Anup Jalota Bhajan Part 1 :
Anup Jalota Bhajan Part 2 :
Anup Jalota Bhajan Part 3 :
Anup Jalota Bhajan Part 4 :
Temple art of India: Jain Temples
Presented By:
Vardhaman Gems
Tuesday, September 8, 2009
Gemstones and Jewelry Videos
Assorting Rough Gemstones:
Shaping Gemstones:
Gemstone polishing : Cabochon and beads
Gemstone polishing factory:
Beads and Beaded Jewelry:
Drilling Gemstones Beads:
Sringing Beads Part 1:
Sringing Beads Part 2:
Sringing Beads Part 3:
Kundan Meena Jadau Jewelry: Part 1
Kundan Meena Jadau Jewelry: Part 2
Sunday, September 6, 2009
जैन धर्म की मूल भावना भाग २
आज प्रायः यह देखा जा रहा है की पुज्य साधू साध्वी भगवंत भी भगवान् महावीर के त्याग मार्ग को छोड़ कर सांसारिक आडम्बरों में फंसते जा रहे हैं। परमात्म भक्ति के नाम पर अधिकांश जगह महापुजनों का आडम्बर देखा जा रहा है। पूज्य साधू साध्वी भगवंत भी इन्हे प्रोत्साहित करते हैं। इन पूजाओं में प्रायः कर के अरिहंत परमात्मा के स्थान पर देवी देवताओं को महत्व दिया जाता है। यदि परमात्मा की पूजा इनमे होती भी है तो मात्र नाम के लिए। तथाकथित भक्त गण भी अधिकांशतः भौतिक सुख व सांसारिक कामनाओं के लिए इन पूजाओं में सम्मिलित होते हैं।
इसी तरह आज अनेकों साधू साध्वी गणों के अपने अपने प्रोजेक्ट हैं जिन्हें पुरा करने में ही उनकी दिलचस्पी रहती है। उन प्रोजेक्टों के निर्माण, संचालन आदि में उनका बहुत समय चला जाता है। वे उपदेशक के स्थान पर संचालक बनते जा रहे हैं। प्रायः उन प्रोजेक्ट्स के ट्रस्टी गण उन के पसंदीदा लोग होते हैं एवं निरंतर उनके संपर्क में रहते हैं। साधू साध्वी गण धन संग्रह के लिए भक्त जानो को सिर्फ़ प्रेरित ही नहीं करते अपितु अनेक समय उन पर दबाव भी डालते हैं। धन का इस्तेमाल भी उन साधू साध्विओं की इच्छा एवं आदेश के अनुसार होता है। जैन धर्म के अनुसार साधू साध्विओं का व्रत तीन करण व तीन योग से होता है। अर्थात वे न तो मन वचन काया से कोई सांसारिक कार्य करते हैं न कराते हैं और न ही उसका अनुमोदन करते हैं। परन्तु उपरोक्त कृत्य में सांसारिक कार्य कराना ही पड़ता है। इस प्रकार स्पष्ट रूप से व्रत का भंग होता है।
मेरा सभी सुज्ञ जनों से निवेदन है की इस विषय पर विचार कर जिन आज्ञा अनुसार प्रवृत्ति करने पर वाल दें।
धन्यवाद
जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
जैन धर्म की मूल भावना भाग 3
जिन मंदिर एवं वास्तु
प्रस्तुति:
ज्योति कोठारी
इसी तरह आज अनेकों साधू साध्वी गणों के अपने अपने प्रोजेक्ट हैं जिन्हें पुरा करने में ही उनकी दिलचस्पी रहती है। उन प्रोजेक्टों के निर्माण, संचालन आदि में उनका बहुत समय चला जाता है। वे उपदेशक के स्थान पर संचालक बनते जा रहे हैं। प्रायः उन प्रोजेक्ट्स के ट्रस्टी गण उन के पसंदीदा लोग होते हैं एवं निरंतर उनके संपर्क में रहते हैं। साधू साध्वी गण धन संग्रह के लिए भक्त जानो को सिर्फ़ प्रेरित ही नहीं करते अपितु अनेक समय उन पर दबाव भी डालते हैं। धन का इस्तेमाल भी उन साधू साध्विओं की इच्छा एवं आदेश के अनुसार होता है। जैन धर्म के अनुसार साधू साध्विओं का व्रत तीन करण व तीन योग से होता है। अर्थात वे न तो मन वचन काया से कोई सांसारिक कार्य करते हैं न कराते हैं और न ही उसका अनुमोदन करते हैं। परन्तु उपरोक्त कृत्य में सांसारिक कार्य कराना ही पड़ता है। इस प्रकार स्पष्ट रूप से व्रत का भंग होता है।
