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Monday, March 17, 2025

असि, मसि, कृषि के आद्य प्रणेता ऋषभदेव: मानव सभ्यता और समाज निर्माण के आधारस्तंभ


ऋषभदेव द्वारा समाज, शिक्षा एवं अर्थव्यवस्था का निर्माण

भूमिका

भगवान ऋषभदेव केवल पहले तीर्थंकर ही नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के प्रथम मार्गदर्शक भी थे। उन्होंने मनुष्यों को संस्कृति, शिक्षा, कृषि, व्यापार एवं अर्थव्यवस्था का प्रथम ज्ञान प्रदान किया। इससे पूर्व मानव समाज पूर्णतः असंगठित था, लोग वनों में रहते थे. वृक्षों से प्राप्त फलादि का भोजन करते थे. जैन शास्त्रों में इन्हे कल्पवृक्ष की उपमा दी गई है जो इन सरल प्रकृति के मनुष्यों की सभी सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करता था. उस समय कृषि, पशुपालन, व्यापार यहाँ तक की अग्नि का उपयोग भी नहीं जानते थे.  

जैन शास्त्रों के अनुसार ऋषभदेव ने भरत क्षेत्र को अकर्मभूमि से कर्मभूमि में रूपांतरित किया. शिक्षा, कला एवं ज्ञानहीन जनसमुदाय को विभिन्न प्रकार की शिक्षा देकर उन्हें योग्य एवं कर्मशील बनाया. प्रत्येक व्यक्तो को उसकी आतंरिक योग्यता के अनुसार शिक्षा दे कर समाजव्यवस्था की संरचना में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने शारीरिक अवस्थाओं के अनुसार स्त्री एवं पुरुषों को अलग अलग प्रकार की विद्या एवं कला का ज्ञान दिया. 

ऋषभदेव ने मनुष्यों को चार प्रमुख विधाएँ सिखाईं, इसलिए उन्हें इन विद्याओं का आद्यप्रणेता कहा जाता है. ये विद्याएं आज भी मानव सभ्यता को आलोकित कर रही है. अतः वे मानव सभ्यता और समाज निर्माण के आधारस्तंभ माने जाते हैं. 

  1. असि (शस्त्रविद्या एवं सुरक्षा व्यवस्था)
  2. मसि (लेखन कला एवं ज्ञान प्रसार)
  3. कृषि (खेती एवं पशुपालन)
  4. शिल्प एवं पुरुषों की 72 तथा स्त्रियों की 64 कलाएँ
ऋषभदेव की महिमा केवल जैन शास्त्रों में ही नहीं अपितु वेद-पुराणों में भी वर्णित है. ऋग्वेद, यजुर्वेद, विष्णुपुराण, आदिपुराण, श्रीमद्भागवत आदि अनेक वैदिक ग्रंथों में उनकी महिमा का गान किया गया है. 

1. असि (शस्त्रविद्या) – समाज में अनुशासन एवं सुरक्षा की स्थापना

🔹 ऋषभदेव ने आत्मरक्षा के लिए शस्त्रविद्या (असि) की शिक्षा दी, जिससे समाज में अनुशासन एवं सुरक्षा बनी रहे।
🔹 इस विद्या से समाज को संरक्षा, युद्ध नीति, एवं सामूहिक व्यवस्था का ज्ञान मिला।
🔹 उन्होंने समाज को सिखाया कि हिंसा केवल रक्षा के लिए होनी चाहिए, आक्रमण के लिए नहीं।

👉 अर्थव्यवस्था में योगदान: राज्य की स्थापना के लिए सैन्य बल आवश्यक था, जो व्यापार, कृषि एवं अन्य कार्यों की रक्षा कर सके। असि विद्या के बिना सुशासन एवं समाज को संगठित करना कठिन था।

2. मसि (लेखन, शिक्षा एवं ज्ञान का प्रसार)

🔹 ऋषभदेव ने सर्वप्रथम लिपि का विकास किया एवं  लेखन कला (मसि) का ज्ञान दिया, जिससे भाषा एवं ज्ञान संरक्षित किया जा सके।
🔹लिपि के बिना संस्कृति का विकास कठिन था।
🔹 इससे मनुष्य अपने अनुभवों, सिद्धांतों, व्यापारिक सौदों एवं समाज के नियमों को लिखकर भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँचा सका।
🔹 इससे अध्ययन, प्रशासन एवं ज्ञानार्जन की परंपरा को वल मिला। 

3. कृषि (खेती एवं पशुपालन) – आत्मनिर्भर समाज की नींव

🔹 ऋषभदेव के पूर्व मानव वनों में रहता था एवं भोजन के लिए फल-फूल आदि पर निर्भर था।
🔹 उन्होंने पहली बार कृषि (खेती करने की विधि) सिखाई, जिससे मानव भोजन के लिए आत्मनिर्भर हो सके।
🔹 उन्होंने सिखाया कि कौन-से बीज बोने चाहिए, किस ऋतु में क्या उगता है, एवं सिंचाई कैसे करनी चाहिए।
🔹 इसके साथ ही उन्होंने गौ-पालन एवं पशुपालन की परंपरा भी स्थापित की।

 कृषि एवं पशुपालन ने ही प्राथमिक रूप से वाणिज्य की प्रक्रिया प्रारम्भ करने में योगदान दिया. 

