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Monday, October 10, 2016

सक्षम- कोर्निया अंधत्व मुक्त भारत अभियान


सक्षम- कोर्निया अंधत्व मुक्त भारत अभियान 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपने सेवा प्रकल्प के माध्यम से एक नया कार्यक्रम "सक्षम" प्रारम्भ किया है जिसका उद्देश्य है कोर्निया अंधत्व मुक्त भारत। इसी वर्ष ५ मार्च, २०१६ को दिल्ली में इस कार्यक्रम के शुरुआत की घोषणा की गई और देश के ८ जिलों में पाइलट प्रोजेक्ट के रूप में इसे शुरू किया गया है जिसमे राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर भी एक है.

सक्षम- कोर्निया अंधत्व मुक्त भारत अभियान 

अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सेवा प्रकल्प के प्रमुख एवं प्रचारक माननीय श्री गुणवंत जी कोठारी जयपुर पधारे थे एवं उन्होंने इस प्रकल्प की जानकारी देते हुए इसमें जुड़ने का आग्रह किया। इसके कुछ ही दिनों के बाद सक्षम के प्रमुख एवं प्रचारक माननीय डॉक्टर सुकुमार जी जयपुर पधारे एवं उनसे इस सम्वन्ध में विस्तृत चर्चा हुई.

भारत में लगभग १.५० करोड़ लोग दृष्टि वाधित हैं और उनमे से लगभग २५ प्रतिशत कोर्निया जनित अंधत्व से पीड़ित हैं. यदि उपयुक्त संख्या में नेत्र मिल जाए तो उन्हें सामान्य शल्यक्रिया के द्वारा स्वस्थ्य किया जा सकता है और उनके आँखों की रौशनी वापस आ सकती है. इसके लिए मरणोपरांत नेत्रदान को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।

एक अनुमान के अनुसार इस समय भारत में लगभग ४० लाख लोग कोर्निया अन्धत्व से पीड़ित हैं और उन्हें आँखों की जरुरत है परंतु दुर्भाग्य से भारत में साल में मात्र २५००० आँखें ही दान में आती है. इस कमी को पूरा करने के लिए व्यापक जनजागृति की आवश्यकता है साथ ही कोर्निया अन्धत्व से पीड़ित लोगों की जांच कर उनका डाटाबेस बनाना भी जरुरी है. इसके लिए व्यापक संगठन एवं कठिन परिश्रम की जरुरत है.

गौरतलब है की मारने के बाद आँखें दान में देने से उस व्यक्ति या परिवार को कोई हानि नहीं होती एवं दो आँखों से दो व्यक्ति को रौशनी मिल सकती है. इससे अच्छा दान और पुण्य कार्य क्या हो सकता है? अतः आप सभी से निवेदन है की इस पुनीत काम में आगे आएं और अधिक सेअधिक लोगों को प्रोत्साहित कर इस पुण्य कार्य में भागीदार बनें.

बीमारी और दुर्घटना में मदद करेगी क्योरसिटी


#RSS #राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ #सक्षम #कोर्नियाअंधत्वमुक्तभारतअभियान

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Jyoti Kothari (Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Monday, October 3, 2016

बीमारी और दुर्घटना में मदद करेगी क्योरसिटी


curecity digital platform to search doctors
क्योरसिटी
इस आधुनिक युग में परिवर्तित जीवनशैली के कारण बीमारियां बढ़ रही है और उनका स्वरुप भी बदल रहा है. साथ ही निदान एवं उपचार के भी नये नये साधन विकसित हो रहे हैं. लेकिन इन सबकी जानकारी इकट्ठी करना एक कठिन काम है. खास कर किसी भी बीमारी की स्थिति में सही डाक्टर का चुनाव करना किसी चुनौती से कम नहीं है. इस समस्या के समाधान के लिए एक डिजिटल प्लेटफार्म उपलव्ध है जो आपको किसी भी बीमारी की स्थिति में सही डॉक्टर के चयन में मदद करती है. इसमें डॉक्टरों से संवंधित अनेक जानकारियां दी गई है जैसे डॉक्टर का नाम, क्लीनिक का पता, विशेषज्ञता आदि.

"क्योरसिटी" नाम के इस डिजिटल प्लेटफार्म में डॉक्टरों के अलावा चिकित्सा से संवंधित अन्य अनेक जानकारियां भी है जैसे, अस्पताल, नर्सिंग होम, निदान केंद्र, एम्बुलेंस सुविधा, दावा की दुकाने आदि. कुल मिला कर इंटरनेट के इस युग में क्योरसिटी वो सभी जानकारियां प्रदान करती है जीसकी किसी बीमारी के समय किसी व्यक्ति को जरुरत पड़ती है.

