Tuesday, August 31, 2010
Kenya's Athlete David Rudisha breaks 800m record second time in a week
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Saturday, June 19, 2010
Live Web cast of Ashtapadji Patishtha Mahotsav can be viewed on June 19th and 20th
Jai Jinendra,
1. Ashtapadji Pratishtha will be broadcast live via internet on June 19th & 20th. Please inform all your friends and relatives local or abroad
who are not able to attend can watch live via the internet on June 19 & 20th from 7 am to 3 pm eastern standard USA time.
You may go to the JCA web site at www.nyjca.org and click on the link below the Patrika or Click here to start viewing the web cast. This will be available only on� June 19th and 20th.
"Again please forward this email to all your friends who like to be part of this occasion even remotely on June 19th and 20th."
2.� Asthapadji actual 24 Pratimas has been displayed in the basement of the Ithaca Temple till June 19th 2010. Anyone who wishes to do the Darshan closely� has a once in a life chance to see the actual Pratimas just inches away. We request all to take this opportunity to visit and do the Darshan.
1. Ashtapadji Pratishtha will be broadcast live via internet on June 19th & 20th. Please inform all your friends and relatives local or abroad
who are not able to attend can watch live via the internet on June 19 & 20th from 7 am to 3 pm eastern standard USA time.
You may go to the JCA web site at www.nyjca.org and click on the link below the Patrika or Click here to start viewing the web cast. This will be available only on� June 19th and 20th.
"Again please forward this email to all your friends who like to be part of this occasion even remotely on June 19th and 20th."
2.� Asthapadji actual 24 Pratimas has been displayed in the basement of the Ithaca Temple till June 19th 2010. Anyone who wishes to do the Darshan closely� has a once in a life chance to see the actual Pratimas just inches away. We request all to take this opportunity to visit and do the Darshan.
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Friday, June 18, 2010
जैन साधू साध्वियों के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि
चातुर्मास का समय नजदीक आ रहा है. विभिन्न स्थानों के जैन संघ पूज्य साधू साध्विओं के चातुर्मास की व्यवस्था में लगे हैं. लगभग सभी जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास तय हो चुके हैं. इसमें जैन धर्मं के सभी समुदाय श्वेताम्बर, दिगंबर, मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरापंथी सभी सम्मिलित हैं.
ऐसे समय में यह जानना बेहद जरुरी है की जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि क्या है? क्या जो कुछ परंपरागत रूप से हो रहा है वह शास्त्र सम्मत है? अथवा सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है?
दिगंबर परंपरा एवं शास्त्रों के संवंध में मुझे ठीक से पता नहीं है परन्तु श्वेताम्बर समुदाय के सभी वर्गों के लिए शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है. जैन आगमों के अनुसार साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय नहीं हो सकता है. कल्पसूत्र के अनुसार साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के बाद ही घोषित करते हैं.
पहले से चातुर्मास तय होने पर श्रावक गण उपाश्रय या तत्सम्वंधित स्थानों पर मरम्मत, रंगाई, पुताई आदि जो भी काम करते हैं वो चातुर्मास के निमित्त होता है. ऐसे में उन सभी आरंभ समारंभ का दोष चातुर्मास करने वाले साधू साध्विओं को लगता है. ऐसी स्थिति में उनका प्रथम प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) व्रत खंडित होता है.
अतः शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है की साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास पहले से घोषित न करें.
जैन आगमों के अनुसार साधू साध्वी गण चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहने के लिए श्रावक संघ से प्रार्थना करते हैं. श्रावक संघ अथवा कोई व्यग्तिगत रूप से साधू साध्विओं की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें रहने का स्थान उपलब्ध करवा दे तो साधू साध्वी वहां पर ठहर सकते हैं एवं अपना चातुर्मास व्यतीत कर सकते हैं. यदि गृहस्थ उन्हें स्थान देना स्वीकार न करे तो वे अन्यत्र विहार कर जाते हैं.
आज इस शास्त्र आज्ञा से विपरीत स्थिति प्रचलन में आ चुकी है. आज श्रावक संघ साधू साध्विओं से चातुर्मास हेतु प्रार्थना करते हैं. प्रायः संघ के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो कर बस , ट्रेन या हवाई जहाज से दूर दराज क्षेत्र में रहे हुए साधू साध्विओं से चातुर्मास की विनती करने जाते हैं. ऐसा देखने में आता है की साधू साध्वी गण भी बहुत बार ऐसी स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं. प्रायः बहुत मान मनुहार एवं अनेको वार विनती करने पर ही साधू साध्वी गण चातुर्मास की स्वीकृति देते हैं. इस तरह से संघ का बहुत समय व धन का अपव्यय होता है, साथ ही आरम्भ समारंभ भी होता है.
