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Monday, December 16, 2024

पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी महाराज से मेरी पहली मुलाकात: एक संस्मरण


पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी


पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी महाराज साहब को कौन नहीं जनता? अपने समय के धुरंधर वक्ता, तार्किक, जैन सिद्धांतों के ज्ञाता, धुरंधर आचार्य के सामान एवं युवा ह्रदय सम्राट पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी महाराज साहब! उनकी प्रेरणा से स्थापित "वीर सैनिक" ने जिनशासन की महती सेवा की है. नवसारी एवं अहमदाबाद में स्थापित "तपोवन" आज भी विद्या अध्ययन का अग्रिम केंद्र है.  


मेरी पहली मुलाकात: एक संस्मरण

बात काफी पुरानी है, १९८० के दशक की. उस समय पूज्यश्री जैन गगनांगन में मध्यान्ह के सूर्य के सामान दीप्तिमान थे और मैं था एक २०-२५ वर्ष का अल्पायु युवा. पूज्य श्री अपने बिहार क्रम में गुजरात के एक छोटे से स्थान पर विराजमान थे और मैं प्रवास करते हुए वहां पहुंचा था. राजकोट के नजदीक था वह स्थान. मैं दोपहर के समय उपाश्रय में पहुंचा तह पूज्य श्री अकेले बैठे थे, मैं उनके पास पहुंचा, वंदन उपरांत वार्तालाप प्रारम्भ हुआ. हमारा कोई पूर्व परिचय नहीं था, ये पहली मुलाकात थी और किसीने कोई परिचय भी नहीं करवाया था. 

वार्तालाप चर्चा में, और चर्चा वाद में परिवर्तित हो गया. पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी जैन सिद्धांतों के ज्ञाता एवं प्रौढ़ तार्किक थे. युक्ति और तर्कों के माध्यम से वार्तालाप चलता रहा. लगभग ४०-४५ मिनट के बाद पूज्य श्री के चेहरे पर थोड़े आश्चर्य का भाव था, उन्होंने मुझ से पूछा "तुम हो कौन?"  मैंने कहा, "आचार्य भगवंत का शिष्य". (उस समय समुदाय में पूज्य आचार्य भगवंत भुवनभानु सूरी जी महाराज साहब को सभी आचार्य भगवंत कहते थे.)  पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय जी ने कहा "तभी इतनी बात कर रहे हो, अन्यथा कोई मेरे से इतनी देर वाद नहीं कर सकता."

पूज्य आचार्य भगवंत भुवनभानु सूरी जी महाराज साहब चंद्रशेखर विजय जी के बड़े गुरु भाई थे और पूज्य श्री उन्हें गुरु के जैसा सन्मान देते थे. उसके बाद वार्तालाप ने अलग रूप ले लिया. जैसे एक छोटे शिष्य को बड़े शिष्य समझाते हैं. मुझे उनका पूरा वात्सल्य मिला. सौभाग्य से आज भी उनके समुदाय में वही वात्सल्य मुझे प्राप्त है. 

पूज्य आचार्य भगवंत भुवनभानु सूरी जी महाराज साहब 


युवावस्था में पूज्य आचार्य भगवंत श्री कलापूर्ण सूरीश्वर जी महाराज के पास जैन शास्त्रों का अध्ययन कर रहा था. प्रशमरति प्रकरण के बाद हरिभद्र सूरी, उपाध्याय यशोविजय जी, अध्यात्मयोगी पं. श्रीमद देवचन्दजी आदि के लगभग ३० ग्रंथों का अध्ययन आचार्य श्री की निश्रा में किया. उन्होंने कुछ विशिष्ट अध्ययन के लिए पूज्य आचार्य भगवंत भुवनभानु सूरी जी महाराज साहब के पास जाने के लिए कहा. पूज्य आचार्य श्री सर्व शास्त्र विशारद थे. अद्भुत तर्क क्षमता एवं अध्यापन कौशल के धनी थे. उन्होंने तो मुझे पढ़ाया ही, अपने शिष्यों पूज्य आचार्य श्री भद्रगुप्त सूरी जी, धर्मजीत सूरी जी, पन्यास जयशेखर विजय जी, पन्यास अभयशेखर विजय जी (वर्त्तमान में आचार्य) को भी मुझे पढ़ाने के लिए निर्देशित किया. उस समय प्रतिदिन २ से ६ घंटे के बीच इन महापुरुषों के पास अध्ययन करने का लाभ मिला. 

#पूज्य पन्यास चंद्रशेखर विजय, #पूज्य आचार्य कलापूर्ण सूरी, #पूज्य आचार्य भुवनभानु सूरी 

Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Thursday, December 5, 2024

वराह अवतार: भूगोलः सर्वतो वृत्तः

भारत की वैदिक परंपरा  में विष्णु के दस अवतारों की कथा है. इनमे तीसरा अवतार वराह अवतार है. पुराणों के अनुसार असुरों ने पृथ्वी का हरण किया और उसका उद्धार करने के लिए भगवान् विष्णु ने वराह अवतार धारण कर समुद्र से पृथ्वी का उद्धार किया. ऐसी प्राचीन प्रतिमाएं प्राप्त होती है जिसमे वराह अवतार पृथ्वी को धारण किये हुए हैं. इसमें पृथ्वी को गोलकार (गेंद के जैसा) दिखाया गया है. इससे यह जानकारी मिलती है की भारत की प्राचीन परंपरा में पृथ्वी के गोलक स्वरुप की जानकारी थी जबकि पश्चिमी देशों की सभ्यताओं में इसे चपटा ही माना गया है. 


 

प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक एवं खगोल शास्त्री आर्यभट के आर्यभटीय, गोलपाद, श्लोक 6 में भी पृथ्वी के गोलक स्वरुप की पुष्टि की गई है. 

वृत्तभपञ्जरमध्ये कक्षापरिवेष्टित: खमध्यगत:।
मृज्जलशिखिवायुमयो भूगोलः सर्वतो वृत्तः॥ (आर्यभटीय, गोलपाद, श्लोक 6)

हिंदी अनुवाद: वृत्तीय बंधन के भीतर, जो आकाश के मध्य में स्थित है,
वह पृथ्वी जल, मिट्टी, वायु और अग्नि से निर्मित है और सर्वत्र वृत्ताकार रूप में व्याप्त है।

(यह श्लोक पृथ्वी और उसके आस-पास के वातावरण का ब्रह्मांडीय (खगोलीय) संदर्भ में वर्णन करता है, जिसमें प्रकृति के तत्वों का उपयोग पृथ्वी की संरचना और ब्रह्मांड में उसके गोलाकार रूप को उजागर करने के लिए किया गया है।)

English Translation: Within the spherical cage, situated in the center of the sky,
The Earth, composed of water, earth, fire, and air, is circular and pervades all around.

(This shloka describes the Earth and its surroundings in a cosmological context, using elements of nature to highlight the structure and spherical form of the Earth within the cosmos.)

