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Wednesday, April 13, 2016

आइये हम सब मिलकर पानी बचाएं, इसका दुरूपयोग बंद करें

 पानी बचाएं, इसका दुरूपयोग बंद करें


सभी भारतवासियों  से मेरा निवेदन है की पानी  बचाने के लिए आगे आए और अपना धर्म निभाये। देश आज पानी के भयंकर संकट  गुजर रहा हैदेश के १० राज्य सूखाग्रस्त घोषित हो चुके हैंदेश के सर्वोच्च न्यायालय एवं कई उच्च न्यायालयों ने केंद्र एवं राज्य सरकारों को सूखे का संज्ञान लेकर त्वरित कार्यवाही करने  के लिए कहा हैमुंबई उच्च न्यायालय ने IPL के १३ मैचों को सूखे के कारण महाराष्ट्र  से बाहर कराने का आदेश दिया हैलातूर लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं और सरकारों को रेल भर भर कर वहां पानी भेजना पड़   रहा है.

मारवाड़ी समाज में कहावत थी  पानी को घी से भी ज्यादा संभल  खर्च करना चाहिये पर आज इस समाज में भी खूब पानी ढोला जाता हैआज मारवाड़ी समाज भी अन्य समाजों के जैसे पानी का दुरूपयोग करने लगा है.

पानी का मूल्य तबतक समझ नहीं आता जब तक कुंआ सुख न जाये 

भारत में जल संरक्षण की प्राचीन परम्परा 


भारत में पुराने समय से ही जल-संरक्षण के लिए अनेक उपाय किये जाते रहे हैं. जैसलमेर, थार मरुस्थल का एक ऐसा स्थान है जहाँ वर्षा का सालाना औसत १० इंच भी नहीं है परन्तु  जल-संरक्षण की अद्भुत विधियों के द्वारा यह स्थान न सिर्फ अपनी सारी जरूरतों को पूरा करता था परन्तु जैसलमेर के रस्ते जानेवाले व्यापारिक काफिलों के लिए भी जल आपूर्ति करता था. पूरा राजस्थान ही इस विधि का सुन्दर प्रयोग करता था और कुआ, कुई, जोहड़, तालाव, बांध, टांके आदि के माध्यम से पानी को संचित कर रखता था. राजस्थान की बावड़ियां विश्वप्रसिद्ध है और ये बावड़ियां पानी का बड़ा भंडार हुआ करता था. साथ ही ये भूगर्भ जल के पुनर्भरण का काम भी करता था. 

पानी के महत्व को समझते हुए हमें फिर से अपनी पुरानी परम्पराओं को पुनर्जीवित करना है और जल-संरक्षण के महत्व को समझना हैहमें इस नए सामाजिक क्रांति का अग्रणी बनना हैमौसम विभाग ने इस वर्ष अच्छे मानसून की भविष्यवाणी की है यदि हम अभी से सचेत हो कर जल-संरक्षण की अपनी पुराणी विधाओं का इस्तेमाल करें तो आनेवाले कई वर्षों तक हमें पानी के लिए तरसना नहीं पड़ेगा. राज्य एवं केंद्र की सरकारें उपयुक्त कानून बना कर इस दिशा में ठोस पहल करे. 


जहाँ पर्याप्त जमीन हैइन स्थानों पर तालावकुएंटांके आदि का निर्माण करवा कर  वर्षा जल संरक्षित किया जा सकता हैइन कामों के लिए तकनीक सहज ही उपलव्ध हैसाथ ही इसमें अनेक तरह की सरकारी मदद भी मिलती है
इस साल ५ लाख नए कुएं - तालाव खुदवाने के लिए केंद्र सरकार ने इस वर्ष के बजट में  बहुत बड़ी राशि का प्रवन्ध भी किया है. हमें यह सुनिश्चित करना है की इस राशि का दुरूपयोग न हो और यह भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़ जाए. 

तकनीक से मिटेगी पानी की समस्या 

जैन धर्मस्थान में तालाव, काठगोला, मुशिडाबाद  

विकास का पश्चिमी मॉडल भारत के लिए घातक 

आज़ादी के बाद हमने बिना सोचे समझे विकास का पश्चिमी मॉडल अपनाया विशेष कर अमरीकी मॉडल। हमने ये नहीं सोचा की अमरीका और भारत की परिस्थिति में कितना अंतर है. अमरीका के पास विपुल प्राकृतिक संसाधन है और जनसँख्या बेहद कम. जबकि भारत में दुनिया की १८ प्रतिशत जनसँख्या निवास करती है और पानी विश्व का मात्र ४ प्रतिशत है. ऐसी स्थिति में अमरीका की नक़ल कर ज्यादा पानी खर्च करना कहाँ की बुद्धिमत्ता है?


पानी (जल) का दुरूपयोग व अपव्यय 


भारत में वर्षा जल का ६५ प्रतिशत बह कर समुद्र में चला जाता है यदि इसमें से १० प्रतिशत का भी संरक्षण कर लिया जाए तो देश में पानी की कमी नहीं रहेगी. इसके लिए नदी, तलाव, बावड़ी आदि के जलग्रहण क्षेत्रों को अतिक्रमण मुक्त एवं स्वच्छ बनाना होगा और निजी एवं सामाजिक स्तर पर भूजल संरक्षण, एवं वर्षा जल संरक्षण की आदत विकसित करनी होगी. 

आज हम न सिर्फ पानी का दुरूपयोग  कर रहे हैं बल्कि नदी, तालाव आदि को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. और नदी साफ़ करने का सारा ठेका सरकार पर ही छोड़ दे रहे हैं. ध्यान में रखना पड़ेगा की बिना व्यक्ति और समाज की सोच बदले केवल सरकार के भरोसे ये काम कभी नहीं हो सकता। विद्यालयों-महाविद्यालयों में भी लगातार छात्र-छात्रों को इस विषय में जागृत करने की आवश्यकता है और शैक्षणिक प्रतिष्ठानों के कर्णधार एवं शिक्षक गण इसे अपना कर्त्तव्य समझ कर विद्यार्थियों को जल-संरक्षण के लिए प्रेरित करें.

