Friday, July 31, 2009
Vanayatra: Visiting tribal schools in Rajasthan
These trips are organized to have a first hand experience of activities en site. These vanayatras encourage and motivate FTS members and people at large to serve the tribal society.
Normally these are one day or even half day tours. These are like excursions we enjoyed in our student life. FTS do not expend for these trips. Instead these are contributory.
(FTS is an abbreviation for Friends of Tribal Society)
FTS, Jaipur is planning for a Vanayatra in near future. We will notify in this blog when a schedule will be prepared and finalyzed including date and time of visit, place, contribution etc.
Please inform us if you would like to join the trip.
Jyoti Kothari is recruited as convener of Vanayatra.
Know more about Rajasthan
Thanks,
What is artificial intellegence
Artificial intelligence has enhanced ability and efficiency of computers many folds and it continues to do so.
Some uncommon photographs of Jaipur
Photo gallery: Uncommon photographs of Jaipur
Corporation and Municipal election 2009
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Vardhaman Gems
Centuries old tradition of excellence in Gems and Jewelry
Famous persons and families of murshidabad Part 2
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Nahar Family:
Nahar family was a Zemindar family of Azimganj. The family has contributed a lot to the society, religion, academics and culture. They built Shri Sumatinath Temple in Azimganj. Nahar family also founded Kumar Singh Hall with a temple, community hall, library and museum in Kolkata near their residence at Indian mirror street. Rai Bahadoor Sri Manilal Nahar and one more person (I can not remember name) of this family had been featured in "Glimpses of Bengal", published in 1905.
Sri Puran Chand Nahar of this family was a great scholar. He is one of the academicians in India who laid the foundation to modern historical and archaeological research about Jainism. His collection is donated to Kolkata university and it is preserved there.
His brother Kesri Chand Nahar was a great patron of Indian classical music. He collected and published "Stavanavali" almost a century back. This is a great collection of Jain Bhajans with name of "Raag" and "Taal" printed with every Bhajan (Jain devotional song).
Bijoy Singh Nahar of this family entered into politics. He reached to the status of Home Minister and deputy Chief minister of West Bengal. He had been in the ministry of Dr. Bidhan Chandra Roy and Siddhartha Shankar Roy. Later on, he left Congress party with babu Jagjivan Ram to form Congress for democracy in 1977. When Congress for democracy was merged into Janata party, he became general secretary of Janata Party. He fought and won parliamentary election in 1977 from Kolkata.
He was a revolutionary Jain and edited and published "Tarun Jain", a monthly magazine for young Jains. He also adorned the post of Chairman, Bihar religious trust board, Government of Bihar.
Deep Singh Nahar of this family was a great photographer and had been worked as President, Bengal photographers association.
Ajit Singh Nahar of this family was a famous homoeopath and married to Smt. Kanak Sundari of famous Rai Badridas Bahadoor Mookim family. His sons Soumendra Nahar, Pradip Nahar and Bablu Nahar studied in Moscow. Soumendra Nahar and Pradip Nahar were awarded with Gorbachev award, highest honor for scientists in former USSR. Soumen and Bablu are in Russia and Pradip is serving as a research scientist in CSIR, Delhi.
Update: Mr. Ranjan Nahar, brother of Soumen has informed me that Soumen has returned fron Russia and is now living in Kolkata.
To be continued.........