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Friday, November 8, 2024

नचिकेता गुरुकुल: भारतीय संस्कृति को समर्पित संस्थान


नचिकेता गुरुकुल: भारतीय संस्कृति को समर्पित एक संस्थान है जहाँ विद्यार्थियों को सामान्य विद्यालयीन/ महाविद्यालयीन शिक्षा के साथ साथ भारतीय संस्कृति एवं जीवन शैली की शिक्षा दी जाती है. निम्न आय वर्ग के प्रतिभाशाली एवं मेधावी विद्यार्थियों के लिए यह सुविधा समाज के द्वारा उपलब्ध कराइ जाती है. नचिकेता गुरुकुल का एक आवासीय परिसर मानसरोवर, जयपुर में स्थित है. इस परिसर में छात्रों के निःशुल्क आवास एवं भोजन की व्यवस्था की जाती है. छात्राओं के लिए एक अलग परिसर है. 

गुरुकुल के छात्र निकटवर्ती विद्यालय/ महाविद्यालयों में पढ़ते हैं. इन विद्यालय/ महाविद्यालयों के शुल्क में भी गुरुकुल द्वारा सहयोग किया जाता है. साथ ही विद्यार्थियों को सरकारी सहायता दिलाने में भी सहयोग किया जाता है जिससे छात्रों का निजी व्यय शून्य अथवा नाममात्र का रह जाता है. कक्षा ११वीं एवं १२वीं एवं महाविद्यालय स्तर के विद्यार्थियों को नचिकेता गुरुकुल में प्रवेश मिलता है.  

नचिकेता गुरुकुल छात्रावास का उद्देश्य 

नचिकेता गुरुकुल का उद्देश्य विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति के अनुसार शिक्षा प्रदान कर उन्हें राष्ट्रवादी, कर्तव्यनिष्ठ, संवेदनशील नागरिक बनाना है. गुरुकुल का उद्देश्य विद्यार्थियों का सर्वांगीण (शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक) विकास है. 

भारतीय समाज में ऐसे अनेक मेधावी, परिश्रमी एवं प्रतिभाशाली छात्र हैं जिन्हे आर्थिक एवं अन्य कारणों से उचित शिक्षा नहीं मिल पति. सुदूर ग्रामीण अंचलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उपलब्धता सीमित है जबकि बड़े शहरों एवं नगरों- महानगरों में यह सुविधा सहज उपलब्ध है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रायः महंगी होने के कारन निम्न एवं माध्यम आयवर्ग के छात्र/ छात्राओं के लिए प्राप्त होना कठिन होता है. इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए इस गुरुकुल की स्थापना की गई जिससे मेधावी एवं होनहार छात्र/छात्राओं को समुचित एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके. 

आज की सामान्य शिक्षा प्रायः रोजगार दिलाने में असफल है. इसके लिए आवश्यकता है अतिरिक्त परिश्रम की. पेशेवर शिक्षा प्राप्त करने हेतु अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना पड़ता है. इन बातों को ध्यान में रखते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु उपयुक्त कोचिंग की भी व्यवस्था की गई है. 

आज  की व्यवस्था में नैतिक शिक्षा का अभाव सा है. भारतीय संस्कृति के प्रति उदासीन एवं पाश्चात्य संस्कृति के रंग में ढली हुई है आज की शिक्षा व्यवस्था. विद्यार्थियों को संवेदनशील, सामाजिक, एवं कर्तव्यनिष्ठ बनाने में आज की व्यवस्था शायद ही सक्षम है. इसलिए पढाई के अतिरिक्त विद्यार्थियों में संस्कार देने का कार्य भी यहाँ किया जाता है. 

चयन प्रक्रिया 

नचिकेता गुरुकुल में प्रवेश लेने हेतु बालक/बालिकाओं को निर्धारित चयन प्रक्रिया से गुजरना होता है. १० वीं एवं १२ वीं में ७५ प्रतिशत से अधिक अंकों से उत्तीर्ण विद्यार्थी अपने विद्यालय के माध्यम से निर्धारित प्रपत्र भर कर प्रवेश के लिए आवेदन कर सकते हैं. योग्य विद्यार्थियों को इसके बाद गुरुकुल द्वारा निर्धारित एक लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करना होता है. 

लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण विद्यार्थियों का चयन समिति द्वारा साक्षात्कार लिया जाता है उसके बाद विद्यार्थी का प्रवेश के लिए चयन होता है. विद्यार्थियों की आर्थिक पृष्ठभूमि का भी ध्यान रखा जाता है. सामान्यतः निम्न आय वर्ग एवं ग्रामीण पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों को ही प्रवेश दिया जाता है. 

गुरुकुल के नियम 

चयनित विद्यार्थियों को प्रवेश के बाद गुरुकुल में रहने हेतु निर्धारित नियमों का पालन करना होता है. उन्हें अनुशासन में रहते हुए अपनी पढाई के साथ अन्य गतिविधियों में सम्मिलित होना होता है. सुबह जल्दी उठना, अनुशासन बनाये रखना, छात्रावास के अधिष्ठाता एवं अन्य अधिकारीयों के आज्ञा का पालन करना आदि आवश्यक कर्तव्य हैं. उद्दंड एवं अनुशासनहीन विद्यार्थियों को गुरुकुल से पृथक कर दिया जाता है. 

नचिकेता गुरुकुल की अन्य गतिविधियां 

नचिकेता गुरुकुल भारतीय संस्कृति के उत्थान एवं विकास हेतु समर्पित संस्था है. इसकी छात्रावास के अतिरिक्त अन्य भी कई सामाजिक, सांस्कृतिक , शैक्षिक गतिविधियां है. जैसे आध्यात्मिक सत्संग केंद्र, युवा क्रीड़ा केंद्र, कच्ची बस्तियों में पाठशाला, जन संवाद केंद्र आदि. इसके अतिरिक्त छात्रों को छात्रवृत्ति देने की व्यवस्था भी है. 

आध्यात्मिक सत्संग केंद्र

राजस्थान के विभिन्न स्थानों में लगभग ५०० नचिकेता आध्यात्मिक सत्संग केंद्र चल रहे हैं. इनमे स्थानीय महिलाएं सत्संग करती हैं, भजन कीर्तन करतीं हैं. नचिकेता गुरुकुल द्वारा उन्हें सत्संग की सामग्री निःशुल्क उपलब्ध कराइ जाती है.  समय समय पर इन आध्यात्मिक केंद्रों का सम्मलेन आयोजित किया जाता है. मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में आध्यात्मिक सत्संग केंद्र संचालित हैं. जैन मित्र श्री शैलेन्द्र जी घीया के प्रमुख आर्थिक सहयोग से इन केंद्रों की स्थापना की गई. 

युवा क्रीड़ा केंद्र 

महिला आध्यात्मिक सत्संग केंद्र की तरह युवाओं के लिए पुरे राजस्थान में लगभग ७०० युवा क्रीड़ा केंद्र संचालित है. युवाओं में शारीरिक, मानसिक दृढ़ता बढ़ने, उन्हें नशे आदि की प्रवृत्ति से दूर रखने आदि उद्देश्यों के लिए इन क्रीड़ा केंद्रों का सञ्चालन किया जाता है. यहाँ पर युवा वर्ग वॉलीबॉल खेलने का अभ्यास करते हैं. इन केंद्रों में भी खेल की सामग्री नचिकेता गुरुकुल द्वारा उपलब्ध कराइ गई है. जैन मित्र श्री शैलेन्द्र जी घीया के प्रमुख आर्थिक सहयोग से इन केंद्रों की भी स्थापना की गई. 