विचारणीय बिंदु ये है की जब शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है की साधू साध्वी गण चातुर्मास में ठहरने के स्थान के लिए गृहस्थों से स्थान की याचना करे, तब उससे विपरीत क्यों श्रावक संघ उनसे प्रार्थना करने जाता है? साधू साध्वी गण भी क्यों निरंतर इस स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं?
जैन आगमों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट रूप से सामने आती है की साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय होना शिथिलाचार को बढाने में मुख्य हेतु है. प्रायः श्रावक/श्राविका समुदाय श्रमण संघों में व्याप्त शिथिलाचार की आलोचना करते हैं परन्तु इसके मूल कारणों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं एवं ऐसी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करते हैं, इस विषय में विचार करना आवश्यक है।
समस्त आचार्य एवं उपाध्याय भगवंतों एवं पूज्य साधू साध्विओं से निवेदन है की इस स्थिति के संवंध में पुनर्विचार करें एवं शास्त्र (आगम) आज्ञा के अनुसार व्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करें. श्रावक संघ भी जागरूक बन कर इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे.
ऐसे समय में यह जानना बेहद जरुरी है की जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि क्या है? क्या जो कुछ परंपरागत रूप से हो रहा है वह शास्त्र सम्मत है? अथवा सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है?
दिगंबर परंपरा एवं शास्त्रों के संवंध में मुझे ठीक से पता नहीं है परन्तु श्वेताम्बर समुदाय के सभी वर्गों के लिए शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है. जैन आगमों के अनुसार साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय नहीं हो सकता है. कल्पसूत्र के अनुसार साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के बाद ही घोषित करते हैं.
पहले से चातुर्मास तय होने पर श्रावक गण उपाश्रय या तत्सम्वंधित स्थानों पर मरम्मत, रंगाई, पुताई आदि जो भी काम करते हैं वो चातुर्मास के निमित्त होता है. ऐसे में उन सभी आरंभ समारंभ का दोष चातुर्मास करने वाले साधू साध्विओं को लगता है. ऐसी स्थिति में उनका प्रथम प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) व्रत खंडित होता है.
अतः शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है की साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास पहले से घोषित न करें.
जैन आगमों के अनुसार साधू साध्वी गण चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहने के लिए श्रावक संघ से प्रार्थना करते हैं. श्रावक संघ अथवा कोई व्यग्तिगत रूप से साधू साध्विओं की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें रहने का स्थान उपलब्ध करवा दे तो साधू साध्वी वहां पर ठहर सकते हैं एवं अपना चातुर्मास व्यतीत कर सकते हैं. यदि गृहस्थ उन्हें स्थान देना स्वीकार न करे तो वे अन्यत्र विहार कर जाते हैं.
आज इस शास्त्र आज्ञा से विपरीत स्थिति प्रचलन में आ चुकी है. आज श्रावक संघ साधू साध्विओं से चातुर्मास हेतु प्रार्थना करते हैं. प्रायः संघ के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो कर बस , ट्रेन या हवाई जहाज से दूर दराज क्षेत्र में रहे हुए साधू साध्विओं से चातुर्मास की विनती करने जाते हैं. ऐसा देखने में आता है की साधू साध्वी गण भी बहुत बार ऐसी स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं. प्रायः बहुत मान मनुहार एवं अनेको वार विनती करने पर ही साधू साध्वी गण चातुर्मास की स्वीकृति देते हैं. इस तरह से संघ का बहुत समय व धन का अपव्यय होता है, साथ ही आरम्भ समारंभ भी होता है.
विचारणीय बिंदु ये है की जब शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है की साधू साध्वी गण चातुर्मास में ठहरने के स्थान के लिए गृहस्थों से स्थान की याचना करे, तब उससे विपरीत क्यों श्रावक संघ उनसे प्रार्थना करने जाता है? साधू साध्वी गण भी क्यों निरंतर इस स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं?
जैन आगमों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट रूप से सामने आती है की साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय होना शिथिलाचार को बढाने में मुख्य हेतु है. प्रायः श्रावक/श्राविका समुदाय श्रमण संघों में व्याप्त शिथिलाचार की आलोचना करते हैं परन्तु इसके मूल कारणों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं एवं ऐसी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करते हैं, इस विषय में विचार करना आवश्यक है।
समस्त आचार्य एवं उपाध्याय भगवंतों एवं पूज्य साधू साध्विओं से निवेदन है की इस स्थिति के संवंध में पुनर्विचार करें एवं शास्त्र (आगम) आज्ञा के अनुसार व्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करें. श्रावक संघ भी जागरूक बन कर इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे.