 हम सभी जानते हैं की भारत में सड़क दुर्घटनाओं की एवं उन दुर्घटनाओं में मरनेवालों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है. सड़क दुर्घटनाओं में करीब आधे लोग केवल इस लिए मर जाते हैं क्योंकि उन्हें वक्त पर चिकित्सकीय सुविधाएँ उपलध नहीं हो पाती है. समय पर सुचना एवं इलाज से ऐसे लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है. "क्योरसिटी" इस दिशा में अब एक बहुत ही महत्वपूर्ण काम कर रही है.

हर उच्च मार्ग (Highway) के नजदीकी अस्पतालों की एक सूचि बनाई जा रही है और उसे QR कोड के जरिये क्योरसिटी डिजिटल प्लेटफार्म से जोड़ा जा रहा है. इसी तरह का एक QR कोड गैयों में भी लगवाया जा रहा है जिसमे संभावित दुर्घटना की स्थिति में स्वचालित तरीके से सूचनाओं का त्वरित आदान प्रदान किया जा सके. इससे दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति की सही जानकारी तत्काल निकटवर्ती अस्पतालों को पहुच जाएगी जिससे वे इलाज का समुचित प्रवंध कर सकें. साथ ही दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति के परिजनों को भी इसकी सुचना तत्काल मिल जाएगी जिससे वे भी सहायता हेतु तत्काल वहां पहुच सकें। इस ऐप में मानचित्र भी होगा जिससे दुर्घटना स्थल की भी सही जानकारी मिल सकेगी।

अभी पायलट प्रोजेक्ट के रूप में दिल्ली- उदयपुर राजमार्ग को चुना गया है और भविष्य में अन्य राजमार्गों तक इसका विस्तार किया जायेगा।

जयपुर के बहुचर्चित सड़क दुर्घटना में दोषी कौन?


          Dainik Bhaskar, Page 5, October 7, App developed by Darshan Kothari, Vardhaman Infotech
क्योरसिटी, दैनिक भास्कर, ७ अकटूबर 
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Tuesday, July 12, 2016

कहानी- जिम्मेदार बच्चा और सहृदय दुकानदार



लेखक: श्यामसुंदर सामरिया  

एक 6 साल का बच्चा अपनी 4 साल की बहिन का हाथ पकड़ कर एक जिम्मेदार बड़े भाई की तरह सड़क के किनारे किनारे जा रहा था ! बड़प्पन का भाव उसके मासूम चहरे पर साफ टपक रहा था !कुछ दूर साथ चलने के बाद बहिन ने अपना हाथ छुड़ा लिया औरअपने छोटे कदमो के साथ भाई के साथ साथ चलने लगी ! कुछ दूर चलने के बाद भाई ने देखा की उसकी बहिन कुछ पीछे रह गई है !उसने पीछे मुद कर देखा की उसकी बहिन एक चमचमाती दुकान के सामने खड़ी है और बड़े ही बाल सुलभ और मोहक एवं ख़ुशी के अंदाज के साथ कुछ देख रही है !
 बच्चा उसके पास आया और बोल "क्या बात है तुझे कुछ चाहिए? "बच्ची ने प्रसन्नता के साथ अपनी उंगली से एक गुड़िया की तरफ इशारा किया !बच्चे ने गुड़िया की और देखा और पूछा "क्या ये गुड़िया चाहिए ?बच्ची ने मुस्कुराते हुए अपनी गर्दन हां में घुमाई ! वहां पर बैठा दुकानदार बड़े ही प्रेम से दोनों बच्चों की हरकतों को निहार रहा था ! वो एक बेहद शालीन और सह्रदय इंसान दिखाई दे रहा था! उसे उस 6 साल के बच्चे की अपने आप को बड़ा समझने की बाल मानसिकता पर बड़ा आनंद आ रहा था !बच्चा दुकानदार के पास गया और अपनी तोतली जुबान से पूछा "ये डॉल कितने की है ?दुकानदार ने मुस्कुरा कर कहा तुम कितने दे सकते हो? बच्चे ने अपनी ज शर्ट की एक जेब में हाथ डाला और उसमे से कुछ रंग बिरंगी सीपियाँ,जो उसने कुछ ही देर पहले समुन्द्र के किनारे से एकत्रित की थी , को दुकानदार के सामने मेज पर फेला दी ! फिर अपनी शर्ट की दूसरी जेब से भी सीपियाँ निकल कर रख दी ! फिर अपनी पेंट की दोनों जेबों में से भी कई छोटी बड़ी रंग बिरंगी सीपिया निकाल कर दुकानदार के सामने काउंटर पर रख दी और कहा ये लीजिए डॉल की कीमत!
 दुकानदार ने उन सीपियों को गिनना चालू किया और ऐसे दर्शाया मानो वो रुपये गिन रहा हो !गिनने के बाद दुकानदार चुप हो गया !बच्चे ने चिंतित स्वर में पूछा "क्या कम है ? दुकानदार ने मुस्कुराते हुए कहा "नहीं ये तो डॉल की कीमत से कुछ अधिक है "और उसने उन सीपियों में से कुछ सीपिया वापस बच्चे को देते हुए कहा "अब ठीक है और डॉल उस बच्चे को देदी !बच्चे के चहरे पर मुस्कान तेर गई उसने वो सीपिया वापस अपनी जेब में रख ली जैसे की एक जिम्मेदार वयस्क अपनी जेब में रुपये रखता है और ख़ुशी के साथ वो डॉल ले कर अपने छोटे छोटे हाथो से अपनी उस छोटी मासूम सी बहन के हाथ में पकड़ा दी !बच्ची ने डॉल को एक हाथ से कस कर पकड़ कर अपने सीने से उसे लगाया और दूसरे हाथ से अपने भाई का हाथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए दुकान से बाहर निकाल गई !दुकानदार मुस्कुराते हुए उन्हें जाते हुए देखता रहा !