तालाव, जैन दादाबाड़ी, कोलकाता 

कृषि चक्र में बदलाव व इजराइली तकनीक 


हमने अपनी कृषि में फसल चक्र अपनाते समय भी पानी की उपलव्धता पर ध्यान नहीं दिया। तभी तो लातूर जैसे स्थान में गन्ने की खेती की जिसमे बहुत ज्यादा पानी की खपत होती है और उसका नतीजा सामने है जब लातूर बून्द बून्द का प्यासा हो गयापानी बचाने के मामले में हम इजराइल से बहुत कुछ सिख सकते हैं. बून्द बून्द सिंचाई से लेकर अनेक प्रकार की तकनीक अपना कर इस देश ने अपने अत्यन्त सीमित जल संसाधन से देश का अद्भुत विकास किया है.


प्रकृति प्रेमी भारत में पानी (जल) का दुरूपयोग क्यों? 


भारत प्राचीन काल से ही प्रकृति प्रेमी ही नहीं अपितु प्रकृति पूजक रहा है जहाँ जल को वरुण देवता माना गया है और जिसे देवता माना उसका दुरूपयोग कैसे हो सकता है? जैन धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमे पानी में जीव एवं पानी बहांने में जीव-हिंसा का पाप माना गया है और इसीलिए जैन लोग धार्मिक कारण से (परम्परागत रूप से) पानी का कम इस्तेमाल करते रहे हैंपरन्तु ऐसा देखने में रहा है की आज के जैन लोग भी पानी बचाने में उतने तत्पर नहीं रहे

मैं धर्म गुरुओं से भी निवेदन करता हूँ की वे इस विषय में लोगों को जाग्रत करें. पानी के सदुपयोग की सलाह दें एवं इसके दुरूपयोग को पाप बता कर लोगों को ऐसा करने से रोकें. धार्मिक-सामाजिक संगठन भी इस दिशा में लोगों को प्रेरित कर सकते हैं साथ ही अपने खर्च में से कुछ अंश इस मद में भी खर्च करें. 

आइये हम सब मिलकर पानी बचाएं, इसका दुरूपयोग बंद करें एवं प्रकृति से प्राप्त इस अमूल्य धन को सहेजने का प्रयत्न करें। 



गोवंश गौरव भारत भाग ३: गायों की दुर्दशा क्यों और इसके लिए जिम्मेदार कौन



Thanks,
Jyoti Kothari (Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries-Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Thursday, November 5, 2015

गोवंश गौरव भारत भाग ३: गायों की दुर्दशा क्यों और इसके लिए जिम्मेदार कौन


गोवंश गौरव भारत भाग ३: गायों की दुर्दशा क्यों और इसके लिए जिम्मेदार कौन








गोवंश की इस दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है और कैसे हम गोमाता को उसका पुराण गौरव लौटा सकते हैं? यह एक ज्वलंत प्रश्न है और हमें इसका जवाब ढूँढना ही होगा। लोगों की राय यह है की हमारा लालच और जिम्मेदारी दूसरों पर थोपने की वृत्ति के कारन ऐसा हो रहा है. हम लालच में आकर गायों से दूध और अन्य चीजें पाना तो चाहते हैं पर उसकी सेवा नहीं करना चाहते। यदि किसान और गोपालक गाय को पालेगा नहीं तो गोवंश किस प्रकार से देश में विकसित होगा? और जब वो अनुपयोगी करार दे दी जायेगी तो उसे कत्लखाने जाने से कैसे रोका जा सकता है? 


किन्ही अज्ञात कारणों से देशी गायों की नस्ल बिगड़ गई और उसने दुध देना कम कर दिया था और तब से ही भारतीय गोपालक विदेशी गायों की और आकर्षित हुआ और देशी गायों की उपेक्षा का दौर शुरू हो गया. जिससे उचित आहार एवं भरण पोषण के आभाव में नस्ल और भी बिगड़ती चली गई और देशी गाय का दूध २-३ लीटर तक सिमट कर रह गया. जहाँ विदेशी गायें २० से ले कर ४० लीटर तक दूध देती है वहीँ देशी गायों की यह हालत! 


जबसे रासायनिक खाद का प्रचलन बढ़ा तब से किसान ने गोबर के स्थान पर यूरिया का प्रयोग शुरू कर दिया और बैलों का स्थान ट्रैक्टर ने ले लिया। इससे उपयोगी बैल नकारा हो गया और गोबर भी कंडे जलाने मात्र के काम का रह गया. गोमूत्र का उपयोग हम भूल गए और न ही कीटनियंत्रक के रूप में न ही औषधी के रूपमे हम गोमूत्र का प्रयोग करते हैं. 


पहले के जमाने में राजा महाराजा लोग गायों मुफ्त में चरने के लिए गोचर भूमि छोड़ देते थे स्वतंत्रता के बाद गोचर भूमि में कमी आई. हालाँकि कुछ राज्य सरकारें अभी भी गोचर भूमि सुरक्षित रखती है लेकिन हम उसमे भी अतिक्रमण करने से नहीं चूकते। गाय को गोमाता मैंनेवाले समाज में गोचर भूमि का अतिक्रमण केवल अपने थोड़े से लाभ के लिए क्यों? राजस्थान जैसे राज्य में गोचर के अलावा ओरण भी होता था परन्तु अब तो उसमे भी अतिक्रमण की समस्या विकराल हो चुकी है, ऐसी स्थिति में गायों का पालन कैसे हो सकता है. आवश्यकता इस बात की है की गोचर एवं ओरण की सभी जमीन तत्काल प्रभाव से अतिक्रमण से मुक्त हो.


हम सरकारों से बहुत अपेक्षाएं रखते हैं और लोकतंत्र में कल्याणकारी राष्ट्रों को इन अपेक्षाओं को पूरा भी करना चाहिए परन्तु हम कुछ न करें उलटे गायों के लिए नुकसानदायक काम करें और सरकारों से अपेक्षा रखें ये नहीं हो सकता। हम सभी गोभक्तों   होगा, जिम्मेदारी लेनी होगी की गाय सड़क पर कचरा न खाए, उसे भरपेट पौष्टिक भोजन मिले और उसकी  सम्भाल होती रहे. 



गोवंश गौरव भारत भाग २: गायों की वर्तमान दयनीय स्थिति


गोवंश गौरव भारत : अतीत के पृष्ठ



मांस निर्यात पर 25 हज़ार करोड़ रुपये की सब्सिडी क्यों?