Thursday, June 17, 2010
Process of Chaturmas in Jain Agam
Chaturmas is near by. Jain Sangh at different places are preparing for chaturmas of Jain monks and nuns. It is the right time to know process of chaturmas as defined in various Jain Agam (Sacred Text).
Monks and nuns can not declare their chaturmas prior to samvatsari according to Jain agam "Kalpasutra".
Why?
If they do so, the house holds repairs, paints etc in the upashray or other places specified for chaturmas. Violence is involved in all these acts and the monks and nuns are held liable for these violence. Hence, they are not allowed to declare their chaturmas pre-samvatsari.
It is also said in Jain Agam (Shastra) that the monks and nuns ask house holds for accommodation. If they agreed monks and nuns can stay there for chaturmas. However, the present day practices are different. Shravak Sangh (Jain house holds) approach monks and nuns for chaturmas. If they agree they arrange for chaturmas. This practice is against Jain Agam.
Should all of us rethink?
Detailed post in Hindi
Thanks,
Jyoti Kothari
Monks and nuns can not declare their chaturmas prior to samvatsari according to Jain agam "Kalpasutra".
Why?
If they do so, the house holds repairs, paints etc in the upashray or other places specified for chaturmas. Violence is involved in all these acts and the monks and nuns are held liable for these violence. Hence, they are not allowed to declare their chaturmas pre-samvatsari.
It is also said in Jain Agam (Shastra) that the monks and nuns ask house holds for accommodation. If they agreed monks and nuns can stay there for chaturmas. However, the present day practices are different. Shravak Sangh (Jain house holds) approach monks and nuns for chaturmas. If they agree they arrange for chaturmas. This practice is against Jain Agam.
Should all of us rethink?
Detailed post in Hindi
Thanks,
Jyoti Kothari
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जैन साधू साध्वियों के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि
लेखक: ज्योति कुमार कोठारी
चातुर्मास का समय नजदीक आ रहा है. विभिन्न स्थानों के जैन संघ पूज्य साधू साध्विओं के चातुर्मास की व्यवस्था में लगे हैं. लगभग सभी जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास तय हो चुके हैं. इसमें जैन धर्मं के सभी समुदाय श्वेताम्बर, दिगंबर, मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरापंथी सभी सम्मिलित हैं.
ऐसे समय में यह जानना बेहद जरुरी है की जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि क्या है? क्या जो कुछ परंपरागत रूप से हो रहा है वह शास्त्र सम्मत है? अथवा सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है?
दिगंबर परंपरा एवं शास्त्रों के संवंध में मुझे ठीक से पता नहीं है परन्तु श्वेताम्बर समुदाय के सभी वर्गों के लिए शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है. जैन आगमों के अनुसार साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय नहीं हो सकता है. कल्पसूत्र के अनुसार साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के बाद ही घोषित करते हैं.
पहले से चातुर्मास तय होने पर श्रावक गण उपाश्रय या तत्सम्वंधित स्थानों पर मरम्मत, रंगाई, पुताई आदि जो भी काम करते हैं वो चातुर्मास के निमित्त होता है. ऐसे में उन सभी आरंभ समारंभ का दोष चातुर्मास करने वाले साधू साध्विओं को लगता है. ऐसी स्थिति में उनका प्रथम प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) व्रत खंडित होता है.
अतः शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है की साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास पहले से घोषित न करें.
जैन आगमों के अनुसार साधू साध्वी गण चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहने के लिए श्रावक संघ से प्रार्थना करते हैं. श्रावक संघ अथवा कोई व्यग्तिगत रूप से साधू साध्विओं की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें रहने का स्थान उपलब्ध करवा दे तो साधू साध्वी वहां पर ठहर सकते हैं एवं अपना चातुर्मास व्यतीत कर सकते हैं. यदि गृहस्थ उन्हें स्थान देना स्वीकार न करे तो वे अन्यत्र विहार कर जाते हैं.
आज इस शास्त्र आज्ञा से विपरीत स्थिति प्रचलन में आ चुकी है. आज श्रावक संघ साधू साध्विओं से चातुर्मास हेतु प्रार्थना करते हैं. प्रायः संघ के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो कर बस , ट्रेन या हवाई जहाज से दूर दराज क्षेत्र में रहे हुए साधू साध्विओं से चातुर्मास की विनती करने जाते हैं. ऐसा देखने में आता है की साधू साध्वी गण भी बहुत बार ऐसी स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं. प्रायः बहुत मन मनुहार एवं अनेको वार विनती करने पर ही साधू साध्वी गण चातुर्मास की स्वीकृति देते हैं. इस तरह से संघ का बहुत समय व धन का अपव्यय होता है, साथ ही आरम्भ समारंभ भी होता है.