दुकान में काम कर रहे एक कर्मचारी ने पूछा "आप ने इतनी महंगी डॉल इन बेकार की सीपियों में उस बच्चे को दे दी ? दुकानदार ने कहा "हो सकता है ये सीपिया तुम्हारी और मेरी नज़रों में बेकार हो पर उस बच्चे की नजर में तो ये बेशकीमती है! आज वो बच्चा रुपयों और इन सीपियों में फर्क नहीं समझता पर उसे अपनी जिम्मेदारी का तो अहसास है कल वो बड़ा होगा फिर वो भी दूसरों की तरह रुपयों का महत्त्व समझने लगेगा और जब उसे याद आएगा की उसने अपनी बहिन के लिए कैसे बचपन में सीपियों से एक डॉल खरीदी थी तो क्या वो मुझे याद नहीं करेगा ?मेने बच्चे के मन की इसी सकारात्मक प्रवृति की बढ़ाने का एक छोटा सा प्रयास मात्र किया है जिसके सामने लाखों रुपयों की कीमत भी कुछ नहीं है ! जब की वो तो एक छोटी सी डॉल मात्र थी!

दोस्तों हो सके तो आप लोग भी धन दौलत दान में देने के साथ साथ लोगो में सकत्मकता को बढ़ने की भी कोशिश करे
:-- श्यामसुंदर सामरिया

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Wednesday, April 13, 2016

आइये हम सब मिलकर पानी बचाएं, इसका दुरूपयोग बंद करें

 पानी बचाएं, इसका दुरूपयोग बंद करें


सभी भारतवासियों  से मेरा निवेदन है की पानी  बचाने के लिए आगे आए और अपना धर्म निभाये। देश आज पानी के भयंकर संकट  गुजर रहा हैदेश के १० राज्य सूखाग्रस्त घोषित हो चुके हैंदेश के सर्वोच्च न्यायालय एवं कई उच्च न्यायालयों ने केंद्र एवं राज्य सरकारों को सूखे का संज्ञान लेकर त्वरित कार्यवाही करने  के लिए कहा हैमुंबई उच्च न्यायालय ने IPL के १३ मैचों को सूखे के कारण महाराष्ट्र  से बाहर कराने का आदेश दिया हैलातूर लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं और सरकारों को रेल भर भर कर वहां पानी भेजना पड़   रहा है.

मारवाड़ी समाज में कहावत थी  पानी को घी से भी ज्यादा संभल  खर्च करना चाहिये पर आज इस समाज में भी खूब पानी ढोला जाता हैआज मारवाड़ी समाज भी अन्य समाजों के जैसे पानी का दुरूपयोग करने लगा है.