👉 अर्थव्यवस्था में योगदान: खेती एवं पशुपालन ने व्यापार एवं संपन्नता को जन्म दिया। अतिरिक्त उत्पादन से वस्तु-विनिमय (बार्टर सिस्टम) की परंपरा शुरू हुई।

4. 72 एवं 64 कलाएँ – पूर्ण समाज की स्थापना

ऋषभदेव ने न केवल शस्त्र, लेखन एवं कृषि का ज्ञान दिया, बल्कि कला, शिल्प एवं विज्ञान को भी बढ़ावा दिया।
उन्होंने पुरुषों को 72 कलाएँ एवं स्त्रियों को 64 कलाएँ सिखाईं, जिससे समाज का बहुआयामी विकास हो सके।

(क) 72 पुरुषों की कलाएँ – शिल्प एवं व्यापार का विकास

🔹 इनमें अभियांत्रिकी, स्थापत्य कला, धातु विज्ञान, आभूषण निर्माण, अश्वविद्या, रथ सञ्चालन, चिकित्सा, संगीत, योग, वस्त्र निर्माण, व्यापार, प्रशासन, गणित, ज्योतिष एवं अन्य तकनीकी विधाएँ शामिल थीं। इससे पुरुष समाज श्रम, व्यापार, एवं शासन व्यवस्था में दक्ष हुआ।

(ख) 64 स्त्रियों की कलाएँ – समाज एवं संस्कृति का संवर्धन

🔹 स्त्रियों को भी विभिन्न कलाओं का ज्ञान दिया गया, जिनमें चित्रकला, संगीत, नृत्य, पाककला, वस्त्र निर्माण, सौंदर्य शास्त्र, चिकित्सा, कढ़ाई, लेखन एवं अन्य विधाएँ थीं। इससे समाज में संस्कृति, कला, एवं पारिवारिक संगठन का विकास हुआ।

ध्यान देने योग्य बात ये है की ऋषभदेव ने पाककला जैसी कुछ बहु उपयोगी कला पुरुष एवं स्त्री दोनों की सिखलाई. इन कलाओं का समावेश 72 एवं 64 दोनों प्रकार की कलाओं में है. 

👉 अर्थव्यवस्था एवं समाज व्यवस्था में योगदान:
✔ शिल्प और व्यापार ने अर्थव्यवस्था को गति दी।
✔ तकनीकी कौशल से समाज में नवाचार (Innovation) आया।
✔ स्थापत्य कला (Architecture) ने नगर निर्माण की शुरुआत की।


ऋषभदेव द्वारा समाज निर्माण की प्रमुख उपलब्धियाँ

1. शासन व्यवस्था: ऋषभदेव से इक्ष्वाकु वंश प्रारम्भ हुआ. वे इस अवसर्पिणी काल में पहले राजा बने, जिन्होंने शासन की एक व्यवस्थित प्रणाली स्थापित की। उन्होंने विनीता नगरी (अयोध्या) को अपनी राजधानी बनाई. 

उनके दीक्षा लेने के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया और इस आर्यावर्त के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट बने. उन्हीके नाम से इस भूमि का नाम भारत हुआ. 
 2. कृषि विद्या: खेती एवं पशुपालन की शुरुआत कर मनुष्य को आत्मनिर्भर बनाया।
 3. व्यापार: वस्तु-विनिमय प्रणाली एवं अर्थव्यवस्था की नींव रखी।
 4. सैन्य एवं सुरक्षा: असि विद्या (शस्त्र विद्या) द्वारा समाज की रक्षा के लिए व्यवस्था बनाई।
 5. ज्ञान एवं शिक्षा: मसि विद्या (लेखन कला) से शिक्षा प्रणाली की शुरुआत की।
 6. कला एवं शिल्प: 72 एवं 64 कलाओं की शिक्षा देकर समाज में कुशलता एवं संस्कृति का विकास किया।
 7. सामाजिक व्यवस्था: वर्ण व्यवस्था की प्राचीनतम नींव रखी (राजनीति, व्यापार, शिल्प, एवं कृषि में विशेषज्ञता के अनुसार वर्गीकरण हुआ, अर्थात कर्मानुसार वर्ण; जो बाद में विकृत होकर जातिवाद में बदल गया)।
 8. वैराग्य एवं मोक्षमार्ग: अंत में, उन्होंने राजपाट त्यागकर दीक्षा ली, केवलज्ञान प्राप्त किया, सर्वज्ञ बनकर उपदेश दिया और त्याग और मोक्ष की राह दिखलाई। उन्होंने उस काल में इस भूमि पर श्रमण संस्कृति की नींव रखी. 


निष्कर्ष

ऋषभदेव केवल धार्मिक गुरु नहीं, बल्कि पहले समाज सुधारक एवं शिक्षक थे।
उन्होंने शस्त्रविद्या, लेखन, कृषि, व्यापार, एवं कला-संस्कृति का ज्ञान देकर समाज को संगठित किया।
आज की अर्थव्यवस्था, प्रशासन, शिक्षा प्रणाली, एवं वैज्ञानिक सोच का प्रारंभिक आधार उन्होंने रखा।
उनकी शिक्षा से ही समाज व्यवस्थित हुआ, जिससे बाद में नगर, राज्य, एवं सभ्यताओं का निर्माण हुआ।
वे केवल एक महान तीर्थंकर ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के प्रथम पथप्रदर्शक भी थे। 


अतः ऋषभदेव का योगदान केवल धार्मिक क्षेत्र में नहीं, बल्कि समाज, शासन, अर्थव्यवस्था एवं विज्ञान के हर क्षेत्र में अतुलनीय है।
📖 उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रेरणा देती हैं कि कैसे आत्मनिर्भरता, अनुशासन, और ज्ञान द्वारा समाज को उन्नत किया जा सकता है।

वेद विज्ञान लेखमाला: समन्वित दृष्टिकोण- ऋग्वेद एवं अन्य वेदों से सम्बंधित लेखों की सूचि



Thanks, 
Jyoti Kothari 
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, to Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional)

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