महिला छात्रवृत्ति योजना 

राजस्थान की विद्यालय/महाविद्यालय स्तर की मेधावी परन्तु निम्न आय वर्ग की छात्राओं को अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति दी जाती है. ये छात्राएं गुरुकुल में अध्ययनरत छात्राओं के अतिरिक्त हैं. इस वर्ष ७० मेधावी छात्राओं को छात्रवृत्ति प्रदान की गई. श्री विश्वास जी जैन के आर्थिक सहयोग से यह छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है. 

जन संवाद केंद्र

भारत की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने हेतु जनमानस को समझना एवं उनसे संवाद बनाये रखना आवश्यक है. पारम्परिक रूप से यह काम परष्पर मेलजोल, चौपाल, सभा, आदि माध्यमों से होता आया है. वर्तमान युग में सोशल मीडिया इस कार्य में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. ऑडियो, वीडियो, पॉडकास्ट आदि के माध्यम से जनसम्पर्क बनाये रखा जा रहा है. गुरुकुल की विभिन्न गतिविधियों के प्रसारण हेतु एक यूट्यूब चैनल है जिसका लिंक 

इस कार्यक्रम को विस्तार देने एवं इसे आधुनिक बनाने हेतु गुरुकुल परिसर में एक अत्याधुनिक स्टूडियो एवं पॉडकास्ट सेंटर भी बनाया गया है. शीघ्र ही एक नया पॉडकास्ट चैनल भी प्रारम्भ किया जायेगा. 

स्थापना दिवस 

भारतीय संस्कृति में स्वामी विवेकानद को एक आदर्श व्यक्तित्व माना गया है. अनेक युवा उनके आदर्श से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे. आज भी उनकी वाणी एवं लेखन युवाओं में जोश भरती है और उन्हें कर्तव्यपथ पर अडिग रहने की प्रेरणा देती है. 

स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को ध्यान में रखते हुए उनके जन्मदिवस १२ जनवरी को गुरुकुल की स्थापना की गई. प्रतिवर्ष समारोह पूर्वक उसी दिन गुरुकुल का स्थापना दिवस मनाया जाता है. 

सञ्चालन (प्रवंधन) समिति 

नचिकेता गुरुकुल की एक प्रवंधन समिति है जो इसकी गतिवधियों का सञ्चालन करती है. संस्थापक सदस्यों की पांच सदस्यीय स्थाई समिति है. इसके अतिरिक्त प्रवन्ध समिति का प्रतिवर्ष साधारण सभा के माध्यम से चुनाव होता है. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष आदि निर्वाचित पदाधिकारियों के माध्यम से गुरुकुल की सभी व्यवस्थाओं का सञ्चालन होता है.

आर्थिक व्यवस्था  

नचिकेता गुरुकुल एक धर्मार्थ संस्था है. इसके आय का कोई नियमित स्रोत नहीं है, न ही इसे कोई सरकारी सहायता प्राप्त होती है. यह सामान्यतः अपने लाभार्थिओं से किसी प्रकार का कोई शुल्क आदि भी नहीं लेता है. सारी आर्थिक व्यवस्था दानदाता भामाशाहों के माध्यम से ही होती है. संस्था के स्थाई, आजीवन, एवं साधारण सदस्य प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि समर्पित करते हैं. इसके अतिरिक्त समाज के भामाशाहों स दान के रूप में सहयोग प्राप्त किया जाता है जिससे सारी व्यवस्थाएं संचालित होती है. 

संस्था के आय-व्यय का पूरा लेखा जोखा रखा जाता है एवं प्रतिवर्ष नियमानुसार अंकेक्षण (Audit) भी होता है. संस्था को दिया हुआ दान आयकर की धारा 80 G के अनुसार करमुक्त है. नचिकेता गुरुकुल CSR के लिए अधिकृत है एवं FCRA के लिए भी पंजीकृत है. 

धन्यवाद


ज्योति कुमार कोठारी 
कार्यकारी अध्यक्ष,
नचिकेता गुरुकुल, जयपुर 


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Monday, September 23, 2024

हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला जयपुर 2024

हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला जयपुर 2024 

२६ सितम्बर से ३० सितम्बर २०२४ 


राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर के दशहरा मैदान, आदर्शनगर में विशाल हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले का आयोजन दिनांक २६ सितम्बर से ३० सितम्बर, २०२४ तक होने जा रहा है. 

हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला जयपुर 2024 



आध्यात्मिक/धार्मिक/सामाजिक/सेवाभावी संस्थाओं की प्रदर्शनी 

इस हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले में एक प्रदर्शनी भी आयोजित की जा रही है जिसमे राजस्थान की लगभग २०० आध्यात्मिक/धार्मिक/सामाजिक/सेवाभावी संस्थाएं अपने सेवाकार्यों को प्रदर्शित करेंगी. इन सभी सेवार्थ संस्थाओं को  मेला आयोजकों की ओर से निःशुल्क स्टॉल उपलब्ध कराया गया है. साथ ही सभी स्टॉल आयोजनों को निशुल्क भोजन भी प्रदान किया जायेगा. जयपुर के बाहर से आनेवाले प्रदर्शन कर्ताओं के लिए मेला स्थल के निकटवर्ती स्थानीय भाटिया भवन, राजा पार्क में निःशुल्क आवास व्यवस्था भी प्रदान की गई है. 

विज्ञानं एवं कला प्रदर्शनी 

इस हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले में विज्ञानं से सम्बंधित एक प्रदर्शनी का भी आयोजन रहेगा, जिसमे विद्यार्थियों द्वारा विज्ञानं मॉडल प्रदर्शित किया जायेगा. साथ ही एक कला प्रदर्शनी भी होगी जिसमे चित्रकार अपनी चित्रकला का प्रदर्शन करेंगे. इस कार्यक्रम को अभिव्यक्ति नाम दिया गया है. इसके माध्यम से कलाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा एवं उनके जीविका उपार्जन में सहयोग भी. 

कन्या सुवासिनी वंदन, गंगा-भूमि वंदन, वृक्ष-गौ तुलसी वंदन, आचार्य वंदन 

कन्या सुवासिनी वंदन-मातुश्री अहिल्या बाई होल्कर


प्राचीन भारतीय संस्कृति को पुनरुज्जीवित करने हेतु इस हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले में अनेक धार्मिक सांस्कृतिक आयोजन भी रखे गए हैं. जिनमे कन्या सुवासिनी वंदन, गंगा- भूमि वंदन, वृक्ष-गौ-तुलसी वंदन, आचार्य वंदन (शिक्षक वंदन), मातृ-पितृ वंदन, परमवीर वंदन आदि प्रमुख हैं. इन सबके माध्यम से पारिवारिक व्यवस्था, गुरु शिष्य परम्परा एवं धार्मिक सामाजिक आस्थाओं को वल मिलेगा. साथ ही पूर्व सैनिकों के सनमामनार्थ परमवीर वंदन देशप्रेम एवं सत्वशीलता की भावना को प्रगट करनेवाला होगा. 


मातृ-पितृ वंदन-समरस भारत संगम 

इन सबके अतिरिक्त अनेक पूज्य साधु संतों के प्रवचन, भक्तामर पाठ, सामाजिक समरसता कार्यक्रम आदि अनेक कार्यक्रम होंगे. 

