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मंगलवार, 11 मई 2010

आनंदघन जी के पद : अब हम अमर भये न मरेंगे

अब  हम  अमर  भये न मरेंगे (अब),
या कारण मिथ्यात्व दिए तज, क्यों कर देह धरेंगे.

राग द्वेष जग वंध करत है, इनको नाश करेंगे,
मर्यो अनंत काल ते प्राणी, सोऽहं काल करेंगे.

देह विनाशी, हूँ अविनाशी, अपनी गति पकरेंगे,
नाशी जासी हम थिरवाशी, चोखे हैं निखरेंगे.

मर्यो अनंत वार बिन समझ्यो, अब सुख दुःख विसरेंगे,
आनंदघन निपट अक्षर दो, नहीं समरे सो मरेंगे.

आनंदघन जी के पद : आशा औरन की क्या कीजे

आनंदघन जी के पद : अब हम अमर भये न मरेंगे

 

ज्योति  कोठारी  

 



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आनंदघन जी के पद : आशा औरन की क्या कीजे

आशा औरन की क्या कीजे, ज्ञान सुधा रस पीजे (आशा.)

भटके द्वारी द्वारी लोकन के, कुकर आशा धारी,
आतम अनुभव रस के रसिया, उतरे न कबहु खुमारी.

आशा दासी के जे जाये, ते नर जग के दाशा
आशा दासी करे जे नायक, लायक अनुभब पाशा.

मनसा प्याला, प्रेम मसाला, ब्रह्म अग्नि पर जाली,
तन भाटी उबटाई पिए कष, जागे अनुभव लाली.

अगम प्याला पियो मतवाला, चिन्हे अध्यातम वासा,
आनंदघन चेतन वै खेले, देखे लोक तमाशा.  

आनंदघन जी के पद : आशा औरन की क्या कीजे

आनंदघन जी के पद : अब हम अमर भये न मरेंगे

 

ज्योति  कोठारी  

 






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