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Wednesday, February 26, 2025

भारतीय नववर्ष लेखमाला के लेखों की सन्दर्भ एवं लिंक सहित सूचि

 
आगामी 30 मार्च 2025, भारतीय नववर्ष 2082 है. इस दिन से विक्रम सम्वत प्रारम्भ होनेवाला है. इस भारतीय नववर्ष को मनाने की जोरदार तैयारी हो रही है. हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा फॉउंडेशन भी इसके लिए जोरदार तैयारी कर रहा है. भारतीय नववर्ष के सम्बन्ध में सर्वप्रथम एक लेख लिखा और फिर धीरे धीरे सम्बंधित लेखों की एक श्रंखला बन गई. यहाँ पर नववर्ष लेखमाला के लेखों की एक सूचि लिंक के साथ दी गई है, जिसके माध्यम से आप सभी लेखों तक पहुँच कर उसे पढ़ सकते हैं. इस लेखमाला के अंतर्गत भविष्य में लिखे जानेवाले लेखों की सूचि भी यहीं दे दी जाएगी. 

आपसे निवेदन है की लेखों को पढ़ने के बाद अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य देवें। आपके सुझाव हमारे लिए मूल्यवान हैं. इन लेखों को कृपया अग्रेषित एवं साझा करने की भी कृपा करें.  जिससे भारतीय ज्ञान परंपरा को संरक्षित एवं प्रसारित करने के हमारे प्रयत्न को वल मिले. 




1. यह लेख भारतीय नववर्ष की विविध परंपराओं और उनके धार्मिक, खगोलीय, ऐतिहासिक, और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालता है। लेख में विक्रम संवत 2082 के प्रारंभ, विभिन्न क्षेत्रों में मनाए जाने वाले नववर्ष, जैसे उगादि, गुड़ी पड़वा, और चेटीचंड, तथा संवत्सर चक्र के 60 वर्षों के नामों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसके अलावा, चांद्र और सौर वर्ष के आधार पर नववर्ष की गणना और उनके महत्व पर भी चर्चा की गई है।
https://jyoti-kothari.blogspot.com/2025/01/blog-post.html

2. इस लेख में भारतीय पंचांग की वैज्ञानिक संरचना और खगोलीय आधार पर अयन, चातुर्मास, ऋतु, और मास की व्याख्या की गई है। उत्तरायण और दक्षिणायन, तीन चातुर्मास, छह ऋतुएं, और बारह मासों के साथ उनके संबंधित नक्षत्रों और राशियों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। लेख में महीनों के नामकरण और उनके नक्षत्रों के प्रभाव पर भी प्रकाश डाला गया है।

3. यह लेख जैन दर्शन में काल की अवधारणा और उसकी सूक्ष्मतम इकाई 'समय' की व्याख्या करता है। लेख में निश्चय काल और व्यवहार काल के भेद, समय की परिभाषा, और आधुनिक विज्ञान में समय मापन की तुलना की गई है। इसके अलावा, काल के विभिन्न प्रकार, जैसे भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल, संख्यात, असंख्यात, और अनंत, तथा जैन शास्त्रों में काल की गणना और उसकी जटिल संरचना पर विस्तृत चर्चा की गई है।
https://jyoti-kothari.blogspot.com/2025/02/1.html 
  • 4. यह लेख चांद्र वर्ष (लूनर ईयर) और सौर वर्ष (सोलर ईयर) की परिभाषा, उनकी विशेषताएँ और उपयोग पर प्रकाश डालता है। चांद्र वर्ष चंद्रमा की गति पर आधारित होता है, जिसमें लगभग 354.36 दिन होते हैं, जबकि सौर वर्ष सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की परिक्रमा पर आधारित होता है, जिसकी अवधि लगभग 365.24 दिन होती है। लेख में बताया गया है कि भारतीय पंचांग में चांद्र और सौर वर्षों का संयोजन कैसे किया जाता है, जिससे धार्मिक पर्वों और कृषि कार्यों का निर्धारण होता है।
  • https://jyoti-kothari.blogspot.com/2025/02/blog-post.html
  • 5. इस लेख में भारतीय पंचांग के पांच प्रमुख अंगों—तिथि, वार, नक्षत्र, योग, और करण—का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। तिथि चंद्रमा और सूर्य के बीच के कोणीय अंतर पर आधारित होती है; वार सप्ताह के सात दिनों को दर्शाते हैं; नक्षत्र चंद्रमा की स्थिति के अनुसार 27 तारामंडलों में से एक होता है; योग सूर्य और चंद्रमा की संयुक्त स्थिति से बनता है; और करण तिथि के आधे भाग को कहते हैं। ये पांचों अंग किसी भी दिन के शुभ-अशुभ मुहूर्त का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • 6. यह लेख भारतीय खगोलविद्या की प्राचीन परंपरा और उसकी समृद्ध विरासत पर केंद्रित है, विशेष रूप से जंतर मंतर और ग्रीनविच वेधशाला की तुलना के माध्यम से। लेख में बताया गया है कि भारत में उज्जैन, वाराणसी, विदिशा, और नालंदा जैसे स्थानों पर प्राचीन वेधशालाएँ थीं, जहाँ खगोलीय अध्ययन और गणनाएँ की जाती थीं। महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा स्थापित जंतर मंतर वेधशालाएँ खगोलीय अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण केंद्र थीं। इसके विपरीत, ग्रीनविच वेधशाला यूरोपीय खगोलविद्या का प्रमुख केंद्र रहा है।
  • भारतीय खगोलविद्या की समृद्ध विरासत: जंतर मंतर बनाम ग्रीनविच वेधशाला