उद्घाटन समारोह 



इस मेले का उद्घाटन भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप जी धनखड़ के कर कमलों से होगा. समारोह में परम पूज्य जगत गुरु निम्बार्काचार्य जी, साध्वी ऋतम्भरा जी, स्वामी चिदानंद सरस्वती आदि अनेक प्रमुख धार्मिक संत का सान्निध्य प्राप्त होगा. साथ ही देव सांस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पांड्या का भी सान्निध्य रहेगा.  २६ सितम्बर सायं ४ बजे से उद्घाटन कार्यक्रम रहेगा. 

सांस्कृतिक कार्यक्रम 

कत्थक विविधा 


इस ५ दिवसीय मेले में प्रतिदिन अनेक मनोरंजक कार्यक्रम भी होंगे. २७ सितम्बर सायं ७ बजे मातुश्री अहिल्या बाई होल्कर नाटक का मंचन होगा. २८ तारिख कत्थक विविधा का आयोजन रहेगा जबकि २९ की शाम धरती राजस्थान री में राजस्थान की प्रतिभाएं अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगी. अनेक प्रतिष्ठित एवं उदीयमान कलाकार अलग अलग सत्रों में अपनी संगीत प्रतिभा का परिचय देंगे. इस प्रकार के अनेक स्वस्थ्य, सुरुचिपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रतिदिन रात्रि में आयोजन होगा.  

आगामी हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला 

देश के विभिन्न प्रांतों में हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले का आयोजन होता रहता है जिससे देश के सभी राज्यों के आध्यात्मिक/धार्मिक/सामाजिक/सेवाभावी संस्थाएं अपने सेवाकार्यों को प्रदर्शित कर सकें. यह वास्तव में एक अखिल भारतीय उपक्रम है. निकट भविष्य में होनेवाले हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले का स्थान एवं समय निम्नरूप है. 

७ से १४ नवम्बर २०२४- हैदराबाद, तेलंगाना  

२८ नवम्बर से १ दिसंबर २०२४ - इंदौर, मध्यप्रदेश  

१९ से २२ दिसंबर २०२४- पुणे 

९ से १२ जनवरी २०२५- मुंबई 

२३ से २६ जनवरी २०२५- अहमदाबाद 

HSS Fairs Shortly 

7th to 10th November 2024 at Hyderabad, Telangana
28th Nov. to 1st December 2024 at Indore, MP
19 to 22 December 2024 at Pune, Maharashtra 
9 to 12 January 2025 at Mumbai, Maharashtra 
23 to 26 January 2025 at Ahmadabad, Gujrat 
 
Thanks, 

Jyoti Kothari 

 (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, to Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)


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Thursday, September 5, 2024

बेले तेले को छट्ठ अट्ठम क्यों कहते हैं? प्राकृत जैन पारिभाषिक शब्दावली


अभी एक व्हाट्सएप पोस्ट पर मैंने बेले के लिए छट्ठ एवं तेले के लिए अट्ठम शब्द का उपयोग किया था, उसके बाद लोगों के फोन आने लगे की इसका अर्थ क्या है? इसने मुझे ये पोस्ट लिखने के लिए प्रेरित किया जिससे लोग प्राकृत भाषा के जैन पारिभाषिक शब्दों से परिचित हो सकें,  साथ ही प्राचीन भारतीय एवं जैन परम्पराओं को समझ सकें. 

त्याग प्रधान भारतीय एवं जैन संस्कृति

त्याग प्रधान भारतीय एवं जैन संस्कृति में एक-एक समय के भोजन त्याग का महत्व था. जैन परंपरा में भोजन त्याग को अनशन कहा जाता था, जो आज भी सामान्य भाषा में प्रचलित है. कालक्रम में इसे उपवास कहा जाने लगा और सामान्यतः पुरे दिन रात के भोजन त्याग को उपवास कहा गया. 

धारणा और पारणा

प्राचीन भारतीय संस्कृति में सामान्यतः एक दिन में दो बार भोजन लिया जाता था. इस हिसाब से दो वक्त के आहार त्याग को उपवास की संज्ञा दी गई. लेकिन जैन परंपरा की अपनी एक विशिष्टता है. इसमें उपवास के पूर्व दिवस मन को सम्पूर्ण आहार त्याग के लिए तैयार करने हेतु एक दिन पहले एक समय के भोजन त्याग कर उपवास की "धारणा" की जाती थी. उपवास की धारणा अर्थात मन में आहार त्याग की भावना से दृढ करना. इसी प्रकार 'पारणा' के दिन भी एकासन कर उपवास की अनुमोदना की जाती थी. 

उपवास, बेला, तेला: चउत्थ, छट्ठ और अट्ठम  

उपवास के पहले दिन एक समय का भोजन का त्याग, उपवास के दिन दो समय का भोजन त्याग, एवं एक दिन बाद भी एक समय का भोजन का त्याग- इस प्रकार कुल चार समय के भोजन का त्याग होता था. चार को प्राकृत भाषा में   चऊ और भोजन को भत्त कहते हैं इसलिए एक उपवास के लिए 'चउत्थ भत्त' शब्द का प्रयोग होता है, अर्थात चार बार के भोजन का त्याग. यहाँ ये भी जानने योग्य है की भत्त शब्द ही आगे चल कर भात और भाता में परिवर्तित हुआ. प्राचीन कल में भारतीयों का मुख्य भोजन चावल था था और उसे देशी भाषा में भट कहा जाता है. इसी प्रकार सफर में साथ ले जाये जाने वाले भोजन को भाता कहते हैं. 

इसी प्रकार दो दिन का उपवास अर्थात बेले में- दो दिन के चार बार और आगे पीछे के दिनों के दो बार ऐसे छह समय के भोजन का त्याग होता है और इसे 'छट्ठ भत्त' कहते हैं. तेले में तीन दिन के छ बार और आगे पीछे के दिनों के दो बार इस प्रकार आठ बार भोजन का त्याग होने से 'अट्ठम भत्त' कहते हैं. इन्हे ही संक्षेप में चउत्थ, छट्ठ और अट्ठम  कहा जाता है. 

कैसे करें गणना 

एक, दो और तीन उपवास की गणना ऊपर बताई गई. इससे ज्यादा उपवास को क्या कहा जायेगा? इसकी गणना का एक सरल नियम या फार्मूला है. जितने उपवास हों उसे दो से गुणा कर उसमे दो जोड़ दिया जाये तो सटीक जैन पारिभाषिक संख्या आ जाएगी. उसके अनुसार चार उपवास के लिए 4X2+2  अर्थात 10, ५ के लिए १२. 6 के लिए 14..... इस प्रकार आगे बढ़ते जाएँ. इन्ही संख्याओं को प्राकृत भाषामे दसम भत्त, दुवालसम भत्त, चउदसम भत्त ....... आदि कहा जाता है. पच्चक्खाण करते समय इसी प्रकार के शब्दों का उपयोग किया जाता है. 

अब सभी को समझ आ गया होगा की बेले तेले को छट्ठ अट्ठम क्यों कहते हैं.