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Badi Kothi: Dudhoria family
Posted by:
Jyoti Kothari
Photo gallery: Uncommon photographs (Pictures) of Jaipur
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Jain Idols: Moti Doongri Dadabadi
About Jaipur and its architecture
Jaipur: New look
Gems and Jewelry house in Jaipur
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About uncommon Photographs
Albert hall: Ramniwas Bagh
Makar Sankranti: Kite flying festival in Jaipur
President Bill Clinton at Jaipur airport
Makar Sankranti, Kite festival in Jaipur
Mirza Ismail Road, Lifeline of Jaipur
Pigeon love in Jaipur
प्रथम पुण्य तिथि: श्रीमती कुसुम कुमारी कोठारी
श्रीमती कुसुम कुमारी का जन्म कोलकाता के स्वनाम धन्य राय बद्रीदास बहादूर मुकीम परिवार में इस्वी सन १९३० में हुआ था।
कोल्कता के प्रसिद्ध पारसनाथ मन्दिर के निर्माता एवं वाइस रोय के जौहरी राय बद्रीदास बहादुर के ज्येष्ठ पुत्र श्री राय कुमार सिंह आप के दादा व श्री फ़तेह कुमार सिंह मुकीम आप के पिता थे। आप का ननिहाल रिंगनोद, मालवा के प्रसिद्ध रावले में था। आप की माँ का नाम श्रीमती सज्जन कुमारी था।
(Johari Sath Blog)
बचपन से ही आप में परिवार के अनुरूप धार्मिक संस्कार थे। उस काल में भी आपने अंग्रेजी एवं संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी। आप वीणा व हारमोनियम बजाया करती थीं।
आप का विवाह अजीमगंज के पानाचंद नानकचंद कोठारी परिवार में श्री कमलापत कोठारी के पौत्र व श्री चंद्रपत कोठारी के कनिष्ठ पुत्र श्री धीरेन्द्र पत कोठारी से सन १९४६ में संपन्न हुआ। आपके प्रमिला, उर्मिला, निर्मला, शीला व सुजाता नाम की पाँच पुत्रियाँ व ज्योति नाम का एक पुत्र हुआ जिनमे निर्मला का देहांत बचपन में ही हो गया था। अभी आपकी चार पुत्रियाँ व एक पुत्र मौजूद हैं। आपकी दौहित्री (नतनी) व शीला लोढा की पुत्री ने साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी के पास (१९९८) अल्पायु में दीक्षा ग्रहण की थी। वे आज साध्वी श्री श्रद्धान्विता श्री जी के नाम से जानी जाती हैं। साध्वी श्री श्रद्धान्विता श्री, शीला व सुजाता तीनो ने ही इस वर्ष वर्षी तप का परना पलिताना में किया।
९ सितम्बर १९७९ को श्री धीरेन्द्र पत कोठारी के अल्पायु में देहावसान के बाद पुरे परिवार की जिम्मेदारी आप पर आ गई जिसे उन्होंने बखूबी निभायी । साथ ही अपना जीवन पुरी तरह से धर्म ध्यान में समर्पित कर दिया। आप प्रतिदिन जिन पूजा के अलावा चार- पाँच सामायिक किया करती थीं। दृढ़ता पूर्वक एक आसन में बैठ कर जप करना आप को बहुत प्रिय था। आपने अपने जीवन में पालिताना, सम्मेत शिखर, आबू, गिरनार, पावापुरी, राजगृह, कुण्डलपुर, चम्पापुर, नाकोडा, नागेश्वर, मांडव गढ़, अजमेर, मालपुरा, महरोली आदि सैंकडों तीर्थों की यात्राएं कर पुण्य उपार्जित किया। अजीमगंज में प्रसिद्ध नवपद ओली की आराधना आप जीवन पर्यंत करती रहीं। इसके अलावा आपने वीस स्थानक, मौन ग्यारस, ज्ञान पंचमी आदि अन्य अनेक तपस्चर्यायें भी की। आपने शत्रुंजय तीर्थ की निन्याणु यात्रा भी की।
आज हमारी माँ हमारे बीच में नहीं हैं परन्तु उनकी यादें व उनके दिए हुए धार्मिक संस्कार आज भी हमारा मार्ग दर्शन करती है। हम उनके सभी बच्चे यही प्रार्थना करते हैं की वे जहाँ हैं वहीँ से हमें आशीर्वाद प्रदान करती रहें।
ज्योति कोठारी, पुत्र,
ममता कोठारी, पुत्रवधू, दर्शन, पौत्र, जयपुर
प्रमिला पालावत, पुत्री, कोलकाता
उर्मिला बोथरा, पुत्री, आगरा
शीला लोढा, पुत्री, दिल्ली
सुजाता पारख, पुत्री, रायपुर
Thursday, July 30, 2009
Origins of Jain Migration into Murshidabad by Rajib Doogar
Please click the link to view the article:
Origins of Jain Migration into Murshidabad
Please send news, events, photos, videos and what not about shaharwali society. we want to preserve our culture.
Thanks,
Jyoti Kothari
Wednesday, July 29, 2009
Message from Ms. Riju
I have got a message from Ms. Riju and the same is reproduced for your perusal. This is all about her topic of studies. You may find this useful.
Please send information about events, news, photos, videos etyc to be posted in this blog.
Thanks,
Jyoti Kothari
Original Message:
Hi Jyotiji,
Nice to hear from you. Thank you for the congratulatory message and for making a post on your blog about my graduation.