पानी का मूल्य तबतक समझ नहीं आता जब तक कुंआ सुख न जाये 

भारत में जल संरक्षण की प्राचीन परम्परा 


भारत में पुराने समय से ही जल-संरक्षण के लिए अनेक उपाय किये जाते रहे हैं. जैसलमेर, थार मरुस्थल का एक ऐसा स्थान है जहाँ वर्षा का सालाना औसत १० इंच भी नहीं है परन्तु  जल-संरक्षण की अद्भुत विधियों के द्वारा यह स्थान न सिर्फ अपनी सारी जरूरतों को पूरा करता था परन्तु जैसलमेर के रस्ते जानेवाले व्यापारिक काफिलों के लिए भी जल आपूर्ति करता था. पूरा राजस्थान ही इस विधि का सुन्दर प्रयोग करता था और कुआ, कुई, जोहड़, तालाव, बांध, टांके आदि के माध्यम से पानी को संचित कर रखता था. राजस्थान की बावड़ियां विश्वप्रसिद्ध है और ये बावड़ियां पानी का बड़ा भंडार हुआ करता था. साथ ही ये भूगर्भ जल के पुनर्भरण का काम भी करता था. 

पानी के महत्व को समझते हुए हमें फिर से अपनी पुरानी परम्पराओं को पुनर्जीवित करना है और जल-संरक्षण के महत्व को समझना हैहमें इस नए सामाजिक क्रांति का अग्रणी बनना हैमौसम विभाग ने इस वर्ष अच्छे मानसून की भविष्यवाणी की है यदि हम अभी से सचेत हो कर जल-संरक्षण की अपनी पुराणी विधाओं का इस्तेमाल करें तो आनेवाले कई वर्षों तक हमें पानी के लिए तरसना नहीं पड़ेगा. राज्य एवं केंद्र की सरकारें उपयुक्त कानून बना कर इस दिशा में ठोस पहल करे. 


जहाँ पर्याप्त जमीन हैइन स्थानों पर तालावकुएंटांके आदि का निर्माण करवा कर  वर्षा जल संरक्षित किया जा सकता हैइन कामों के लिए तकनीक सहज ही उपलव्ध हैसाथ ही इसमें अनेक तरह की सरकारी मदद भी मिलती है
इस साल ५ लाख नए कुएं - तालाव खुदवाने के लिए केंद्र सरकार ने इस वर्ष के बजट में  बहुत बड़ी राशि का प्रवन्ध भी किया है. हमें यह सुनिश्चित करना है की इस राशि का दुरूपयोग न हो और यह भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़ जाए. 

तकनीक से मिटेगी पानी की समस्या 

जैन धर्मस्थान में तालाव, काठगोला, मुशिडाबाद  

विकास का पश्चिमी मॉडल भारत के लिए घातक 

आज़ादी के बाद हमने बिना सोचे समझे विकास का पश्चिमी मॉडल अपनाया विशेष कर अमरीकी मॉडल। हमने ये नहीं सोचा की अमरीका और भारत की परिस्थिति में कितना अंतर है. अमरीका के पास विपुल प्राकृतिक संसाधन है और जनसँख्या बेहद कम. जबकि भारत में दुनिया की १८ प्रतिशत जनसँख्या निवास करती है और पानी विश्व का मात्र ४ प्रतिशत है. ऐसी स्थिति में अमरीका की नक़ल कर ज्यादा पानी खर्च करना कहाँ की बुद्धिमत्ता है?


पानी (जल) का दुरूपयोग व अपव्यय 


भारत में वर्षा जल का ६५ प्रतिशत बह कर समुद्र में चला जाता है यदि इसमें से १० प्रतिशत का भी संरक्षण कर लिया जाए तो देश में पानी की कमी नहीं रहेगी. इसके लिए नदी, तलाव, बावड़ी आदि के जलग्रहण क्षेत्रों को अतिक्रमण मुक्त एवं स्वच्छ बनाना होगा और निजी एवं सामाजिक स्तर पर भूजल संरक्षण, एवं वर्षा जल संरक्षण की आदत विकसित करनी होगी. 

आज हम न सिर्फ पानी का दुरूपयोग  कर रहे हैं बल्कि नदी, तालाव आदि को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. और नदी साफ़ करने का सारा ठेका सरकार पर ही छोड़ दे रहे हैं. ध्यान में रखना पड़ेगा की बिना व्यक्ति और समाज की सोच बदले केवल सरकार के भरोसे ये काम कभी नहीं हो सकता। विद्यालयों-महाविद्यालयों में भी लगातार छात्र-छात्रों को इस विषय में जागृत करने की आवश्यकता है और शैक्षणिक प्रतिष्ठानों के कर्णधार एवं शिक्षक गण इसे अपना कर्त्तव्य समझ कर विद्यार्थियों को जल-संरक्षण के लिए प्रेरित करें.

