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Sunday, July 19, 2009

Vivekananda enacted by Shekhar Sen

Friends of tribal society organized a show about Swami Vivekananda at Maharana Pratap Sabhagar, Bharatiya Vidya Bhavan, Vidyashram School, Jaipur at 7 PM, 18 July 2009.

This is a mono act written, directed and acted by great artist Shekhar Sen. The two and half hour show spell bound the house full audience.

The act, the music, the songs, the story ...dialogues.... and the overall show was wonderful!!

After lighting the lamps Shree Vimal Chand Surana, Chairman, FTS, Jaipur Chapter welcome the guests.

Mr. Pradip Baheti, Secretary informed about the society and its activities. He told that 1140 schools are run in Rajasthan and more than 27000 India wide by the society.

The society honored all its doners, sponsors of the show and media partner Dainik Bhaskar by presenting them flowers.

Shekhar Sen, the artist, told that these Ekal Vidyalayas are serving the tribal society as Swami Vivekananda thought. He urged people to join the noble cause.

Mr. Pradip Khaitan, convener of the program extended vote of thanks.

Ms. Pushpa Dangayach, Delhi, conducted the meeting.

Vardhaman Gems

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Thursday, July 16, 2009

सत्रह भेदी पूजा

सत्रह भेदी पूजा १६ वीं सदी के जैन कवि श्री साधू कीर्ति की संगीतमय रचना है। भारतीय मार्ग संगीत की इतनी उत्कृष्ट कोटि की कोई दूसरी रचना जैन भक्ति साहित्य में उपलब्ध नहीं है। यह हिन्दी में लिखी गई सब से प्राचीन जैन पूजा भी है। साधू कीर्ति अकबर प्रतिवोधक चौथे दादा साहब श्री जिन चंद्र सूरी के आज्ञा अनुयायी थे। वे श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय के खरतर गच्छ आम्नाय के थे। संवत १६१८ ( ईश्वी सन १५६२) में अनहिलपुर में उन्होंने इस पूजा की रचना की थी। साधू कीर्ति प्रख्यात गायक हरिदास, बैजू बाबरा व तानसेन के समकालीन थे। तत्कालीन भारतीय मार्ग संगीत की उत्क्रिषटता सत्रह भेदी पूजा में परिलक्षित होती है। इस पूजा में अनेक रागों का प्रयोग किया गया है। पूजा की भूमिका राग सरपदी में है जबकि पहली न्हवन पूजा में राग देसाख, सारंग व मल्हार का प्रयोग हुआ है। दूसरी विलेपन पूजा राग रामगिरी एवं विलावल में है व इसका दोहा राग ललित में गाया जाता है। तीसरी वस्त्र युगल पूजा राग गौडी व वैराडी में है। चौथी वासक्षेप पूजा का दोहा भी राग गौडी में लिखा गया है। इस पूजा का प्रथम चरण राग सारंग में है तथा दूसरा चरण राग गौडी व पूर्वी का मिश्रण है। पांचवीं पुष्पारोहन पूजा राग कामोद व कानडा में गाया जाता है। छठी मलारोहन पूजा का दोहा राग आशावरी में तथा पूजा का प्रथम चरण रामगिरी गुर्जरी राग में है। दूसरा चरण फिर से राग आशावरी में ही है। सातवीं वर्ण पूजा केदारी गौडी व राग भैरवी में है। आठवीं गंधवटी पूजा का प्रारम्भ दोहे के स्थान पर सोरठे से किया है एवं पूजा में राग सोरठ व सामेरी का प्रयोग किया गया है। नवमी ध्वज पूजा में वस्तु छंद का उपयोग किया है जिसे राग मेघ गौडी में गाया गया है। पूजा का दूसरा चरण राग नटटनारायण में है। दसवीं आभरण पूजा का दोहा राग केदार में गाया जाता है व पूजा का प्रथम चरण राग अधवास या गूढ़ मल्हार में। पूजा का दूसरा चरण पुनः राग केदार में ही है। ग्यारहवीं फूलघर पूजा का पहला चरण रामगिरी कौतकिया में जबकि दूसरा चरण शुद्ध रामगिरी में है। वाराहवी पुष्प वर्षा के दोहे को वर्षा से संवंधित राग मल्हार में पिरोया गाया है तथा इसका पहला चरण गूढ़ मिश्र मल्हार का प्रतिनिधित्व करता है। पूजा का दूसरा चरण भी मल्हार की ही एक अन्य जाति भीम मल्हार में गुम्फित है। तेरहवीं अष्ट मांगलिक पूजा कल्याण कारक होने से इसका दोहा राग कल्याण में लिया है। पूजा का दूसरा चरण भी कल्याण राग में ही है जबकि पहला चरण वसंत राग में। चौदहवीं धुप पूजा राग विलावल व राग मालवी गौडी में है। पंद्रहवीं पूजा गीत पूजा है जिसमे पहले आर्यावृत्त छंद में संस्कृत की रचना है व दुसरे चरण को श्री राग में प्रस्तुत किया गया है। सोलहवीं नाटक पूजा प्राकृत भाषा के शार्दुल विक्रीडित छंद से प्रारम्भ होता है जिसे राग शुद्ध नट में गाने का निर्देशन है। पूजा का अगला चरण राग नट त्रिगुण में है। सत्रहवीं वाजित्र पूजा राग मधु माधवी में गाया जाता है। पूजा का अन्तिम कलश राग धन्या श्री में है। इस प्रकार भारतीय मार्ग संगीत के विशिष्ट रागों में गुम्फित यहाँ भक्ति व श्रृंगार रस प्रधान रचना कुल १०८ कवित्त की है। इसे पढने वाले अब कम रह गए है। अजीमगंज जियागंज में आज भी यहाँ पूजा प्रचलित है। आज इस दुर्लभ कृति के संरक्षण व पुनः प्रचालन की आवश्यकता है । इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरुरत है।