I studied learning and memory within the eye movement control system in humans. Basically, I looked at how people make accurate eye movements under different conditions and how people remember locations in space. I also studied which brain areas are involved while this is happening by using fMRI (functional magnetic resonance imaging) technology.
I continue to do research in this area, but am also looking for jobs outside of academia right now.
Best regards,
Riju,
सिलामी व व्याह भाग 2
उस समय शादी कम उमर में ही हो जाती थी लेकिन लड़की पियर में ही रहती थी। थोडी बड़ी होने के बाद (मुख्यतः मासिक धर्मं होने के बाद) लड़की को बिदा किया जाता था एवं उसके बाद ही लड़की ससुराल जाती थी। पीहर से बिदा होने की यह रश्म सावन के महीने में ही होती थी इसलिए इसे सावन मोकलाई कहते थे। मोकलाई का अर्थ मारवाडी भाषा में भेजना होता है।
अजीमगंज के बड़े मन्दिर में एक खाता रखा जाता था जिसे केसरिया व्रत का खाता कहते थे। इस खाते में शादी से संवंधित सभी बातें दर्ज की जाती थी। इसमें वर वधु के नाम, माता-पिता, पता आदि सभी बातें दर्ज होती थी। शादी के अवसर पर लड़के वालों से एक निश्चित शुल्क ले कर ही इस खाते में नाम दर्ज किया जाता था। उस राशि में मन्दिर, गुरूजी (यती जी), मन्दिर के पुजारी अदि सभी का हिस्सा होता था। एक प्रकार से यह विवाह की रजिस्ट्री होती थी।
शादी के बाद विदा करते समय लड़की को डोली में बैठा कर भेजा जाता था। इस डोली को झपानक कहते थे। उस समय की औरतें एवं लड़कियां अक्सर झपानक में ही कहीं आया जाया करती थीं। साधारण स्थिति वाले लोगों के यहाँ झपानक नहीं होने पर कोठियों मंगवा लिया जाता था। कुछ समय पूर्व तक राजवाडी (राजा विजय सिंह जी दुधोरिया) में एक झपानक था।
विशेष द्रस्टव्य: ये सारी जानकारी मुझे श्री अशोक सेठिया से मिली है एवं इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ।
यदि आपके पास भी अजीमगंज-जियागंज शहरवाली समाज के वारे में कोई जानकारी हो तो हमें लिखना न भूलें। उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित किया जाएगा।
सिलामी व व्याह भाग 1
प्रस्तुति:
वर्धमान जेम्स
जयपुर की राजमाता गायत्री देवी का निधन
राजमाता गायत्री देवी बंगाल के कूचबिहार राज्य की राज कुमारी थीं एवं अपने समय की अद्वितीय सुंदरी। जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह के पोलो खेल पर मुग्ध हो कर उन्होंने उनका वरण किया व जयपुर की महारानी बनीं। महारानी बनने के बावजूद वे महलों की कैद हो कर नहीं रहीं। उन्होंने जन सेवा के लिए अपने आपको समर्पित किया। भारत स्वतंत्र होने के बाद वे राजनीती में भी आईं व तत्कालीन कांग्रेस सरकार का जम कर विरोध किया। उन्होंने स्वतंत्र पार्टी की स्थापना कर उससे चुनाव लड़ा व जयपुर से सांसद रहीं। जब १९७६ में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा की तो उन्होंने इसका डट कर विरोध किया। उन्हें उस समय इस विरोध की सजा भी भुगतनी पड़ी एवं वे ६ महीने तक कारागार में भी रहीं। भारतीय जनता पार्टी में राजमाता विजया राजे सिंधिया के बाद उन्ही का नाम लिया जाता था।
१९८९ में उनके लड़के व जयपुर महाराजा कर्नल भवानी सिंह ने कांग्रेस पार्टी से सांसद का चुनाव लड़ा तव उन्होंने बेटे के स्थान पर तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार गिरधारीलाल भार्गव का समर्थन किया। स्वर्गीय गिरधारीलाल भार्गव का सांसद के लिए वह पहला चुनाव था एवं उस चुनाव में वे ८० हज़ार से भी अधिक मतों से विजयी रहे थे। स्वर्गीय सांसद गिरधारीलाल भार्गव इस बात के लिए सदैव राजमाता का एहसान मानते थे।
आज राजमाता हमारे बीच नहीं रहीं पर जयपुर की जनता उन्हें सदैव स्मरण करती रहेगी।
प्रस्तुति:
वर्धमान जेम्स
Tuesday, July 28, 2009
JAS 2009
Exhibitors mainly exhibit Jewelry and not much color stones. Some nice emeralds were exhibited there.