ज्योति कोठारी
संस्थापक कोषाध्यक्ष,
गो एवं प्रकृतिमूलक ग्रामीण विकास संस्थान

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Tuesday, November 3, 2015

गोवंश गौरव भारत भाग २: गायों की वर्तमान दयनीय स्थिति

गोवंश गौरव भारत भाग २: गायों की वर्तमान स्थिति


भूख से व्याकुल कचरा खाता बछड़ा 

असहाय हो कर मरता हुआ गोवंश 
पिछले ब्लॉग में मैंने गायों के अतीत गौरव की चर्चा की थी अब हम आज की बात करते हैं, भारत में आज गायों की स्थिति क्या है? यदि अतीत से तुलना करें तो आज भारत में गायों की स्थिति दयनीय है. गोवंश आज अपना गौरव खो चूका है. भारत में गायों की स्थिति पाश्चात्य देशों से भी बहुत बुरी है. गाय को माता मैंने वाले देश में गाय सड़क पर कचरा खाते हुए अक्सर दिख जाती है. ऐसा पश्चिमी देशों में बिलकुल भी संभव नहीं है. आज भारत का ग्रामीण किसान गाय पालना ही नहीं चाहता, वह भैंस पालता है. यदि गाय भी पालता है तो जर्सी या होल्स्टीन। देशी नस्ल की गायें गीर, राठी, थारपारकर, हरियाणवी आदि लुप्तप्राय होती जा रही है.

गायों का हम दोहन के स्थान पर शोषण करने लगे हैं और दूध देने की क्षमता समाप्त होने पर उसे लावारिस छोड़ देते हैं. ऐसी स्थिति में बेचारी गाय इधर उधर मुह मारती रहती है फिर भी उसका पेट नहीं भर पाता। क्या हमें माँ के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए?

जब गायों को कोई पालनेवाला नहीं होगा तो उसे कत्लखाने जाने से कौन और कैसे बचाएगा? देश में अनेक राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र आदि में गोहत्या बंदी कानून लागु है और वहां गायों के मारने या उसे कत्लखाने भेजने पर पूर्णतः पावंदी है. उन राज्यों में गायें कटती तो नहीं पर भूखे मरने पर मज़बूर है. भूख से पीड़ित गोमाता जब सड़क पर कचरा खाती है तो अनायास ही पोलिथिन भी खा लेती है. यही पोलिथिन उसकी आंतो में जा कर जैम जाता है और बेचारी गाय असमय ही पीड़ादायक मौत झेलने को मज़बूर हो जाती है. 

बछड़ों की दशा तो और भी दयनीय है उन्हें जन्मते ही छोड़ दिया जाता, उसे माँ का दूध भी नसीब नहीं होता। अपने दूध से मनुष्य जाती को पालनेवाली गोमाता अपने बछड़ो को ही दुध नहीं पिला पाती।  बेचारा और बदनसीब बछड़ा भूख से बिलबिलाते हुए जब किसी किसान के खेत में चरने की आस में पहुंच जाता है तब उसे चारा तो नहीं पर डण्डे जरूर खाने को मिल जाते हैं, यही हाल सांड, बैल और बूढी गायों का भी होता है. 

शहरों में तो दूध देनेवाली गायों को भी दूध दुहने के बाद सड़क पर छोड़ दिया जाता है और वह इधर उधर घूम कर अपना पेट भरने की कोशिश में डंडे खाती रहती है और कचरा या पोलिथिन निगलने को मज़बूर हो जाती है. कभी कभी किसी गोभक्त की दी हुई रोटी या चारा भी मिल जाता है.

गोवंश गौरव भारत के पिछले भाग में हमने लिखा था की गोवंश का अतीत गौरवशाली था और तब भारत समृद्धि के चरम शिखर पर था. तब स्थिति ये थी की हम गाय नहीं पालते थे परन्तु गोमाता हमें पालती थी. जबसे भारत ने गोमाता की उपेक्षा की तब से भारत की समृद्धि भी अस्ताचल को चली गई. 

गायों की ऐसी दुर्दशा क्यों हुई और उसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या हम और हमारा लालच ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? गोभक्त कहलानेवाले भारतवासियों को अपने गिरेवान में झाँक कर देखना ही होगा. 


गोवंश गौरव भारत : अतीत के पृष्ठ



मांस निर्यात पर 25 हज़ार करोड़ रुपये की सब्सिडी क्यों?


ज्योति कोठारी
संस्थापक कोषाध्यक्ष,
गो एवं प्रकृतिमूलक ग्रामीण विकास संस्थान


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Monday, November 2, 2015

गोवंश गौरव भारत : अतीत के पृष्ठ


गोवंश गौरव भारत : अतीत के पृष्ठ और वर्तमान अवस्था 

देव-स्वरूपा गोमाता 

देसी गाय बछड़े के इंतज़ार में 

सभी जानते हैं की हज़ारों वर्षों से भारत में गाय को माता एवं देवता का दर्ज़ा दिया जाता रहा है. भारत एक कृषि प्रधान देश है एवं इस देश की कृषि गोवंश पर आधारित थी।  बगैर गाय के कोई प्राचीन भारत की कल्पना भी नहीं कर सकता है. हम यह भी जानते हैं की प्राचीन और मध्य काल में भारत एक समृद्ध देश हुआ करता था जिसे सोने की चिड़िया के नाम से भी जाना जाता था. भारत की आर्थिक समृद्धि का राज गो-पालन में छिपा हुआ था और इसी लिए तत्कालीन भारत में गाय गो-धन के रूप में जानी जाती थी.

इस देश के ग्रन्थ गो-महिमा से भरे हुए हैं एवं गायों की संख्या किसी व्यक्ति के धनवान होने का मापदंड हुआ करता था. प्राचीन ग्रन्थ उपासक-दसांग में भारत के १० प्रसिद्ध धनवानों की कथा है जिनमे से सभी के पास कई गोकुलें थी (१०,००० गायों का एक गोकुल होता है). राजा महाराजा भी गायों का संग्रह करते थे और गो-धन प्राप्त करने के लिए युद्ध तक हो जाया करते थे. महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक बार कौरवों ने मत्स्य नरेश विराट के गो-धन को लूटने के प्रयास में उनके पुत्र से युद्ध भी किया था.

उस समय गो-दान की भी परंपरा थी. राजा-महाराजा एवम धनी व्यक्ति ब्राह्मणो, कवियों, दरिद्र व्यक्तियों आदि को गाय दान में दिया करते थे. गाय का इतना महत्त्व उस प्राणी के आर्थिक-सामजिक उपयोगिता के कारण ही था. हिंदी के सर्वश्रेष्ठ लेखक मुंशी प्रेमचंद का "गोदान" उपन्यास उनकी अमर कृति है.