Presented by Vardhaman Gems

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Wednesday, July 15, 2009

Volunteering for Paryushana Pravachana

Jyoti Kothari, Jaipur has been volunteering himself for Paryushana Pravachana since 1984. He had been to Tokyo, capital of Japan last year for Paryushana Pravachana. He will be delivering Paryushana Pravachana at Jineshwar Suri Bhawan, Kolkata this year 2009 during 17 to 24 August.

He had also been to Bangkok, Indore, Hyderabad, Patna, Chandrapur, Malegaon, Ajmer, Byabar, Jaipur, Durg, Lucknow etc for Paryushana Pravachana during those years.

Jain Shivirs of Jyoti Kothari





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Paryushana 2009

The chaturmasa has been started from the 6 th July. Jain monks and nuns started dwelling at one place during these four months.

The most auspicious Jain parva Paryushana is near by. Both Shwetambara and Digambara sects observe Paryushana (though in different dates). Both will be in August 2009. Shwetambara also do Samvatsarika Pratikramana on the last day of Paryushana i.e. samvatsari.

Jain people observe Paryushana in the auspicies of monks and nuns. But there are places where there are no monks or nuns. Some swadhyayi Shravakas go to those places to facilitate Jain people of those places. I, Jyoti Kothari, also volunteer myself for Paryushana every year since 1984. I had been to Tokyo last year.

I request you to inform me at kothari.jyoti@gmail.com if you go for Paryushana as swadhyayee or your Sangh requires a swadhyayee. This blog may help in both way.

Days Until Paryushana

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अजीमगंज में पूजा

अजीमगंज जियागंज में अनेक धार्मिक अनुष्ठान होते थे एवं होते हैं। यहाँ मंदिरों में विभिन्न प्रकार की पूजाएँ पढ़ाई जाती थी। मंदिरों में प्रति दिन स्नात्र पूजा होती थी। इसके अलावा यहाँ नवपद जी की पूजा का विशेष महत्वा था। ओलीजी के आलावा भी हर महीने कम से कम एक वार नवपद जी की पूजा जरूर होती थी। ओलीजी के समय नवपद मंडल की पूजा श्री नेमिनाथ जी के मन्दिर में वर्षों से बड़े धूमधाम के साथ होती है। श्री हरख चंद जी रुमाल ने सब से पहले यह पूजा श्री नेमिनाथ जी के मन्दिर में शुरू करवाई थी. पहले यहाँ श्री सम्भवनाथ जी के मन्दिर में दुगड़ परिवार की और से करवाया जाता था।
हर खुशी के मौके पर जैसे शादी होने पर या कोई बड़ी तपस्या (अट्ठाई, मासक्षमन आदि) करने पर सत्रह भेदी पूजा करवाने का रिवाज़ था।
किसी की मौत होने पर अथवा व्रत धारण करने पर बारह व्रत की पूजा करवाई जाती थी।
इसके अलावा पञ्च कल्याणक, पञ्च ज्ञान, पञ्च परमेष्ठी, वीस स्थानक अदि की पूजाएँ भी होती थी।
दादाबाडी में भाव पूर्वक दादा गुरु की पूजा करवाई जाती है।
यहाँ पर काफी अच्छे गायक कलाकार थे एवं आज भी हैं। यहाँ पूजाएँ बहुत अच्छी तरह से विधि विधान के साथ व सुंदर गायकी से होता है।

