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भारतीय पञ्चाङ्ग का कलात्मक चित्र |
पंचांग (पंच + अंग) का अर्थ है "पांच अंग" यानी पांच मुख्य हिस्से, जो किसी भी दिन के ज्योतिषीय महत्व को निर्धारित करते हैं! ये पांच अंग हैं तिथि, वार, नक्षत्र, योग, एवं करण। आइए इन पाँच अंगों को विस्तार से समझते हैं:
🔹 1. तिथि (Tithi) – चंद्र दिवस
- तिथि सूर्य और चंद्रमा के बीच के कोणीय अंतर पर आधारित होती है।
- हर महीने में 30 तिथियाँ होती हैं — 15 शुक्ल पक्ष (अमावस्या से पूर्णिमा) और 15 कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा से अमावस्या)।
- शुभ तिथियाँ: वैदिक रीती से द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी। जैन परंपरा में द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, एवं चतुर्दशी को पर्व तिथि माना गया है. जैन परंपरा में इन तिथियों को विशेष रूप से आराधना/ साधना की जाती है.
- विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य मुख्यतः तिथियों के अनुसार तय होते हैं। साथ ही पंचांग के अन्य अंगों को भी ध्यान में रखते हुए मुहूर्त का निर्णय होता है.
🔹 2. वार (Vara) – दिन
- सप्ताह के सात दिन (रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि)।
- प्रत्येक वार का एक ग्रह स्वामी होता है, जो उस दिन की ऊर्जा को प्रभावित करता है।
- उदाहरण: रविवार (सूर्य), सोमवार (चंद्रमा), मंगलवार (मंगल)।
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सात वारों का कलात्मक एवं प्रतीकात्मक चित्रण |
🔹 3. नक्षत्र (Nakshatra) – तारामंडल
- चंद्रमा हर दिन एक विशेष नक्षत्र (27 में से) में स्थित होता है।
- शुभ नक्षत्र: रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, श्रवण, रेवती।
- अशुभ नक्षत्र: अश्लेषा, ज्येष्ठा, मूला।
- विशेष कार्यों के लिए शुभ नक्षत्र देखना अत्यंत आवश्यक है।
🔹 4. योग (Yoga) – ग्रहों का संयोग
- सूर्य और चंद्रमा की संयुक्त स्थिति से योग बनता है।
- 27 योग होते हैं, जिनमें शुभ, अशुभ और सामान्य योग शामिल हैं।
- शुभ योग: सिद्ध, शुभ, साध्य, वरीयान।
- अशुभ योग: विष्कुम्भ, व्याघात, अतिगण्ड।
🔹 5. करण (Karana) – आधी तिथि
- एक तिथि के दो करण होते हैं। कुल 11 करण होते हैं — 7 चर (बार-बार आने वाले) और 4 स्थिर (एक बार आने वाले)।
- शुभ करण: बालव, कौलव, वणिज, किम्स्तुघ्न।
- अशुभ करण: भद्रा (विष्टि), शकुनि, चतुष्पद, नाग।
✨ सारांश:
- पंचांग के ये पांच अंग — तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण — किसी भी दिन के शुभ और अशुभ मुहूर्त को जानने के लिए आवश्यक होते हैं।
- यह भारतीय ज्योतिष का मूल आधार है, जिससे विवाह, पूजा, यात्रा, नामकरण आदि के लिए सही समय का चयन किया जाता है।
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भारतीय चांद्रमास के तिथियों का प्रतीकात्मक चित्रण |
✨ 15 तिथियाँ (Lunar Days)
संस्कृत नाम | हिंदी नाम |
---|---|
प्रतिपदा (Pratipada) | एकम |
द्वितीया (Dvitiiya) | दूज |
तृतीया (Tritiiya) | तीज |
चतुर्थी (Chaturthi) | चौथ |
पंचमी (Panchami) | पंचमी/पाँचम |
षष्ठी (Shashthi) | छठ |
सप्तमी (Saptami) | सतमी |
अष्टमी (Ashtami) | अष्टमी |
नवमी (Navami) | नवमी |
दशमी (Dashami) | दशमी |
एकादशी (Ekadashi) | ग्यारस |
द्वादशी (Dvadashi) | बारस |
त्रयोदशी (Trayodashi) | तेरस |
चतुर्दशी (Chaturdashi) | चौदस/ चउदस |
पूर्णिमा/अमावस्या (Purnima/Amavasya) | पूनम /अमावस |
भारतीय परंपरा में प्रत्येक तिथि को (अलग अलग महीने या पक्ष में) कोई न कोई पर्व त्यौहार होता है. जैसे अजा एकम, प्रेत दूज, आखा तीज, करवा चौथ, नाग पंचमी, झीलना छठ, शील सप्तमी, दुर्गा अष्टमी, राम नवमी, विजय दशमी (दशहरा) निर्जला एकादशी, वामन द्वादशी, धन्वन्तरी त्रयोदशी (धन तेरस), रूप चौदस, मौनी अमावस्या, गुरु पूर्णिमा आदि.