मानव सभ्यता के इतिहास में मनुष्य ने जितने भी जीवों को पालतू बनाया है उसमे गाय सर्वाधिक उपयोगी है. गाय का दूध माता के दुध के सामान शिशु / वालक के लिए पौष्टिक है, इस लिए इसे गो-माता के नाम से बुलाया जाता है।  इसके दुध से दही, छाछ, घी, मावा आदि अनेक प्रकार के अत्यंत उपयोगी खाद्य सामग्रियों का निर्माण होता है. दुध, दही, छाछ, मक्खन, घी आदि गोरस के नाम से जाने जाते हैं और यह सभी कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट एवं अनेक खनिजों व विटामिनो का अमूल्य स्रोत है.

जहाँ स्त्री गो-वंश दूध देने का काम करती है वहीँ बैल खेती में काम करता है, खेत को जोत कर उसे उपजाऊ बनाता है. गाय का गोबर उठता खाद है साथ ही ईंधन भी. गोबर का जैविक खाद न सिर्फ जमीन को उर्बर बनता है बल्कि जमीन में केचुए की उत्पत्ति में भी सहायक होता है. केचुए जमीन को निरंतर पोली बना कर पौधों में  प्राणवायु (ऑक्सीजन) का संचार करता है.  गोवर के कीटाणुनाशक क्षमता के कारण इससे घर के आँगन को लीपा जाता था और कच्चे मकानो को गोबर का घोल मज़बूती भी प्रदान करता था.

गो-मूत्र एक उत्तम औषधि होने के साथ यह कीटाणु एवं पतंग-प्रतिरोधी भी है एवं फसलों को कीट-पतंगों से बचने के लिए इसका बहुलता से उपयोग होता था. मृत्यु उपरांत भी गाय अनुपयोगी नहीं होती एवं इस के चमडे  से जुटे, चप्पल, बैग आदि विविध वस्तुओं का निर्माण होता है, इसकी हड्डियां फॉस्फोरस का उत्तम स्रोत है और इसके सिंग भी जमीन को सूक्ष्म तत्व उपलव्ध करवाते हैं.

इस प्रकार से गाय भारत की अर्थनीति की रीढ़ की हड्डी थी और इसके बगैर भारत में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. इसीलिए जीने भारत के जनमानस ने भगवान माना उस कृष्ण का एक नाम "गोपाल" और उनका एक मनमोहक रूप "माखनचोर" भी है. जगत कल्याणकर्ता शिव का वाहन नंदी (बैल) है और देवताओं का भी भरण पोषण कामधेनु करती है.  जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का चिन्ह भी बृषभ ही है और सभी तीर्थंकरों की माताएं पुत्र जन्म से पहले जो १४ स्वप्न देखती थी उसमे से एक बृषभ होता था. २५०० वर्ष पूर्व के "आजीवक" दर्शन के प्रवर्तक का नाम "गोशालक" था.

इस तरह हम देख सकते हैं की सभी धर्म, मत एवं सम्प्रदायों में गोवंश का एक जैसा ही महत्त्व था और धर्म-मत-पंथ निर्विशेष गाय भारत की आत्मा में वसति थी.

सभी प्राचीन उपाख्यानों में गुरुकुल वास में शिष्य गुरु की धेनुएँ चराने जाया करते थे. गाय के बछड़े को वत्स कहा जाता है और गाय की अपार ममता का द्योतक वात्सल्य शब्द बन गया. गाय के चार थन होते हैं, उसमे से दो थन का दूध बछड़े के लिए होता था और मनुष्य अपने प्रयोजन के लिए दो थनो से दूध दुहता था. इसी से दोहन शब्द बना.

इस प्रकार गोवंश भारत की अर्थनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और धार्मिक गतिविधियों के केंद्र में है और यही उसकी गौरव गाथा है जिसे अतीत के सहेजे हुए पन्नो में से निकाला गया है.

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https://jyoti-kothari.blogspot.com/2015/11/blog-post_3.html
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मांस निर्यात पर 25 हज़ार करोड़ रुपये की सब्सिडी क्यों?


ज्योति कोठारी
संस्थापक कोषाध्यक्ष,
गो एवं प्रकृतिमूलक ग्रामीण विकास संस्थान






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Friday, October 30, 2015

मांस निर्यात पर 25 हज़ार करोड़ रुपये की सब्सिडी क्यों?

मांस निर्यात 

मांस निर्यात पर ७० रुपये प्रति किलो की सब्सिडी क्यों? यह प्रश्न हर भारतीय के मन में उठ रहा है. यह सब्सिडी बहुत वर्षों से चल रही है और भैंसों के परिवहन पर यह सब्सिडी दी जाती है. इसके साथ ही निर्यातोन्मुखी कत्लखानों के आधुनिकीकरण के लिए १५ करोड़ रुपये प्रति कत्लखाने भी केंद्र सरकार द्वारा दिए जाते हैं. राज्यसभा की याचिका समिति ने 13 फरवरी 2014 को मांस निर्यात नीति पर पुनर्विचार कर सब्सिडी बंद करने की सिफारिश की थी, मगर उस रिपोर्ट पर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने 3 दिसंबर 2014 को पुनर्विचार करने से इंकार कर दिया है.  केंद्र सरकार ने आज तक यह सब्सिडी देना बंद नहीं किया है. विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा दिए जाने वाले अनुदान एवं सुविधाएँ इसके अतिरिक्त है.

इन सब्सिडियों के बुते भारत विश्व का सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश बन चूका है और इस मामले में वह ब्राज़ील, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसे परंपरागत निर्यातक देशों को पीछे छोड़ चूका है. भारत ने इस वर्ष लगभग २४ लाख टन मांस का निर्यात किया है और इस हिसाब से केवल परिवहन अनुदान पर ही सरकार ने कर दाताओं के १६८०० (सोलह हज़ार आठ सौ) करोड़ रुपये मांस निर्यातकों पर लूटा दिए. कत्लखानो के आधुनिकीकरण पर इसके अतिरिक्त ३०० करोड़ रुपये खर्च किये गये. केंद्र सरकार द्वारा दिए गए अन्य अनुदान एवं लाभ के वारे में कोई आंकड़े लेखक के पास उपलव्ध नहीं है.