विचारणीय बिंदु ये है की जब शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है की साधू साध्वी गण चातुर्मास में ठहरने के स्थान के लिए गृहस्थों से स्थान की याचना करे, तब उससे विपरीत क्यों श्रावक संघ उनसे प्रार्थना करने जाता है? साधू साध्वी गण भी क्यों निरंतर इस स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं?
जैन आगमों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट रूप से सामने आती है की साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय होना शिथिलाचार को बढाने में मुख्य हेतु है.
समस्त आचार्य एवं उपाध्याय भगवंतों एवं पूज्य साधू साध्विओं से निवेदन है की इस स्थिति के संवंध में पुनर्विचार करें एवं शास्त्र (आगम) आज्ञा के अनुसार व्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करें. श्रावक संघ भी जागरूक बन कर इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे.
ऐसे समय में यह जानना बेहद जरुरी है की जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि क्या है? क्या जो कुछ परंपरागत रूप से हो रहा है वह शास्त्र सम्मत है? अथवा सब कुछ मनमाने तरीके से चल रहा है?
दिगंबर परंपरा एवं शास्त्रों के संवंध में मुझे ठीक से पता नहीं है परन्तु श्वेताम्बर समुदाय के सभी वर्गों के लिए शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है. जैन आगमों के अनुसार साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय नहीं हो सकता है. कल्पसूत्र के अनुसार साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के बाद ही घोषित करते हैं.
पहले से चातुर्मास तय होने पर श्रावक गण उपाश्रय या तत्सम्वंधित स्थानों पर मरम्मत, रंगाई, पुताई आदि जो भी काम करते हैं वो चातुर्मास के निमित्त होता है. ऐसे में उन सभी आरंभ समारंभ का दोष चातुर्मास करने वाले साधू साध्विओं को लगता है. ऐसी स्थिति में उनका प्रथम प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) व्रत खंडित होता है.
अतः शास्त्र आज्ञा स्पष्ट है की साधू साध्वी गण अपना चातुर्मास पहले से घोषित न करें.
जैन आगमों के अनुसार साधू साध्वी गण चातुर्मास काल में एक स्थान पर रहने के लिए श्रावक संघ से प्रार्थना करते हैं. श्रावक संघ अथवा कोई व्यग्तिगत रूप से साधू साध्विओं की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें रहने का स्थान उपलब्ध करवा दे तो साधू साध्वी वहां पर ठहर सकते हैं एवं अपना चातुर्मास व्यतीत कर सकते हैं. यदि गृहस्थ उन्हें स्थान देना स्वीकार न करे तो वे अन्यत्र विहार कर जाते हैं.
आज इस शास्त्र आज्ञा से विपरीत स्थिति प्रचलन में आ चुकी है. आज श्रावक संघ साधू साध्विओं से चातुर्मास हेतु प्रार्थना करते हैं. प्रायः संघ के सैंकड़ों लोग एकत्रित हो कर बस , ट्रेन या हवाई जहाज से दूर दराज क्षेत्र में रहे हुए साधू साध्विओं से चातुर्मास की विनती करने जाते हैं. ऐसा देखने में आता है की साधू साध्वी गण भी बहुत बार ऐसी स्थिति को प्रोत्साहित करते हैं. प्रायः बहुत मन मनुहार एवं अनेको वार विनती करने पर ही साधू साध्वी गण चातुर्मास की स्वीकृति देते हैं. इस तरह से संघ का बहुत समय व धन का अपव्यय होता है, साथ ही आरम्भ समारंभ भी होता है.
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जैन आगमों के अध्ययन से ये बात स्पष्ट रूप से सामने आती है की साधू साध्विओं का चातुर्मास पहले से तय होना शिथिलाचार को बढाने में मुख्य हेतु है.
समस्त आचार्य एवं उपाध्याय भगवंतों एवं पूज्य साधू साध्विओं से निवेदन है की इस स्थिति के संवंध में पुनर्विचार करें एवं शास्त्र (आगम) आज्ञा के अनुसार व्यवस्था को पुनर्प्रतिष्ठित करें. श्रावक संघ भी जागरूक बन कर इस पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे.
Wednesday, June 9, 2010
Bhopal Gas plant tragedy: Did Rajiv Gandhi call Arjun Singh to set free Warren Anderson?