मेरा सभी सुज्ञ जनों से निवेदन है की इस विषय पर विचार कर जिन आज्ञा अनुसार प्रवृत्ति करने पर वाल दें।
धन्यवाद
जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
जैन धर्म की मूल भावना भाग 3
जिन मंदिर एवं वास्तु
प्रस्तुति:
ज्योति कोठारी
Labels:
अरिहंत परमात्मा,
त्याग मार्ग,
भगवान् महावीर,
महापूजन,
व्रत भंग
जैन धर्म की मूल भावना भाग १
जैन समाज में इन दिनों कुछ ऐसी प्रवृत्तियां बढ़ रही है जो की जैन धर्म की मूल भावनाओं के विरुद्ध है। इन प्रवृत्तिओं के बढ़ने से जिन शाशन की हानि हो रही है। समय रहते पूज्य आचार्य भगवंतों, गीतार्थ मुनिओं, विद्वानों एवं संघ के वरिष्ठ लोगों को इन प्रवृत्तिओं पर अंकुश लगाने के लिए प्रयत्न करना होगा अन्यथा यह जैन शाशन, धर्म व समाज के लिए घातक हो जाएगा.
पूर्व में भी समर्थ आचार्यों ने इस प्रकार सुधर किया है। साधू साध्विओं में भी जब जब शिथिलाचार बढ़ा है तब तब उन आचार्यों व गीतार्थ मुनि भगवंतों ने क्रियोद्धार कर पुनः संघ को व्यवस्थित किया है। इस संवंध में सूरी पुरंदर हरिभद्र सूरी, नवांगी टीकाकार अभयदेव सूरी, दादा जिन दत्त सूरी, अकवर प्रतिवोधक दादा जिन चंद्र सूरी, उपाध्याय क्षमा कल्याण जी, आत्माराम जी महाराज अदि का नाम उल्लेखनीय है। इस समय फिर से किसी ऐसे युग प्रवर्तक की आवश्यकता है।
आज साधू साध्विओं में भी शिथिलाचार व जिन वाणी के विरुद्ध प्रवृत्ति करने का प्रचालन बढ़ता जा रहा है। सुविहित मार्ग में चलने वाले कम होते जा रहे हैं। तत्त्व रसिक श्रावक भी कम हैं और अधिकांश लोग मन मर्जी की प्रवृत्ति में लगे हैं। ऐसी स्थिति में शिथिलाचारी मुनिओं का बोलबाला होता जा रहा है और भोले लोग मात्र वेश देख कर उनका अनुकरण कर रहे हैं।
इस संवंध में विचार मंथन आज के युग की आवश्यकता है। इस लेख के माध्यम से मैं इस विषय पर संघ के सुज्ञ जनों का ध्यान इस और आकर्षित करना चाहता हूँ। मुझे विश्वास है की आप लोग इस विषय पर विचार मंथन कर कुछ ठोस कदम उठाएंगे।
जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
जैन धर्म की मूल भावना भाग 3
जिन मंदिर एवं वास्तुप्रस्तुति:
ज्योति कोठारी
पूर्व में भी समर्थ आचार्यों ने इस प्रकार सुधर किया है। साधू साध्विओं में भी जब जब शिथिलाचार बढ़ा है तब तब उन आचार्यों व गीतार्थ मुनि भगवंतों ने क्रियोद्धार कर पुनः संघ को व्यवस्थित किया है। इस संवंध में सूरी पुरंदर हरिभद्र सूरी, नवांगी टीकाकार अभयदेव सूरी, दादा जिन दत्त सूरी, अकवर प्रतिवोधक दादा जिन चंद्र सूरी, उपाध्याय क्षमा कल्याण जी, आत्माराम जी महाराज अदि का नाम उल्लेखनीय है। इस समय फिर से किसी ऐसे युग प्रवर्तक की आवश्यकता है।