केंद्र सरकार के अतिरिक्त राज्य सरकारें भी मांस निर्यातकों को अनुदान एवं अन्य सुविधाएँ प्रदान करती है जिससे संवंधित आंकड़ों का संकलन करना अभी बाकी है. इसके साथ ही इन मांस निर्यातकों को आयकर भी नहीं देना पड़ता। भारत से मांस का निर्यात मूल्य लगभग ३२५ अरब रुपये है, और इस बहुत ही लाभजनक व्यापार से निर्यातकों को काम से काम १०० से १५० अरब रुपये प्रति वर्ष का मुनाफा होता है.  इस प्रकार केंद्र सरकार को इनसे ३५ से ५० अरब रुपये आयकर के रूप में मिलना चाहिए परन्तु आयकर में छूट होने के कारन यह पैसा भी मुट्ठीभर मांस निर्यातकों की ही जेब में रह जाता है.

हमने ऊपर के आंकड़ों में देखा की केंद्र सरकार द्वारा इस मद में करीब १७ हज़ार करोड़ (१७० अरब) रुपये प्रति वर्ष सब्सिडी के रूप में दिया जाता है इसमें आयकर छूट को और शामिल किया जाए तो यह आंकड़ा २० हज़ार करोड़ (२०० अरब रुपये) के पार पहुंच जाता है. यदि हम यह मान लें की राज्य सरकारें केंद्र सरकार का चौथाई भी देती है तो यह रकम भी ५००० करोड़ (५० अरब) रुपये के पार पहुचती है. इस प्रकार करदाताओं का २५००० (पच्चीस हज़ार) करोड़ या २५० अरब रुपये केंद्र व राज्य सरकारें मांस निर्यातकों पर लूटा रही है.  यह रकम कुल निर्यात आय के ७५ प्रतिशत के बराबर है.

दैनिक जनसत्ता के अनुसार  देश के चार सबसे बड़े मांस निर्यातक अरेबियन एक्सपोर्ट (सुनील करन), अल कबीर एक्सपोर्ट (सतीश और अतुल सभरवाल), एमकेआर फ्रोजन फूड्स (मदन एबट) व पीएमएल इंडस्ट्रीज (एएस बिंद्रा) हैं. समाचारों के अनुसार पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल की पत्नी भी इस व्यापार में अग्रणी भूमिका में है.

गौरतलब बात ये है की देश में मुट्ठीभर (५० से भी कम) बड़े मांस निर्यातक हैं और करदाताओं की गाढ़ी कमाई की यह सारी रकम का अधिकांश भाग उन थोड़े से लोगों पर वर्षों से लुटाया जा रहा है.

यह उद्योग न तो बुनियादि संरचनाओं के विकास में कोई योगदान देता है न ही कोई विशेष रोज़गार सृजन का काम करता है उलटे देश के संसाधनो पर अतिरिक्त दवाब ले कर आता है. कत्लखानों से हमारे जलस्रोतों को प्रदूषित होते है, दूध का उत्पादन कम कर उसे महंगा बनाता है जिससे पौष्टिक भोजन की कमी होती है. फिर किस स्वार्थ से इन मांस निर्यातकों पर इतनी मेहरबानी और दरियादिली दिखाई जाती है?

भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए धन का आभाव रहता है और हम लगातार विदेशी निवेशकों के पीछे भागते रहते हैं वहां केवल मांस निर्यात पर इतना भारी भरकम धन खर्च करना कहाँ तक उचित है? ध्यान देने लायक बात यह है की यह रकम केंद्र सरकार के कुल स्वास्थ्य बजट के बराबर है.

मांस निर्यातकों को छूट देने की यह परंपरा महावीर, बुद्ध, गांधी के इस देश में स्वतंत्रता के समय से चली आ रही है और बढ़ती ही जा रही है. क्या हमारी केंद्र व राज्य सरकारें इस विषय में विचार करेगी? क्या जनता जागृत हो कर सरकारों को ऐसा न करने के लिए मज़बूर करेगी? इस ज्वलंत प्रश्न का उत्तर हमें देना ही होगा।

 यांत्रिक कत्लखानों- मांस निर्यात के विरोध में आंदोलन ६ दिसंबर से

Summary in English:
Why governments are paying a 25 thousand crore subsidy on meat export from India?

India is now the World's number 1 in meat export, exporting 24 million tonnes of beef. The central government is paying a subsidy of Rs. 70 per KG on transportation costs amounting to Rs. 16800 crore or 168 billion. The same is paying up to 15 crore or 150 million for the modernization of slaughterhouses and has paid a total of Rs. 300 crore last year. Central government loses approximately 3500 to 5000 crore for the income tax benefits given to the meat exporters. The federal government of India pays a sum of Rs. 20,000 crore or 200 billion in total as direct or indirect subsidies to the meat exporters.

If we assume that State governments are paying one-fourth of the amount paid by the Union government, it is Rs. 5000 crore or 50 billion. Thus the total amount paid by both central and state governments amounts to Rs. 25000 crore. This money goes from the pocket of taxpayers which means from our pockets.

Why? Raise your voice against the subsidy of Rs twenty-five thousand crore on meat export. This is equal to the total budget of the Central government for health care in India. Lion's share of the whole amount goes to the pockets of a few meat exporters (Less than 50). Raise your voice to stop this subsidy to meat exporters and ask the governments to spend this money for the benefit of people in general.

Jyoti Kothari 

Q&A on the carcinogenicity of the consumption of red meat and processed meat





allvoices

Wednesday, October 21, 2015

Be aware of calls in the name of Google


Google, Bing and Yahoo, Major Search Engines
Please be aware of phone calls in the names of Google. There are several Companies who are calling in the name of Google and misleading the customers. Its a rare instance when Google calls any customer to buy their products.

Several IT Companies in SEO business have been calling in the name of Google to various business houses. There is no harm in calling customers and offering one's service. Customers have option to accept or reject their offers. However, calling in the name of Google creates an extra hype in the minds of customer.

Large numbers of businessmen in India do not have adequate knowledge in Information Technology. Many of them do not have much exposure to IT. Google is a symbolic name for them and this is synonym to internet or web world for them.

SEO services are offered to improve page ranking in search engines for better web visibility. This service help in growing business by attracting more customers through websites or other IT products. Most of the people worldwide use Google for searching any product or service and to gain knowledge.

When a business person (Having not much knowledge about IT or SEO) gets a call for SEO in the name of Google, he or she may get excited. It is therefore, easy for the SEO company to sell their ideas and services to that client.  However, he or she would not be getting services from Google. The business person may go the hands of such persons or Company, who cannot provide quality services. So, be aware of such calls and pay only if you are satisfied with the service provider. Please do not be misguided by the name of Google.

How to promote business boost sales with well designed websites?