🌟 28 नक्षत्र:
- अश्विनी (Ashwini)
- भरणी (Bharani)
- कृतिका (Krittika)
- रोहिणी (Rohini)
- मृगशिरा (Mrigashira)
- आर्द्रा (Ardra)
- पुनर्वसु (Punarvasu)
- पुष्य (Pushya)
- अश्लेषा (Ashlesha)
- मघा (Magha)
- पूर्वाफाल्गुनी (Purva Phalguni)
- उत्तराफाल्गुनी (Uttara Phalguni)
- हस्त (Hasta)
- चित्रा (Chitra)
- स्वाति (Swati)
- विशाखा (Vishakha)
- अनुराधा (Anuradha)
- ज्येष्ठा (Jyeshtha)
- मूल (Mula)
- पूर्वाषाढ़ा (Purva Ashadha)
- उत्तराषाढ़ा (Uttara Ashadha)
- श्रवण (Shravana)
- धनिष्ठा (Dhanishta)
- शतभिषा (Shatabhisha)
- पूर्वाभाद्रपद (Purva Bhadrapada)
- उत्तराभाद्रपद (Uttara Bhadrapada)
- रेवती (Revati)
- अभिजीत (Abhijit) — यह विशेष नक्षत्र है, जो हमेशा पंचांग में नहीं दिखता।
🌙 1. करण (Karana)
करण एक तिथि (चंद्र दिवस) का आधा भाग होता है। प्रत्येक तिथि के दो करण होते हैं। कुल 11 करण होते हैं, और ये हमारे मानसिक और शारीरिक कार्यों पर प्रभाव डालते हैं।
🔹 करण के प्रकार:
- चर (Movable) करण — एक माह में आठ बार आते हैं (7 प्रकार)।
- स्थिर (Fixed) करण — एक माह में एक बार आते हैं (4 प्रकार)।
चर करण (Movable Karanas) – बार-बार आते हैं. | स्थिर करण (Fixed Karanas) – एक बार आता है. |
---|---|
1. बव (Bava) – सामान्य | 1. शकुनि (Shakuni) – अशुभ |
2. बालव (Balava) – शुभ | 2. चतुष्पद (Chatushpad) – अशुभ |
3. कौलव (Kaulava) – शुभ | 3. नाग (Naga) – अशुभ |
4. तैतिल (Taitila) – सामान्य | 4. किम्स्तुघ्न (Kimstughna) – शुभ |
5. गर (Gara) – सामान्य | |
6. वणिज (Vanija) – शुभ | |
7. विष्टि (Bhadra) – अशुभ |
✨ शुभ करण: बालव, कौलव, वणिज, किम्स्तुघ्न
⚠️ अशुभ करण: विष्टि (भद्रा), शकुनि, चतुष्पद, नाग
➖ सामान्य करण: बव, तैतिल, गर
👉 महत्व:
- शुभ कार्य जैसे विवाह, यात्रा और धार्मिक अनुष्ठान भद्रा के समय टाले जाते हैं, क्योंकि यह बाधाएं लाती है।
- किम्स्तुघ्न जैसे स्थिर करण दान-पुण्य और आध्यात्मिक कार्यों के लिए उत्तम माने जाते हैं।
⭐ 2. योग (Yoga)
योग सूर्य और चंद्रमा की स्थितियों का योग है, जिसे 27 भागों में बांटा गया है (हर नक्षत्र के लिए एक योग)। योग हमारे आंतरिक और बाहरी ऊर्जा प्रवाह को दर्शाता है।
🔹 योग के प्रकार:
- कुछ योग सफलता, समृद्धि और खुशी लाते हैं।