    https://jyoti-kothari.blogspot.com/2025/02/blog-post_21.html
  • 7. इस लेख में प्राचीन भारतीय कालगणना की वैदिक और पारंपरिक समय मापन प्रणालियों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। वैदिक काल में समय की सूक्ष्मतम इकाई 'त्रुटि' से लेकर बड़ी इकाइयों जैसे 'युग' और 'मन्वंतर' तक की गणना की जाती थी। लेख में दिन और रात के मापन के लिए घटिका, मुहूर्त, अहोरात्र आदि की चर्चा की गई है, साथ ही मास, ऋतु, अयन, और वर्ष की अवधारणाओं को भी स्पष्ट किया गया है। ब्रह्मांडीय और दीर्घकालिक समय इकाइयों जैसे युग और मन्वंतर का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है।
  • https://jyoti-kothari.blogspot.com/2025/02/blog-post_25.html
  • 8. इस लेख में जैन कालगणना के असंख्यात और अनंत समय की अवधारणाओं को विस्तार से समझाया गया है। पल्योपम और सागरोपम जैसी इकाइयों द्वारा असंख्यात समय की गणना की जाती है। कालचक्र उत्सर्पिणी (वृद्धि) और अवसर्पिणी (ह्रास) के दो भागों में अनंत काल तक चलता रहता है। अनंत पुद्गल परावर्त ब्रह्मांडीय समय के अनंत विस्तार को दर्शाता है। आधुनिक विज्ञान की तुलना में, जैन दर्शन अधिक विस्तृत और सुनिश्चित गणना प्रदान करता है। यह गणना न केवल पृथ्वी, बल्कि देवलोक और नारक लोक में भी लागू होती है।
  • https://jyoti-kothari.blogspot.com/2025/02/2.html
  • https://jyoti-kothari.blogspot.com/2025/03/blog-post_10.html
  • इन लेखों के माध्यम से, भारतीय खगोलविद्या, कालगणना, और पंचांग की समृद्ध परंपरा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझने में सहायता मिलती है।


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    Wednesday, February 19, 2025

    भारतीय पंचांग के पांच अंग: तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण

      

    भारतीय पञ्चाङ्ग का कलात्मक चित्र 

    पंचांग (पंच + अंग) का अर्थ है "पांच अंग" यानी पांच मुख्य हिस्से, जो किसी भी दिन के ज्योतिषीय महत्व को निर्धारित करते हैं! ये पांच अंग हैं तिथि, वार, नक्षत्र, योग, एवं करण। आइए इन पाँच अंगों को विस्तार से समझते हैं:


    🔹 1. तिथि (Tithi) – चंद्र दिवस

    • तिथि सूर्य और चंद्रमा के बीच के कोणीय अंतर पर आधारित होती है।
    • हर महीने में 30 तिथियाँ होती हैं — 15 शुक्ल पक्ष (अमावस्या से पूर्णिमा) और 15 कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा से अमावस्या)।
    • शुभ तिथियाँ: वैदिक रीती से द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी। जैन परंपरा में द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, एवं चतुर्दशी को पर्व तिथि माना गया है. जैन परंपरा में इन तिथियों को विशेष रूप से आराधना/ साधना की जाती है. 
    • विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य मुख्यतः तिथियों के अनुसार तय होते हैं। साथ ही पंचांग के अन्य अंगों को भी ध्यान में रखते हुए मुहूर्त का निर्णय होता है. 

    🔹 2. वार (Vara) – दिन

    • सप्ताह के सात दिन (रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि)।
    • प्रत्येक वार का एक ग्रह स्वामी होता है, जो उस दिन की ऊर्जा को प्रभावित करता है।
    • उदाहरण: रविवार (सूर्य), सोमवार (चंद्रमा), मंगलवार (मंगल)।
    सात वारों का कलात्मक एवं प्रतीकात्मक चित्रण 



    🔹 3. नक्षत्र (Nakshatra) – तारामंडल

    • चंद्रमा हर दिन एक विशेष नक्षत्र (27 में से) में स्थित होता है।
    • शुभ नक्षत्र: रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, श्रवण, रेवती।
    • अशुभ नक्षत्र: अश्लेषा, ज्येष्ठा, मूला।
    • विशेष कार्यों के लिए शुभ नक्षत्र देखना अत्यंत आवश्यक है।

    🔹 4. योग (Yoga) – ग्रहों का संयोग

    • सूर्य और चंद्रमा की संयुक्त स्थिति से योग बनता है।
    • 27 योग होते हैं, जिनमें शुभ, अशुभ और सामान्य योग शामिल हैं।
    • शुभ योग: सिद्ध, शुभ, साध्य, वरीयान।
    • अशुभ योग: विष्कुम्भ, व्याघात, अतिगण्ड।

    🔹 5. करण (Karana) – आधी तिथि

    • एक तिथि के दो करण होते हैं। कुल 11 करण होते हैं — 7 चर (बार-बार आने वाले) और 4 स्थिर (एक बार आने वाले)।
    • शुभ करण: बालव, कौलव, वणिज, किम्स्तुघ्न।
    • अशुभ करण: भद्रा (विष्टि), शकुनि, चतुष्पद, नाग।

    सारांश:

    • पंचांग के ये पांच अंग — तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण — किसी भी दिन के शुभ और अशुभ मुहूर्त को जानने के लिए आवश्यक होते हैं।
    • यह भारतीय ज्योतिष का मूल आधार है, जिससे विवाह, पूजा, यात्रा, नामकरण आदि के लिए सही समय का चयन किया जाता है।

    भारतीय चांद्रमास के तिथियों का प्रतीकात्मक चित्रण 


    ✨ 15 तिथियाँ (Lunar Days)

    संस्कृत नामहिंदी नाम
    प्रतिपदा (Pratipada)एकम 
    द्वितीया (Dvitiiya)दूज 
    तृतीया (Tritiiya)तीज 
    चतुर्थी (Chaturthi)चौथ 
    पंचमी (Panchami)पंचमी/पाँचम 
    षष्ठी (Shashthi)छठ 
    सप्तमी (Saptami)                                   सतमी
    अष्टमी (Ashtami)अष्टमी
    नवमी (Navami)नवमी
    दशमी (Dashami)दशमी
    एकादशी (Ekadashi)ग्यारस 
    द्वादशी (Dvadashi)बारस 
    त्रयोदशी (Trayodashi)                           तेरस
    चतुर्दशी (Chaturdashi) चौदस/ चउदस 
    पूर्णिमा/अमावस्या (Purnima/Amavasya)पूनम  /अमावस

  • शुक्ल पक्ष (Waxing phase) में पूर्णिमा (Purnima) होती है।
  • कृष्ण पक्ष (Waning phase) में अमावस्या (Amavasya) होती है।
  • वैदिक परंपरा में प्रत्येक तिथि को (अलग अलग महीने या पक्ष में) कोई न कोई पर्व त्यौहार होता है. जैसे अजा एकम, प्रेत दूज, सावन की तीज, करवा चौथ, नाग पंचमी, झीलना छठ, शील सप्तमी, दुर्गा अष्टमी, राम नवमी, विजय दशमी (दशहरा) निर्जला एकादशी, वामन द्वादशी, धन्वन्तरी त्रयोदशी (धन तेरस), रूप चौदस, मौनी अमावस्या, गुरु पूर्णिमा आदि. 