धन्यवाद, 
ज्योति कोठारी 

Tags बेला, तेला, छट्ठ, अट्ठम,  प्राकृत भाषा, जैन धर्म, उपवास, 

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Tuesday, June 25, 2024

जैन साधु साध्वी बिहार: सड़क दुर्घटना से कैसे बचें

 
आये दिन बिहार रत जैन साधु साध्वियों की सड़क दुर्घटनाओं में  कालधर्म होने अथवा गंभीर रूप से घायल होने के समाचार मिलते रहते हैं. हम अपने संघ के अनमोल रत्नों को खो देते हैं. ऐसी हर एक घटना जैन समाज को झकझोर देती है. समय समय पर होनेवाली इन घटनाओं पर विचार मंथन भी होता है परन्तु यह होता है सतही तौर पर. दुर्घटना घटती है, दो चार दिन चिंता व्यक्त की जाती है और हम फिर पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं. वही ढाक के तीन पात. 

अभी अभी परम पूज्या खरतर गच्छीय प्रवर्तिनी साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज के दुर्घटना में कालधर्म होने का समाचार मिला. वो कोलकाता से बिहार कर रहीं थीं और कोलकाता के पास पांशकुड़ा में दुर्घटना घाट गई. प्रवर्तिनी जी से मेरा ४० वर्षों का घनिष्ठ संपर्क रहा है. घटना ने मुझे भी झकझोर दिया और यह लेख लिखणो को प्रेरित कर दिया. 

पूज्य जैन साधु साध्वियों के बिहार में दुर्घटना की समस्या 


आखिर ये समस्या क्या है और क्यों है? प्रायः जैन साधु साध्वी सुबह जल्दी बिहार करते हैं, इस समय थोड़ा अँधेरा भी रहता है. रात भर गाड़ी चलकर बाहन चालक भी थके हुए होते हैं और खाली सड़क में तेज गति से बाहन चलाते हैं. कई बार चालक नशे में भी होते हैं. सुबह के समय थके हुए बाहन चालक को नींद आना भी स्वाभाविक है. ऐसे समय में पैदल चलते हुए अथवा व्हील चेयर में चलते हुए साधु साध्वियों के साथ दुर्घटना हो जाती है. भारत में अपर्याप्त सड़क और बढ़ते हुए बाहन की समस्या तो है ही. 

श्वेताम्बर जैन साधु साध्वी सफ़ेद कपडे पहनते हैं और कईबार दूर से इनको देख कर अंधविश्वासी इन्हे बहुत-प्रेत भी समझ लेते हैं. यह भय भी कई बार दुर्घटना का कारण बनता है. जैन साधु साध्वी ज्यादातर समूह में चलते हैं और कई बार तेज गति के बाहन से अफरा तफरी मच जाती है और ये दुर्घटना का कारण बनता है. साथ ही रस्ते में जप करते हुए चलना, या बातें करते हुए चलना भी असावधानी का कारण बनता है और सड़क दुर्घटनाएं होती है. 

पूज्य जैन साधु साध्वियों के बिहार में दुर्घटना का समाधान 

इन दुर्घटनाओं का समाधान क्या? बहुत से लोग इन दुर्घटनाओं के समाधान के लिए समय समय पर सुझाव देते हैं. परन्तु इन सतही सुझावों से इसका समाधान नहीं हुआ और न ही होनेवाला है. भगवान महावीर स्वामी अपने संघ के साधु साध्वियों के आचरण के लिए अनेक नियम उपनियम बताये हैं. उन नियमों का पालन नहीं करना अनेक संकटों को जन्म देता है. आइये, जानते हैं साधु साध्वियों बिहार के उन मूल नियमों को और ये भी की उससे दुर्घटनाओं की समस्या कैसे कम हो सकती है? 

गृहस्थ प्रायः नियत बिहारी होता है परन्तु साधु साध्वी अनियत बिहारी. अर्थात गृहस्थ प्रायः निश्चित कार्यक्रम के अनुसार यात्रा करता है जैसे हम कहीं आने जाने की पहले से योजना बनाते हैं, ट्रेन या प्लेन का टिकट बुक करते हैं, होटल या धर्मशाला बुक करते हैं आदि आदि. परन्तु जैन आगमों एवं शास्त्रों के अनुसार साधु साध्वी अनियत बिहारी होते हैं और अपने बिहार की कोई निश्चित योजना नहीं बनाते. साधु साध्वियों के बिहार को सूखे पत्ते की उपमा दी गई है जिसे पवन जहाँ ले जाये वहां पहुँच जाये. 

जबकि आज शास्त्र आज्ञा का उल्लंघन कर बिहार की निश्चित योजना बनाई जाती है, पहुँचने का स्थान और समय निर्धारित किया जाता है. पहुँचने की जल्दी में लम्बे लम्बे बिहार का कार्यक्रम बनता है. और अधिकतर उच्च मार्गों (हाईवे) का उपयोग किया जाता है. चातुर्मास नजदीक होने पर ये घटनाएं और बढ़ जाती है. यदि कार्यक्रम निर्धारित न हो, चातुर्मास निर्धारित न हो,  तो पहुँचने की जल्दी भी नहीं रहेगी और व्यस्त उच्च मार्गों के उपयोग की भी जरुरत नहीं पड़ेगी. 

इसी प्रकार साधु साध्वियों के बिहार के लिए दिन के तीसरे प्रहर अर्थात दोपहर १२ से ३ बजे तक का समय शास्त्रों में निर्धारित किया गया है. जबकि अभी प्रायः बिहार का समय रात्रि के चौथे प्रहर, सुबह ४ बजे से दिन के प्रथम प्रहर सुबह ९ बजे तक हो गया है. चातुर्मास काल से पूर्व भीषण गर्मी के कारण यही समय अनुकूल भी रहता है. इस समय दोपहर के तीसरे प्रहर में बिहार और वो भी लम्बा बिहार असंभव हो जाता है. 

इस समस्या का समाधान क्या ? समाधान आगमों में निहित है. जब चातुर्मास ही निश्चित नहीं होंगे तो लम्बे बिहार की आवश्यकता ही नहीं होगी. जब चल सकें जितना चल सकें उतना चलेंगे. एक बात और भी है उच्च मार्ग और अन्य पक्की सड़कें डामर की होती है जो की गर्मी में बहुत ज्यादा गरम हो जाता है और नंगे पेअर बिहार करना लगभग असंभव हो जाता है. परन्तु कच्ची सड़कें इतनी गरम नहीं होती और उस पर चलना अपेक्षाकृत रूप से आसान होता है. कहीं पहुँचने की वाध्यता नहीं रहेगी तो सहजता से कच्ची सडकों का उपयोग भी कर पाएंगे.  

ऐसी अनेक बातें हैं यहाँ पर संकेत मात्र किया गया है. शेष बातें पूज्य जैनाचार्यों और गीतार्थ गुरु भगवंतों को विचार करना चाहिए।

आचार्य भगवंतों एवं गीतार्थ गुरु भगवंतों के लिए विचारणीय प्रश्न 


यह एक जटिल एवं बहुआयामी समस्या है. इस पर सभी पूज्य जैनाचार्यों और गीतार्थ गुरु भगवंतों को विचार करना चाहिए. विभिन्न आगम ग्रंथों विशेस्कर छेड़ सूत्रों में उत्सर्ग अपवाद मार्ग की गहन चर्चा है. आगमों के अतिरिक्त अनेक पूर्वधर महर्षियों एवं महान पूर्वाचार्यों ने अनेक ग्रंथों की रचना की है उनका अवलोकन कर समस्या के समाधान की दिशा में बढ़ना चाहिए. 