- अन्य योग बाधाएं, रोग और मानसिक तनाव पैदा करते हैं।
शुभ योग (Good Yogas) | सामान्य योग (Neutral Yogas) | अशुभ योग (Bad Yogas) |
---|---|---|
शुभ (Shubha) | आयुष्मान (Ayushman) | विष्कुम्भ (Vishkumbha) |
सिद्ध (Siddha) | ध्रुव (Dhruva) | अतिगण्ड (Atiganda) |
साध्य (Sadhya) | वृद्धि (Vriddhi) | व्याघात (Vyaghata) |
ब्रह्म (Brahma) | शोभन (Shobhana) | शूल (Shoola) |
वज्र (Vajra) | वरीयान (Variyan) | व्यतीपात (Vyatipata) |
इन्द्र (Indra) | परिघ (Parigha) |
✨ शुभ योग: शुभ, सिद्ध, साध्य, ब्रह्म, इन्द्र — सफलता, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए उत्तम।
➖ सामान्य योग: आयुष्मान, ध्रुव, वृद्धि, शोभन — अच्छे हैं लेकिन अत्यधिक शक्तिशाली नहीं।
⚠️ अशुभ योग: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, व्याघात, शूल, व्यतीपात, परिघ — बाधाओं, रोगों और मानसिक अशांति से जुड़े होते हैं।
👉 महत्व:
- शुभ योग के समय नए कार्यों की शुरुआत, यात्रा और उत्सव किए जाते हैं।
- अशुभ योग के समय सतर्कता, ध्यान और बड़े फैसलों से बचना बेहतर होता है।
✨ सारांश:
- करण हमारे दैनिक कार्यों और शारीरिक ऊर्जा पर प्रभाव डालते हैं।
- योग मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक स्थिति को प्रभावित करते हैं।
- शुभ करण और योग में कार्य करने से सफलता और शांति मिलती है, जबकि अशुभ करण और योग में सतर्क रहना चाहिए।
✨ 27 योग:
- विष्कुम्भ (Vishkumbha)
- प्रीति (Preeti)
- आयुष्मान (Ayushman)
- सौभाग्य (Saubhagya)
- शोभन (Shobhana)
- अतिगण्ड (Atiganda)
- सुखर्मा (Sukarma)
- धृति (Dhriti)
- शूल (Shoola)
- गण्ड (Ganda)
- वृद्धि (Vriddhi)
- ध्रुव (Dhruva)
- व्याघात (Vyaghata)
- हर्षण (Harshana)
- वज्र (Vajra)
- सिद्धि (Siddhi)
- व्यतिपात (Vyatipata)
- वरीयान (Variyan)
- परिघ (Parigha)
- शिव (Shiva)
- सिद्ध (Siddha)
- साध्य (Sadhya)
- शुभ (Shubha)
- शुक्ल (Shukla)
- ब्रह्म (Brahma)
- इन्द्र (Indra)
- वैधृति (Vaidhriti)
🌀 11 करण:
- बव (Bava)
- बालव (Balava)
- कौलव (Kaulava)
- तैतिल (Taitila)
- गर (Gara)
- वणिज (Vanija)
- विष्टि (Bhadra) — अशुभ करण
- शकुनि (Shakuni)
- चतुष्पद (Chatushpad)
- नाग (Naga)
- किम्स्तुघ्न (Kimstughna)
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