आज साधू साध्विओं में भी शिथिलाचार व जिन वाणी के विरुद्ध प्रवृत्ति करने का प्रचालन बढ़ता जा रहा है। सुविहित मार्ग में चलने वाले कम होते जा रहे हैं। तत्त्व रसिक श्रावक भी कम हैं और अधिकांश लोग मन मर्जी की प्रवृत्ति में लगे हैं। ऐसी स्थिति में शिथिलाचारी मुनिओं का बोलबाला होता जा रहा है और भोले लोग मात्र वेश देख कर उनका अनुकरण कर रहे हैं।
इस संवंध में विचार मंथन आज के युग की आवश्यकता है। इस लेख के माध्यम से मैं इस विषय पर संघ के सुज्ञ जनों का ध्यान इस और आकर्षित करना चाहता हूँ। मुझे विश्वास है की आप लोग इस विषय पर विचार मंथन कर कुछ ठोस कदम उठाएंगे।
जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
जैन धर्म की मूल भावना भाग 3
जिन मंदिर एवं वास्तुप्रस्तुति:
ज्योति कोठारी
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आचार्य,
क्रियोद्धार,
जिन शाशन,
जैन धर्म की मूल भावना,
शिथिलाचार,
साधू साध्वी
Saturday, September 5, 2009
Day of divine forgiveness
Johari Sath of Kolkata have arranged Day of divine forgiveness on last Sunday August 30, 2009 at Sheetalnath Bhawan. It was the first Sunday after Samvatsari.
Jyoti Kothari delivered a talk about Samvatsarika Pratikramana and Kshamapana between 9.30 to 11.00 A.M. followed by Samuhik Kshamapana. Each one present asked pardon to every one.
Program was followed by Sadharmi Vatsalya at Dadabadi. Shaharwali society also arranged for Sadharmi Vatsalya at the same time at Kolkata Dadabadi.
अजीमगंज दादाबाडी में भैरव जी का उत्थापन
*
*
इस दादाबाडी में तीन दादागुरुओं के साथ ही पंचम काल के अंत में होने वाले अन्तिम युगप्रधान आचार्य श्री दुप्पह सूरी के भी चरण हैं। ये चारों नयनाभिराम चरण स्फटिक रत्न से बने हुए हैं।
इस काम के संवंध में शहरवाली समाज में एक मत नहीं है। जहाँ कुछ लोग यह काम करवाना चाहते हैं वहीँ बड़ी संख्या में लोग इस के विरोध में भी हैं। विरोधी लोगों का मत है की दादाबाडी का सामान्य रूप से जीर्णोद्धार करवाना ही काफी है। अब अजीमगंज में बहुत कम लोग रहते हैं। दादाबाडी शहर से दूर होने के कारण बहुत कम लोग ही वहां पहुचते हैं। ऐसी स्थिति में इस जगह पर इतना पैसा लगाने का औचित्य नहीं है। उनका मानना है की इस पैसे का बेहतर उपयोग हो सकता है।
रामबाग परिसर में दो तालाव भी है। अभी कुछ दिन पूर्व किसी वास्तुकार ने सलाह दी की इन्हे बंद करवा दिया जाए। इस बात को ले कर भी गहरे मत भेद है। कुछ लोग इस सलाह पर अमल करना चाहते हैं लेकिन कुछ लोगों का मानना है की इसमे बहुत अधिक जीव हिंसा होगी जो की जैन सिद्धांत के ख़िलाफ़ है। साथ ही तालाव बंद करवाना राज्य के कानून के भी ख़िलाफ़ है। लोगों का यह भी कहना है की जिस समय यह तालाव बना था तब अजीमगंज बहुत समृद्ध था तो फिर इसमें वास्तु दोष कैसे हो सकता है?