Why SEO? What is SEO? Keywords, tools, techniques, training and services

Yahoo and Microsoft joined hands to beat Google competition

Thanks,
Jyoti Kothari

(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Friday, September 4, 2015

Indian President did not speak about Non-Congress Prime Ministers


Pranab Mukherjee addressing at MDU
Pranab Mukherjee, Honorable President of India, taught school students today at Rajendra Sarvoday Vidyalay in Rashtrapati Bhavan.  It is a welcome step that the constitutional Head of India came forward to teach school students on September 5, Teacher's Day. He taught about the history of Indian democracy and shared his vision and experience. He spoke about several Congress Prime Ministers including Jawaharlal Nehru, Rajeev Gandhi, Narsimha Rao and Dr. Manmohan Singh.

Surprisingly, he did not speak anything about any of the Non-Congress Prime Ministers while describing democracy and democratic strength of India. Does only Congress bring democracy in India? Can democracy exist without opposition parties?  He forgot Morarji Desai, first ever Non-Congress Prime Minister or even Atal Vehari Bajpayee, three times PM of India. I don't know why he escaped mentioning any of the Non-Congress Prime Ministers. However, it was his privilege.

Prime Minister Narendra Modi also addressed school students and interacted with them. It was the first time when both the top leaders, Honorable President, and the Prime Minister. Anyway, today will be remembered for very long time for this honor to the teachers.

Thanks,
Jyoti Kothari, ( Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

Attribution: By MDU Rohtak [CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)], via Wikimedia Commons

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Saturday, August 15, 2015

सावन की तीज: प्रकृति और महिलाओं का त्यौहार


themed nature jewellery sawan ki teej
कदम्ब पुष्प अंगूठी: सावन की तीज


 परसों १७ अगस्त, २०१५  सावन की तीज है. यह प्रकृति और खास कर महिलाओं का त्यौहार है. चारों ओर हरियाली हो, कदम्ब के पुष्प खिले हों, वर्षा से स्नात हो कर रूपसियों की विकसित रोम राजी जैसी महकते कदम्ब के बृक्ष में बंधा हुआ झूला हो, हाथों में मेहंदी रचाये सोलह श्रृंगार कर स्त्रियां नाचती गाती अपनी मस्ती में झूमती हुई वन बिहार करती हों तो वो कहलाता है सावन का तीज या हरियाली तीज. क्या है यह त्यौहार और इसका भारतीय संस्कृति में महत्व?

सावन का महीना चौमासे अर्थात वर्षा ऋतू का पहला महीना होता है. झूमते बादल के साथ इठलाती वर्षा रानी पूरी प्रकृति को आनंदित कर देती है. बरसात की फुहार सुखी और गरम धरती को न सिर्फ शीतल करती है परन्तु उसमे नया जीवन भी फूँक देती है. हर तरफ हरियाली का साम्राज्य फैलने लगता है और प्रकृति नवीन जीवन के पल्लवन से सृजन की खुशियों से भर उठती है. ऐसे आनंदोत्सव में महिलाएं क्यों न सम्मिलित हों? आखिर स्त्रियों को भी तो प्रकृति ही कहा गया है, वे भी तो सृजनहार ही हैं.

कहा जाता है की वृन्दावन में कृष्ण कन्हैय्या अपनि प्रियतमा राधा रानी के साथ वन और उद्यानों में गोपियों संग क्रीड़ा करते थे. कदम्ब के पुष्पों से महकती बृन्दावन की कुञ्ज गलिन में हिंडोले में बैठ कर झूला झूलते थे. वर्षा की बूंदों से आनंदित मयूर गण भी वहां आकर अपनी  नृत्यकला से मानो राधा कृष्ण को रिझाने में लगे रहते थे. राधा की सखियाँ अर्थात बृंदावन की गोपियाँ भी मस्ती में झूमते हुए मानो नृत्यकला में मयूरों को भी पीछे छोड़ देना चाहती थी, तब ऐसे मनती थी सावन की तीज.

कदम्ब के पुष्पों का भारतीय साहित्य में बहुलता से वर्णन है. किसी की प्रसन्न चित्तता बताने के लिए प्रायः कदम्ब के पुष्पों की उपमा दी जाती थी. जब ख़ुशी से किसी के रोम-रोम पुलकित होते थे तो उसकी उपमा धारास्नात कदम्ब के पुष्पों से दी जाती थी और उसकी महक का तो कहना ही क्या?

राजस्थान में सावन की तीज का महत्व बहुत अधिक है, वीरों की ये धरती लगभग प्यासी ही रहती है, रेगिस्तान में पानी का महत्त्व क्या है यह तो वहां के रहवासी ही जान सकते हैं. यूँ तो वर्षा सभी जगह आवश्यक एवं आनंद दायक होती है परन्तु राजस्थान के मरुस्थल की बात कुछ विशेष ही है. और इसलिए सावन की तीज का महत्त्व भी यहाँ और स्थानो से अधिक ही है।

जिन सौभाग्यवती स्त्रियों के पति प्रवास में रहते थे ऐसी प्रोषित भर्तृका स्त्रियों के पति भी प्रायः वर्षा ऋतू में प्रवास से घर वापस आ जाते थे. लम्बे इंतज़ार के बाद अपने प्रियतम  से मिलन की अद्भुत ख़ुशी सावन के तीज के त्यौहार में चार चान्द लगा देती थी तभी तो स्त्रियां सोलह श्रृंगार कर अपने प्रियतम के साथ वन बिहार को जाती थी और उन्मुक्त प्रकृति का आनंद लेती थी. ऐसे अवसर पर किसी भी स्त्री के पीहर पक्ष वाले अपनी बहन या बेटी के लिए श्रृंगार की सामग्री, आभूषण, स्वादिष्ट पकवान आदि भेजा करते थे. श्रृंगार सामग्री भेजने की यही प्रथा अब सिंजारा कहलाती है.

मंद मंद सुरभित पवन के बीच झूले में झूलना, नव-पल्लवित लता गुल्मो के बीच अठखेली करते दम्पति-युगल, पति - पत्नी अथवा प्रेयसि- प्रेमी के मिलन को एक अनिर्वचनीय अानन्द की अनुभूति से भर देता था.

चित्र-परिचय: ऊपर के चित्र में कदम्ब वन में पुष्पों पर मंडराते-गुंजारव करते हुए भौंरे और स्त्रियों का प्रिय आभूषण अंगूठी को दर्शाया गया है. अंगूठी की प्राकृतिक सुंदरता भौंरे को भी भ्रमित कर रही है और वो उसे ही फूल मान कर उधर आकर्षित हो रहा है. ऐसे ही और भी चित्र देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.

