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गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

राजस्थान की लोकदेवता परंपरा: संस्कृति, श्रद्धा और समावेशी धर्म का जीवंत दर्शन

"गोगा पीर धरती के लाल,
नागदेवता, संकट निवारक विशाल।
जोगण माता का थान बसे,
लोकरक्षा का जाग्रत जस बहसे।"

परिचय: लोक की देवता परंपरा और मुख्यधारा धर्मों का अंतःसंवाद

राजस्थान की भूमि केवल महलों, युद्धों और स्थापत्य की नहीं, बल्कि लोकश्रद्धा की जीवंत भूमि रही है। यहाँ की लोकदेवता परंपरा – जिसमें ग्रामरक्षक, कुलदेवी, सती माता, वीरगति प्राप्त जन, और प्राकृतिक शक्तियों का दैवीकरण सम्मिलित है – न केवल स्थानीय सामाजिक संरचना की आधारशिला है, अपितु इसने समय के साथ वैदिक और जैन परंपराओं को भी गहराई से प्रभावित किया

वैदिक प्रणाली, जो प्रारंभ में देवताओं को मुख्यतः ऋतुओं, प्रकाश, जल, अग्नि आदि प्राकृतिक तत्वों से जोड़ती थी, उसने धीरे-धीरे लोक-आस्था से उद्भूत शक्ति-स्वरूपों को आत्मसात किया। उदाहरण के लिए, शक्ति, भैरव, कुलदेवियाँ आदि का वैदिक/पुराणिक स्वरूप में प्रतिष्ठान लोक श्रद्धा से ही उत्पन्न हुआ।

राजस्थान के राजपूत समाज में कुलदेवियों की परंपरा अत्यंत सुदृढ़ है. वणिक समुदायों में भी यह परंपरा पाई जाती है. ब्राह्मण समाज मुख्यतः गोत्र पूजक देवों की परंपरा से सम्बद्ध है. अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC, SC, ST) के विभिन्न समुदायों में भी भिन्न भिन्न प्रकार से लोकदेवता/लोकदेवियों की पूजा उपासना प्रचलित है. इस तरह यह समाज में सर्वव्यापी प्रचलन है. राज परिवार एवं स्थानीय लोगों के साथ स्थानीय डकैतों द्वारा कैला देवी की पूजा इस परंपरा को एक विशिष्टता प्रदान करता है. 

इन देवी देवताओं से सम्बंधित चमत्कारों के उल्लेख में "परचा" शब्द बहुलता से उल्लिखित होता है जो की संभवतः प्रत्यक्ष या प्रभाव शब्द का अपभ्रंश राजस्थानी रूप है. 

जैन परंपरा, विशेषतः राजस्थान के ओसवाल, श्रीमाल, खंडेलवाल आदि समुदायों में, ने भी लोकदेवियों को सांस्कृतिक स्तर पर स्थान दिया, यद्यपि धार्मिक रूप में उपासना का विधान संयमित और अरहंत-सिद्ध केन्द्रित ही रहा। फिर भी सच्चियाय माता, शीतला माता, आशापुरा माता आदि को विवाह, गृहप्रवेश, एवं वंश परंपरा में स्थान मिला, यद्यपि ये धर्म नहीं, संस्कृति की अभिव्यक्ति रही।

राजस्थान की लोकदेवता परंपरा की एक विलक्षण विशेषता यह रही है कि इनमें धार्मिक सीमाओं से परे की स्वीकार्यता रही — जैसे बाबा रामदेवजी मुस्लिमों में 'रामसा पीर' के रूप में पूजे जाते हैं, और गोगाजी को हिन्दू-मुस्लिम दोनों समाजों में समान श्रद्धा प्राप्त है।

1. प्रमुख लोकदेवता (जाति- लोक आराध्य)

देवतामुख्य पूजकक्षेत्र
बाबा रामदेवजीदलित, मेघवाल, ओबीसी, मुस्लिमपश्चिम राजस्थान, गुजरात
देवनारायण जीगुर्जर जातिदक्षिण-पूर्व राजस्थान
गोगाजीजाट, गुर्जर, मीणा, मुसलमानसमस्त राजस्थान
तेजाजीजाट, चारण, कृषक वर्गनागौर, टोंक, अजमेर
पाबूजीरेबारी, ऊँटपालकजोधपुर-पाली क्षेत्र
हरबूजी / हड़बूजीओबीसी ग्रामीण समाजमारवाड़, मेवाड़