तालाव, जैन दादाबाड़ी, कोलकाता 

कृषि चक्र में बदलाव व इजराइली तकनीक 


हमने अपनी कृषि में फसल चक्र अपनाते समय भी पानी की उपलव्धता पर ध्यान नहीं दिया। तभी तो लातूर जैसे स्थान में गन्ने की खेती की जिसमे बहुत ज्यादा पानी की खपत होती है और उसका नतीजा सामने है जब लातूर बून्द बून्द का प्यासा हो गयापानी बचाने के मामले में हम इजराइल से बहुत कुछ सिख सकते हैं. बून्द बून्द सिंचाई से लेकर अनेक प्रकार की तकनीक अपना कर इस देश ने अपने अत्यन्त सीमित जल संसाधन से देश का अद्भुत विकास किया है.


प्रकृति प्रेमी भारत में पानी (जल) का दुरूपयोग क्यों? 


भारत प्राचीन काल से ही प्रकृति प्रेमी ही नहीं अपितु प्रकृति पूजक रहा है जहाँ जल को वरुण देवता माना गया है और जिसे देवता माना उसका दुरूपयोग कैसे हो सकता है? जैन धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमे पानी में जीव एवं पानी बहांने में जीव-हिंसा का पाप माना गया है और इसीलिए जैन लोग धार्मिक कारण से (परम्परागत रूप से) पानी का कम इस्तेमाल करते रहे हैंपरन्तु ऐसा देखने में रहा है की आज के जैन लोग भी पानी बचाने में उतने तत्पर नहीं रहे

मैं धर्म गुरुओं से भी निवेदन करता हूँ की वे इस विषय में लोगों को जाग्रत करें. पानी के सदुपयोग की सलाह दें एवं इसके दुरूपयोग को पाप बता कर लोगों को ऐसा करने से रोकें. धार्मिक-सामाजिक संगठन भी इस दिशा में लोगों को प्रेरित कर सकते हैं साथ ही अपने खर्च में से कुछ अंश इस मद में भी खर्च करें. 

आइये हम सब मिलकर पानी बचाएं, इसका दुरूपयोग बंद करें एवं प्रकृति से प्राप्त इस अमूल्य धन को सहेजने का प्रयत्न करें। 



गोवंश गौरव भारत भाग ३: गायों की दुर्दशा क्यों और इसके लिए जिम्मेदार कौन



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Thursday, November 5, 2015

गोवंश गौरव भारत भाग ३: गायों की दुर्दशा क्यों और इसके लिए जिम्मेदार कौन


गोवंश गौरव भारत भाग ३: गायों की दुर्दशा क्यों और इसके लिए जिम्मेदार कौन








गोवंश की इस दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है और कैसे हम गोमाता को उसका पुराण गौरव लौटा सकते हैं? यह एक ज्वलंत प्रश्न है और हमें इसका जवाब ढूँढना ही होगा। लोगों की राय यह है की हमारा लालच और जिम्मेदारी दूसरों पर थोपने की वृत्ति के कारन ऐसा हो रहा है. हम लालच में आकर गायों से दूध और अन्य चीजें पाना तो चाहते हैं पर उसकी सेवा नहीं करना चाहते। यदि किसान और गोपालक गाय को पालेगा नहीं तो गोवंश किस प्रकार से देश में विकसित होगा? और जब वो अनुपयोगी करार दे दी जायेगी तो उसे कत्लखाने जाने से कैसे रोका जा सकता है? 


किन्ही अज्ञात कारणों से देशी गायों की नस्ल बिगड़ गई और उसने दुध देना कम कर दिया था और तब से ही भारतीय गोपालक विदेशी गायों की और आकर्षित हुआ और देशी गायों की उपेक्षा का दौर शुरू हो गया. जिससे उचित आहार एवं भरण पोषण के आभाव में नस्ल और भी बिगड़ती चली गई और देशी गाय का दूध २-३ लीटर तक सिमट कर रह गया. जहाँ विदेशी गायें २० से ले कर ४० लीटर तक दूध देती है वहीँ देशी गायों की यह हालत! 