ज्योति कोठारी 
वर्धमान जेम्स, जयपुर

  

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Friday, July 10, 2015

I am enjoying my work


I am enjoying my work very much, really enjoying. I am working for my Gems and Jewelry Company, Vardhaman Gems. This is doing very well online. We have scored 11000 likes in Facebook in just three months, that too, without advertising or buying likes. All these facebook likes are organic.

Vardhaman Gems decided to provide good quality Diamond Jewelry in 18K gold (Hallmarked) in a reasonable price to online customers and had created an e-Commerce website for online shopping. We have promoted the page in Facebook and have been receiving an excellent response. I am thankful to all our friends and likers.

I am enjoying in bearing my responsibilities as the advisor, Vardhaman Infotech, an IT Company. Darshan Kothari, my son is running this Company that developed more than 70 Android and IOS mobile Applications for domestic and international clients.

I am also enjoying my life in social services, I used to render. I am enjoying my life with my family, society, countrymen and people worldwide at large and wish all of you enjoy your life.

Thanks,
 Jyoti Kothari, ( Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Saturday, October 4, 2014

देश को चाहिए चौकीदार India needs watchmen



भारत को चाहिए चौकीदार। ऐसे सशक्त पहरेदार जो देश में पनपनेवाली हर बुराई पर पैनी नज़र रख सके और लोगों को आगाह कर सकें।  हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भारत को एक सशक्त एवं उन्नत देश बनाने का संकल्प लिया है और उस दिशा में निरंतर कदम बढ़ा रहे हैं. परन्तु वे अकेले क्या कर सकते हैं? देश में हर जगह गन्दगी, गरीबी और भ्रष्टाचार व्याप्त है जो की देश की तरक्की में वाधक बना हुआ है.

मोदीजी कहते हैं की यदि हर भारतवासी एक कदम चलेगा तो देश १२५ करोड़ कदम आगे बढ़ जायेगा। उनके इस आह्वान पर हमने भी साथ चलने का निश्चय किया है और इसी उद्देश्य से यह लिख रहा हूँ. हमें कई बार ऐसा लगता है की हम अकेले क्या कर सकते हैं> मैं एक सरल उपाय बताता हूँ.

अभी दो दिन पहले गांधी जयंती के अवसर पर माननीय प्रधान मंत्री जी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की और पांच वर्ष में लक्ष्य प्राप्त करने की बात कही. अब आप जहाँ कहीं गन्दगी देखें बस उसका एक फोटो खिंच लें. उसे संवंधित अधिकारी तक पहुचाये और सफाई का आग्रह करें। यदि आप स्वयं उसे साफ़ कर सकें तब तो बहुत अच्छी बात होगी पर काम क्से काम अधिकारी तक बात पंहुचा तो सकते ही हैं. यदि इतना करना भी मुश्किल हो तो कम से कम फेसबुक में एक पोस्ट तो कर ही सकते हैं.

इस काम के लिए मैने फेसबुक में एक ग्रुप बनाया है चौकीदार। आज इस ग्रुप को बनाते के साथ ही करीब सौ लोगों ने इसे ज्वाइन किया है. आप भी इसे ज्वाइन करें और जहाँ गन्दगी दिखे इसमें उसकी फोटो पोस्ट कर दें. साथ में जगह का पता देना न भूलें। यदि संभव हो तो वहां दूसरे दिन दुबारा जा कर देखें की गन्दगी साफ़ हुई या नहीं। यदि नहीं हुई हो तो मैसेज के साथ इसे दोबारा पोस्ट कर दें. इससे लोगों में जागरूकता बढ़ेगी और संवंधित अधिकारी एवं कर्मचारियों पर दवाव बढ़ेगा। हो सकता है किसी भले आदमी के मन में आ जाए और वो ही इसे साफ़ कर दें.

इतना तो आप जरूर कर सकते हैं.  मैं प्रयास करूँगा की इस ग्रुप का लिंक PMO India से भी हो जाये जिससे आपकी बात सीधे मोदीजी तक भी पहुँच सके. आज के दिन में मोबाइल व इंटरनेट के कारण यह एक बहुत ही आसान काम है पर इसका असर बहुत दूरगामी होनेवाला है. क्या हम नहीं चाहते की हमारा देश स्वच्छ और साफ़ सुथरा रहे? तो देर कैसी? काम शुरू कर दें.. प्रभु आपका मंगल करेगा!!

बनिए भारत के चौकीदार

India needs watchmen

The nation needs watchmen. Hundreds and thousands of watchmen चौकीदार who can keep their eyes on anything wrong happening in the country. Fortunately, we have got Narendra Modi as our PM who wants to work day and night for the betterment of the people and development of India.
However, we know that the corrupt and inefficient system does not allow him to work. It is, therefore, our duty as citizens of India to work as watchmen. The present task is cleaning India.
Whenever and wherever you see dirt report here. Please take a picture from your camera or mobile phone and upload here with a description of the location.
It will be better if you follow the place and report the next day whether the garbage is there or it is cleaned. Please do this for few days and you will see that the officials responsible for cleaning will be alert.
Can we contribute a little to clean India? Please click here to join 
Thanks,
Jyoti Kothari   (Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Wednesday, October 1, 2014

Research scholar Borayin Larios from Heidelberg, Germany in Jaipur

Sri Suparshwa Nath, the main deity at the temple

Colorful Roof painting at Sri Suparshwa Nath temple, Jaipur


Research scholar Borayin Larios from Heidelberg, Germany is in Jaipur and researching on antique jewelry using garnet gemstones. He has been here for a month and working with me continually to find useful clues. There are a few pieces of antique Jewelry in museums in Germany that have garnet (flat cut) inlaid into them. There is a probability that garnet stones used in these 1500 years old jewelry are from India.

 Borayin Larios was a student of comparative religion and studied the Vedas for his Doctoral program. He has changed his name to "Maitreya" (An Indian name in Sanskrit) inspired by his spiritual Guru. I am helping him as a gemstone dealer. I am also working with him on finding Jain texts about gemstones and jewelry.

He visited S J Public School today (October 1, 2014)  with me and delivered a lecture among the management, teachers, and students of the prestigious school. He said that 2nd October, the next day, is Gandhi Jayanti who fought all of his life with the weapon of Ahimsa. He linked the environment with Ahimsa and asked everyone to go with nature and not to pollute and contaminate the mother earth.

We had been at Sri Suparshwa Nath Shwetambar Jain temple, Johri Bazar a few days back where he shot some beautiful snaps of the temple. I have posted a few of these pictures at the top of the blog. 

