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Tuesday, February 15, 2011

टोंक फाटक श्री महावीर स्वामी मंदिर में ध्वजारोहण

टोंक फाटक श्री महावीर स्वामी मंदिर एवं दादाबाड़ी में ध्वजारोहण का कार्यक्रम १4 फरबरी को  सानंद संपन्न  संपन्न हुआ. इस अवसर पर श्री महावीर स्वामी मंदिर में सत्रह भेदी पूजा पढाई गई एवं मंदिर में  ध्वजा चढ़ाई गई.

श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छ संघ, जयपुर की और से सम्पूर्ण कार्यक्रम आयोजित किया गया. विधि विधान श्री प्रेमचंद श्रीश्रीमाल ने संपन्न करवाया.
Thanks,
Jyoti Kothari

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Sunday, October 3, 2010

खोह मंदिर में वार्षिकोत्सव संपन्न

आज खोह मंदिर में वार्षिकोत्सव संपन्न हुआ. इस उपलक्ष्य में वहां प्रातः सत्रह भेदी पूजा पढाई गई. यह प्राचीन पूजा विविध राग रागिनिओं पर आधारित है. श्री मानक चंद गोलेछा एवं श्रीमती मनीषा राक्यान ने सुन्दर तरीके से यह पूजा पढ़ाई.  परम  पूज्या  साध्वी  श्री मणिप्रभा श्री जी की सुशिष्याओं का सान्निध्य भी इस कार्यक्रम में प्राप्त हुआ. इस कार्यक्रम में  बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया.
संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री मानक चंद गोलेछा, उपाध्यक्ष श्री राजेंद्र कुमार छाजेड, कोषाध्यक्ष श्री मोहन लाल डागा, सांस्कृतिक मंत्री श्री राजेंद्र भंसाली आदि संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी गण इस अवसर पर वहां मौजूद थे.
इस  अवसर  पर  मंदिर के शिखर के ऊपर ध्वजा भी चढ़ाई गई. ध्वजा चढाने की बोली श्री  गौतम बोथरा ने ली.
सम्पूर्ण विधि विधान विधिकारक प्रेम चंद श्रीश्रीमाल द्वारा संपन्न कराइ गई.

सत्रह भेदी पूजा के बाद साधर्मी वात्सल्य का आयोजन हुआ.

इसके पूर्व कल दिनांक २ अक्टूबर को इसी मंदिर में अठारह अभिषेक करवाया गया. इसका विधि विधान भी विधिकारक प्रेम चंद श्रीश्रीमाल द्वारा संपन्न कराया  गया.

यह संपूर्ण कार्यक्रम श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ द्वारा आयोजित किया गया. खोह मंदिर के व्यवस्थापक श्री अशोक बुरड का कार्यक्रम को सफल बनाने में सराहनीय योगदान रहा.

यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है की श्री सुपार्श्वनाथ स्वामी मंदिर, खोह जयपुर का प्राचीनतम जैन मंदिर है. जिसका अभी जीर्णोद्धार कराया जा रहा है.
मानचित्र, खोह मंदिर

