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Saturday, March 22, 2025

ऋक्-यजुःसंपदा का पुराण-प्रवाह: अग्नि पुराण


भूमिका:

वैदिक साहित्य में पुराणों का महत्वपूर्ण स्थान है. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा वैदिक धर्मावलम्बियों का दैनंदिन क्रियाकलाप, धार्मिक अनुष्ठान आदि सामान्यतः पुराणों के आधार पर ही चलता है. हर हिन्दू के घर में मृत्यु के समय पढ़े जाने वाले गरुड़ पुराण से कौन अपरिचित है? 

ऐसी आस्था है की सभी 18 पुराणों और 18 उप पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास हैं. यद्यपि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से प्राणों का रचना काल अत्यंत विस्तृत है, लगभग ईशा की दूसरी शताब्दी से 13 वीं  शताब्दी तक. इनमे से अग्नि पुराण सर्वाधिक विस्तृत पुराणों में से एक है. वेदों में भी अग्नि ही प्रमुख देवता हैं, अतः उनके आधार पर रचा गया पुराण भी पुराणों की श्रृंखला में अपना विशिष्ट स्थान रखता है. 

अग्नि पुराण एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विशिष्ट पुराण है, क्योंकि इसमें केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि धर्म, नीति, वास्तु, शास्त्र, आयुर्वेद, ज्योतिष, स्थापत्य, युद्धनीति आदि बहुविध विषयों का समावेश है। इसे एन्साइक्लोपीडिक पुराण भी कहा जाता है।

ऋक् और यजुः — वैदिक ज्ञान की वह अमूल्य संपदा है, जिसमें ब्रह्माण्ड के रहस्य, धर्म के मूल स्वरूप, यज्ञीय कर्मकांड और मानव जीवन के आदर्श सूत्रों का समावेश है। इन्हीं वैदिक निधियों की सांस्कृतिक और लौकिक धारा में प्रवाहित होकर अग्नि पुराण जन्म लेता है।

अग्नि पुराण कोई मात्र पुराण कथा नहीं, अपितु यह ऋग्वेदीय स्तुतियों और यजुर्वेदीय यज्ञीय विधानों का पुराण-प्रवाह है, जिसमें धर्म, विज्ञान, आयुर्वेद, वास्तु, धनुर्वेद, ज्योतिष और लोकधर्म का अद्भुत समन्वय दिखता है।

यह पुराण वैदिक मूल्यों को लोक व्यवहार में उतारते हुए —
✅ यज्ञ और अग्नि की महिमा,
✅ राजधर्म और नीति शास्त्र,
✅ आयुर्वेद और ज्योतिष विद्या,
✅ वास्तु और शिल्पशास्त्र,
✅ तंत्र-मंत्र और साधना मार्ग —


इन सबको एक वैदिक-पुराणिक सेतु के रूप में प्रस्तुत करता है।

ऋक्-यजुः संपदा से समृद्ध यह पुराण न केवल श्रद्धा का विषय है, अपितु शोध, अध्ययन और वैदिक परंपरा के व्यवहारिक पक्ष को समझने का एक अनुपम साधन है।


🔥 अग्नि पुराण का विषय-वस्तु (Subject Matter):

अग्नि पुराण मुख्यतः अग्नि देवता और महर्षि वसिष्ठ के संवाद रूप में रचा गया है। इसमें वैदिक धर्म, स्मृति, पुराण, कला, विज्ञान और तंत्र तक को समाहित किया गया है।

मुख्य विषय एवं उपविषय (Sub-topics):

विषय उपविषय (Sub-topics)
धर्म और उपासना तीर्थ, व्रत, दान, श्राद्ध, यज्ञ, जप, पूजा विधि, तीर्थों का वर्णन
पुराण कथा अवतार कथाएँ, सृष्टि रचना, मन्वंतर, राजवंश, धर्मशास्त्र
राजधर्म एवं राजनीति राजा के कर्तव्य, मंत्रणा, दंडनीति, युद्धनीति, कूटनीति
वास्तुशास्त्र नगर योजना, मंदिर निर्माण, गृह निर्माण, मूर्ति शिल्प
आयुर्वेद चिकित्सा, रोग-निदान, औषधियाँ, रसायन विज्ञान
धनुर्वेद (युद्धशास्त्र) धनुष, अस्त्र-शस्त्र निर्माण, युद्ध नीति, सैन्य संगठन
ज्योतिष और गणित ग्रह, नक्षत्र, राशियाँ, मुहूर्त, कालचक्र, तिथि, पंचांग, ज्यामिति
तंत्र-मंत्र तांत्रिक अनुष्ठान, साधना विधि, मंत्र सिद्धि, कवच निर्माण
शिल्प और चित्रकला मूर्ति निर्माण, चित्रांकन के नियम, रंगशास्त्र
नाट्यशास्त्र और काव्य रस, अलंकार, नाट्यशास्त्र, काव्य रचना के नियम