Who Called Arjun Singh to set free Warren Anderson, Chairman, Union Carbide? Did Rajiv Gandhi call Arjun Singh? This is a million dollar question which haunting Indian politics in Bhopal Gas plant tragedy. Latest reports points needle of suspicion to Rajiv Gandhi, the then Prime Minister of India.
Read more:
Bhopal Gas plant tragedy: Did Rajiv Gandhi call Arjun Singh to set free Warren Anderson?
Thanks,
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is also ISO 9000 professional)
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Bhopal Gas plant tragedy: Did Rajiv Gandhi call Arjun Singh to set free Warren Anderson?
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Jyoti Kothari
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Monday, June 7, 2010
Malpura: A pilgrimage center of Dada Jin Kushal Suri
Malpura is a famous Jain pilgrimage center in Rajasthan near Jaipur. Malpura is renowned for Dada Jin Kushal Suri. Dada Jin Kushal Suri left for his heavenly abode some seven centuries back at Deraur (Pakistan). It is told that a devotee of Dada Jin Kushal Suri at Malpura could not believe the news. He told himself,"I will believe the sad news if Dada himself will tell me the same."
Dada Jin Kushal Suri came from the heaven to satisfy the urge of his devotee. He shew himself standing over a stone. The stone is kept as it is and being worshiped by the devotees. A beautiful Dadabadi is build to pay homage Dada saheb.
It is worth noted that Dada Jin Kushal Suri was an Acharya in Khartargachchha clan of Jain. He is widely worshipped among his devotees all over India and overseas. Hundreds of Dadabadis are built in his name all over India and some places overseas.
View images and Videos of Malpura Dadabadi
Dada Jin Kushal Suri came from the heaven to satisfy the urge of his devotee. He shew himself standing over a stone. The stone is kept as it is and being worshiped by the devotees. A beautiful Dadabadi is build to pay homage Dada saheb.
It is worth noted that Dada Jin Kushal Suri was an Acharya in Khartargachchha clan of Jain. He is widely worshipped among his devotees all over India and overseas. Hundreds of Dadabadis are built in his name all over India and some places overseas.
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Sunday, June 6, 2010
Ban on export of Tanzanite rough
Tanzania government puts ban on the export of Tanzanite rough from Tanzania. The order came to develop cutting and polishing center in Tanzania.
Tanzanite is one of the most beautiful blue colored gemstones. It is a hot selling semi precious stone which resembles Blue sapphire, the precious stone. Tanzanite is found and mined in Tanzania only. Arusha is the main source of Tanzanite rough.
Jaipur, the color stone hub of India has been cutting and polishing Tanzanite since last decade. Jaipur is exporting cut and polished Tanzenite to the US and other countries. This is a major source of export revenue for Jaipur.
Gem dealers of Jaipur are stunt with the order of Tanzanian government. They will face crisis in procuring rough Tanzanite. Gemstone export from Jaipur will likely to be dipped following the incident.
Thanks,
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is also ISO 9000 professional)
Tanzanite is one of the most beautiful blue colored gemstones. It is a hot selling semi precious stone which resembles Blue sapphire, the precious stone. Tanzanite is found and mined in Tanzania only. Arusha is the main source of Tanzanite rough.
Jaipur, the color stone hub of India has been cutting and polishing Tanzanite since last decade. Jaipur is exporting cut and polished Tanzenite to the US and other countries. This is a major source of export revenue for Jaipur.
Gem dealers of Jaipur are stunt with the order of Tanzanian government. They will face crisis in procuring rough Tanzanite. Gemstone export from Jaipur will likely to be dipped following the incident.
Thanks,
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is also ISO 9000 professional)
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Jai Kumar Baid elected as President of Mahakaushal Murtipujak Jain Sangh
Sri Jai Kumar Ji Baid is elected as President of Mahakaushal Murtipujak Jain Sangh. Sri Jai Kumar Ji Baid belongs to a religious Murtipujak Jain family of Raipur, Chhattisgarh. He had been trained for Jain religion in the Jain religious training camps in the 1960s. He volunteered himself as a trainer of the said Shivirs (Camps) later on.
He is in cloth business.
He devoted his time in teaching Jain religion and philosophy in Mahakaushal and other parts of India such as Kolkata and Jiaganj. I was a student of his Shivir at Jiaganj in 1980.
He had served Mahakaushal Murtipujak Jain Sanghseveral times as executive member and office bearer in the past.
As a tradition Mahakaushal Murtipujak Jain Sangh elect their President and the President himself chose a committee of 31 including Vice President, General Secretary, Joint secretary and a treasurer. Two senior members are co opted as Patrons.
Jai Kumar Ji, in a telecon, told me that he is in process of selecting his committee and nominate the members soon. He has some new plans to take the Sangh ahead. He informed that he will endeavor to build low cost new Jain temples in the remote areas of Mahakaushal.