यह सूची केवल प्रमुख लोकदेवताओं की सूचि है। अन्य कई क्षेत्रीय लोकदेवता भी पूजित हैं।

2. कुलदेवी परंपरा (कुल / गोत्र आधारित देवी पूजन)

देवीमुख्य पूजकक्षेत्र
श्री सच्चियाय माताओसवाल जैनओसियाँ, जोधपुर
अशापुरा माताचौहान, पोरवाल, ओसवालपश्चिम राजस्थान
नागणेचा माताराठौड़, चारणनागाणा
मुण्डवा मातालोढा गोत्रनागौर क्षेत्र
शीतला माताश्रीमाल, माहावरमारवाड़
सुषमणि माताओसवालमोरखाना, बीकानेर
कोडमदेसर भैरवओसवाल, ग्रामीणबीकानेर क्षेत्र

यह सूची कुलदेवियों के कुछ प्रमुख उदाहरणों की है। प्रत्येक गोत्र/वंश में विविधताएँ हो सकती हैं।

3. सती माता परंपरा (बलिदानी स्त्रियों का दैवीकरण)

सती मातामुख्य पूजकक्षेत्र
रानी सतीअग्रवाल, माहेश्वरीझुंझुनूं
खेमी सतीवैश्य समाजझुंझुनूं
नारायणी सतीशेखावाटी ग्राम समाजनवलगढ़
सती थानजाट, मीणा, गुर्जरसंपूर्ण राजस्थान

सती परंपरा स्थानीय इतिहास और सामाजिक-स्मृति का दैवीकरण है, जो वर्तमान में सांस्कृतिक श्रद्धा का अंग है।

4. ग्रामदेवता / नगरदेवता परंपरा

देवतामुख्य पूजकक्षेत्र
थान की माताग्राम समाजराजस्थान के प्रत्येक गाँव में
देव का थानकृषक वर्गपूर्वी राजस्थान
भैरूजी का थानग्रामीण वर्गसीमाएँ, गाँव की रक्षा
नगर देवताशहरी व्यापारी, किलेदारपुराने नगर

यह परंपरा लोकसमाज की रक्षण भावना का प्रतीक है, जहाँ गांव और नगर की रक्षा के लिए देवी/देव की अवधारणा विकसित हुई।

5. रोगनाशक / जोगण परंपरा

देवीमुख्य पूजकक्षेत्र
शीतला माताब्राह्मण, वैश्य, ग्रामीण महिलाएँसमस्त राजस्थान
जोगण माताचारण, ओबीसीमारवाड़
महामाया / आइसर माताग्रामीण महिलाएँपूर्वी व दक्षिणी राजस्थान

जोगणें तांत्रिक शक्तियों का लोक-रूप हैं। 64 योगिनी परंपरा के लोकसंस्करण भी यहाँ पाए जाते हैं।

6. क्षेत्रीय देवियाँ / शक्तियाँ (प्राकृतिक श्रद्धा)

शक्ति रूपमुख्य पूजकक्षेत्र
पानी की माताकिसान महिलाएँजल स्रोत स्थल
पेड़ की मातामहिलाएँ (ST/OBC)पीपल, नीम, वट
चरण थानग्राम समाजभूमि-संरक्षक स्थल

प्रकृति के प्रति आदर भाव और रक्षा भावना लोकदेवियों के इन रूपों में झलकती है।

7. पशु रक्षक देवता

देवतामुख्य पूजकक्षेत्र
दुल्हा भैरवरेबारीऊँटपालक समाज
नाथ जीपशुपालक, योगी वर्गगौ-रक्षा
बाबा वीरकृषक समाजबीकानेर, नागौर क्षेत्र

8. आपदा निवारक देवियाँ

देवीमुख्य पूजकउद्देश्य
अकाल माताकिसान वर्गसूखा व दुर्भिक्ष निवारण
बाढ़ मातानदी क्षेत्र समाजबाढ़ से रक्षा
पानी माताकृषक महिलाएँजल याचना और संरक्षण

9. विशिष्ट लोकशक्ति परंपराएँ (तांत्रिक-स्थानीय)

देवी / देवतामुख्य पूजकस्वरूप
भूमिया जीग्राम समाजभूमि रक्षक देवता
क्षेत्रपालतांत्रिक लोकसमाजसीमांत रक्षक
भुवन देवी / भूवानी मातासीमित क्षेत्रशक्ति रूप
64 योगिनियाँ (जोगण रूप)लोकतांत्रिक शक्ति पूजनतांत्रिक मूल की लोक-व्याख्या