जबसे रासायनिक खाद का प्रचलन बढ़ा तब से किसान ने गोबर के स्थान पर यूरिया का प्रयोग शुरू कर दिया और बैलों का स्थान ट्रैक्टर ने ले लिया। इससे उपयोगी बैल नकारा हो गया और गोबर भी कंडे जलाने मात्र के काम का रह गया. गोमूत्र का उपयोग हम भूल गए और न ही कीटनियंत्रक के रूप में न ही औषधी के रूपमे हम गोमूत्र का प्रयोग करते हैं. 


पहले के जमाने में राजा महाराजा लोग गायों मुफ्त में चरने के लिए गोचर भूमि छोड़ देते थे स्वतंत्रता के बाद गोचर भूमि में कमी आई. हालाँकि कुछ राज्य सरकारें अभी भी गोचर भूमि सुरक्षित रखती है लेकिन हम उसमे भी अतिक्रमण करने से नहीं चूकते। गाय को गोमाता मैंनेवाले समाज में गोचर भूमि का अतिक्रमण केवल अपने थोड़े से लाभ के लिए क्यों? राजस्थान जैसे राज्य में गोचर के अलावा ओरण भी होता था परन्तु अब तो उसमे भी अतिक्रमण की समस्या विकराल हो चुकी है, ऐसी स्थिति में गायों का पालन कैसे हो सकता है. आवश्यकता इस बात की है की गोचर एवं ओरण की सभी जमीन तत्काल प्रभाव से अतिक्रमण से मुक्त हो.


हम सरकारों से बहुत अपेक्षाएं रखते हैं और लोकतंत्र में कल्याणकारी राष्ट्रों को इन अपेक्षाओं को पूरा भी करना चाहिए परन्तु हम कुछ न करें उलटे गायों के लिए नुकसानदायक काम करें और सरकारों से अपेक्षा रखें ये नहीं हो सकता। हम सभी गोभक्तों   होगा, जिम्मेदारी लेनी होगी की गाय सड़क पर कचरा न खाए, उसे भरपेट पौष्टिक भोजन मिले और उसकी  सम्भाल होती रहे. 



गोवंश गौरव भारत भाग २: गायों की वर्तमान दयनीय स्थिति


गोवंश गौरव भारत : अतीत के पृष्ठ



मांस निर्यात पर 25 हज़ार करोड़ रुपये की सब्सिडी क्यों?


ज्योति कोठारी
संस्थापक कोषाध्यक्ष,
गो एवं प्रकृतिमूलक ग्रामीण विकास संस्थान

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Tuesday, November 3, 2015

गोवंश गौरव भारत भाग २: गायों की वर्तमान दयनीय स्थिति

गोवंश गौरव भारत भाग २: गायों की वर्तमान स्थिति


भूख से व्याकुल कचरा खाता बछड़ा 

असहाय हो कर मरता हुआ गोवंश 
पिछले ब्लॉग में मैंने गायों के अतीत गौरव की चर्चा की थी अब हम आज की बात करते हैं, भारत में आज गायों की स्थिति क्या है? यदि अतीत से तुलना करें तो आज भारत में गायों की स्थिति दयनीय है. गोवंश आज अपना गौरव खो चूका है. भारत में गायों की स्थिति पाश्चात्य देशों से भी बहुत बुरी है. गाय को माता मैंने वाले देश में गाय सड़क पर कचरा खाते हुए अक्सर दिख जाती है. ऐसा पश्चिमी देशों में बिलकुल भी संभव नहीं है. आज भारत का ग्रामीण किसान गाय पालना ही नहीं चाहता, वह भैंस पालता है. यदि गाय भी पालता है तो जर्सी या होल्स्टीन। देशी नस्ल की गायें गीर, राठी, थारपारकर, हरियाणवी आदि लुप्तप्राय होती जा रही है.

गायों का हम दोहन के स्थान पर शोषण करने लगे हैं और दूध देने की क्षमता समाप्त होने पर उसे लावारिस छोड़ देते हैं. ऐसी स्थिति में बेचारी गाय इधर उधर मुह मारती रहती है फिर भी उसका पेट नहीं भर पाता। क्या हमें माँ के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए?