    इसी प्रकार जैन परंपरा में गौतम पड़वा, भाई दूज, आखा तीज, संवत्सरी चौथ, ज्ञान पंचमी, च्यवन छठ, मोक्ष सप्तमी, दुबली अष्टमी, पौष दशमी, मौन इग्यारस, अट्ठाई बारस, मेरु तेरस, चौमासी चौदस, महावीर निर्वाण अमावस्या (दिवाली), कार्तिक पूर्णिमा आदि तिथियां प्रसिद्द है. 

    🌟 28 नक्षत्र:

    1. अश्विनी (Ashwini)
    2. भरणी (Bharani)
    3. कृतिका (Krittika)
    4. रोहिणी (Rohini)
    5. मृगशिरा (Mrigashira)
    6. आर्द्रा (Ardra)
    7. पुनर्वसु (Punarvasu)
    8. पुष्य (Pushya)
    9. अश्लेषा (Ashlesha)
    10. मघा (Magha)
    11. पूर्वाफाल्गुनी (Purva Phalguni)
    12. उत्तराफाल्गुनी (Uttara Phalguni)
    13. हस्त (Hasta)
    14. चित्रा (Chitra)
    15. स्वाति (Swati)
    16. विशाखा (Vishakha)
    17. अनुराधा (Anuradha)
    18. ज्येष्ठा (Jyeshtha)
    19. मूल (Mula)
    20. पूर्वाषाढ़ा (Purva Ashadha)
    21. उत्तराषाढ़ा (Uttara Ashadha)
    22. श्रवण (Shravana)
    23. धनिष्ठा (Dhanishta)
    24. शतभिषा (Shatabhisha)
    25. पूर्वाभाद्रपद (Purva Bhadrapada)
    26. उत्तराभाद्रपद (Uttara Bhadrapada)
    27. रेवती (Revati)
    28. अभिजीत (Abhijit) — यह विशेष नक्षत्र है, जो हमेशा पंचांग में नहीं दिखता।

    🌙 1. करण (Karana)

    करण एक तिथि (चंद्र दिवस) का आधा भाग होता है। प्रत्येक तिथि के दो करण होते हैं। कुल 11 करण होते हैं, और ये हमारे मानसिक और शारीरिक कार्यों पर प्रभाव डालते हैं।

    🔹 करण के प्रकार:

    • चर (Movable) करण — एक माह में आठ बार आते हैं (7 प्रकार)।
    • स्थिर (Fixed) करण — एक माह में एक बार आते हैं (4 प्रकार)।
    चर करण (Movable Karanas) – बार-बार आते हैं. स्थिर करण (Fixed Karanas) – एक बार आता है.
    1. बव (Bava) – सामान्य1. शकुनि (Shakuni) – अशुभ
    2. बालव (Balava) – शुभ2. चतुष्पद (Chatushpad) – अशुभ
    3. कौलव (Kaulava) – शुभ3. नाग (Naga) – अशुभ
    4. तैतिल (Taitila) – सामान्य4. किम्स्तुघ्न (Kimstughna) – शुभ
    5. गर (Gara) – सामान्य
    6. वणिज (Vanija) – शुभ
    7. विष्टि (Bhadra) – अशुभ

    ✨ शुभ करण: बालव, कौलव, वणिज, किम्स्तुघ्न
    ⚠️ अशुभ करण: विष्टि (भद्रा), शकुनि, चतुष्पद, नाग
    ➖ सामान्य करण: बव, तैतिल, गर

    👉 महत्व:

    • शुभ कार्य जैसे विवाह, यात्रा और धार्मिक अनुष्ठान भद्रा के समय टाले जाते हैं, क्योंकि यह बाधाएं लाती है।
    • किम्स्तुघ्न जैसे स्थिर करण दान-पुण्य और आध्यात्मिक कार्यों के लिए उत्तम माने जाते हैं।