He is in cloth business.
He devoted his time in teaching Jain religion and philosophy in Mahakaushal and other parts of India such as Kolkata and Jiaganj. I was a student of his Shivir at Jiaganj in 1980.
He had served Mahakaushal Murtipujak Jain Sanghseveral times as executive member and office bearer in the past.
As a tradition Mahakaushal Murtipujak Jain Sangh elect their President and the President himself chose a committee of 31 including Vice President, General Secretary, Joint secretary and a treasurer. Two senior members are co opted as Patrons.
Jai Kumar Ji, in a telecon, told me that he is in process of selecting his committee and nominate the members soon. He has some new plans to take the Sangh ahead. He informed that he will endeavor to build low cost new Jain temples in the remote areas of Mahakaushal.
Sunday, May 30, 2010
From Artificial intellegence blog
I found this fascinating quote today:
You should read the whole article.
Vardhaman Infotech provides cheapest web site designing and hosting with domain name. Vardhaman Infotech provides all facilities under one plan in the cheapest rate. It is surprisingly for only Rs.499/ ($ 11.99 ) per year. Artificial Intelligence, May 2010
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Cheapest website designing and hosting in the world
Jaipur: May 29, 2010
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They have other plans for web designing and hosting too. Those who need more efficient and detailed web hosting can opt for other plans. However, all these plans are much cheaper than other web designers and hosting service providers.
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is also ISO 9000 professional.)
Wednesday, May 19, 2010
वर्त्तमान स्थिति में धार्मिक स्थलों के चुनाव: विचारनीय तथ्य
वर्त्तमान युग प्रजातंत्र का युग है. बिभिन्न सरकारी निकायों में निरंतर चुनाव होते रहते हैं चाहे वो लोकसभा हो या विधान सभा. पंचायत हो या नगर पालिका. इन में राजनीती होती ही रहती है. अलग अलग राजनैतिक दल मतदाताओं को लुभाने एवं अपने पक्ष में करने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं. अधिकतर समय ये हथकंडे नैतिकता की सीमायें लांघ जाते हैं.
इसी प्रकार बिभिन्न सार्वजनिक संस्थाओं के भी चुनाव होते रहते हैं. उनमें भी स्वार्थ परक राजनीति की दूषित परम्पराएँ देखने को मिल रही है. सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएं भी अब इस रोग से अछूती नहीं रही. धार्मिक संस्थाओं के चुनाव भी अब राजनैतिक अखाड़ों में परिवर्तित होने लगे हैं. सेवा, सद्भावना, आस्था का स्थान अब धनवल एवं इसी प्रकार की अन्य वस्तुओं ने ले लिया है. प्रायः आज के साधू साध्वी वर्ग भी राजनीति में लिप्त होते नजर आ रहे हैं.
यहाँ स्थिति विषम तो है ही साथ ही सामाजिक समरसता को भी भंग करने वाली है. जैन समाज के चुनाव भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं. अब चुनाव प्रायः कर के अपने अपने अहम् की तुष्टि के लिए लड़ा जाणे लगा है. किसी भी प्रकार से धन उपार्जन करने वाला समाज का श्रेष्ठी वर्ग प्रायः सामाजिक पदों को प्राप्त करने के लिए अपने धनवल का उपयोग करते हैं. आज ये भी देखने में आता है की साधू साध्वी वर्ग भी इन्ही श्रेष्ठीओं को अपने अपने प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए तबज्जो देता है.
समाज का साधारण वर्ग भी ऐसी स्थिति में किसी एक या अन्य गुट में सम्मिलित हो जाता है.
फिर शुरू होती है एक दुसरे से आगे निकलने की अंधी दौड़. प्रायः एक गुट एवं उसके कार्यकर्ता अन्य गुट को नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते. इस तरह शुरू हो जाती है वैमनस्यता, लड़ाई झगडे. इन चुनाव एवं चुनावोत्तर परिश्थितियो में कषायों को खुला पोषण मिलता है.
ऐसी स्थिति में "धर्मं" कहन टिक पायेगा? ये एक ऐसा विचारनीय बिंदु है जिस पर साधू, साध्वी, श्रावक, श्राविका सभी को मिल बैठ कर विचार करना चाहिए.
क्या हम ऐसी स्थिति का फिर से निर्माण नहीं कर सकते जहाँ विनम्र, सेवा भावी, कर्मठ एवं धर्मात्मा लोग सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी बनें जिससे जिन शासन की निरंतर एवं उत्तरोत्तर वृद्धि हो सके.