जैन धर्म की मूल भावना भाग 1
जैन धर्म की मूल भावना भाग 2
दादाबाडी का प्राचीन चित्र
सौजन्य बिकास छाजेड
प्रस्तुति:सौजन्य बिकास छाजेड
ज्योति कोठारी
Monday, August 24, 2009
Friday, August 14, 2009
Tirthankar Neminath and Sri Krishna
Tirthankar Neminath and Vasudeva Krishna were cousin brothers according to Jain stories. We find the story in Kalpasutra Teeka that is preached on the ocasion of Paryushan.
A play " Neminath and Krishna" will be staged at Azimganj Kothi on 15 August, Independence day on the auspices of Sadhwi Shashiprabha Shree Ji Maharaj and her disciples.
Jyoti Kothari
A play " Neminath and Krishna" will be staged at Azimganj Kothi on 15 August, Independence day on the auspices of Sadhwi Shashiprabha Shree Ji Maharaj and her disciples.
Jyoti Kothari
Sadhwi Shashiprabha Shree Ji Birth Date
Birth date of Sadhwi Shashiprabha Shree Ji falls on 20 August 2009. Azimganj Shree Sangh will celebrate the same with Bhakti Sangeet.
It is to be noted that Sadhwi Ji and three of her disciples are observing their Chaturmas at Azimganj.
Posted by:
Jyoti Kothari
It is to be noted that Sadhwi Ji and three of her disciples are observing their Chaturmas at Azimganj.
Posted by:
Jyoti Kothari
Thursday, August 13, 2009
Paryushan Photos: Kalpasutra
Maharaja Siddhartha
Grief and Joy of Trishala Mata
Trishala Mata dreams 14 auspicious images while sleeping in her palace. She woke up and told King Siddhartha, her husband, about the dreams. She asked him about the expected result of the dreams. King Siddhartha told her that they will be bestowed with a mighty, wise and beautiful child (Picture 2) . Siddhartha calls interpreters of dreams the next morning and they endorsed his view (Picture 1) .
Once Lord Mahavira thought that his movements as embryo would be painful for his mothers. He stopped his movements to keep her mother in rest. Queen Trishala, his mother,however, interpreted it wrongly. She thought that the embryo is dead. She filled with grief and sorrow. When Lord came to know that he started moving. Trishala became joyous knowing her embryo alive(Picture 3) .
Mahavira Swami Photos in Kalpasutra
Paryushan Photos from Kalpasutra
Once Lord Mahavira thought that his movements as embryo would be painful for his mothers. He stopped his movements to keep her mother in rest. Queen Trishala, his mother,however, interpreted it wrongly. She thought that the embryo is dead. She filled with grief and sorrow. When Lord came to know that he started moving. Trishala became joyous knowing her embryo alive(Picture 3) .
Mahavira Swami Photos in Kalpasutra
Paryushan Photos from Kalpasutra
Paryushan: Mahavira Swami Photos from Kalpasutra
14 Draems of Devananda Mata
Harinaigameshi Deva transfers embryo
of Mahavira from
Devananda to Trishala Mata
Trishala Mata viewing 14 dreams
of Mahavira from
Devananda to Trishala Mata
Trishala Mata viewing 14 dreams
Lord Mahavira descending from Vaimanika Devaloka to the womb of Devananda Mata. His mother Devananda viewed 14 great dreams at that time (Picture 1) .
However, her joy did not prolong.Harinaigameshi Deva (god) took the embryo from her womb and transferred it to queen Trishala (Picture 3) by order Indra, the King of gods.
Trishala was sleeping in her palace at that time (Picture 2). She had the similar 14 great dreams after that (Picture 4).