लोकदेवताओं की उपासना पद्धति: पद गायन, चारण-भाट परंपरा और स्मृति का संप्रेषण

राजस्थान की लोकदेवता परंपरा केवल मंदिरों और मूर्तियों तक सीमित नहीं है, वरन् यह एक जीवंत ध्वनिमय परंपरा है — जहाँ देवताओं का स्मरण गायन, कथा, वाणी और स्मृति के माध्यम से होता है।

पद गायन (Pad Gaayan)

  • लोकदेवताओं की स्तुति में गाए जाने वाले "पद" — विशेष रूप से गोगाजी, तेजाजी, पाबूजी, देवनारायण जी, और रामदेवजी के लिए —
    चारण, ढोली, कमायचा वादक, मंगनियार, लंगा समुदाय के द्वारा गाए जाते हैं।

  • यह गायन सांगीतिक काव्य परंपरा का अंग है — जिसमें तंत्री वाद्य (कमायचा, सारंगी), ढोलक, खंजरी आदि के साथ संवेदना और वीरता का सजीव चित्रण होता है।

“गोगा पीर का पद गाया, नागधारी की बाणियाँ,
उगते सूरज संग जागे, गाँव-गाँव में वाणियाँ।”

चारण और भाट परंपरा

  • चारण और भाट राजस्थान के लोक इतिहास के संरक्षक हैं। इन्होंने लोकदेवताओं की वंशावली, वीरता, चमत्कार, त्याग और धर्मरक्षा को पीढ़ियों तक कंठस्थ वाचिक परंपरा में संजोया।

  • इनके द्वारा कहा गया कवित्त, वेला, रासो — लोकदेवताओं की अधिकार प्राप्त गाथा बन जाते हैं, जो भक्ति और वीर रस का अद्वितीय संगम होते हैं।

  • तेजाजी, पाबूजी, देवनारायण जी की गाथाएँ आज भी "फड़" चित्रों के साथ चारण कथा गायकों द्वारा प्रस्तुत की जाती हैं।

लोकगायक समुदायों की भूमिका

  • मंगनियार, लंगा, ढोली, बील, नट, और बावरी जैसे समुदायों ने लोकदेवताओं की स्तुतियों को संगीत, नृत्य और गाथा से जोड़ा

  • रामदेवजी के मेले में गाया जाने वाला "ठाकर रो जोहारो" आज भी लोक भक्ति का अद्भुत उदाहरण है।

स्मरण की जीवंत परंपरा 

  • किसी भी त्योहार, मेला, यात्रा, विवाह, यज्ञोपवीत आदि में लोकदेवता का पद गाना अनिवार्य माना जाता है।

  • गोगाजी के जुलूस में "गोगा जी की बन्नी", "नागबाण", और रामदेवजी के संदर्भ में "रामसापीर की चालीसा" जैसे लोक-पद आज भी सामूहिक स्मृति और श्रद्धा का स्रोत हैं।

लोकदेवियों की मूर्ति-रचना / स्थापत्य लक्षण 

राजस्थान की लोकदेवियों की मूर्तियाँ अक्सर स्थानीय काले पत्थर, मिट्टी या सिंदूरी प्रतिमाओं के रूप में होती हैं — जो तांत्रिक मुद्रा, चौखट, बंधी आँखों, असवार रूपों के माध्यम से विशिष्ट पहचान देती हैं। इसी प्रकार राजस्थानी चित्रकला विशेष कर फड़ शैली में भी लोकदेवताओं का विशिष्ट स्थान है जैसे देवनारायण जी की फड़, पाबूजी की फड़ आदि. साथ ही पड़ गायन / फड़ गायन का भी एक विशिष्ट स्थान है जहाँ चित्र-श्रृंखला के साथ कथा की जाती है. 

आज के संदर्भ में इन लोकदेवताओं की भूमिका

आज जब परंपरा और आधुनिकता के द्वंद्व में लोकविश्वास डगमगा रहे हैं, राजस्थान की लोकदेवता परंपरा जड़ों से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है।

उपसंहार

लोकश्रद्धा की धारा और धर्म की विस्तृत सहिष्णुता

राजस्थान की लोकदेवता परंपरा न केवल धर्म और लोकसंस्कृति के मध्य सेतु है, बल्कि यह दर्शाती है कि जनमानस की आत्मा केवल शास्त्रों से नहीं, बल्कि अनुभव और स्मृति से भी बनती है