निवेदक
ज्योति कोठारी
इसी प्रकार बिभिन्न सार्वजनिक संस्थाओं के भी चुनाव होते रहते हैं. उनमें भी स्वार्थ परक राजनीति की दूषित परम्पराएँ देखने को मिल रही है. सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएं भी अब इस रोग से अछूती नहीं रही. धार्मिक संस्थाओं के चुनाव भी अब राजनैतिक अखाड़ों में परिवर्तित होने लगे हैं. सेवा, सद्भावना, आस्था का स्थान अब धनवल एवं इसी प्रकार की अन्य वस्तुओं ने ले लिया है. प्रायः आज के साधू साध्वी वर्ग भी राजनीति में लिप्त होते नजर आ रहे हैं.
यहाँ स्थिति विषम तो है ही साथ ही सामाजिक समरसता को भी भंग करने वाली है. जैन समाज के चुनाव भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं. अब चुनाव प्रायः कर के अपने अपने अहम् की तुष्टि के लिए लड़ा जाणे लगा है. किसी भी प्रकार से धन उपार्जन करने वाला समाज का श्रेष्ठी वर्ग प्रायः सामाजिक पदों को प्राप्त करने के लिए अपने धनवल का उपयोग करते हैं. आज ये भी देखने में आता है की साधू साध्वी वर्ग भी इन्ही श्रेष्ठीओं को अपने अपने प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए तबज्जो देता है.
समाज का साधारण वर्ग भी ऐसी स्थिति में किसी एक या अन्य गुट में सम्मिलित हो जाता है.
फिर शुरू होती है एक दुसरे से आगे निकलने की अंधी दौड़. प्रायः एक गुट एवं उसके कार्यकर्ता अन्य गुट को नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते. इस तरह शुरू हो जाती है वैमनस्यता, लड़ाई झगडे. इन चुनाव एवं चुनावोत्तर परिश्थितियो में कषायों को खुला पोषण मिलता है.
ऐसी स्थिति में "धर्मं" कहन टिक पायेगा? ये एक ऐसा विचारनीय बिंदु है जिस पर साधू, साध्वी, श्रावक, श्राविका सभी को मिल बैठ कर विचार करना चाहिए.
क्या हम ऐसी स्थिति का फिर से निर्माण नहीं कर सकते जहाँ विनम्र, सेवा भावी, कर्मठ एवं धर्मात्मा लोग सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी बनें जिससे जिन शासन की निरंतर एवं उत्तरोत्तर वृद्धि हो सके.
निवेदक
ज्योति कोठारी
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Tuesday, May 18, 2010
Famous Shaharwali people and family: Puranchand Shamsukha
Shamsukha family is one of the most famous Shaharwali family from Azimganj. They were migrated from Bikaner, Rajasthan to Azimganj. Puranchand Shamsukha (1882-1967), S/O Mehtabchand and grand son of Sangram Singh was a renowned scholar of Jainism. He had been in service to Maharaj Bahadur Singh Dugar at his early age and later on he served Nahata family of Jiaganj.
Renowned Bengali story writer Dakshinaranjan Mitra Mazumdar (Thakurmar Jhuli fame) was his close friend. Puran Chand Shamsukha wrote several books on Jainism in Bengali language such as "Jaino Dharmer Parichay", "Jain Tirthankar Mahavira", "Jaino Darshaner Ruprekha" etc. He also translated Jain Agam "Uttaradhyana Sutra" which was published by Calcutta University.
Some of his articles were published in 'Asia' magazine, Bangkok.
Renowned linguist and Vice Chancelor of Calcutta university, Dr. Suniti Chatterjee, Dr. Kalidas Nag and Bijoy Singh Nahar were among the editors of "Puranchand Shamsukha abinandan Grantha".
Rishabhchand Shamsukha (1900-1970), his eldest son was also a scholar and meditator. He established "Indian silk house" a famous Saree shop at college street in 1924 for livelihood of his family and left for "Sri Aurobindo ashram", Pondichery at the age of only 31. He lived their rest of his life.
He has written few books about Rishi Aurobindo and his doctrine.
1. Integral yoga of Sri Aurobindo
2. In the light of the Mother
3. Sri Aurobindo: His life unique.
The last one was written inspired by the Mother herself.
Parichand Kothari and Umirchand Kothari were his close friends who also followed path of Sri Aurobindo inspired by him.
Sumatichand Shamsukha, another son of Puranchand Shamsukha was a social server. He adorned the seat of secretary Murshidabad Sangh and Jain Bhawan, Kolkata.
