाता है। यह भी सौर वर्ष का प्रारंभ है।

  • सिंधी नववर्ष (चेटीचंड) – सिंधी समाज में भगवान झूलेलाल के जन्मदिन पर नववर्ष मनाया जाता है। यह भारतीय नववर्ष के अगले दिन अर्थात चैत्र शुक्ल द्वितीया से प्रारंभ होता है।

संवत्सर चक्र और 60 संवत्सर नाम

भारतीय पंचांग में संवत्सर का विशेष महत्व है। यह चंद्र-सौर गणना के आधार पर 60 वर्षों का चक्र होता है, जिसे 'संवत्सर' कहा जाता है। नव ग्रहों में देवगुरु बृहस्पति का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। बृहस्पति ग्रह एक वर्ष में एक राशि में रहते हैं। इस प्रकार 12 वर्षों में वे अपना एक खगोलीय चक्र पूरा करते हैं। ऐसे 5 चक्र अथवा आवर्त से संवत्सर का एक चक्र पूरा होता है जो 60 वर्षों का होता है।

प्रत्येक संवत्सर का एक विशिष्ट नाम होता है, जो पुनः 60 वर्षों के बाद दोहराया जाता है। ये नाम इस प्रकार हैं:

  1. प्रभव

  2. विभव

  3. शुक्ल

  4. प्रमोद

  5. प्रजापति

  6. आंगिरस

  7. श्रीमुख

  8. भाव

  9. युव

  10. धात्री

  11. ईश्वर

  12. बहुधान्य

  13. प्रमाथी

  14. विक्रमी

  15. वृष

  16. चित्रभानु

  17. सुवर्ण

  18. तरुण

  19. पार्थिव

  20. व्यय

  21. सर्वधारी

  22. विरोधी

  23. विकृति

  24. खरोद

  25. नंदन

  26. विजय

  27. जय

  28. मनमथ

  29. दुर्मुखी

  30. हेमलम्बी

  31. विलम्बी

  32. विकारी

  33. शार्वरी

  34. प्लव

  35. शुभकृत

  36. शोभकृत

  37. क्रोधी

  38. विश्वावसु (संवत 2082)

  39. पराभव

  40. प्लवंग

  41. कीलक

  42. सौम्य

  43. साधारण

  44. विरोधकृत

  45. परिधावी

  46. प्रमाधी

  47. आनंद

  48. राक्षस

  49. नल

  50. पिंगल

  51. कालयुक्त

  52. सिद्धार्थी

  53. रौद्र

  54. दुर्मति

  55. दुन्दुभी

  56. रुधिरोद्गारी

  57. रक्ताक्षी

  58. क्रोधन

  59. अक्षय

  60. अनंत

निष्कर्ष

भारतीय नववर्ष न केवल एक तिथि परिवर्तन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ पर्व है। संवत्सर चक्र के आधार पर आने वाले प्रत्येक वर्ष का एक विशेष प्रभाव होता है, जिससे समाज, पर्यावरण और जीवनशैली प्रभावित होती है। भारतीय नववर्ष का स्वागत उत्साह, श्रद्धा और उमंग के साथ किया जाता है, जो हमारी प्राचीन संस्कृति की समृद्धि और जीवंतता को दर्शाता है।

Thanks, 

Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, to Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional)

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