वैदिक परंपरा, जहाँ प्रारंभ में ऋषि-मंत्र-यज्ञ का बोलबाला था, वही आगे चलकर लोकदेवताओं को पुराणों में स्थान देने लगीभैरव, दुर्गा, शक्ति, कुलदेवियाँ — ये सब लोक की चेतना से वेद की परिधि में आये।

जैन परंपरा, यद्यपि आत्मा और मोक्ष के मार्ग पर केंद्रीकृत है, फिर भी ओसवाल, श्रीमाल, खंडेलवाल जैसे जातीय समाजों में लोकदेवियों का स्थान वंश-रक्षा और परंपरा के आधार पर स्वीकार्य रहा — सच्चियाय माता, शीतला माता, अशापुरा माता जैसे उदाहरण इसके साक्षी हैं।

अतः राजस्थान की लोकदेवता परंपरा केवल पूजा नहीं — यह सांस्कृतिक निरंतरता, सामाजिक समावेशिता, और ऐतिहासिक स्मृति का जीवंत दर्शन है। लोकदेवता परंपरा इस बात का प्रमाण है कि धर्म जब लोकानुभव और आस्था से जुड़ता है, तो वह केवल मार्ग नहीं, बल्कि स्मृति, पहचान और सामूहिक चेतना का आधार बन जाता है।

सन्दर्भ ग्रंथों की सूची (References)

लोकदेवता एवं क्षेत्रीय श्रद्धा परंपरा

  1. डॉ. भगवतशरण उपाध्यायराजस्थान की लोकदेवियाँ
    प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी

  2. डॉ. मोहन सिंह राठौड़राजस्थान की लोकपरंपराएँ
    प्रकाशक: साहित्य मंडल, नाथद्वारा

  3. डॉ. उर्मिला शर्मालोकदेवता: भारतीय जनमानस में देव संस्कृति
    विषय: गोगाजी, रामदेवजी, तेजाजी, पाबूजी आदि

  4. किशोरीलाल व्‍यासग्राम-देवता और राजस्थान की लोकविश्वास प्रणाली

  5. डॉ. महेन्द्र भटनागरराजस्थान की लोकआस्था और धर्मनिष्ठा
    (विशेषकर भैरव, भूमिया, क्षेत्रपाल इत्यादि पर)

कुलदेवी और सती परंपरा

  1. डॉ. रेखा शर्माराजस्थान की कुलदेवियाँ
    (कुल परंपरा, गोत्र संबद्धता, लोकश्रद्धा)

  2. डॉ. नवल शंकर शर्मासती परंपरा और भारतीय समाज
    (राजस्थान में सती थान, स्मृति-संस्कृति की विवेचना)

  3. शेखावाटी क्षेत्रीय अध्ययन केंद्ररानी सती परंपरा: इतिहास व लोकविश्वास
    शोध प्रकाशन, झुंझुनूं

लोकदेवता और वैदिक-जैन संवाद

  1. डॉ. नवल किशोर शर्माभारतीय लोकधर्म और वैदिक समन्वय
    विषय: शक्ति उपासना, ग्रामदेवी, और पुराणों में लोकभाव

  2. डॉ. रमेशचन्द्र शुक्लवैदिक धर्म और जनश्रुति परंपरा
    गूढ़ता से वर्णन कि कैसे लोकश्रद्धाएँ वैदिक-पुराणिक परंपरा में समाहित हुईं

  3. Prof. John E. CortJains in the World: Religious Values and Ideology in India
    Topic: Jain lay communities and local devotional practices

  4. Padmanabh S. JainiCollected Papers on Jain Studies
    Topic: Jain attitudes toward bhakti and village deities

  5. Paul DundasThe Jains
    अध्याय: लोकदेवियों के प्रति जैन सामाजिक दृष्टिकोण

लोक साहित्य, चारण भाट गाथा एवं मेले/थान

  1. डॉ. सीताराम लाळसराजस्थान का चारण साहित्य
    (तेजाजी, गोगाजी, पाबूजी की लोकगाथाएँ)

  2. जगदीशसिंह राठौड़राजस्थान के लोक मेले
    (लोकदेवताओं से जुड़े मेलों का विस्तृत विवरण)

  3. डॉ. अर्जुन देव चरनराजस्थानी लोकविश्वास और परंपरा

  4. राजस्थान पुरातत्व विभागलोकस्थल और थान निर्देशिका
    सरकारी प्रकाशन

  • उपरोक्त ग्रंथों में से अनेक विश्वविद्यालयों के शोधकार्य का भी आधार रहे हैं।

Thanks, 

Jyoti Kothari 
 (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser at Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional). 

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