एक बात और, तीर्थंकर भगवन महावीर केवलज्ञानी त्रिकालज्ञ थे और उन्होंने संघ के लिए जो व्यवस्था निर्धारित की  उसमे वर्तमान काल भी उनकी दृष्टि में था. विशेषतः उनकी व्यवस्था पंचम काल को ध्यान में रखकर ही दी हुई है. अतः इस प्रकार की बात करना की यह महावीर के समय के लिए था वर्त्तमान की व्यवस्था के अनुरूप नहीं है आदि उचित नहीं लगता. खैर जो भी हो, वर्त्तमान के सभी आचार्यों और गीतार्थ गुरु भगवंतों को मिलकर आगमानुसार देश काल परिश्थिति का विचार कर इस सम्बन्ध में निर्णय लेना चाहिए. 




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Monday, May 13, 2024

गोदुहिका आसन क्यों, कब और कैसे?



तीर्थंकर परमात्मा भगवान् महावीर ने गोदुहिका आसन में केवल ज्ञान प्राप्त किया था यह बात सर्वविदित है. अभी तीन दिन बाद परमात्मा महावीर का केवल ज्ञान दिवस है. आइये समझते हैं गोदुहिका आसन का महत्व। यह एक गूढ़ विषय पर चर्चा है अतः आपसे निवेदन है की लेख को अंत तक पढ़ें. 

हम जानते हैं की भगवान् महावीर दीक्षा लेने के उपरांत खड़े खड़े (खडगासन) में अधिकांश समय साधना की. दीक्षा के उपरांत कभी भी सुखासन में नहीं बैठे।  इस प्रकार उनकी साधना अत्यंत कठोर थी और इस प्रकार की कठिन साधना कोई बिरले ही महापुरुष कर सकते हैं. अब प्रश्न ये है की जीवन पर्यन्त (12 वर्ष से अधिक) खडगासन में साधना करने के बाद छद्मस्थ अवस्थाके अंतिम पायदान में उन्होंने गोदुहिकासन में साधना क्यों की? 

बाहुवली स्वामी की खडगासन प्रतिमा


  जैन धर्म एवं दर्शन का विद्यार्थी होने के कारण धर्म और दर्शन के गूढ़ रहस्यों को जानने में मेरी हमेशा रूचि रही है. अतः इस विषय पर भी योग एवं ध्यान के विशेषज्ञों से कई बार चर्चा की. इन चर्चाओं में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये. 

गोदुहिकासन एक ऐसा आसन है जो एकाग्रता को बहुत अधिक बढ़ाने वाला है. जैन दर्शन के विद्यार्थी जानते हैं की जब जीव अपने संयम जीवन की परम अवस्था में पहुँचता है तब वह क्षपक श्रेणी चढ़ता है और शुक्ल ध्यान के दूसरे पाद में पहुँच कर चार घाटी कर्मों का समूल उच्छेद कर केवल ज्ञान प्राप्त करता है. इस प्रक्रिया में अनादि काल की परंपरा में संचित अनंत कर्म अन्तर्मुहूर्त (48 मिनट से भी कम समय) में सम्पूर्ण रूप से क्षय हो जाते हैं. इस समय मन की एकाग्रता अपने सर्वोच्च स्तर पर होती है. हमारे वर्त्तमान मानसिक दशा में हम उस मानसिक एकाग्रता की कल्पना भी नहीं कर सकते!!

महावीर स्वामी केवलज्ञान मुद्रा, ऋजुवालिका 

योग एवं ध्यान विशेषज्ञों का कहना था की महावीर की दशा का आकलन हम नहीं कर सकते केवल अनुमान लगा सकते हैं. महावीर अपने सम्पूर्ण साधना काल में अत्यंत एकाग्र थे फिर भी संभवतः एकाग्रता की सर्वोच्च दशा को प्राप्त करने के लिए उन्हें गोदुहिकासन की आवश्यकता मह्सूस हुई होगी. 

जैन आचार्यों एवं मनीषियों ने बारम्बार इस तथ्य को रेखांकित किया है की "महावीर ने किया वो नहीं करना, महावीर ने कहा वो करना".  इसका कारन ये है की महावीर ने जो कहा वो हमारे जैसे जीवों के लिए कहा. वही हमारे करने योग्य है. महावीर का सामर्थ्य असीम था और उस सामर्थ्य से वो जो कुछ भी करते थे या कर सकते थे वो हम हमारे सीमित सामर्थ्य से नहीं कर सकते. इसलिए महावीर की नक़ल करने से लाभ के स्थान पर हानि होने की सम्भावना अधिक है. 

इसे एक उदहारण से समझें. जब हम किसी जिम में जाते हैं तब वहां किसी अत्यंत शक्तिशाली व्यक्ति का चित्र लगा हुआ होता है. जिसकी वलिष्ठ मांसपेशियां हमें बहुत आकर्षित करती है. ऐसा कोई व्यक्ति जब जिम में आकर कसरत करता है और हम उसे देख कर उसकी नक़ल करने लगें तो क्या होगा?

ऐसा कहा जाता है की भारतीय पहलवान स्वर्गीय राममूर्ति रोज हज़ारों की संख्या में दंड बैठक करते थे, क्या हम ऐसा कर सकते हैं? क्या किसी ओलिम्पिक चैंपियन भारोत्तोलक के जैसे सैकड़ो किलो वजन हम भी उठा सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं. हम अपनी क्षमता के अनुसार ही उठा सकते हैं और क्षमता के अनुसार व्यायाम करने से ही वांछित लाभ मिल सकता है. ओलिम्पिक चैंपियन भारोत्तोलक (वेट लिफ्टर) की नक़ल करने से हमारी क्या हालत होगी उसकी केवल कल्पना ही कर सकते हैं. 

सिद्धासन

जैन शास्त्रों में श्रावक एवं सामान्य साधुओं के लिए लिए सुखासन, पद्मासन, सिद्धासन, वीरासन, खडगासन आदि आसन एवं योग मुद्रा, मुक्ताशुक्ति मुद्रा, जिन मुद्रा आदि मुद्राएं बताई है. सामायिक, प्रतिक्रमण, चैत्यवंदन आदि दैनिक क्रियाओं में इन आसनों एवं मुद्राओं का उपयोग होता है.  यथा योग्य समय में इनके अभ्यास से ही बांछित फल की प्राप्ति हो सकती है. ये प्रतिदिन करने योग्य आसान एवं मुद्राएं हैं. इनका निरंतर अभ्यास किये बिना  गोदुहिकासन में बैठना कितना उपयोगी होगा इस पर स्वयं विचार कर लें. 

Thanks, 
Jyoti Kothari 

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Monday, April 29, 2024

सत्वस्फोट शिविर, माउंट आबू : जैन शासन में एक अभिनव प्रयोग



अर्बुद गिरीराज (माउंट आबू) पर प्रभु श्री आदिनाथ की शीतल छाया मे एक ऐसा अद्भुत शिविर जिसमें जैनत्व के साथ होगा राष्ट्रवाद!! 