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Well established Gems and Jewelry business house needs investment for expansion

A well established Gems and Jewelry house needs investment partner for its global expansion. The farm has well established connections with business people in India and overseas. The farm is based in Jaipur and has a track record of doing well. They are mainly in Gemstones especially colored stones and want to expand in Jewelry field.
They need strategic financing partner who can investment.
People intending to do so can leave a comment with e mail address and/ or phone number.

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Tuesday, July 14, 2009

Required emerald

We need some emeralds for our clients. Sellers and manufacturer of emerald may contact us for the same.
Pls click for details of emeralds required.

Important post for investors

Vardhaman Gems

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"Vivekananda": Play on Saturday 18.07.09

Friends of Tribal Society, Jaipur are organizing a play Swami Vivekananda at Maharana Pratap Sabhagar, Vidyashram school. Jaipur on 18 th July 2009. This play is to bring awareness about Swami Vivekananda among the Jaipurites.

This is a mono act by renowned artist Shekhar Sen who himself has written, directed and acted this play. Shekhar Sen is play back singer of famous TV serial the Ramayana.

Mr. Pradip Khaitan is the coordinator of the play. Renowned Jewelers, industrialists and traders are sponsoring this play and the Dainik Bhaskar is the media partner.

Entry to the play is by invitation cards only.

Powered by: Vardhaman Gems

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Sadhwi Shashiprabhashreeji Chaturmas Pravesh Video



Presented by Vardhaman Gems

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Saturday, July 11, 2009

Dadaguru Pujan at Kolkata Dadabari


Presented by: Vardhaman Gems

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Parshwa Padmawati Mahapujan at Mahavira Swami Temple, Kolkata


Presented by: Vardhaman Gems

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Introduction

Friends of Tribal Society is an India wide organization that runs more than 27000 schools in the tribal areas. Schools are situated in remote places i.e. villages, Jungles and hills.

These schools help the tribal for their general basic education, discipline, and ethics. The society provides education free of cost.

The society selects educated persons from the village itself and train them as teachers. The selected teacher then runs the school in his village for two or three hours. Timings are flexible and adjusted according to the local need. The society pays for the salary of the teacher. They also provide furniture, pedagogy and teaching materials such as black boards.

The society have 7000 full time volunteers and thousands of other part timers. 23 offices all over India manages all these.

Powered by: Vardhaman Gems

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Thursday, July 9, 2009

Parashnath Temple in Kolkata

Parashnath Temple is a beautiful temple made of glass. The temple is in the tourist map of Kolkata, India. Rai Badridas Bahadoor Mookim built this temple in 1867.

Visit this link for more info.
Parashnath Temple

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Monday, July 6, 2009

My last meeting with Manichand Bothra

It is very difficult to believe that my friend Manichand (Manish) Bothra is no more!!

He was a loving and caring personality. He had friends but no enemeys.

He was my childhood friend though much younger. We worked together in Azimganj Mahavira Mandal for long time in seventies and eighties while living in Azimganj.

We could not meet since several years as I live in Jaipur and he was in the native place Azimganj. I could meet him on the occasion of Chaturmaas Pravesha. It was June 30Th night. I reached Azimganj. My friend Sunil, presently secretary, Azimganj Shreesangh called me in the midnight. While meeting him he asked me to conduct the ceremoney next day. Manichnd had been assigned for the same originally. I told Sunil to continue with the original schedule but he forced me to take the charge. Manichand also insisted me to do so. He briefed me about the programme in that night.

On July 1st, morning hours, Sunil had asked me to start the programme but Manichand had some thing else in his mind. He told Sunil that he would rather call me and hand over the charge of announcement. He invited me to conduct the meeting and handed over the charge.

There were several singers in the programme that had to take long time. Due to time constraints I requested him not to sing. He accepted it without opposing. I could not forgive myself if my proposal was carried out. Pujya Maharaj Saheb asked him to sing his bhajan and we all could hear his voice for the last time.