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Thursday, July 16, 2009

सत्रह भेदी पूजा

सत्रह भेदी पूजा १६ वीं सदी के जैन कवि श्री साधू कीर्ति की संगीतमय रचना है। भारतीय मार्ग संगीत की इतनी उत्कृष्ट कोटि की कोई दूसरी रचना जैन भक्ति साहित्य में उपलब्ध नहीं है। यह हिन्दी में लिखी गई सब से प्राचीन जैन पूजा भी है। साधू कीर्ति अकबर प्रतिवोधक चौथे दादा साहब श्री जिन चंद्र सूरी के आज्ञा अनुयायी थे। वे श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय के खरतर गच्छ आम्नाय के थे। संवत १६१८ ( ईश्वी सन १५६२) में अनहिलपुर में उन्होंने इस पूजा की रचना की थी। साधू कीर्ति प्रख्यात गायक हरिदास, बैजू बाबरा व तानसेन के समकालीन थे। तत्कालीन भारतीय मार्ग संगीत की उत्क्रिषटता सत्रह भेदी पूजा में परिलक्षित होती है। इस पूजा में अनेक रागों का प्रयोग किया गया है। पूजा की भूमिका राग सरपदी में है जबकि पहली न्हवन पूजा में राग देसाख, सारंग व मल्हार का प्रयोग हुआ है। दूसरी विलेपन पूजा राग रामगिरी एवं विलावल में है व इसका दोहा राग ललित में गाया जाता है। तीसरी वस्त्र युगल पूजा राग गौडी व वैराडी में है। चौथी वासक्षेप पूजा का दोहा भी राग गौडी में लिखा गया है। इस पूजा का प्रथम चरण राग सारंग में है तथा दूसरा चरण राग गौडी व पूर्वी का मिश्रण है। पांचवीं पुष्पारोहन पूजा राग कामोद व कानडा में गाया जाता है। छठी मलारोहन पूजा का दोहा राग आशावरी में तथा पूजा का प्रथम चरण रामगिरी गुर्जरी राग में है। दूसरा चरण फिर से राग आशावरी में ही है। सातवीं वर्ण पूजा केदारी गौडी व राग भैरवी में है। आठवीं गंधवटी पूजा का प्रारम्भ दोहे के स्थान पर सोरठे से किया है एवं पूजा में राग सोरठ व सामेरी का प्रयोग किया गया है। नवमी ध्वज पूजा में वस्तु छंद का उपयोग किया है जिसे राग मेघ गौडी में गाया गया है। पूजा का दूसरा चरण राग नटटनारायण में है। दसवीं आभरण पूजा का दोहा राग केदार में गाया जाता है व पूजा का प्रथम चरण राग अधवास या गूढ़ मल्हार में। पूजा का दूसरा चरण पुनः राग केदार में ही है। ग्यारहवीं फूलघर पूजा का पहला चरण रामगिरी कौतकिया में जबकि दूसरा चरण शुद्ध रामगिरी में है। वाराहवी पुष्प वर्षा के दोहे को वर्षा से संवंधित राग मल्हार में पिरोया गाया है तथा इसका पहला चरण गूढ़ मिश्र मल्हार का प्रतिनिधित्व करता है। पूजा का दूसरा चरण भी मल्हार की ही एक अन्य जाति भीम मल्हार में गुम्फित है। तेरहवीं अष्ट मांगलिक पूजा कल्याण कारक होने से इसका दोहा राग कल्याण में लिया है। पूजा का दूसरा चरण भी कल्याण राग में ही है जबकि पहला चरण वसंत राग में। चौदहवीं धुप पूजा राग विलावल व राग मालवी गौडी में है। पंद्रहवीं पूजा गीत पूजा है जिसमे पहले आर्यावृत्त छंद में संस्कृत की रचना है व दुसरे चरण को श्री राग में प्रस्तुत किया गया है। सोलहवीं नाटक पूजा प्राकृत भाषा के शार्दुल विक्रीडित छंद से प्रारम्भ होता है जिसे राग शुद्ध नट में गाने का निर्देशन है। पूजा का अगला चरण राग नट त्रिगुण में है। सत्रहवीं वाजित्र पूजा राग मधु माधवी में गाया जाता है। पूजा का अन्तिम कलश राग धन्या श्री में है। इस प्रकार भारतीय मार्ग संगीत के विशिष्ट रागों में गुम्फित यहाँ भक्ति व श्रृंगार रस प्रधान रचना कुल १०८ कवित्त की है। इसे पढने वाले अब कम रह गए है। अजीमगंज जियागंज में आज भी यहाँ पूजा प्रचलित है। आज इस दुर्लभ कृति के संरक्षण व पुनः प्रचालन की आवश्यकता है । इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरुरत है।

Presented by Vardhaman Gems

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