पोस्टर- सत्वस्फोट शिविर, माउंट आबू


शारीरिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास का स्वर्णिम अवसर. छुट्टियों का सदुपयोग, तीर्थ वंदना का लाभ, संतों का समागम. 

श्वेतांबर/ दिगंबर सभी जैन युवाओं के लिए! सब कुछ निःशुल्क!! आज ही रजिस्ट्रेशन करवाएं एवं अपने जैन मित्रों एवं परिचितों को प्रेरित करें!!

गर्मी की छुट्टियों में अनेक वर्षों से जैन धार्मिक शिविरों का आयोजन होता रहता है जिनमे जैन धर्म एवं अध्यात्म की शिक्षा दी जाती है. इसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनेक वर्ग लगते हैं जहाँ स्वयंसेवकों को शारीरिक सुदृढ़ता के साथ राष्ट्रवाद की शिक्षा प्रदान की जाती है. 19 से 25  मई तक देलवाड़ा मंदिर परिसर, माउंट आबू  में आयोजित सत्वस्फोट शिविर इन दोनों का सुन्दर मिश्रण है. इस शिविर में जैन युवाओं के लिए शारीरिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास का स्वर्णिम अवसर है. 

इस शिविर के लिए भारत भर के युवाओं में उत्साह है. केवल राजस्थान ही नहीं गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्णाटक, तमिलनाडु आदि सभी राज्यों से युवाओं का शिविर के लिए रजिस्ट्रेशन हो रहा है. भारत के बाहर विदेशों से भी कुछ रजिस्ट्रेशन हुए हैं. 

अधिकांश जैन धार्मिक शिविर समुदाय विशेष (जैसे दिगंबर, स्थानकवासी, खरतर गच्छ, तपा गच्छ, तेरापंथी या स्थानकवासी) की परम्पराओं के अनुसार आयोजित होता है एवं उसी संप्रदाय के अनुसार शिक्षा दी जाती है. परन्तु इस शिविर में संप्रदाय निरपेक्ष जैन धर्म के मूल तत्वों का वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में पूज्य जैन आचार्यों द्वारा अध्ययन करवाया जायेगा. बौद्धिक विकास के लिए इतिहास, संस्कृति, व्यवसाय, अर्थनीति आदि विषयों पर भी विषय विशेषज्ञों का बौद्धिक प्राप्त होगा. साथ ही शारीरिक दृढ़ता के विकास हेतु क्रीड़ा विशेषज्ञों द्वारा दण्डयुद्ध, मुष्ठि युद्ध, योगाभ्यास, तलवरवाजी, तीरंदाजी आदि भी सिखाया जायेगा. श्वेताम्बर एवं दिगंबर समाज के सभी समुदायों के 12 से 40 वर्ष आयु के विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जायेगा. 

इस शिविर में श्वेताम्बर दिगंबर दोनों समुदायों के पूज्य आचार्य भगवन्त, मुनि भगवन्त, साध्वी जी महाराज आदि की निश्रा एवं सान्निध्यता प्राप्त होगी. इस शिविर को अनेक पूज्य जैन आचार्यों का वरद हस्त एवं आशीर्वाद प्राप्त है.  शिविरार्थियों को उनके सारगर्भित प्रवचन का विशेष लाभ प्राप्त होगा. साथ ही अनेक जैन विद्वान मनीषी गणों की विद्वत्ता का रसास्वादन भी कर सकेंगे. 

राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय स्तर के वरिष्ठ प्रचारकों की उपस्थिति एवं मार्गदर्शन इस शिविर को गौरवान्वित करेगी. आयोजक श्री जिन शासन सेवक संघ के साथ सेठ श्री कल्याण जी परमान्द जी पेढ़ी, सिरोही एवं  अखिल भारतीय खरतर गच्छ युवा परिषद् भी इस शिविर में सहयोगी है. इसके साथ ही देश के अनेक संघ एवं युवा परिषदों व गणमान्य श्रावकों का भी समर्थन मिल रहा है. आयोजन से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए ज्योति कोठारी, जयपुर ने बताया की श्री कपिल जी राठौड़, पुणे, संवेग भाई एवं चिराग भाई, अहमदाबाद इस शिविर के प्राण स्वरुप हैं. 

Thanks, Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Friday, March 8, 2024

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), जैन साधु साध्वी एवं जैन समाज Part 2

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जैन साधु साध्वी एवं जैन समाज- इसी नाम से ६ वर्ष पहले एक ब्लॉग लिखा था. यह ब्लॉग आज और अधिक प्रासंगिक हो गया है. इसलिए इस ब्लॉग का भाग २ लिखने का मन हो गया. उपरोक्त लिंक पर क्लीक कर लेख का प्रथम भाग पढ़ सकते हैं. 

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की व्यवस्थाओं से जैन संघों को बहुत कुछ सीखना चाहिए. किस प्रकार मात्र 2500 प्रचारकों के सहारे यह एक राष्ट्रव्यापी संगठन का सञ्चालन करता है. यह संगठन पुरे भारत में एक सांस्कृतिक सामाजिक परिवर्तन का वाहक भी है. देश को दो-दो प्रधानमंत्री एवं अन्य अनेक समर्पित राजनेता देनेवाले इस संगठन की विशेषताएं अपना कर जैन संघ एवं जैन समाज भी राष्ट्रहित में अपना बड़ा योगदान दे सकता है.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एवं जैन समाज की व्यवस्थाओं में अनेक समानताएं हैं. जिस प्रकार जैन समाज जैन संघ के रूप में जाना जाता है उसी प्रकार यह भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या केवल संघ के नाम से जाना जाता है. जिस प्रकार जैन संघ की व्यवस्था गृहत्यागी साधु साध्वी एवं गृहस्थ श्रावक श्राविका के माध्यम से होती है उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की व्यवस्था भी गृहत्यागी प्रचारक एवं गृहस्थ स्वयंसेवक आदि के माध्यम से होता है. इस प्रकार देखा जाये तो दोनों में ही सारी व्यवस्था गृहस्थ एवं गृहत्यागी रूपी दो पहियों पर टिकी है. 

भगवान महावीर 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की प्राथमिक इकाई स्वयंसेवक है. इन्ही स्वयंसेवकों में से कोई गृहस्थ जीवन का त्याग कर पूर्णकालिक प्रचारक बन जाता है, कुछ लोग गृहस्थ जीवन में रहते हुए विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का सर्वोच्च दायित्व सर-संघचालक का होता है, जो की एक प्रचारक होते हैं. सभी प्रचारक, अन्य क्षेत्रीय संघचालक, कार्यवाह एवं सभी स्वयंसेवक सर-संघचालक के निर्देशों का पालन करते हैं. सर-संघचालक का पद जैन संघ के "युगप्रधान" आचार्य जैसा होता है, जो सभी अन्य आचार्यों, साधु-साध्वियों के नायक होते हैं एवं सम्पूर्ण श्रावक श्राविका संघ भी उनकी आज्ञा का पालन करता है. 