While returning back to Kolkata in the same night, I incidentally met him just outside his shop. I requested him to come with me to residence of Suraj Nowlakha where my baggage were. He denied once as he had to close his shop. I had requested him again to be with me for a while and he accepted. We went together to Suraj and from there to Pujya Maharaj Saheb. While walking I told him to provide me with an audio cassete of Satraha Bhedi puja. I also requested him to collect stories about Azimganj from his father Shree Shitalchand Bothra for this blog. I wanted to get something about Azimganj from his father that could be lost due to his old age.
Who could imagine that Manichand would leave us in two days!!!!

I left Azimganj that day. The next afternoon, in Kolkata Dadabari, the bad news came in. Manichand was hospitalized out of cerebral thrombosis. Sunil reported me in the evening that Manichand was recovering and nothing to be worried. But the next morning he was brought to Kolkataas situation deteriorating. Doctors could not control situation and he was put in ventilator. Situation continued to deteriorate and he was shifted to MRI, Gariahat on 4th of July. He went into deep comma and breathed his last on that very day.

I have lost my loving friend!~! This is an irreparable loss to Azimganj sangh.

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साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी का अजीमगंज में चातुर्मास प्रवेश

१ जुलाई २००९ को साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी का अजीमगंज में चातुर्मास प्रवेश महोत्सव पूर्वक हुआ। प्रातः ७ बजे बिस्कुट फैक्ट्री से जुलुश बैंड बाजे सहित रवाना हुआ । सभी लोग परंपरागत शहरवाली पोशाक में थे। चुन्नटदार धोती, केशरिया कुरता व दुपट्टा मन को मोह रहा था। श्री शांतिनाथ स्वामी के मन्दिर में दर्शन करते हुए जुलुश आगे बढ़ा। हर घर के बाहर साध्वी मंडल के स्वागत में बैनर लगा था। हर घर में गहुली कर उनका स्वागत किया गया। बंगाली समाज की औरतें भी स्वागत में पीछे नही थी। वे शंख ध्वनि कर उनके आगमन पर हर्ष व्यक्त कर रहीं थीं।

श्री नेमिनाथजी के पंचायती मन्दिर
में सामूहिक दर्शन व चैत्यवंदन कर साध्वी श्री ने उपाश्रय में प्रवेश किया व सभी को मंगलिका प्रदान किया। उसके बाद जुलुश पुरे जैन पट्टी की परिक्रमा कर फाटक होते हुए सिंघी सदन पहुँचा जहाँ पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया।

सर्व प्रथम साध्वीजी ने मंगलाचरण किया. उसके बाद महिला मंडल, अजीमगंज के द्वारा स्वागत गीत गाया गया. स्थानीय एवं बाहर से पधारे हुए विशिष्ट अतिथिओं को मंच पर आसीन कराया गया एवं उनका बहुमान किया गया। अजीमगंज संघ के मंत्री श्री सुनील चोरडिया ने स्वागत भाषण दिया। अखिल भारतीय खरतर गच्छ महासंघ के अध्यक्ष श्री पदम चंद नाहटा, सम्मेत शिखर तीर्थ के अध्यक्ष श्री कमल सिंह रामपुरिया, कलकत्ता बड़े मन्दिर के मानद मंत्री श्री कांतिलाल मुकीम, मुर्शिदाबाद संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री शशि नवलखा, श्री ज्ञान चंद लुनावत, श्री महेंद्र परख, टाटानगर के श्री कमल वैद, बालाघाट की श्रीमती नीता लुनिया आदि ने भी सभा को संवोधित किया।
कलकत्ता के स्वनाम धन्य गायक श्री सुरेन्द्र बेगानी ने अपने भजन से सभी को आह्लादित किया। उनके अलावा मनिचंद बोथरा, मोहित बोथरा, किशोर सेठिया अदि ने भी भजन प्रस्तुत किया। साध्वी श्री के गुरुपूजन का लाभ श्रीमती कुसुमदेवी चोरडिया परिवार ने लिया.
अतिथिओं का स्वागत अजीमगंज श्री संघ के अध्यक्ष श्री शीतल चंद बोथरा, मुर्शिदाबाद संघ के अध्यक्ष श्री ज्योति कोठारी आदि ने अतिथिओं का माल्यार्पण कर, तिलक लगा कर, व स्मृति चिह्न भेंट कर स्वागत किया.
सभा को साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री जी व साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी ने भी मंगल प्रवचन से लाभान्वित किया. अंत में साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी के मंगलाचरण के साथ सभा का समापन हुआ.

कार्यक्रम का संचालन जयपुर के श्री ज्योति कोठारी ने किया।
सभा के बाद साधर्मी वात्सल्य का आयोजन हुआ।

जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि


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Paryushana
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