Visitors from all over India came to visit the show. Exhibitors told that they had a moderate sale and this is OK during this recession.
Important post for investors
Posted by:
Vardhaman Gems
Requirements in Emerald
Vardhaman Gems@yahoo.com.
Thanks,
Jyoti Kothari
Vardhaman Gems
Riju Srimal got her Ph. D in Neuroscience
we Azimganzites are proud of her. I wish more successes and achievements in her life.
Please congratulate Ms. Riju in the comments section.
An appeal to all Shaharwali
Presented by:
Vardhaman Gems
Monday, July 27, 2009
My Paryushan 2009 at Kolkata
Samvatsari Pratikramana will be on 24th August.
He will be there from 17 to 24 August 2009.
Paryushan Pravachan: Jyoti Kothari
Posted by:
Vardhaman Gems
Centuries old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry
Shree Neminath Swami Janma Kalyanaka
As all of you know that Sadhwi Shashiprabha Shree ji with three of her disciples are staying in Azimganj for Chaturmas। Azimganj Sri Sangh has been organizing several events
Azimganj Sri Sangh organized Shree Neminath Swami Janma Kalyanaka at Shree Neminath Swami Jain temple, Azimganj on sunday, 26 July, 2009. Neminath Swami is the 22nd Tirthankar and the Principal deity of Azimganj.
Mr. Amit, who is with Sadhwi Shree, has informed about the event.
Presented by:
Vardhaman Gems
Sunday, July 26, 2009
गोष्ठी: श्रावण मास में शिव आराधना
गुलाबी नगर विचार मंच की गोष्ठी "श्रावण मास में शिव आराधना" में मुख्या वक्ता के रूप में बोलते हुए गलता पीठाधीश्वर श्री अवधेशाचार्य ने कहा की श्रावण मास का नक्षत्र श्रवण है एवं चंद्रमा उसका स्वामी है। शिव की आराधना भी शीतल मन से करनी चाहिए। शिव की आराधना सभी अनिष्ट व अमंगल दूर करती है. जगत कल्याण कारक होने से शिव को शंकर कहा जाता है। शिव जल्दी तुष्ट होते हैं इसलिए उन्हें आशुतोष कहा जाता है. वे औघड़ दानी भी हैं. श्रावण मास में शिव जी की आराधना करनी चाहिए। अराधना भक्ति, आस्था व धैर्य के साथ करने से फलप्रद होती है।
अध्यक्षीय उद्वोधन में सत्य नारायण शर्मा "कलाकार" ने कहा की जयपुर का राज घराना शिव भक्त अर्थात शैव था। एक समय यहाँ राज आज्ञा प्रसारित हुई थी की हर देवालय में शिव मूर्ति होना आवश्यक है। उन्होंने आग्रह किया की सांप्रदायिक विद्वेष छोड़ कर समन्वय का रास्ता अपनाते हुए शैव, वैष्णव, शाक्त सभी को एक दुसरे का आदर करना चाहिए.
गोष्ठी में वैद्य हरिमोहन शर्मा, ज्योति कोठारी, मिर्जा हबीब बैग "पारस", चावला जी आदि ने भी अपने विचार रखे। गोष्ठी का संचालन मंच के अतिरिक्त संयोजक ज्योति कोठारी ने किया। धन्यवाद पूर्व मंत्री डा. उजला अरोरा ने व्यक्त किया।
सभा के अंत में कारगिल के वीरों को श्रद्धांजलि दी गई। प्रख्यात संगीतज्ञ गंगू बाई हंगल के निधन पर भी शोक व्यक्त किया गया।
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Posted by:
Jyoti Kothari
Vardhaman Gems
Centuries old tradition of excellence in Gems and Jewelry
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Saturday, July 25, 2009
Friday, July 24, 2009
Video: Noted artist Shekhar Sen appeals
Presented by:
Vardhaman Gems
Parshwa Padmavati Mahapujan to be held at Shivji Ram Bhawan, Jaipur
Shree Chandra Prakash Prakash Chand Lodha will sponsor the Mahapujan. Jain Vidhikarak Yashwant Golchha will perform all Vidhi Vidhan of the Pooja.
It is expected that 250 to 300 couples will participate in this Mahapujan. Mahapujan will be followed by Sadharmi Vatsalya.
Please view for the details of Pujan held on 9 August
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Jyoti Kothari