जब गायों को कोई पालनेवाला नहीं होगा तो उसे कत्लखाने जाने से कौन और कैसे बचाएगा? देश में अनेक राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र आदि में गोहत्या बंदी कानून लागु है और वहां गायों के मारने या उसे कत्लखाने भेजने पर पूर्णतः पावंदी है. उन राज्यों में गायें कटती तो नहीं पर भूखे मरने पर मज़बूर है. भूख से पीड़ित गोमाता जब सड़क पर कचरा खाती है तो अनायास ही पोलिथिन भी खा लेती है. यही पोलिथिन उसकी आंतो में जा कर जैम जाता है और बेचारी गाय असमय ही पीड़ादायक मौत झेलने को मज़बूर हो जाती है. 

बछड़ों की दशा तो और भी दयनीय है उन्हें जन्मते ही छोड़ दिया जाता, उसे माँ का दूध भी नसीब नहीं होता। अपने दूध से मनुष्य जाती को पालनेवाली गोमाता अपने बछड़ो को ही दुध नहीं पिला पाती।  बेचारा और बदनसीब बछड़ा भूख से बिलबिलाते हुए जब किसी किसान के खेत में चरने की आस में पहुंच जाता है तब उसे चारा तो नहीं पर डण्डे जरूर खाने को मिल जाते हैं, यही हाल सांड, बैल और बूढी गायों का भी होता है. 

शहरों में तो दूध देनेवाली गायों को भी दूध दुहने के बाद सड़क पर छोड़ दिया जाता है और वह इधर उधर घूम कर अपना पेट भरने की कोशिश में डंडे खाती रहती है और कचरा या पोलिथिन निगलने को मज़बूर हो जाती है. कभी कभी किसी गोभक्त की दी हुई रोटी या चारा भी मिल जाता है.

गोवंश गौरव भारत के पिछले भाग में हमने लिखा था की गोवंश का अतीत गौरवशाली था और तब भारत समृद्धि के चरम शिखर पर था. तब स्थिति ये थी की हम गाय नहीं पालते थे परन्तु गोमाता हमें पालती थी. जबसे भारत ने गोमाता की उपेक्षा की तब से भारत की समृद्धि भी अस्ताचल को चली गई. 

गायों की ऐसी दुर्दशा क्यों हुई और उसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या हम और हमारा लालच ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? गोभक्त कहलानेवाले भारतवासियों को अपने गिरेवान में झाँक कर देखना ही होगा. 


गोवंश गौरव भारत : अतीत के पृष्ठ



मांस निर्यात पर 25 हज़ार करोड़ रुपये की सब्सिडी क्यों?


ज्योति कोठारी
संस्थापक कोषाध्यक्ष,
गो एवं प्रकृतिमूलक ग्रामीण विकास संस्थान


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Monday, November 2, 2015

गोवंश गौरव भारत : अतीत के पृष्ठ


गोवंश गौरव भारत : अतीत के पृष्ठ और वर्तमान अवस्था 

देव-स्वरूपा गोमाता 

देसी गाय बछड़े के इंतज़ार में 

सभी जानते हैं की हज़ारों वर्षों से भारत में गाय को माता एवं देवता का दर्ज़ा दिया जाता रहा है. भारत एक कृषि प्रधान देश है एवं इस देश की कृषि गोवंश पर आधारित थी।  बगैर गाय के कोई प्राचीन भारत की कल्पना भी नहीं कर सकता है. हम यह भी जानते हैं की प्राचीन और मध्य काल में भारत एक समृद्ध देश हुआ करता था जिसे सोने की चिड़िया के नाम से भी जाना जाता था. भारत की आर्थिक समृद्धि का राज गो-पालन में छिपा हुआ था और इसी लिए तत्कालीन भारत में गाय गो-धन के रूप में जानी जाती थी.

इस देश के ग्रन्थ गो-महिमा से भरे हुए हैं एवं गायों की संख्या किसी व्यक्ति के धनवान होने का मापदंड हुआ करता था. प्राचीन ग्रन्थ उपासक-दसांग में भारत के १० प्रसिद्ध धनवानों की कथा है जिनमे से सभी के पास कई गोकुलें थी (१०,००० गायों का एक गोकुल होता है). राजा महाराजा भी गायों का संग्रह करते थे और गो-धन प्राप्त करने के लिए युद्ध तक हो जाया करते थे. महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक बार कौरवों ने मत्स्य नरेश विराट के गो-धन को लूटने के प्रयास में उनके पुत्र से युद्ध भी किया था.