अग्नि पुराण और वेदों का संबंध (Connection with the Vedas):

अग्नि पुराण अनेक स्थानों पर वेदों का आधार लेकर विषयों को प्रस्तुत करता है:

  1. यज्ञ और अग्नि की महिमा – अग्नि पुराण में अग्नि के विविध स्वरूपों और यज्ञीय अनुष्ठानों का विस्तार से वर्णन है, जो सीधे ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद से जुड़ा है।
  2. धर्मशास्त्र एवं स्मृति ग्रंथों का सार – अग्नि पुराण वैदिक कर्मकांड के साथ-साथ मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति के धर्म और आचार संहिताओं को समेटता है।
  3. आयुर्वेद और ज्योतिष – इन विषयों की जड़ें अथर्ववेद में मानी जाती हैं। अग्नि पुराण में भी वैदिक आयुर्वेद और वैदिक ज्योतिष का विस्तार से वर्णन है।
  4. राजधर्म और दंडनीतिशुक्ल यजुर्वेद के शान्ति और दण्डसूक्त, मनुस्मृति और वेदांगों के अनुसार शासक के धर्म का प्रतिपादन।
  5. वास्तु और शिल्पयजुर्वेद के शिल्पसूक्तों के प्रभाव में भवन निर्माण, मूर्ति विज्ञान और नगर रचना के सिद्धांत।
  6. तंत्र साधना और मंत्र विद्या – वैदिक ऋचाओं के साथ तांत्रिक विधियों का समावेश, कई मंत्र वेदों से उद्धृत हैं।
  7. नाट्य और काव्य – वेदों में वर्णित संगीत और नाद ब्रह्म सिद्धांत के आधार पर काव्य और नाट्यशास्त्र का विकास।

विशेषताएँ (Highlights):

✅ यह पुराण ज्ञान, विज्ञान, धर्म और लोकव्यवहार का अद्भुत संगम है।
✅ इसे प्रायोगिक ग्रंथ (Practical Treatise) भी माना जाता है।
वैदिक परंपरा का विस्तार करते हुए लोकधर्म और व्यवहार शास्त्र तक पहुँचता है।
✅ इसकी बहु-विषयकता इसे अद्वितीय बनाती है।


संक्षिप्त निष्कर्ष:

अग्नि पुराण वेदों की परंपरा को आगे बढ़ाता है और उसमें लौकिक जीवन, विज्ञान, चिकित्सा, शिल्प और तंत्र-मंत्र तक जोड़ देता है। यह वैदिक संस्कृति का विस्तारित और विकसित रूप है, जो भारतीय जीवन के हर पहलू को छूता है।

1. अग्नि पुराण का वैदिक स्वरूप और भूमिका:

  • अग्नि पुराण स्वयं को वैदिक परंपरा का वाहक बताता है।
  • "अग्नि" स्वयं वेदों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण देवता हैं, विशेष रूप से ऋग्वेद में, जहाँ अग्नि सूक्त (ऋग्वेद 1.1.1) से ही शुरुआत होती है।
  • अग्नि पुराण में यज्ञ, हवन, अग्नि साधना और यज्ञिय कर्मों का विस्तार है, जो सीधे यजुर्वेद और ऋग्वेद दोनों से जुड़ते हैं।

2. अग्नि पुराण में यज्ञ और वेदों का स्पष्ट समन्वय (विशेषकर यजुर्वेद से):

  • अग्नि पुराण में यज्ञीय विधियाँ, हवन, आहुति मंत्र, और यज्ञों का फल बार-बार वर्णित है।
  • यज्ञ का मूल स्रोत यजुर्वेद है, और अग्नि पुराण उसी परंपरा का विस्तार है।
  • कई स्थलों पर यजुर्वेदीय मन्त्रों का संदर्भ आता है, जैसे –
    • अग्नि स्थापना
    • ग्रहण, संक्रांति, श्राद्ध आदि में आहुति विधि
    • "इदं न मम" भाव का प्रतिपादन

उदाहरण – अग्नि पुराण में यज्ञीय आहुति में "स्वाहा", "वषट्", "हुं" आदि प्रयोग, यजुर्वेदी परंपरा की पुष्टि करते हैं।


3. ऋग्वेदीय ऋचाओं का संदर्भ और प्रभाव:

  • यद्यपि अग्नि पुराण मुख्यतः स्मृति और पुराण परंपरा का ग्रंथ है, फिर भी इसमें ऋग्वेदीय सूक्तों और मंत्रों की झलक है।
  • अग्नि पुराण में कई बार अग्नि सूक्त, पुरुष सूक्त आदि का उल्लेख या भावानुवाद आता है।
  • देवताओं की स्तुति, विशेषकर अग्नि, इन्द्र, वरुण आदि की प्रशंसा ऋग्वेद से ली गई है।
  • उदाहरण: अग्नि पुराण में अग्नि की प्रशंसा में अनेक श्लोक वैदिक शैली में हैं, जो ऋग्वेद के प्रथम मंडल से प्रेरित हैं।

4. आयुर्वेद, वास्तु, धनुर्वेद आदि का आधार अथर्ववेद में अधिक है, किंतु यजुष और ऋक का मूल प्रवाह स्पष्ट है:

  • आयुर्वेदिक वर्णन वैदिक औषध सूक्तों (अथर्ववेद) से जुड़ा है।
  • वास्तु और स्थापत्य में भी यजुर्वेदी शिल्पसूक्तों का प्रभाव है।
  • युद्ध और धनुर्वेद में यजुर्वेदी युद्ध विधानों का झलक स्पष्ट है।

5. प्रत्यक्ष वेद उद्धरण / समन्वय:

  • अग्नि पुराण में वैदिक मंत्रों का सीधा पाठ कम है, लेकिन अनेक विधान "ऋचः" और "यजुषी" कहकर वैदिक परंपरा को उद्धृत करते हैं।
  • कई बार वाक्य आता है – "एष वै वेदः", "वेदविहितं कर्म", "ऋचाम् अनुसारम्", जिससे वेद का संदर्भ स्पष्ट है।

6. निष्कर्ष (Conclusion):

पक्ष उत्तर
क्या अग्नि पुराण का वैदिक परंपरा से संबंध है? हाँ, अत्यंत गहरा
विशेष रूप से ऋग्वेद और यजुर्वेद से? यजुर्वेद से प्रत्यक्ष, यज्ञ और कर्मकांड में स्पष्ट संबंधऋग्वेद से स्तुति, देवत्व और मंत्रों के भाव में संबंध
प्रत्यक्ष वैदिक मंत्र उद्धरण? सीमित मात्रा में, अधिकतर भावानुवाद और परंपरा
वैदिक प्रभाव का स्वरूप? कर्मकांड, यज्ञ, पूजा विधि, दान, श्राद्ध आदि में

विशेष टिप्पणी:

अग्नि पुराण वेद नहीं है, लेकिन यह वेदों का व्यवहारिक और लौकिक विस्तार है।
यह यजुर्वेदीय कर्मकांड का प्रायोगिक ग्रंथ बनता है और ऋग्वेदीय देव स्तुति और भावना को लोकधर्म में रूपांतरित करता है।

अग्नि पुराण में कई स्थानों पर वैदिक मंत्रों का उल्लेख और उनका अनुप्रयोग मिलता है, विशेषकर ऋग्वेद और यजुर्वेद से संबंधित मंत्रों का। आइए, कुछ उदाहरणों के माध्यम से इस संबंध को समझते हैं:


1. अग्नि पुराण में ऋग्वेद मंत्रों का अनुप्रयोग:

अध्याय 259 में, अग्नि पुराण में ऋग्वेद के मंत्रों के उपयोग का वर्णन मिलता है। उदाहरण के लिए:

"मैं अब तुम्हें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के मंत्रों के अनुप्रयोग का वर्णन करूंगा, जो दोहराने पर भोग और मोक्ष प्रदान करते हैं और (हवन में) आहुति देने के लिए उपयोग किए जाते हैं, जैसा कि पुष्कर ने राम को बताया था।"

यहाँ, ऋग्वेद के मंत्रों के विशेष अनुप्रयोग का उल्लेख है, जो यज्ञ और हवन में प्रयुक्त होते हैं।


2. ऋग्वेद के प्रथम मंत्र और अग्नि पुराण का संबंध:

ऋग्वेद का प्रथम मंत्र अग्नि की स्तुति में है:

"अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥" 

इस मंत्र में अग्नि को यज्ञ का पुरोहित, ऋत्विज, होतार और रत्नों का दाता कहा गया है। अग्नि पुराण में भी अग्नि की महिमा और यज्ञ में उनकी भूमिका का विस्तार से वर्णन मिलता है, जो इस ऋग्वेद मंत्र से मेल खाता है।


1. अग्नि पुराण में यजुर्वेद मंत्रों का संदर्भ:

अग्नि पुराण, अध्याय 141, श्लोक 2, 5, 6, 30, 32, 116, 117, 118, 119, 120, 121 में नवग्रह यज्ञ की महिमा और विधि का वर्णन है। इन श्लोकों में यज्ञ के माध्यम से लक्ष्मी, शांति, दृष्टि, आयु आदि की प्राप्ति की बात कही गई है। यह यजुर्वेद के यज्ञीय परंपरा से मेल खाती है, जहाँ यज्ञ के माध्यम से विभिन्न कामनाओं की पूर्ति का उल्लेख है। (awgp.org)


2. यजुर्वेद में अग्नि की स्तुति:

यजुर्वेद में यज्ञीय क्रियाओं और मंत्रों का विशेष स्थान है। यजुर्वेद में अग्नि देवता की स्तुति में कई मंत्र हैं। अग्नि पुराण में यज्ञ की विधियों, आहुति मंत्रों और अनुष्ठानों का वर्णन यजुर्वेद के अनुरूप है। उदाहरण के लिए, यजुर्वेद में:

"अग्निर्ज्योतिरजः प्राणो मृत्युः..."

इस मंत्र में अग्नि को ज्योति, प्राण और अमृत के रूप में वर्णित किया गया है, जो अग्नि पुराण में अग्नि की महिमा से संबंधित श्लोकों से मेल खाता है। इस प्रकार के मंत्र अग्नि की विभिन्न भूमिकाओं का वर्णन करते हैं, जो अग्नि पुराण में विस्तृत रूप से मिलते हैं।

3. अग्नि पुराण में मेधा सूक्त का उल्लेख:

अग्नि पुराण में मेधा सूक्त का उल्लेख मिलता है, जो यजुर्वेद से संबंधित है। उदाहरण के लिए:

"मेधां मे वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः। मेधामिन्द्रश्च वायुश्च मेधां धाता ददातु मे॥"
— यजुर्वेद 36.21

इस मंत्र में वरुण, अग्नि, प्रजापति, इन्द्र, वायु और धाता से मेधा (बुद्धि) की प्रार्थना की गई है। अग्नि पुराण में भी मेधा की प्राप्ति के लिए इसी प्रकार की प्रार्थनाएँ मिलती हैं। (vichaarsankalan.wordpress.com)

4. अग्नि पुराण में सप्तजिह्वा का वर्णन:

अग्नि की सात जिह्वाओं (जीभों) का वर्णन अग्नि पुराण में मिलता है, जो वैदिक परंपरा से संबंधित है। ये सात जिह्वाएँ हैं: हिरण्य, गगना, रक्त, कृष्णा, सुप्रभा, बहुरूपा, अतिरक्ता। 

सारांश 

अग्नि पुराण और यजुर्वेद के बीच गहरा संबंध है. अग्नि पुराण में यजुर्वेद के मंत्रों का प्रत्यक्ष उद्धरण सीमित है, लेकिन यज्ञीय विधियों, अग्नि की महिमा, मेधा की प्रार्थना आदि विषयों में यजुर्वेद के मंत्रों का संदर्भ मिलता है। यह दर्शाता है कि अग्नि पुराण और यजुर्वेद के बीच एक गहरा संबंध है, विशेषकर यज्ञ और अग्नि से संबंधित विषयों में।

अग्नि पुराण एवं तीर्थंकर ऋषभदेव व चक्रवर्ती भरत  

अग्नि पुराण (अध्याय 107, श्लोक 11–12):

श्लोक: 

"ऋषभो मरुदेव्याश्च ऋषभात् भरतो भवेत्।
भरताद् भारतं वर्षं, जम्बूद्वीपे व्यपदिशेत्।"

हिंदी अनुवाद: "ऋषभ का जन्म मरुदेवी से हुआ; ऋषभ से भरत का जन्म हुआ; भरत से जम्बूद्वीप में वह क्षेत्र 'भारतवर्ष' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।"

अग्निपुराण का यह श्लोक इसे जैन परंपरा से भी जोड़ता है. 

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निष्कर्ष:

अग्नि पुराण और वेदों के बीच गहरा संबंध है। विशेषकर, ऋग्वेद और यजुर्वेद के मंत्रों का उल्लेख और उनका अनुप्रयोग अग्नि पुराण में मिलता है, जो वैदिक परंपरा और पुराणिक साहित्य के बीच की कड़ी को प्रकट करता है। इसी प्रकार वेदों में प्राप्त ऋषभ एवं भरत के सन्दर्भ का विस्तार भी अग्निपुराण में किया गया है. इस तरह यह वैदिक एवं जैन संस्कृति के मध्य भी एक सेतु का काम करता है. 

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Jyoti Kothari 
(Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, to Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also an ISO 9000 professional)

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