    ⭐ 2. योग (Yoga)

    योग सूर्य और चंद्रमा की स्थितियों का योग है, जिसे 27 भागों में बांटा गया है (हर नक्षत्र के लिए एक योग)। योग हमारे आंतरिक और बाहरी ऊर्जा प्रवाह को दर्शाता है।

    🔹 योग के प्रकार:

    • कुछ योग सफलता, समृद्धि और खुशी लाते हैं।
    • अन्य योग बाधाएं, रोग और मानसिक तनाव पैदा करते हैं।
    शुभ योग (Good Yogas)सामान्य योग (Neutral Yogas)अशुभ योग (Bad Yogas)
    शुभ (Shubha)आयुष्मान (Ayushman)विष्कुम्भ (Vishkumbha)
    सिद्ध (Siddha)ध्रुव (Dhruva)अतिगण्ड (Atiganda)
    साध्य (Sadhya)वृद्धि (Vriddhi)व्याघात (Vyaghata)
    ब्रह्म (Brahma)शोभन (Shobhana)शूल (Shoola)
    वज्र (Vajra)वरीयान (Variyan)व्यतीपात (Vyatipata)
    इन्द्र (Indra)परिघ (Parigha)

    ✨ शुभ योग: शुभ, सिद्ध, साध्य, ब्रह्म, इन्द्र — सफलता, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए उत्तम।
    ➖ सामान्य योग: आयुष्मान, ध्रुव, वृद्धि, शोभन — अच्छे हैं लेकिन अत्यधिक शक्तिशाली नहीं।
    ⚠️ अशुभ योग: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, व्याघात, शूल, व्यतीपात, परिघ — बाधाओं, रोगों और मानसिक अशांति से जुड़े होते हैं।

    👉 महत्व:

    • शुभ योग के समय नए कार्यों की शुरुआत, यात्रा और उत्सव किए जाते हैं।
    • अशुभ योग के समय सतर्कता, ध्यान और बड़े फैसलों से बचना बेहतर होता है।

    ✨ सारांश:

    • करण हमारे दैनिक कार्यों और शारीरिक ऊर्जा पर प्रभाव डालते हैं।
    • योग मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक स्थिति को प्रभावित करते हैं।
    • शुभ करण और योग में कार्य करने से सफलता और शांति मिलती है, जबकि अशुभ करण और योग में सतर्क रहना चाहिए।

    ✨ 27 योग:

    1. विष्कुम्भ (Vishkumbha)
    2. प्रीति (Preeti)
    3. आयुष्मान (Ayushman)
    4. सौभाग्य (Saubhagya)
    5. शोभन (Shobhana)
    6. अतिगण्ड (Atiganda)
    7. सुखर्मा (Sukarma)
    8. धृति (Dhriti)
    9. शूल (Shoola)
    10. गण्ड (Ganda)
    11. वृद्धि (Vriddhi)
    12. ध्रुव (Dhruva)
    13. व्याघात (Vyaghata)
    14. हर्षण (Harshana)
    15. वज्र (Vajra)
    16. सिद्धि (Siddhi)
    17. व्यतिपात (Vyatipata)
    18. वरीयान (Variyan)
    19. परिघ (Parigha)
    20. शिव (Shiva)
    21. सिद्ध (Siddha)
    22. साध्य (Sadhya)
    23. शुभ (Shubha)
    24. शुक्ल (Shukla)
    25. ब्रह्म (Brahma)
    26. इन्द्र (Indra)
    27. वैधृति (Vaidhriti)

    🌀 11 करण:

    1. बव (Bava)
    2. बालव (Balava)
    3. कौलव (Kaulava)
    4. तैतिल (Taitila)
    5. गर (Gara)
    6. वणिज (Vanija)
    7. विष्टि (Bhadra) — अशुभ करण
    8. शकुनि (Shakuni)
    9. चतुष्पद (Chatushpad)
    10. नाग (Naga)
    11. किम्स्तुघ्न (Kimstughna)




    Thanks, 
    Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries of tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, at Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional)

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