Mahavira Swami Photos in Kalpasutra
Paryushan Photos from Kalpasutra
However, her joy did not prolong.Harinaigameshi Deva (god) took the embryo from her womb and transferred it to queen Trishala (Picture 3) by order Indra, the King of gods.
Trishala was sleeping in her palace at that time (Picture 2). She had the similar 14 great dreams after that (Picture 4).
Mahavira Swami Photos in Kalpasutra
Paryushan Photos from Kalpasutra
Wednesday, August 12, 2009
Famous People and Families from Shaharwali Society Part 5
*
Singhi family of Azimganj is also a renowned Shaharwali family. Bahadur Singh Singhi and Dalchand Singhi were the pioneers of the family. They established their business and business system well. They have found their fortune in collieries. They had lion's share in coal production of Bengal before nationalization of collieries.
Singhi family was fond of Gemstones, especially flat diamonds and emeralds. They were instrumental in making wonderful "Aangi" of sri Dharmanath Swami in Tulapatti Jain Temple, Kolkata. This Kundan Jadau "Aangi" is studded with hundreds of big size flawless flat diamonds.
The Singhi family had built two high schools, one in Lalbagh and another in Jiaganj, both in Murshidabad district. Their residential house Singhi Sadan in Azimganj is now converted to Azimganj Kothi. Rajendra Singh Singhi of this family was the first one in Shaharwali society to marry a Gujrati Girl.
However, their main contribution to Jain society is publications of "Singhi Granthamala". This is a series of Jain texts published first time in printed form. This series is an asset to Jain academic world. Prakrit Bharati, Jaipur is set to re-publish the same.
Famous people from Azimganj Part 1
Famous people from Azimganj Part 2
Famous people …….. Part 3
Famous People..........Part 4
Famous People..........Part 5
Bari Kothi
Posted by:
Vardhaman Gems
Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry
Singhi family of Azimganj is also a renowned Shaharwali family. Bahadur Singh Singhi and Dalchand Singhi were the pioneers of the family. They established their business and business system well. They have found their fortune in collieries. They had lion's share in coal production of Bengal before nationalization of collieries.
Singhi family was fond of Gemstones, especially flat diamonds and emeralds. They were instrumental in making wonderful "Aangi" of sri Dharmanath Swami in Tulapatti Jain Temple, Kolkata. This Kundan Jadau "Aangi" is studded with hundreds of big size flawless flat diamonds.
The Singhi family had built two high schools, one in Lalbagh and another in Jiaganj, both in Murshidabad district. Their residential house Singhi Sadan in Azimganj is now converted to Azimganj Kothi. Rajendra Singh Singhi of this family was the first one in Shaharwali society to marry a Gujrati Girl.
However, their main contribution to Jain society is publications of "Singhi Granthamala". This is a series of Jain texts published first time in printed form. This series is an asset to Jain academic world. Prakrit Bharati, Jaipur is set to re-publish the same.
Famous people from Azimganj Part 1
Famous people from Azimganj Part 2
Famous people …….. Part 3
Famous People..........Part 4
Famous People..........Part 5
Bari Kothi
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Vardhaman Gems
Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry
Jainism and Environment Part 2
Jain Dadabadis are true protectors of Environment. In fact, they are botanical gardens along with a temple of Dadagurudev.
Badi means garden that is derived from Sanskrit word Vatika. Since medieval age Dadabadis are built far from cities and towns. There are hundreds of trees in most of the Dadabadis. There are flower plants, fruit trees and decorative trees and plants in Dadabadis. Dadabadis also grow medicinal trees.
People use to come in Dadabadis for Darshan and Puja. Dadabadis are traditionally social and religious meeting places. Many social and religious events are organized and celebrated in dharmashalas in Dadabadis all over India. People come and spend a lot of time there. They enjoy fresh oxygen exhelled by trees and plants as an additional benefit.
Dadabadis are natural safeguards against pollution.