अन्य प्रचारक गण आचार्य/ साधुओं के सामान होते हैं जो अपना गृहत्याग कर संघ के कार्यालयों या अन्य गृहस्थियों के घर में आवश्यकतानुसार निवास करते हैं एवं उन्हीके माध्यम से अपनी सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं.  अन्य सभी संघचालक, कार्यवाह आदि गृहस्थ होते हैं एवं अपने अपने गृहस्थ धर्मों का पालन करते हुए राष्ट्रसेवा के कार्य में तत्पर रहते हैं. ये ठीक उसी प्रकार है जैसे अग्रणी जैन श्रावक अपने गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए जैन संघ के विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हैं. सामान्य स्वयंसेवक सामान्य श्रावकों की भांति होते हैं जो गृहस्थ रहते हुए अपने धर्म का पालन करते हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव वलिराम हेडगेवार


 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना आज से 100 वर्ष पूर्व सन 1925 में केशव वलिराम हेडगेवार ने की थी उस समय से लेकर अब तक अनेक उतार चढ़ावों के बाबजूद यह निरंतर प्रगति करता हुआ आज विश्व के अग्रिम संगठनों में से एक है. इसकी विशेषता ये है की स्थापना से लेकर आज तक अनेक समयोचित परिवर्तन के बाबजूद इसके मूल सिद्धांत एवं मूल व्यवस्थाओं में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. यह संघ अपनी आस्था एवं सिद्धांतों में आज भी अटल है. अपने 2500 प्रचारक एवं करोड़ों स्वयंसेवकों के माध्यम से यह संस्था राष्ट्रसेवा के कार्य में निरंतर गतिमान है. 

प्रवचन देते हुए जैन साधु 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की तुलना यदि जैन संघ से करें तो अनादिकालीन जैन संघ की वर्त्तमान व्यवस्था भगवान महावीर से प्रारम्भ हुई इसलिए इसे प्रभु महावीर का शासन कहा जाता है. जैन संघ की विशेषता भी ये ही है की स्थापना से लेकर आज तक 2500 वर्ष बीतने पर भी अनेक समयोचित परिवर्तन के बाबजूद इसके मूल सिद्धांत एवं मूल व्यवस्थाओं में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. जैन संघ भी अपनी आस्था एवं भगवान् महावीर के सिद्धांतों में आज भी अटल है. वर्त्तमान में जैन संघ लगभग 18000 गृहत्यागी पूज्य साधु साध्वी भगवंतों के निरंतर बिहार से गतिमान है. जैन संघ के भी श्रावक- श्राविका रूप करोड़ों गृहस्थ अनुयायी आज भी भगवान् महावीर के अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और अनेकांत के सिद्धांतों का पालन करते हैं. 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एवं जैन समाज के सिद्धांतों एवं व्यवस्थाओं में अनेक समानताएं हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं जैन समाज दोनों ही समानता के सिद्धांत में आस्था रखता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूजन पद्धति में विविधताओं के बाबजूद हिंदुत्व की एकता में विश्वास रखता है. इसी प्रकार यह संगठन अश्पृश्यता एवं जातिवाद में विश्वास नहीं रखता. इसी प्रकार जैन संघ में भी विभिन्न मत हैं जो की अलग अलग प्रकार से धर्मनुष्ठान करते हैं. साथ ही जैन धर्म मूलतः जातिप्रथा का विरोधी है एवं जैन समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र का कोई वर्गीकरण नहीं है. 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना को 100 वर्ष हो गए हैं और यह बिना किसी विभाजन के अपने मूल स्वरुप में एकीकृत रूप से  विद्यमान है. जबकि वर्त्तमान का जैन संघ भगवान महावीर के हाथों से स्थापित एवं 2500 वर्षों से अधिक प्राचीन है. वर्त्तमान में जैन संघ श्वेताम्बर-दिगंबर इन दो भागों में विभाजित है एवं इनमे धार्मिक अनुष्ठानों/ क्रियायों को लेकर कुछ मतभेद भी हैं परन्तु मूल सिद्धांतों में कोई अंतर नहीं है. यहाँ यह उल्लेखनीय है की भगवान महावीर के 170 वर्ष बाद तक सम्पूर्ण जैन संघ एकीकृत रूप से अपने मूल रूप में विद्यमान रहा था. अंतिम श्रुत केवली भद्रवाहु स्वामी के बाद ही संघ में विभाजन प्रारम्भ हुआ. विभाजन के उपरांत भी सभी अपने आप को जैन मानते हैं और परष्पर विवाहादि सम्बन्ध सामाजिक रूप से स्वीकार्य है. 

भद्रवाहु स्वामी के चरण 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, एवं सेवाकार्यों के लिए जाना जाता है. इसी प्रकार जैन संघ समाज भी अपनी राष्ट्रभक्ति, जैनत्व एवं सेवाकार्यों के लिए प्रख्यात है. शायद ही कभी कोई जैन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त पाया गया है. पुरे विश्व में मानव मात्र ही नहीं अपितु प्राणी मात्र की सेवा में जैन समाज सदा समर्पित रहता है. भारत भर में जैन समाज द्वारा स्थापित हज़ारों विद्यालय, महाविद्यालय, चिकित्सालय, भोजनशाला, धर्मशाला, आदि इसके प्रमाण हैं. रक्तदान, नेत्रदान एवं देहदान में भी जैन समाज अन्य समाजों की अपेक्षा अधिक रूचि रखता है और इन सेवा कार्यों में भी अग्रणी है. 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्राणियों में मुख्य रूप से गोमाता की सेवामे विश्वास रखता है एवं इसके लिए संस्था का अपना एक विभाग भी है. जबकि जैन संघ गोमाता के साथ अन्य प्राणियों की सेवा में भी तत्पर रहता है. जैन संघों द्वारा संचालित हज़ारों पांजरापोल, गोशाला, ऊंटशाला, पक्षीशाला आदि प्रत्यक्ष गवाही देते हैं. 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एक विभाग विश्व हिन्दू परिषद् का एक अंग है मांस निर्यात विरोध परिषद्।  यह संगठन भारत से मांस निर्यात एवं यांत्रिक कत्लखानों का विरोध करता है. भारतीय प्राणी मित्र संघ सहित अनेक जैन संगठन भी निरंतर मांस निर्यात एवं यांत्रिक कत्लखानों के विरोध में सक्रीय रहते हैं.  


गोवंश की दुर्दशा 

इस सम्बन्ध में जैन समाज की एक विशेषता का उल्लेख कर उसे शेष हिन्दू समाज से भी अपनाने का निवेदन करता हूँ. जैन संघ द्वारा आयोजित किसी भी विशिष्ट महापूजन, प्रतिष्ठा, अंजन शलाका आदि अवसरों पर जीवदया के लिए आवश्यक रूप से अलग से धनराशि एकत्रित की जाती है, जिसका उपयोग केवल मात्र जीवदया के लिए ही किया जाता है. इस राशि का उपयोग अन्यत्र कहीं भी नहीं किया जा सकता ऐसी व्यवस्था का कठोरता से पालन किया जाता है. इस प्रकार प्रतिवर्ष अरबों रुपये की राशि एकत्रित होती है जिससे हज़ारों पांजरापोल, गोशाला, ऊंटशाला, पक्षीशाला को आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है. यदि शेष हिन्दू समाज भी अपने मंदिरों में ऐसी व्यवस्था अपना ले तो गोशालाओं के लिए कभी आर्थिक संकट नहीं हो सकता. 


Thanks, 
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, at Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional)

, जैन साधु साध्वी

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