उस समय गो-दान की भी परंपरा थी. राजा-महाराजा एवम धनी व्यक्ति ब्राह्मणो, कवियों, दरिद्र व्यक्तियों आदि को गाय दान में दिया करते थे. गाय का इतना महत्त्व उस प्राणी के आर्थिक-सामजिक उपयोगिता के कारण ही था. हिंदी के सर्वश्रेष्ठ लेखक मुंशी प्रेमचंद का "गोदान" उपन्यास उनकी अमर कृति है.

मानव सभ्यता के इतिहास में मनुष्य ने जितने भी जीवों को पालतू बनाया है उसमे गाय सर्वाधिक उपयोगी है. गाय का दूध माता के दुध के सामान शिशु / वालक के लिए पौष्टिक है, इस लिए इसे गो-माता के नाम से बुलाया जाता है।  इसके दुध से दही, छाछ, घी, मावा आदि अनेक प्रकार के अत्यंत उपयोगी खाद्य सामग्रियों का निर्माण होता है. दुध, दही, छाछ, मक्खन, घी आदि गोरस के नाम से जाने जाते हैं और यह सभी कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट एवं अनेक खनिजों व विटामिनो का अमूल्य स्रोत है.

जहाँ स्त्री गो-वंश दूध देने का काम करती है वहीँ बैल खेती में काम करता है, खेत को जोत कर उसे उपजाऊ बनाता है. गाय का गोबर उठता खाद है साथ ही ईंधन भी. गोबर का जैविक खाद न सिर्फ जमीन को उर्बर बनता है बल्कि जमीन में केचुए की उत्पत्ति में भी सहायक होता है. केचुए जमीन को निरंतर पोली बना कर पौधों में  प्राणवायु (ऑक्सीजन) का संचार करता है.  गोवर के कीटाणुनाशक क्षमता के कारण इससे घर के आँगन को लीपा जाता था और कच्चे मकानो को गोबर का घोल मज़बूती भी प्रदान करता था.

गो-मूत्र एक उत्तम औषधि होने के साथ यह कीटाणु एवं पतंग-प्रतिरोधी भी है एवं फसलों को कीट-पतंगों से बचने के लिए इसका बहुलता से उपयोग होता था. मृत्यु उपरांत भी गाय अनुपयोगी नहीं होती एवं इस के चमडे  से जुटे, चप्पल, बैग आदि विविध वस्तुओं का निर्माण होता है, इसकी हड्डियां फॉस्फोरस का उत्तम स्रोत है और इसके सिंग भी जमीन को सूक्ष्म तत्व उपलव्ध करवाते हैं.

इस प्रकार से गाय भारत की अर्थनीति की रीढ़ की हड्डी थी और इसके बगैर भारत में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. इसीलिए जीने भारत के जनमानस ने भगवान माना उस कृष्ण का एक नाम "गोपाल" और उनका एक मनमोहक रूप "माखनचोर" भी है. जगत कल्याणकर्ता शिव का वाहन नंदी (बैल) है और देवताओं का भी भरण पोषण कामधेनु करती है.  जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का चिन्ह भी बृषभ ही है और सभी तीर्थंकरों की माताएं पुत्र जन्म से पहले जो १४ स्वप्न देखती थी उसमे से एक बृषभ होता था. २५०० वर्ष पूर्व के "आजीवक" दर्शन के प्रवर्तक का नाम "गोशालक" था.

इस तरह हम देख सकते हैं की सभी धर्म, मत एवं सम्प्रदायों में गोवंश का एक जैसा ही महत्त्व था और धर्म-मत-पंथ निर्विशेष गाय भारत की आत्मा में वसति थी.

सभी प्राचीन उपाख्यानों में गुरुकुल वास में शिष्य गुरु की धेनुएँ चराने जाया करते थे. गाय के बछड़े को वत्स कहा जाता है और गाय की अपार ममता का द्योतक वात्सल्य शब्द बन गया. गाय के चार थन होते हैं, उसमे से दो थन का दूध बछड़े के लिए होता था और मनुष्य अपने प्रयोजन के लिए दो थनो से दूध दुहता था. इसी से दोहन शब्द बना.

इस प्रकार गोवंश भारत की अर्थनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और धार्मिक गतिविधियों के केंद्र में है और यही उसकी गौरव गाथा है जिसे अतीत के सहेजे हुए पन्नो में से निकाला गया है.

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मांस निर्यात पर 25 हज़ार करोड़ रुपये की सब्सिडी क्यों?


ज्योति कोठारी
संस्थापक कोषाध्यक्ष,
गो एवं प्रकृतिमूलक ग्रामीण विकास संस्थान






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