Decorative and fruit trees
Kolkata Dadabadi
Jainism and Environment
Green collar job: Environment friendly way of employment
Jainism and Environment Part 1
Jainism and Environment Part 2
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Jainism and Environment Part 1
*
Jainism is not only a religion but way of life. It is art of living. A human being lives with his society and environment. Jain Agamas (Holy Books) are very conscious about preserving environment. Their thoughts surpassed that of modern environmentalists.
Jain Agamas say that a Jeeva (Soul) harms or intend to harm any one out of Raga (Craving) and Dwesha (Aversion). They have gone into the root cause of all violence. The Acharanga Sutra, first Jain Anga Sutra advocates strongly for protecting and preserving environment. It says that Pudhavi (Soil), Jala (Water), Vaau (Air), Vanassai (Vegetations) and even Teu (Fire) are living creatures and should not be destroyed or killed. The Acharanga says that these are violence.
Consumerism promotes craving. It motivates people to consume more and more whether required or not. They have even made it parameter of development. This western doctrine is the root cause of all environmental hazards in modern days. In fact, we are now at the threshold of total collapse due to consumerism culture.
Jain texts emphasize on utility (Upayoga) in place of consume (Upabhoga) rather they tend to worship the nature(Upasana). Consumerism leads to deplition of natural resources that in turn contaminate air, water, soil and other valuable natural resources. Jain texts motivate people for minimul consumption. They emphasize on Tyaga (Sacrifice).
Jain Sharavaka / Shravikas (Laymen) are preached to minimize their Bhoga (Consumerables). Jain Sadhu / Sadhwi (Monks and Nuns) are living with almost no consumables. They do not use vehicles rather travel bear foot. They do not use electricity and any modern amenities. They do not even cook or tell any one to cook for them. They do not pluck flowers and any other green vegetables for any purpose. They do not possess any earthly things. No money, no bank account, no credit cards.
All Jains including Sadhu / Sadhwi and Sharavaka / Shravikas observe Paryushan as their main Parva. They do not even eat green vegetables in those days. Traditionally they do not eat in the night (after sunset).
Jainism and Environment
Contd........
Posted by:
Jyoti Kothari
Jainism is not only a religion but way of life. It is art of living. A human being lives with his society and environment. Jain Agamas (Holy Books) are very conscious about preserving environment. Their thoughts surpassed that of modern environmentalists.
Jain Agamas say that a Jeeva (Soul) harms or intend to harm any one out of Raga (Craving) and Dwesha (Aversion). They have gone into the root cause of all violence. The Acharanga Sutra, first Jain Anga Sutra advocates strongly for protecting and preserving environment. It says that Pudhavi (Soil), Jala (Water), Vaau (Air), Vanassai (Vegetations) and even Teu (Fire) are living creatures and should not be destroyed or killed. The Acharanga says that these are violence.
Consumerism promotes craving. It motivates people to consume more and more whether required or not. They have even made it parameter of development. This western doctrine is the root cause of all environmental hazards in modern days. In fact, we are now at the threshold of total collapse due to consumerism culture.
Jain texts emphasize on utility (Upayoga) in place of consume (Upabhoga) rather they tend to worship the nature(Upasana). Consumerism leads to deplition of natural resources that in turn contaminate air, water, soil and other valuable natural resources. Jain texts motivate people for minimul consumption. They emphasize on Tyaga (Sacrifice).
Jain Sharavaka / Shravikas (Laymen) are preached to minimize their Bhoga (Consumerables). Jain Sadhu / Sadhwi (Monks and Nuns) are living with almost no consumables. They do not use vehicles rather travel bear foot. They do not use electricity and any modern amenities. They do not even cook or tell any one to cook for them. They do not pluck flowers and any other green vegetables for any purpose. They do not possess any earthly things. No money, no bank account, no credit cards.
All Jains including Sadhu / Sadhwi and Sharavaka / Shravikas observe Paryushan as their main Parva. They do not even eat green vegetables in those days. Traditionally they do not eat in the night (after sunset).
Jainism and Environment
Green collar job: Environment friendly way of employment
Jainism and Environment Part 2
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Jyoti Kothari
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