Thanks,
Jyoti Kothari, (Proprietor, of Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, to Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional)

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Thursday, September 18, 2014

Poorn Chandra Jain, a freedom fighter and true Sarvoday leader


Poorn Puran Chandra Jain Tunklia, Freedom fighter and Sarvoday leader
Poorna Chandra Jain Tunklia
Poorna Chandra Jain (Puran Chand Tunkalia), a multi dimensional personality was born on 19th September, 1909. He was a highly qualified person of his time who obtained post graduate degree from Agra University.  Poorna chandraji started his career as a teacher on request of the Jobner thakur (a chieftain under Jaipur estate).

Soon after that, he got attracted to the freedom movement and joined Jaipur Rajya Prajamandal (the flagship organization of freedom fighters in princely states under British rule). He soon occupied the centre stage of freedom movement in Jaipur because of his sharpness, straightforwardness and commitment.

He was also the chief Editor of “Lokvani”, the most popular Hindi daily in Jaipur. Besides freedom movement, he made his presence strongly felt in the literary circles of the nation. He led social reforms in the city; he started criticizing social evils of that time and attacked those making his articles weapon against the same. His articles even embarrassed the monks and nuns of his own Jain community.

He contributed a lot for the educational development in the city. He decided not to join active politics post independence. Though he was sure to be inducted as a minister in the first ever popular ministry formed in Rajasthan after independence, he decided to remain in the field of constructive work and social service. He was the main leader in Rajasthan in Bhoodan movement launched by Saint Vinoba Bhave.


Poorn Chandra Jain sitting with Saint Vinoba Bhave (Group photo)
He was founder of several social and voluntary organizations within and outside Jaipur including Prakritrik chikitsalaya (a renowned Naturopathy center). He was an all India figure in regard to Sarvodaya movement, the movement for prohibition of Alcohol etc.

He worked in close association with Sri Jay Prakash Narayan (JP), the most popular leader of that time. In early seventies, they worked together for surrender of dreaded dacoits of Chambal valley. Many of the dreaded dacoits came forward and surrendered their weapons and took oath of “Ahimsa” before him.

At the age of 75, Poorna Chandra ji decided to relinquish all the official positions. He was so firm on his decision that repeated attempts by the then chief minister Mr. Bhairon Singh Shekhawat ( who was very close to him too) also failed to persuade him to accept the chairmanship of a govt. body under which he would have been entitled for a cabinet minister ranking.

He wrote a hand-note on January 14 and handed it over to his family members on August 1, 1995. He clearly instructed not to perform any rituals and not to call any of his family members from outside the city after his death except funeral and Utavna. His family members followed his instructions after his death. 

Jaipur will celebrate his 105th birthday tomorrow September 19, 2014 at Vani Mandir, Bapunagar to pay homage to their reverend leader who worked selflessly for his whole life. I have got details from Ajay Tunkalia, his grand son about his personality and work. I am publishing this article editing those details for your perusal.

Photographs of Birth day celebration at Vani Mandir

Jyoti Kothari with Chandi Prasad Bhatt, Dr VS Vyas, former consultant to PM of India
Jyoti Kothari speech, Vani MandirC P Bhatt, V S Vyas and Ajay Tunkalia at Dias 

Jyoti Kothari among Dignified audience at Puran Chand Tunkalia memorial lecture in Jaipur
Audience at Vani Mandir, Poorn Chandra Jain memorial lecture
Thanks,
Jyoti Kothari, (Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional)

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Tuesday, September 16, 2014

বিধানসভা উপ নির্বাচনে বি জে পী এলো তৃনমূলের সমকক্ষে



শমিক ভট্টাচার্য, বসিরহাট দক্ষিণ থেকে জয়ী

আজ পশ্চিম বঙ্গে বিধানসভা উপ নির্বাচনের ফলের ঘোষনা হলো. বসিরহাট দক্ষিনে  বি জে পী প্রত্যাশী শমিক ভট্টাচার্য তৃনমূলের প্রত্যাশী কে হারিয়ে জয়লাভ করলেন। সি পি এম এবং কংগ্রেস প্রত্যাশী ক্রমশ তৃতীয় এবং চতুর্থ স্থানে থাকলেন। এই সিটে কংগ্রেস প্রার্থীর জামানত বাজেয়াপ্ত হয়েছে। 
চৌরঙ্গী (কলকাতা) আসন অবশ্য তৃনমূলের প্রত্যাশী জয়ী হয়েছেন কিন্তু এইখানে ও বি জে পী দ্বিতীয় স্থান পেয়েছে। কংগ্রেস এবং  সি পি এম প্রত্যাশী ক্রমশ তৃতীয় এবং চতুর্থ স্থানে থাকলেন। পশ্চিম বঙ্গে বিধানসভা উপ নির্বাচনে বি জে পী এলো তৃনমূলের সমকক্ষে। উভয় দল ই এক - এক টি আসনে জয়লাভ করেছে এবং এক - এক টি আসনে দ্বিতীয় স্থানে থেকেছে। কংগ্রেস এবং  সি পি এম এক - এক টি আসনে তৃতীয় এবং চতুর্থ স্থানে থাকলেন।

এই নির্বাচন ইঙ্গিত করছে যে বি জে পি পশ্চিমবঙ্গে একটি বিশিষ্ট রাজনৈতিক শক্তি হিসেবে প্রতিষ্ঠিত হয়েছে। বাংলার মানুষ এখন এই দল কে তৃনমূলের বিকল্প হিসেবে দেখতে শুরু করেছে। বিশেষ দ্রস্টব্য যে বি জে পি প্রথম বার একক ভাবে বিধানসভা নির্বাচন লডেছে। সাধারনত দেখা যায় যে উপ নির্বাচনে শাসক দল ই জয় লাভ করে কিন্তু এইবার বি জে পি নিজেকে প্রতিষ্ঠিত করতে পেরেছে।

কংগ্রেস এবং  সি পি এম উভয় দল ই বাংলার রাজনীতি তে নিজেদের ভূমিকা স্থাপিত করতে পারছে না. জয়লাভ করার পারে তার প্রথম প্রতিক্রিয়ায় শমিক দা বললেন যে বসিরহাটের মানুষ তাকে বিধানসভায় পাঠিয়েছে এবং তিনি বিধানসভা দেখে আসবেন যাতে ২০১৬ তে অনেক যান কে নিয়ে যেতে পারেন।

Thanks,
Jyoti Kothari,
In Charge, West Bengal,
Narendra Modi Vichar Manch

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