स्वर्गीया श्रीमती कुसुम कुमारी कोठारी , धर्मपत्नी, स्वर्गीय श्री धीरेन्द्र पत जी कोठारी की प्रथम पुण्य तिथि आज जयपुर में मनाई गई। श्रीमती कुसुम कुमारी कोठारी का स्वर्गवास गत वर्ष आज ही के दिन ३१ जुलाई २००८ को ह्रदय रोग से जयपुर में हुआ था। उस समय आप ७९ वर्ष की थीं।
श्रीमती कुसुम कुमारी का जन्म कोलकाता के स्वनाम धन्य राय बद्रीदास बहादूर मुकीम परिवार में इस्वी सन १९३० में हुआ था।
कोल्कता के प्रसिद्ध पारसनाथ मन्दिर के निर्माता एवं वाइस रोय के जौहरी राय बद्रीदास बहादुर के ज्येष्ठ पुत्र श्री राय कुमार सिंह आप के दादा व श्री फ़तेह कुमार सिंह मुकीम आप के पिता थे। आप का ननिहाल रिंगनोद, मालवा के प्रसिद्ध रावले में था। आप की माँ का नाम श्रीमती सज्जन कुमारी था।
(Johari Sath Blog)
बचपन से ही आप में परिवार के अनुरूप धार्मिक संस्कार थे। उस काल में भी आपने अंग्रेजी एवं संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी। आप वीणा व हारमोनियम बजाया करती थीं।
आप का विवाह अजीमगंज के पानाचंद नानकचंद कोठारी परिवार में श्री कमलापत कोठारी के पौत्र व श्री चंद्रपत कोठारी के कनिष्ठ पुत्र श्री धीरेन्द्र पत कोठारी से सन १९४६ में संपन्न हुआ। आपके प्रमिला, उर्मिला, निर्मला, शीला व सुजाता नाम की पाँच पुत्रियाँ व ज्योति नाम का एक पुत्र हुआ जिनमे निर्मला का देहांत बचपन में ही हो गया था। अभी आपकी चार पुत्रियाँ व एक पुत्र मौजूद हैं। आपकी दौहित्री (नतनी) व शीला लोढा की पुत्री ने साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी के पास (१९९८) अल्पायु में दीक्षा ग्रहण की थी। वे आज साध्वी श्री श्रद्धान्विता श्री जी के नाम से जानी जाती हैं। साध्वी श्री श्रद्धान्विता श्री, शीला व सुजाता तीनो ने ही इस वर्ष वर्षी तप का परना पलिताना में किया।
९ सितम्बर १९७९ को श्री धीरेन्द्र पत कोठारी के अल्पायु में देहावसान के बाद पुरे परिवार की जिम्मेदारी आप पर आ गई जिसे उन्होंने बखूबी निभायी । साथ ही अपना जीवन पुरी तरह से धर्म ध्यान में समर्पित कर दिया। आप प्रतिदिन जिन पूजा के अलावा चार- पाँच सामायिक किया करती थीं। दृढ़ता पूर्वक एक आसन में बैठ कर जप करना आप को बहुत प्रिय था। आपने अपने जीवन में पालिताना, सम्मेत शिखर, आबू, गिरनार, पावापुरी, राजगृह, कुण्डलपुर, चम्पापुर, नाकोडा, नागेश्वर, मांडव गढ़, अजमेर, मालपुरा, महरोली आदि सैंकडों तीर्थों की यात्राएं कर पुण्य उपार्जित किया। अजीमगंज में प्रसिद्ध नवपद ओली की आराधना आप जीवन पर्यंत करती रहीं। इसके अलावा आपने वीस स्थानक, मौन ग्यारस, ज्ञान पंचमी आदि अन्य अनेक तपस्चर्यायें भी की। आपने शत्रुंजय तीर्थ की निन्याणु यात्रा भी की।
आज हमारी माँ हमारे बीच में नहीं हैं परन्तु उनकी यादें व उनके दिए हुए धार्मिक संस्कार आज भी हमारा मार्ग दर्शन करती है। हम उनके सभी बच्चे यही प्रार्थना करते हैं की वे जहाँ हैं वहीँ से हमें आशीर्वाद प्रदान करती रहें।
ज्योति कोठारी, पुत्र,
ममता कोठारी, पुत्रवधू, दर्शन, पौत्र, जयपुर
प्रमिला पालावत, पुत्री, कोलकाता
उर्मिला बोथरा, पुत्री, आगरा
शीला लोढा, पुत्री, दिल्ली
सुजाता पारख, पुत्री, रायपुर
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Friday, July 31, 2009
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