Source: Dilipchand Samsukha, grandson, Puranchand Shamsukha
Famous people from Azimganj part 1
Famous people from Azimganj part 2
Famous Shaharwali people and families Part 3
Famous People..........Part 4Famous People..........Part 5
Sadhu Sadhwi from Murshidabad
With regards,
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)
Sunday, May 16, 2010
Akha Teej: Varshi Tap Parna of Sadhwi Hempragya Shree
Varshi Tap Parna of Sadhwi Hempragya Shree took place at Mohanbadi, Jaipur on the eve of Akha Teej (Akshay Tritiya). Sadhwi Hempragya Shree is disciple of famous Jain nun Sadhwi Shri Vichakshan Shree.
Sadhwi Mridula Shree of the same group has also observed Varshi Tap (First year). It is to be noted that Varshi Tap continues for more than two years. One has to observe four hundred days of fasting (alternate days) to accomplish Varshi Tap.
The function started with discourses of several nuns of Sadhwi Maniprabha Shree group. Vimal Chand Surana, convener of the program also delivered his speech and admired the Varshi Tap. MS. Sushma, director, Vardhaman open university, Kota, described significance of Tap in Jainism.
Varshi Tap is connected with Lord Adinath. He observed it by doing four hundred fasts continually. He broke his fast with Ikshuras (Sugarcane juice) offered by his grandson Shreyansh Kumar on the auspicious day of Akshay tritiya, Akha Teej.
Sadhwi Hempragya Shree humbly told that her Varshi Tap could not be compared with that of Lord Rishabhdev, the Adinath.
Pranimitra Kumarpal V.Shah, a renowned social worker and philanthropist told in his discourse that hunger is the basic instinct of all living beings. One endeavor to conquer the very instinct of hunger while observing fast.
Sadhwi Maniprabha Shree also delivered her speech.
Pranimitra Kumarpal V Shah offered sugar cane juice at first to Sadhwi Hempragya Shree to break her fast. Thousands of devotees followed him by offering the same to the nuns.
The ceremony was followed by Adinath Panch Kalyanak Puja and Sadharmi Vatsalya (Lunch). The Surana family sponsored the lunch.
Jain Swetambar Khartargachchh Sangh have organized the whole event.
Sadhwi Mridula Shree of the same group has also observed Varshi Tap (First year). It is to be noted that Varshi Tap continues for more than two years. One has to observe four hundred days of fasting (alternate days) to accomplish Varshi Tap.
The function started with discourses of several nuns of Sadhwi Maniprabha Shree group. Vimal Chand Surana, convener of the program also delivered his speech and admired the Varshi Tap. MS. Sushma, director, Vardhaman open university, Kota, described significance of Tap in Jainism.
Varshi Tap is connected with Lord Adinath. He observed it by doing four hundred fasts continually. He broke his fast with Ikshuras (Sugarcane juice) offered by his grandson Shreyansh Kumar on the auspicious day of Akshay tritiya, Akha Teej.
Sadhwi Hempragya Shree humbly told that her Varshi Tap could not be compared with that of Lord Rishabhdev, the Adinath.
Pranimitra Kumarpal V.Shah, a renowned social worker and philanthropist told in his discourse that hunger is the basic instinct of all living beings. One endeavor to conquer the very instinct of hunger while observing fast.
Sadhwi Maniprabha Shree also delivered her speech.
Pranimitra Kumarpal V Shah offered sugar cane juice at first to Sadhwi Hempragya Shree to break her fast. Thousands of devotees followed him by offering the same to the nuns.
The ceremony was followed by Adinath Panch Kalyanak Puja and Sadharmi Vatsalya (Lunch). The Surana family sponsored the lunch.
Jain Swetambar Khartargachchh Sangh have organized the whole event.
Akha Teej (Akshay Tritiya): Varshi Tap Parna at Mohanbadi
Akshaya Tritiya, the auspicious day
T20 World Cup cricket: England is the new Champion
England is the new Champion of ICC T20 World Cup cricket. They have defeated Australia by seven wickets. England has scored 148 for 3 in just 17 overs in their way of chasing Australian score 147 for 7. This is the first ever major title for England in any major ICC tournament.
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Thanks,
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is also ISO 9000 professional)
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T20 World Cup cricket Final 2010: England becomes the new Champion
T20 World Cup cricket Final 2010: Live Score: England 123 for 3 in 15 ...
T20 World Cup Final 2010: Live Score: England 68 for 1 in nine overs
T20 World Cup Cricket 2010: Australia made 147 runs in the final match ...
T20 World Cup Cricket Final: Australia lost their first three wickets ...
T20 World Cup cricket 2010 Semi final: Australia sails to Final ...
T 20 World Cup Cricket Semi final: England defeated Sri Lanka by seven
Thanks,
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is also ISO 9000 professional)
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